Saturday, May 31, 2014

जाने कैसी नज़र लगी,खलिहानों को !-सतीश सक्सेना

मूरख जनता चुन लेती धनवानों को !
बाद में रोती, रोटी और मकानों को !

रामलीला मैदान में, भारी भीड़ जुटी,
आस लगाए सुनती, महिमावानों को !

काली दाढ़ी , आँख दबाये , मुस्कायें ,
अब तो जल्दी पंख लगें, अरमानों को !

रक्तबीज  शुक्राचार्यों  के , पनप रहे 
निंदा, नहीं सुनायी देती , कानों को !

दद्दा , ताऊ  कितने, गुमसुम रहते हैं !
जाने कैसी नज़र लगी, खलिहानों को !



नोट :  यह रचना आज जयपुर में छपी , बताने के लिए संतोष त्रिवेदी का आभार 
http://dailynewsnetwork.epapr.in/283149/Daily-news/04-06-2014#page/8/2 

21 comments:


  1. काली दाढ़ी , आँख दबाये , मुस्कायें ,
    अब तो जल्दी पंख लगें,अरमानों को !

    दद्दा , ताऊ कितने, गुमसुम रहते हैं !
    जाने कैसी नज़र लगी,खलिहानों को !

    देर से आये , पर मन में विश्वास लिए !
    रखा तो होगा,तुमने कुछ वरदानों को !

    काली दाढ़ी , आँख दबाये , मुस्कायें ,
    अब तो जल्दी पंख लगें,अरमानों को !

    दद्दा , ताऊ कितने, गुमसुम रहते हैं !
    जाने कैसी नज़र लगी,खलिहानों को !

    देर से आये , पर मन में विश्वास लिए !
    रखा तो होगा,तुमने कुछ वरदानों को !

    वाह ! सतीश जी थप्पड़ भी मार दिया और गाल को सहला भी दिया -बहुत बढ़िया
    New post मोदी सरकार की प्रथामिकता क्या है ?
    new post ग्रीष्म ऋतू !

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  2. रक्तबीज शुक्राचार्यों के , पनप रहे
    निंदा, नहीं सुनायी देती , कानों को !

    कमाल की रचना....
    सादर
    अनु

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  3. गज़ब कटाक्ष...

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  4. काली दाढ़ी , आँख दबाये , मुस्कायें ,
    अब तो जल्दी पंख लगें,अरमानों को !
    यह बहुत खूब कहा है, सटीक रचना !

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  5. रक्तबीज शुक्राचार्यों के , पनप रहे
    निंदा, नहीं सुनायी देती , कानों को ...

    वाह ... व्यंग की धार कमाल है ... लाजवाब अभिव्यक्ति ..

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  6. Truly the public is deceived at the hands of cheaters. Let it once more try with its aspirations. Good luck!

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  7. शुक्राचार्य और रक्तबीज प्रयोग बहुत अर्थपूर्ण हैं !

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  8. रक्तबीज शुक्राचार्यों के , पनप रहे

    bahut sundar

    abhaar

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  9. आपके लिए जान हाजिर है साहब

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  10. सटीक अभिव्यक्ति ..

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  11. ईश्वर ने कुछ वरदान बचा रखे होंगे अच्छे सच्चों के लिए भी !
    बहुत शुभकामनाये !

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  12. रक्तबीज शुक्राचार्यों के , पनप रहे
    निंदा, नहीं सुनायी देती , कानों को !
    नि:शब्‍द करती पंक्तियां

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  13. कटु सत्य...प्रभावी रचना

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  14. उम्दा रचना ...

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- सतीश सक्सेना

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