यह नहीं समझ आया, कि इंसानियत भूलों से, पहाड़ के नुक्सान को पूरा करने को , इस ग़ज़ल में ऐसा क्या लिखें कि अर्थ पूरा हो ???
हमारी बेवकूफियों से पहाड़ रो रहे हैं , नदियाँ क्रोधित हैं , अगर नहीं सुधरे तो अभी बहुत कुछ सहना बाकी है ! Ref: 16 june 2013, केदार घाटी
हमारी बेवकूफियों से पहाड़ रो रहे हैं , नदियाँ क्रोधित हैं , अगर नहीं सुधरे तो अभी बहुत कुछ सहना बाकी है ! Ref: 16 june 2013, केदार घाटी
हिमालय को समझते, उम्र गुज़र जायेगी !
आज सब दब गए, इस दर्द के, पहाड़ तले
अब तो लगता है रोते, उम्र गुज़र जायेगी !
किसको मालूम था, उस रात उफनती, वह
कैसे मिल पाएंगे ?जो लोग, खो गए घर से,
मां को, समझाने में ही, उम्र गुज़र जायेंगी !
बहुत गुमान था, नदियों को बांधते, मानव
आज सब दब गए, इस दर्द के, पहाड़ तले
अब तो लगता है रोते, उम्र गुज़र जायेगी !
किसको मालूम था, उस रात उफनती, वह
नदी, देखते देखते ऊपर से, गुज़र जायेगी !
कैसे मिल पाएंगे ?जो लोग, खो गए घर से,
मां को, समझाने में ही, उम्र गुज़र जायेंगी !
बहुत गुमान था, नदियों को बांधते, मानव
केदार ऐ खौफ में ही, उम्र, गुज़र जायेगी !
मैदानों को पथरीला बनाने की
ReplyDeleteयह अहंकारी चाह
यूँ ही ओर भी ना जाने कितनी ही
जिंदगियां लील जाएगी।
मैदानों को पथरीला बनाने की
ReplyDeleteयह अहंकारी चाह
यूँ ही ओर भी ना जाने कितनी ही
जिंदगियां लील जाएगी।
सच्चाई को शब्दों में बखूबी उतारा है आपने . आभार . ये है मर्द की हकीकत आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
ReplyDeleteमार्मिक अभिवयक्ति...
ReplyDeleteबड़ा मुश्किल होगा इस तरह उम्र गुजारना.....
ReplyDeleteसादर
अनु
बिलकुल सही कहा , ये सब हमारी ही गलतियाँ है, हमने प्रक्रति से छेड़ छाड़ की है , उसका ही नतीजा है ये,बहुत सटीक अभिव्यक्ति , शुभकामनाये,
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/06/blog-post_21.html
प्रकृति अपनी अवहेलना का प्रतिकार शायद इसी तरह करती है ...... सादर !
ReplyDeleteबहुत बड़ा सच व्यक्त किया है आपने, हम क्या सोच लेते हैं और क्या हो जाता है, अब यही सोचने में समय बीत जायेगा।
ReplyDeleteआदमी नहीं बदलेगा उम्र गुजर जायेगी !
ReplyDeleteसत्य वचन !
मानव अपनी बुद्धि पर बहुत इतराता है .... लेकिन प्रकृति उसे सच का आईना दिखा देती है .... मार्मिक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत गुमान था,नदियों को बांधते, मानव
ReplyDeleteप्रकृति के, खौफ में ही,उम्र गुज़र जायेगी !
किन्तु चेतेगा फिर भी नहीं !
गजब अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत गुमान था,नदियों को बांधते, मानव
केदार ऐ खौफ में ही , उम्र गुज़र जायेगी !
बहुत गुमान था,नदियों को बांधते, मानव
ReplyDeleteकेदार ऐ खौफ में ही , उम्र गुज़र जायेगी !
बहुत सही कहा.
रामराम.
इंसान अपना बोया हुआ ही काट रहा है दोष भगवान के मत्थे, जिस तरह पर्यावरण को ध्वस्त किया जा रहा है उससे ना केवल पहाड बल्कि मैदान और समंदर भी ऐसा ही व्यवहार करेंगे.
ReplyDeleteरामारम.
इन्सान के कर्मों का फल भगवान को भी भुगतना पड़ रहा है।
ReplyDeleteस्तब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हूँ
ReplyDeleteकैसे मिल पाएंगे,जो लोग,खो गए घर से,
ReplyDeleteमां को,समझाने में ही,उम्र गुज़र जायेंगी !
sacchi bat kaise samjha payenge ...
पहाड़ को नोचने खसोटने का सबब है यह सब ,हविश ,हविश ,सड़क सड़क
ReplyDeleteबहुत ही दुखद :(
ReplyDeleteआज सब दब गए , इस दर्द के, पहाड़ तले
ReplyDeleteअब तो लगता है,रोते, उम्र गुज़र जायेगी !
सच बात है ....जिनके अपने गए हैं उनके लिए उम्र भर का दर्द है ....!!
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति सतीश जी, इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया। आपने सारे देश का दर्द इन शब्दों में बयां किया है। भगवान देश को इससे उबरने की शक्ति दे।
ReplyDeleteबहुत कुछ सोंचने पर विवश करती रचना...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteप्राकृतिक तत्वों को मनमाने ढंग से चलाने का दंभ ऐसे ही परिणाम दिखायेगा - और तब इंसान कुछ न कर पाएगा !
ReplyDeleteकहीं पर सूखे की मार, कहीं पर विनाशकारी बाढ़
ReplyDeleteसोचा न था,कुदरत इस तरह कहर बरपा जायेगी !
सुप्रभात आपने जहां के दर्द को अपने लहू से लिख दिया
ReplyDeleteकैसे मिल पाएंगे ?जो लोग,खो गए घर से,
मां को,समझाने में ही,उम्र गुज़र जायेंगी !
शुक्रिया सतीश भाई आपकी टिप्पणियों का .आपकी टिप्पणियाँ हमारी शान हैं .पारितंत्रों की टूटन हामरी ही टूटन घुटन बनेगी बन रही है ,मौत का सबब भी यही बनेगी .बन रही है .
Deleteबहुत दुखद है. सुन्दर ग़ज़ल.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
लगता भूलों में ही, यह उम्र, गुज़र जायेगी
हिमालय को, समझते,उम्र गुज़र जायेगी !
सतीश जी,
हिमालय तो समझा रहा है बहुत बार से... कहता है बार बार कि वजन नहीं उठा सकता इन भारी भरकम धर्मस्थानों-मकानों-होटलों-गेस्टहाउसों-आश्रमों-ऐशगाहों का, और वह भी ठीक नदी के सीने के ऊपर ही... पर हम हैं कि समझना ही नहीं चाहते...
...
,कुदरत को किसने समझा है,? कौन समझ सकता है?केवल समझने का दावा करने से क्या होता है
ReplyDeletehimalaya ka dard zubaan pa gaya is saal....
ReplyDelete
ReplyDeleteआपकी पर्यावरण सचेत दृष्टि को सलाम .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .ॐ शान्ति .
ReplyDeleteआपकी पर्यावरण सचेत दृष्टि को सलाम .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .ॐ शान्ति .
हिमालय हेज़ ए वेरी फ्रेजाइल इकोलोजी .हिमालय पारितंत्र कांग्रेस की तरह छीज रहा है .सबने लूटा खसोटा है हिमालय .
नियति है साहब, अगर समझ भी लिया , तब भी उम्र कहाँ थमने वाली है :)
ReplyDeleteलिखते रहिए
यह एक इशारा भर है समझाने को कि प्रकृति से छेड़छाड़ कैसे दिन दिखा सकती है.
ReplyDeleteprakriti ke dohan ke prinaam bhugtne koyee devta nhi ayega ye sab srijan ke charan hain.
ReplyDeleteprakriti ke dohan ke prinaam bhugtne koyee devta nhi ayega ye sab srijan ke charan hain.
ReplyDeleteस्तब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हूँ........बहुत दुखद है.बहुत कुछ सोंचने पर विवश करती रचना...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteप्रकृति देती है भरपूर मगर इंसान हद करे पार तो ब्याज सहित वापस ले लेती है , त्रासदी ने दिया भारी सबक !
ReplyDeleteकेवल आह! बस..
ReplyDeleteसच में यह इंसान की भूलों का ही परिणाम है
ReplyDeleteसार्थक रचना
सादर !
सच में यह इंसान की भूलों का ही परिणाम है
ReplyDeleteसार्थक सामयिक रचना
सादर !
अगली पोस्ट प्रतीक्षित रहती है आपकी .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .ॐ शान्ति .
ReplyDeleteकेदार ए खौफ में ही उम्र गुजर जायेगी ।
ReplyDeleteबहुत सही कहा ।
सुन्दरम मनोहरं .शुक्रिया आपका मेहरबानी आपकी टिप्पणियों के लिए .
ReplyDeleteदंभ मानव का उसे ही ले डूबेगा
ReplyDeleteकैसे मिल पाएंगे ?जो लोग,खो गए घर से,
ReplyDeleteमां को,समझाने में ही,उम्र गुज़र जायेंगी !
बहुत गुमान था,नदियों को बांधते, मानव
केदार ऐ खौफ में ही, उम्र, गुज़र जायेगी !
बहुत कुछ सोंचने पर विवश करती रचना......भारी सबक त्रासदी ने दिया
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति .किन शब्दों में आपका धन्यवाद करें ....
ReplyDeleteबहुत ही दुखद है इस घटना के बारे लिखना ....उस दर्द से गुजरने जैसा ....
ReplyDeleteइक आह है बस ...!!
कैसे मिल पाएंगे ?जो लोग,खो गए घर से,
ReplyDeleteमां को,समझाने में ही,उम्र गुज़र जायेंगी !
....अंतस को छूती बहुत भावपूर्ण रचना...
बेहद सशक्त भावाभिव्यक्ति .....सहज अनुभूत अभिव्यक्ति मन की परिवेश की .ॐ शान्ति .
ReplyDeleteWell said, Sateesh. Keep writing.
ReplyDeleteregards
Sniel
कैसे मिल पाएंगे ?जो लोग,खो गए घर से,
ReplyDeleteमां को,समझाने में ही,उम्र गुज़र जायेंगी !
बहुत कुछ सोंचने पर विवश करती रचना.
ॐ शान्ति .कल पीस मार्च के लिए न्युयोर्क के लिए प्रस्थान है ४ - ७ जुलाई पीस विलेज में कटेगी .ॐ शान्ति .शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .
ReplyDeleteसार्थक रचना। लुटने वाले एक बार फिर तड़पते रह गए, लूटने वाले इस बार भी निकल लिए नया आशियाना बनाने ...
ReplyDeleteBahut khub kaha hai apne,,,subbab
ReplyDeleteवाकई यह पीड़ा कभी कोई नहीं भूल पाएगा...बहुत मार्मिक....
ReplyDeleteकैसे मिल पाएंगे ?जो लोग,खो गए घर से,
ReplyDeleteमां को,समझाने में ही, उम्र गुज़र जायेंगी !
सोचने को विवश करते हैं ये अलफ़ाज़