मैंने आज तक किसी को बेटी नहीं कहा क्योंकि मेरे पास अपने पापा को बेहद प्यार करने वाली बेटी पहले से ही मौजूद है, मैंने किसी को बहिन नहीं बनाया क्योँकि मेरी हर वक्त चिंता करने वाली दो बड़ी बहिनें पहले से ही हैं , बहनों और बेटी को जितना प्यार और समय मुझे देना चाहिए वह मैं इन्हें नहीं दे पाता और कहीं न कहीं अपने आपको इन दोनों रिश्तों के प्रति गुनाहगार मानता हूँ !
ऐसे में , मैं आश्चर्यचकित रह जाता हूँ जब मैं मित्रों को आपस में , भाई या बहिन बनाते हुए राखी बांधते बंधवाते देखता हूँ जबकि उनके घर में अपने भाई बहिन पहले से ही मौजूद हैं जिनके साथ उनके रिश्ते तल्ख़ हैं या हजारों शिकायतें मन में लिए, मात्र दिखावे के लिए बातचीत है !
लोगों के, समाज के भय से हम उन्हें मित्र या दोस्त खुलकर न कह पाते हैं और न मित्रता के रिश्ते निभा पाते हैं मगर राखी बाँधने के बाद हमारा ज़ाहिल समाज उसे स्वीकार ही नहीं करता बल्कि घर में सम्मान भी दिलाता है ! समाज के बनाये पवित्र रिश्तों का चालाक दिमाग ने कितना बदसूरत उपयोग किया है !
स्वाभाविक है कि यह पवित्र रिश्तों का ढिंढोरा समाज को दिखाने के लिए बजाया जाता है जिससे लोग उनके रिश्तों पर शक न कर सकें और इस पाखण्ड की आड़ में उनकी मित्रता सुरक्षित रहे !
बहुत बारीक ऑब्सर्वेशन है और सटीक भी।
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