भाषण देते, मस्त सिकंदर लगते हैं !
भोले वोटर, सचमुच बंदर लगते हैं !
कंगूरों को, सर न झुकाया जीवन में !
भोले वोटर, सचमुच बंदर लगते हैं !
भीड़तंत्र का किला, मीडिया ने जीता
नेताजी अब और , मुछन्दर लगते हैं !
नेताजी अब और , मुछन्दर लगते हैं !
और किसी के, रंग रूप से क्या लेना,
हमको इनके गाल, चुकंदर लगते हैं !
कंगूरों को, सर न झुकाया जीवन में !
चंदा , सूरज , घर के अंदर लगते हैं !
हमें तुम्हारी धन दौलत से क्या लेना,
हमको अपने ताल, समंदर लगते हैं !
हमको अपने ताल, समंदर लगते हैं !
सुन्दर अभिव्यक्ति । बधाई ।
ReplyDeleteबढ़िया मस्त लेखन , आदरणीय धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सुन्दर...
ReplyDeleteवाह! सरल, सहज, मस्त! :)
ReplyDeleteबहुत खूब :) वाह ।
ReplyDeleteयही होता है.
ReplyDeleteahaaa!! sundar :) :)
ReplyDeleteअच्छी उपमाओं से नवाजा आपने उन्हें --कोई फर्क नहीं पड़ता जिन्हे
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
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