प्यार खोजता,बचपन जिनका
कभी किसी अंजुरी का पानी
बचपन से,ही रहा खोजता
ऐसे , निर्मम साईं को !
काश कहीं मिल जाएँ मुझे
मैं करूँ निरुत्तर,माधव को !
अब न कोई वरदान चाहिए,
सिर्फ शिकायत मेरे मीत !
जिसने घर परिवार न जाना
क्या अरमान जगाये उनसे !
जो कुछ सीखा था लोगों से,
वैसी ही बन पायी प्रीत !
वैसी ही बन पायी प्रीत !
आज कहाँ से लेकर आऊँ,मीठी भाषा, मीठे गीत !
कभी किसी अंजुरी का पानी
इन होंठो से कब छू पाया !
और किन्ही हाथों का कौरा
मेरे मुंह में कभी न आया !
किसी गोद में देख लाडला,
तड़प तड़प रह जाते गीत !
तड़प तड़प रह जाते गीत !
छिपा के आंसू,दिन में अपने,रातो रात जागते गीत !
क्यों कहते,ईश्वर लिखते ,
है,भाग्य सभी इंसानों का !
है,भाग्य सभी इंसानों का !
दर्द दिलाये,क्यों बच्चे को
चित्र बिगाड़ें,बचपन का !
कभी मान्यता दे न सकेंगे,
निर्मम रब को, मेरे गीत !
निर्मम रब को, मेरे गीत !
मंदिर,मस्जिद,चर्च न जाते,सर न झुकाएं मेरे गीत !
बचपन से,ही रहा खोजता
काश कहीं मिल जाएँ मुझे
मैं करूँ निरुत्तर,माधव को !
अब न कोई वरदान चाहिए,
सिर्फ शिकायत मेरे मीत !
विश्व नियंता के दरवाजे , कभी ना जाएँ , मेरे गीत !
प्यार का भूखा,धन की भाषा
कभी समझ ना पाया था !
जो चाहा था, नहीं मिला था
जिसे न माँगा , पाया था !
इस जीवन में,लाखों मौके ,
हंस के छोड़े, मैंने मीत !
हंस के छोड़े, मैंने मीत !
धनकुबेर को सर न झुकाया, बड़े अहंकारी थे गीत !
जिसको तुमने कष्ट दिया,
जिसको तुमने कष्ट दिया,
मैं, उसके साथ बैठता हूँ !
जिससे छीना हो सब कुछ
मैं उसके दिल में रहता हूँ !
कभी समझ न आया मेरे,
कष्ट दिलाएंगे जगदीश !
सारे जीवन सर न झुकाऊँ,काफिर होते मेरे गीत !
क्यों तकलीफें देते, उनको ,
जिनको शब्द नहीं मिल पाए !
क्यों दुधमुंहे, बिलखते रोते ,
असमय माँ से अलग कराये !
तड़प तड़प रह जाते बच्चे,
कौन सुनाये इनको गीत !
भूखे पेट , कांपते पैरों , ये कैसे गा पायें गीत !
जैसी करनी, वैसी भरनी !
पंडित ,खूब सुनाते आये !
इन नन्हे हाथों की करनी
पर,मुझको विश्वास न आये
तेरे महलों क्यों न पंहुचती
ईश्वर, मासूमों की चीख !
क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !
जिससे छीना हो सब कुछ
मैं उसके दिल में रहता हूँ !
कभी समझ न आया मेरे,
कष्ट दिलाएंगे जगदीश !
सारे जीवन सर न झुकाऊँ,काफिर होते मेरे गीत !
क्यों तकलीफें देते, उनको ,
जिनको शब्द नहीं मिल पाए !
क्यों दुधमुंहे, बिलखते रोते ,
असमय माँ से अलग कराये !
तड़प तड़प रह जाते बच्चे,
कौन सुनाये इनको गीत !
भूखे पेट , कांपते पैरों , ये कैसे गा पायें गीत !
जैसी करनी, वैसी भरनी !
पंडित ,खूब सुनाते आये !
इन नन्हे हाथों की करनी
पर,मुझको विश्वास न आये
तेरे महलों क्यों न पंहुचती
ईश्वर, मासूमों की चीख !
क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !
जैसी करनी वैसी भरनी
ReplyDeleteपंडत ,खूब सुनाते आये !
इन नन्हे हाथों की करनी
क्या?मुझको बेचैन कराये !
बहुत मर्मस्पर्शी और संवेदनशील गीत
मीठी भाषा मीठे गीत स्वतंत्रता की लड़ाई सा है .... कैद है शोषण और अहम् में ....
ReplyDeleteतड़प तड़प रह जाते बच्चे,कौन सुनाये इनको गीत !
ReplyDeleteखाली पेट , कांपते पैरों , ये कैसे गा पायें गीत !
waah bahut marmik par satik....
इन गीतों की स्वर लहरियों सा बरसता जीवन..
ReplyDeleteभावमय करती शब्द रचना ... आभार आपका ।
ReplyDeleteजैसी बचपन में पायी था ,वैसी ही बन पायी प्रीत !
ReplyDeleteआज कहाँ से लेकर आऊँ,मीठी भाषा मीठे गीत !
तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !
संवेदनशील ....!!
हृदयस्पर्शी गीत ...!!
भीख मांगता बचपन इनका
ReplyDeleteक्या उम्मीद लगाए बैठे !
जिसने घर परिवार न जाना
क्या अरमान जगाये बैठे !
बहुत ही भावुक कर देने वाली रचना ... आभार
कभी मान्यता दे न सकेंगे,निर्मम रब को, मेरे गीत !
ReplyDeleteमंदिर,मस्जिद,चर्च न जाते,सर न झुकाएं मेरे गीत !
आपके गीतों में जो दर्द है वह समझ आता है .
हजारों लाखों मासूमों की बात आप सब तक पहुंचा रहे हैं .
शुभकामनायें .
कह नहीं सकता ये सब क्यों सूझ रहा है शायद माहौल का असर हो ! अनूप जी के पुरस्कार वितरण पर आपकी प्रतिक्रियायें देखीं ! उस दृष्टि भ्रम से उबर नहीं पा रहा हूं ! लगता है जैसे यह कविता पुरुस्कारों के विरुद्ध है ! खास कर १,२,४-८ को इस आलोक में पढ़कर देखें !
Delete@ अली सर,
Deleteअनूप शुक्ल गुरु चीज हैं ...वहां सिर्फ हल्का फुल्का मज़ाक हो रहा था ..उसे किसी भी द्रष्टि से न लें भाई जी !
तड़प तड़प रह जाते बच्चे, कौन सुनाये इनको गीत !
ReplyDeleteखाली पेट , कांपते पैरों , ये कैसे गा पायें गीत !
बहुत सुंदर दिल को छूती रचना रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
satik aur sanvednshil rachana...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
सुंदर रचना और सुंदर शब्द चयन ...हृदयस्पर्शी गीत ...!!
ReplyDeleteआपके गीत ... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजैसी करनी वैसी भरनी
ReplyDeleteपंडित ,खूब सुनाते आये !
इन नन्हे हाथों की करनी
पर,मुझको विश्वास न आये
तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !
सारा दर्द गीतों में माला की तरह पिरो दिया . जीवन का यही विविध रंग कभी कभी रंजो गम में बदल जाता है .
सारे जीवन सर न झुकाऊँ,काफिर होते मेरे गीत !
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी और संवेदनशील गीत......
शुक्रिया भाई जी ...
Deleteजैसी करनी वैसी भरनी
ReplyDeleteपंडित ,खूब सुनाते आये !
इन नन्हे हाथों की करनी
पर,मुझको विश्वास न आये
तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !
बहुत ही सुंदर सक्सेना जी । धन्यवाद ।
Read more: http://satish-saxena.blogspot.com/#ixzz1vEeVRHWQ
बाल-शोषण पर सामयिक कविता !
ReplyDeleteमेरे गीत राक्स!
ReplyDeleteबहुत सुंदर....संवेदनशील गीत
ReplyDeleteजो आक जन के दर्द को अभिव्यक्ति दे सके वही है सच्चा गीत।
ReplyDeleteजो मन के दर्द को समझे, वही है जग में सबसे अच्छा मीत।
आभार आपका मनोज भाई !
Deleteजैसी करनी वैसी भरनी
ReplyDeleteपंडित ,खूब सुनाते आये !
इन नन्हे हाथों की करनी
पर,मुझको विश्वास न आये
तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत
बहुत अच्छी लगी यह पंक्तियाँ ......हमेशा क़ी तरह अच्छा गीत !
बाल-मन के अभाव सारे जीवन पर अपनी छाया डाल जाते हैं- सुन्दर वर्णन !
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
संवेदनायों से भरी लेखनी ...
ReplyDeleteनेह का प्यासा,धन की भाषा
ReplyDeleteकभी समझ ना पाता था !
जो चाहा था, नहीं मिला था
जिसे न माँगा , पाया था !
इस जीवन में,लाखों मौके , हंस के छोड़े मैंने मीत !
धनकुबेर को सर न झुकाया, बड़े अहंकारी थे गीत !
सच्ची संवेदनाए और दिल से उपजे गीत क्या बात हैं ....
क्यों कहते,ईश्वर लिखते ,
ReplyDeleteहै,खोया पाया,जीवन का !
दर्द दिलाये,क्यों नन्हे को
चित्र बिगाड़ें,बचपन का !
कभी मान्यता दे न सकेंगे,निर्मम रब को, मेरे गीत !
मंदिर,मस्जिद,चर्च न जाते,सर न झुकाएं मेरे गीत !
वाचक प्रश्न की मुद्रा लेकर ,
अड़े हुए हैं मेरे गीत ,
दर्द टोहते बचपन का खुद रो पड़ते मेरे गीत .
मेरे गीत के प्रकाशन पर बधाई .मन खुश हुआ .
आपके आने का आभार वीरू भाई !
Deleteजिया हुआ एक एक शब्द जैसे जीवन्त हो उठा है |
ReplyDeleteशुक्रिया अमित भाई ....
Deleteहृदयस्पर्शी गीत ...!!
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत ही मार्मिक गीत है । प्रवाह एवं प्रभाव दोनों ही तरह से ।
ReplyDeleteयह शब्द मेरे लिए सम्मान हैं गिरिजा जी ...
Deleteजैसी करनी वैसी भरनी
ReplyDeleteपंडित ,खूब सुनाते आये !
इन नन्हे हाथों की करनी
पर,मुझको विश्वास न आये
तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !
....bhauk aur samvedana se bhari yatharthparak prastuti man ki bhavbibhar kar gayee....
आपका स्वागत है कविता जी ...
Deleteइतनी साफगोई से अपनी बात वो ही कह सकता है...जिसका दिल निर्मल हो...बधाइयाँ...
ReplyDeleteशुक्रिया वाणभट्ट जी....
Deleteजिसको तुमने कष्ट दिया,
ReplyDeleteमैं, उसके साथ बैठता हूँ !
जिससे छीना हो सब कुछ
मैं उसके दिल में रहता हूँ ...
और जो ये सब कर पाता है वही सही मायने में शिव हो जाता है ,...
सतीश जी, आज पहली बार आपको पढ़ रहा हूँ. उद्दात भावों को आपने प्रवहमान शब्दों का जामा दिया है. कुछ पंक्तियाँ एकदम से दिल को छूती गयी हैं. कुछ को और सटीक व समृद्ध विन्यास दिया जा सकता था. लेकिन जिस लहजे को आपने निभाया है उसके लिये हृदय साधुवाद.
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ.
-सौरभ, ननी, इलाहाबाद (उप्र)
शुक्रिया एवं आभार सारगर्भित टिप्पणी के लिए ...
Deleteजल्दी में की गयी कुछ त्रुटियाँ सुधरने का प्रयत्न किया है , अब पहले से बेहतर है !
बहुत खूब! कोमल भावनाओं को शब्दों में यथारूप अभिव्यक्त कर पाना कोई आपसे सीखे!
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteकभी किसी अंजुरी का पानी
ReplyDeleteमेरे होंठो , कब छू पाया !
और किन्ही हाथों का कौरा
मेरे मुंह में कभी न आया !
किसी गोद में देख लाडला,तड़प तड़प रह जाते गीत !
छिपा के आंसू,दिन में अपने,रातो रात जागते गीत !
आपके गीतों में मानवीय संवेदनाओं के स्वर स्पष्ट गूंजते हैं।
जैसी करनी वैसी भरनी
ReplyDeleteपंडित ,खूब सुनाते आये !
इन नन्हे हाथों की करनी
पर,मुझको विश्वास न आये
तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !
बहुत ही प्रभावित करती पक्तियां । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
bhavapoorn rachana prastuti...abhaar
ReplyDeleteदिल को छूते भावपूर्ण आपके गीत।
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