Tuesday, March 20, 2018

जय किसान के, मक्कार खोखले नारे - सतीश सक्सेना

इस देश की भ्रष्ट राजनीति ने किसानों की कभी परवाह नहीं की उन्हें हमेशा भेंड़ बकरियों की तरह गांव के
मजबूत प्रधानों, मुखियाओं के बाड़े में रखा जाता रहा जिसे तोड़ कर बाहर निकलने का साहस न इन अनपढ़ों गंवारों में पहले था और न आज है !
उनका देश में बहुमत हमेशा था और वोट डालते समय उन्हें घरों से निकालने का काम ग्राम सरपंच और मुखियाओं के जिम्मे था जो उनके बताये निशान पर वोट डालते थे !
उन्हें यह पूंछने का अधिकार कभी नहीं था कि हम किसे वोट दे रहे हैं और 70 प्रतिशत गांवों में आज भी नहीं है , पूंछने का अर्थ जुर्रत करना था और गाँव के दबंगों के लिए यह अपराध, माफ़ी योग्य न तब था और न अब है !

यवतमाल यात्रा के समय मैं उनकी दुर्दशा देखकर आश्चर्यचकित था और साथ ही शर्मिंदा भी कि हम आज भी एक अनपढ़ अविकसित देश के नागरिक हैं जहाँ मानवता का कोई मूल्य नहीं जहाँ सत्ता सिर्फ राजाओं की
बपौती है जहाँ हमें जानवरों की तरह ही जीना है और उनका मुखियाओं का आदेश मरते दम तक मानना है !
जुड़ा हमारा जीवन गहरा ,भोजन के रखवालों से !
किसी हाल में साथ न छोड़ें,देंगे साथ किसानों का
इन्द्र देव  की पूजा करके, भूख मिटायें मानव की  
राजनीति के अंधे कैसे समझें कष्ट किसानों का !

2 comments:

  1. किसान, जवान, सब नारे हैं। ज्वलंत नारे । नारों को जिंदा रखना जरूरी है।

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,