Monday, May 26, 2014

हमको अपने ताल,समंदर लगतें हैँ -सतीश सक्सेना

भाषण देते, मस्त सिकंदर लगते हैं !
भोले वोटर, सचमुच बंदर लगते हैं !

भीड़तंत्र का किला, मीडिया ने जीता
नेताजी अब और , मुछन्दर लगते हैं !

और किसी के, रंग रूप से क्या लेना,
हमको इनके गाल, चुकंदर लगते हैं !

कंगूरों को, सर न झुकाया जीवन में !
चंदा , सूरज , घर के अंदर लगते हैं !

हमें तुम्हारी धन दौलत से क्या लेना,
हमको अपने ताल, समंदर लगते हैं !

10 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति । बधाई ।

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  2. वाह! सरल, सहज, मस्त! :)

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  3. अच्छी उपमाओं से नवाजा आपने उन्हें --कोई फर्क नहीं पड़ता जिन्हे

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  4. बहुत सुंदर रचना।

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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