पग जहाँ उठे,रंग बरस उठें
कुछ ऐसा रंग चढ़ा मन पर ,
हम जहाँ उठे, सब झूम उठे
कुछ मौसम ने अंगडाई ली,
गुलमोहर ने रंग बरसाए !
कुछ मौसम ने अंगडाई ली,
गुलमोहर ने रंग बरसाए !
कुछ यार हमारे आ बैठे , महफ़िल में सुर झंकार उठे !
दिल करे नाचने को यारों,
माहौल सुगन्धित हो जाए
जीवन के सुंदर पन्नों में ,
चन्दन की गंध समा जाये
मधु कलशों से अमृत छलके,
मन वृन्दावन सा हो जाए !
बचपन से कभी जो सुन न सके, वे साज बजाए झूम उठे !
जीवन के सुंदर पन्नों में ,
चन्दन की गंध समा जाये
मधु कलशों से अमृत छलके,
मन वृन्दावन सा हो जाए !
बचपन से कभी जो सुन न सके, वे साज बजाए झूम उठे !
जीवन की सुंदर नगरी में ,
यह पहला कदम उठाया है
अब साथ तुम्हारा पाते ही
मन में उत्साह समाया है !
अब दिन भर तो रंग खेलेंगे
हर रात मनेगी दीवाली !
हर रात मनेगी दीवाली !
पायल छमछम, तबला ठुमके, सब यार हमारे झूम उठें !
रो रोकर दुनिया जीती है
रो रोकर दुनिया जीती है
हम हँसना उसे सिखायेंगे
नफ़रत की जलती लपटों
पर गंगा जल ही बरसाएंगे
शीतल जल की फुहार बरसे ,
जब तपती धरती पर यारो
रजनीगंधा के साथ साथ , घर का गुलमोहर महक उठे !
नफ़रत की जलती लपटों
पर गंगा जल ही बरसाएंगे
शीतल जल की फुहार बरसे ,
जब तपती धरती पर यारो
रजनीगंधा के साथ साथ , घर का गुलमोहर महक उठे !
आदमी को खींचता आदमी
ReplyDeleteप्यार को प्यार
फिर हम कैसे दूर रहे आपसे
जहाँ मिले आप बडो का दुलार ||
एक नई दुनिया
ReplyDeleteनया आसमां देखा हैं
हमने यहां ..अपनेपन का
संसार देखा हैं ,
मिला नहीं किसी बड़े की आशीष
पर आपके रूप में ..वो बड़ा भी मिला हैं ......आभार
शुक्रिया स्नेह के लिए अनु....
Deleteबहुत सुंदर...................
ReplyDeleteजीवन से भरी हुई रचना......
खिली-खिली....
महकी महकी......................
सादर
अनु
आज बाहर भी मौसम सुहाना हो गया है ।
ReplyDeleteयारों की महफ़िल का असर आ गया यारो ।
मस्त अंदाज़ में लिखा है आज का गीत भाई जी ।
शुभकामनायें आपको ।
बहुत सुंदर...................
ReplyDeleteमगर फोटो किसकी है ? कुछ संदर्भ नहीं संकेत नहीं -इस सुन्दर गीत के साथ कोई परिप्रेक्ष्य नहीं ?
ReplyDeleteयह गीत नवजवानों को इंगित कर रहा है , फोटो गौरव ( मेरे बेटे ) का है !
Deleteबाढ़ें पुत्र पिता के धर्मे ....साक्षात है! स्नेहाशीष!
Deleteबहुत ही लाजवाब. यहाँ मौसम सुहाना तो नहीं है परतु बाहर खिड़की पर एक भीमकाय कूलर लगा कर श्रीनगर को याद कर रहे हैं.
ReplyDeleteचलाइये तो सही , वर्ना श्री नगर कहाँ ??
Deleteआभार भाई जी !
कुछ मौसम ने अंगडाई ली, गुलमोहर ने रंग बरसाए !
ReplyDeleteकुछ यार हमारे आ बैठे , महफ़िल में सुर झंकार उठे !
सुंदर मौसम का खुमार छा गया या कोई खास बात सतीश जी.
कई बार मन कुछ अधिक प्रसन्न होता है तब ऐसा गीत बन जाता है :)
Deleteआभार आपका ....
रो रोकर दुनिया जीती है
ReplyDeleteहम हँसना उसे सिखायेंगे
नफ़रत की जलती लपटों
पर गंगा जल ही बरसाएंगे
शीतल जल की फुहार बरसे ,जब तपती धरती पर यारो
रजनीगंधा के साथ साथ , घर का गुलमोहर महक उठे !
beautiful expression.
बेहतरीन विचार लिए पंक्तियाँ..... सुंदर
ReplyDeleteजीवन की मस्ती का गीत .अच्छा लग रहा है -पढना भी !
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत ...
ReplyDeleteआभार रविकर भाई ...
ReplyDeleteशुभकामनायें!
ReplyDeleteरो रोकर दुनिया जीती है
ReplyDeleteहम हँसना उसे सिखायेंगे
तथास्तु ...
बहुत सुन्दर गीत
sundar git....
ReplyDeleteरो रोकर दुनिया जीती है
ReplyDeleteहम हँसना उसे सिखायेंगे
नफ़रत की जलती लपटों
पर गंगा जल ही बरसाएंगे
मस्त कर देने वाली रचना साथ ही प्रेरक भी ... आभार
mast cha vindas....
ReplyDeletepranam.
मक्खन आपकी पोस्ट पढ़कर झूमता हुआ गाए जा रहा है...
ReplyDelete
झूम बराबर झूम...
जय हिंद...
अगली बार 'डोलू कुनिता' ट्राई कर देखिये बड़े भाई, हो सकता है सोने पर सुहागा हो जाए :)
ReplyDeleteपूरे रंग में हैं आप और ऐसे ही थिरकते- गाते रहें, अपन भी खुश होते रहेंगे आपको खुश देखकर|
ढोल सीखने का बड़ा दिल है यार ...
Deleteचलते हैं प्रवीण भाई के पास :))
रो रोकर दुनिया जीती है
ReplyDeleteहम हँसना उसे सिखायेंगे
नफ़रत की जलती लपटों
पर गंगा जल ही बरसाएंगे
शीतल जल की फुहार बरसे ,जब तपती धरती पर यारो
रजनीगंधा के साथ साथ , घर का गुलमोहर महक उठे !
बहुत सुन्दर विचार हैं ....काश सभी ऐसा महसूस करें तो दुनिया गुलज़ार हो जाये
रो रोकर दुनिया जीती है
ReplyDeleteहम हँसना उसे सिखायेंगे
नफ़रत की जलती लपटों
पर गंगा जल ही बरसाएंगे
....जीवन का उत्साह लिये बहुत सुन्दर, भावपूर्ण गीत जिसका प्रवाह अपने साथ बहा लेजाता है..
बढि़या गीत, उमंग और उत्साह से भरा।
ReplyDeleteरजनीगंधा से वैसे भी आपका आशियाना दूर नहीं.. आपकी उमंग बस ऐसे ही बनी रहे!! मज़ा आ रहा है आपके गीत सुनकर!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत ...
ReplyDeleteबहुत खूब...क्या बात है...
ReplyDeleteकभी कभी मन की गति सप्तसुरों के संग होती है ... सारे लय मन के अन्दर झूमते थिरकते हैं
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत ...
सुन्दर गीत.. आपके गीत में जीवन के सभी रंग मिलते हैं... सहज गीत में कवि अपने प्राकृतिक रूप में मौजूद होता है... बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteबहुत बढिया है।
ReplyDeleteलाजबाब प्रस्तुति.
ReplyDeleteउल्लास और मस्ती से भरपूर.
तरंगित करती हुई.
जीवन के सुंदर पन्नों में ,
ReplyDeleteचन्दन की गंध समा जाये
मधु कलशों से अमृत छलके, मन वृन्दावन सा हो जाए !
बचपन से जो देखा न कभी, वह साज बजाओ , झूम उठें !
उल्लास हर्ष और मस्ती से भऱपूर गीत पढ कर आनंद आ गया .