Tuesday, May 19, 2015

कभी मुस्काएं गैरों पर, किसी दिन राह में थम कर - सतीश सक्सेना

आस्था का सहारा लेकर धन कमाने में व्यस्त ये जालसाज :
*************************************
आस्था बेच के देखें, कि छप्पर फाड़ आता क्या !
बड़ा रूतबा है दाढ़ी में,मनीषी क्या विधाता क्या !

यहाँ इक झोपडी में छिपके रहता इक भगोड़ा था 
निरक्षर सोंचता था मैं , वीरानों  में ये करता क्या !

तिराहे पर पुलिस के हाथ जोड़ा करता बरसों से,
मैं मूरख सोंचता था, इन मज़ारों से ये खाता क्या ! 

कमाई आधी रिश्वत में  निछावर कर, बना मंदिर !
शहर अंधों का उमड़ा ले चढ़ावा और पाता क्या !

अब इस प्राचीन मंदिर में दया बरसाई है प्रभु ने 
खड़ी है कार होंडा भवन में, तंगी से नाता क्या ! 

कभी मुस्काएं गैरों पर,किसी दिन राह में थमकर
बेचारा भूल के गम अपने सोचेगा,यह रिश्ता क्या !

15 comments:

  1. कमाई आधी रिश्वत में , निछावर कर बना मंदिर !
    शहर अंधों का उमड़ेगा,चढ़ाये क्या औ लेता क्या !
    .दिखावा ज्यादा करते हैं लोग ....देव को पूजते हैं इंसान को इंसान नहीं समझते ..कैसे खुश होंगे भगवान यह समझ नहीं पाते हैं ...
    बहुत सटीक चिंतन

    ReplyDelete
  2. वाह !
    पर
    बड़ी देर में समझे :)
    हम पहले समझ गये थे इसी लिये रख लिये :D

    ReplyDelete
  3. कभी मुस्काएं गैरों पर, किसी दिन राह में थम कर
    बेचारा भूल के गम अपने सोचेगा,यह रिश्ता क्या ..
    बहुत खूब सतीश जी ... किसी के मुस्कुराने से कोइ अपने गम भूल सके तो जीवन सार्थक है ...
    हर शेर नायाब मोती है ...

    ReplyDelete
  4. आडम्बर को करारी फटकार के साथ संवेदना भी...वास्तव में अब लोग अपनों को भी देख मुस्कराना भूल रहे हैं गैरों की क्या बिसात ..अच्छा सन्देश है ..

    ReplyDelete
  5. आस्था बेच के देखें, कि छप्पर फाड़ आता क्या !
    बड़ा रूतबा है दाढ़ी में,मनीषी क्या विधाता क्या ----हर पंक्ति आपकी सुंदर और सच्ची सोच है। देश इन्ही के बदौलत तो कराह रहा और ये बमबम हैं।

    ReplyDelete
  6. ईश्वर के नाम पर अपना घर भरने वाले ऊपर से भले सम्पन्न दिखाई दें भीतर से निर्धन होते हैं..सच्चा धन साधना से ही मिलता है.

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  8. sacchai ko ainaa dikhati ye aapki sunder rachna

    ReplyDelete
  9. भगवान के नाम पर न हो कर अब मंदिर पैसा लगानेवाले के नाम पर होते हैं - आपने सही पोल खोली है .

    ReplyDelete
  10. कभी मुस्काएं गैरों पर, किसी दिन राह में थम कर
    बेचारा भूल के गम अपने सोचेगा,यह रिश्ता क्या !

    बस, यही सही है...
    शेष तो आडंबर मात्र हैं....
    अच्छी रचना ।

    ReplyDelete
  11. बेहतरीन रचना
    प्रणाम स्वीकार करें

    ReplyDelete
  12. बेह्तरीन अभिव्यक्ति
    बहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,