Friday, May 25, 2012

गोपाल विनायक गोडसे( Gopal Vinayak Godse ) की कुछ यादें -सतीश सक्सेना

आज अचानक लाइब्रेरी में, कुछ पुस्तकों को पलटते हुए, गोपाल गोडसे जी के द्वारा लिखी  एक किताब "गाँधी वध और मैं " के  पन्नों के बीच रखा,मुझे लिखा, उनका एक  पत्र मिल गया , वह पत्र पढ़ते हुए, उनके साथ गुज़ारा गया समय और यादें, नज़रों के सामने घूम गयीं  !
गाँधी वध से जुड़े हुए, अपने समय के अत्यंत विवादास्पद व्यक्तित्व , और  लगभग 75 वर्ष  की उम्र में उनके विचारों और विद्वता से, मैं वाकई प्रभावित हुआ था ! 
उन दिनों वे भारतीय इतिहास  व  पुरातत्व पर शोध कर रहे थे  ! वे कहते थे कि  यदि दिल्ली एवं देश के अन्य  भागों में बने किले , मीनारें,परकोटे आदि आक्रमणकारियों  ने बनवाये थे तो उनके आने से पहले, हम लोग कहाँ रहते थे और अगर हम लोगों के रहने के लिए किले आदि नहीं थे तो आक्रमणकारी  देश में किस लिए आये थे और बाद में यहीं के होकर रह गए ?
यक़ीनन हमारा देश वैभवशाली था और हमारे पास विशाल शानदार किले , उन्हें बनाने की तकनीक एवं अन्य जानकारी थी !आक्रमण कारियों ने उन भवनोंपर कब्ज़ा किया एवं उनमें अपने रहने के हिसाब से आवश्यक बदलाव किया ! उनका विचार था कि आज के किले वस्तुतः वही,बदलाव किये गए, हमारे पुरातन भवन हैं ! 
वे आगरा एवं दिल्ली के पुराने भवनों में ,पुरातन भारतीय स्थापत्य कला के चिन्ह पाकर  उत्साहित होते थे !
भारतीय स्थापत्य कला की विशेष पुरातन पुस्तकों का अध्ययन, उनका प्रिय विषय होता था
! जिन पुस्तकों की चर्चा उन्होंने मुझसे की थी उनमें "मयः मतम"  एवं "मानसार" प्रमुख थीं !
लगभग 75 वर्ष  की आयु में वे स्फूर्ति में जवानों को मात करतेथे उनके साथ घुमते हुए मैंने कम समय में जो ज्ञान अर्जित किया, वह शायद ही कभी भुला पाऊंगा  ! 
शुद्ध हिंदी भाषा का उच्चारण करते हुए, वे जब ऐतिहासिक पौराणिक काल में भारत देश का वैभव गुण गान करते थे, तो उनके पास से उठने का मन नहीं करता था  !  

49 comments:

  1. अच्छा लगा पढ़ कर......
    ऐसे ही पुराने पत्र या डायरी के पन्ने हमें लिए जाते हैं यादों के दरीचों में.....

    सादर.

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  2. कई बार पुरानी यादों में खोजाना बहुत अच्छा लगता है.......

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  3. सहेजे पुरानी यादो को पढ़ना मन को सकून देता है,,,,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

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  4. गोपाल गोडसे के विचार से मैं सहमत नहीं। यह तथ्यों को भावनात्मक रूप दे कर अपनी विचारधारा के अनुरूप निकाला गया निष्कर्ष है।
    कोई भी परदेसी भवन बनाने के लिए कारीगर और कलाकार अपने साथ ले कर नहीं चलता। उसे अधिकांश कारीगर और कलाकार स्थानीय चुनने पड़ते हैं। जब जहाँ के कलाकार जिस काम में जुटेंगे उन का अपनी स्थापत्य उस में दिखाई देगा।
    प्राचीन भारतीय स्थापत्य अपने मूल रूप में भी उपस्थित है। राजस्थान के किलों, बावलियों, हवेली में वह देखने को मिलेगा। उस से प्राचीन आप को मंदिरों आदि में देखने को मिलेगा।

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    1. यह एक शोध का विषय है, मगर उनका विचार यही था...

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  5. हाँ ,ऐसे बहुत से भवन हैं(जिनमें एक ताज महल भी माना जाता है) जो भारतीय स्थापत्य कला के अनुसार निर्मित थे और बाद में आक्रमणकारियों ने हथिया कर उनमें फेर बदल किया और नये नाम दे कर अपना निर्माण कह दिया .

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  6. अपेक्षापूर्ण तथ्‍य, अपेक्षित निष्‍कर्ष पर पहुंचाते हैं.

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    1. कुछ लिंक जो पहले नहीं दे सका था , अब दे दिए हैं ! आभार आपका !

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  7. वाह, इतिहास का एक पृष्ठ, आपका अपना!

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  8. ...फिलहाल दिनेश राय द्विवेदी जी से सहमत हो जाता हूँ !

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  9. सतीश भाई ,
    आप उनके साथ कब ? कैसे ? क्यों ? इस पर आपने प्रकाश नहीं डाला ! हालांकि खत में दर्ज पते को पढ़कर , आपकी उनसे संगति कहां हुई होगी की , अपनी एक कुत्सित कल्पना का वध करना पड़ा :)

    दिनेश राय द्विवेदी जी ने विस्तार से कहा और राहुल सिंह जी ने संक्षेप में बहुत बड़ी बात कह दी है !

    इस खत के मालिक होकर आप अनुराग जी की टिप्पणी के हक़दार तो खैर हो ही गये हैं !

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    1. मैंने एक पोस्ट पहले भी लिखी थी , जिसका लिंक ऊपर दे रखा है ...शायद आपने ध्यान नहीं दिया :)
      http://satish-saxena.blogspot.in/2010/05/blog-post_11.html

      मेरी उनसे पहली मुलाकात १९९१ में दिल्ली में हुई थी पहली मुलाकात में ही मैं इस मजबूत निडर व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित हुआ था, फोटोग्राफी में मेरी रूचि जानकार उन्होंने इस क्षेत्र में मेरी मदद चाही थी !
      उनके साथ ऐतिहासिक भवनों की फोटो खींचते हुए, बिताये कुछ दिन, बेहद महत्वपूर्ण एवं यादगार थे ...

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    2. ये तो हुआ है ! अभी देखते हैं लिंक !

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  10. किसका पत्र मिला आपको ? किसकी बातें कर रहे हैं ?

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    1. गोपाल गोडसे के साथ बिताये कुछ क्षण हैं जो लिख दिए ताकि याद रहे !
      :)

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  11. ओह अच्छा तो नाथूराम गोडसे की परम्परा के ही किसी दूसरी शख्सियत से आपका पत्र व्यवहार था -इनके बारे में थोडा और बताते !

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    1. http://satish-saxena.blogspot.in/2010/05/blog-post_11.html
      ऊपर दी गयी पोस्ट और दिया गया लिंक पढ़ें ..

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    2. http://en.wikipedia.org/wiki/Gopal_Godse

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    3. नाथू राम गोडसे के सगे छोटे भाई थे गोपाल गोडसे , महात्मा गाँधी की हत्या में शामिल एक अभियुक्त होने के कारण उन्हें १८ वर्ष की सजा हुई थी ...

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    4. गोडसे को फांसी देने वाली खंडपीठ मे शामिल जसटिस खोसला का कहना था-"नथूराम का वक्तव्य न्यायालय मे उपसिथित लोगों के लिये एक आकरषक वस्तु थी!खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ था कि उनकी आंहें और सिसकियां सुनने मे आती थी और उनके गीली-गीली आंखों से गिरने वाले आंसू साफ़ दिखाई देते थे! न्यायालय मे उपस्थित लोगों को यदि न्यायदान करने दिया जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं है कि उन्होने अधिक से अधिक संख्या में कहा होता कि नथूराम निरदोष है!
      (गांधी-वध क्यों?,page no.48)

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  12. सतीश जी ,

    यह पुस्तक क्या आपके पास है ?

    इस किताब को पढ़ने का मौका मुझे 1975 में मिला था .... पर अफसोस कि आधी ही पढ़ी थी और आज तक फिर यह दुबारा नहीं मिली ... दरअसल जब मैं बी एड में थी तो कॉलेज कि लाइब्रेरी में यह नयी किताब आई थी और स्टॉक में नहीं चढ़ी थी पर मैं लाईब्रेरियन से यह कह कर ले आई थी कि कल आप इसे स्टॉक में चढ़ा कर मुझे इशू कर दीजिएगा ... और फिर आधी पढ़ कर ही मैंने उनको स्टॉक में चढ़ाने के लिए दे दी थी ...जब मैं उसे लेने गयी तो उन्होने देने से इंकार कर दिया ... और वो पुस्तक मुझे अंत तक नहीं ही मिली .... खैर .....
    रही पुरानी इमारतों की बात तो यह शोध का विषय है ....

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    1. यह तो नहीं पर "गाँधी वध क्यों" नामक पुस्तक है मेरे पास, यदि आप चाहें तो स्कैन करके भेज सकता हूँ .
      गोडसे ने गांधी वध के 150 कारण न्यायालय के सामने बताये थे , जिन्हें " गांधी वध क्यों " पुस्तक में पढा जा सकता है .
      नाथूराम गोडसे ने कहा था कि " मेरी अस्थियाँ पवित्र सिन्धू नदी में ही उस समय प्रवाहित करना जब सिन्धू नदी एक स्वतंत्र नदी के रूप में भारत के झंडे तले बहने लगे, भले ही इसमें कितने भी वर्ष लग जाये, कितनी भी पीढियाँ जन्म ले, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करना. " आज भी गोडसे का अस्थिकलश पुणे में उनके निवास पर उनकी अंतिम इच्छा पूरी होने की प्रतिक्षा में रखा हुआ है.

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  13. जी नहीं , मैंने इन पुस्तकों को नहीं पढ़ा हाँ तलाश रहा हूँ अगर मिल गयी तो अवश्य पढना चाहूँगा !

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  14. किसी भी लिंक में यह पता नहीं चला की वर्तमान में उनका क्या स्टेटस था .

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  15. आक्रमणकारियों के लिये यह सदा आसान रहता है कि मामूली परिवर्तन कर अपना ठप्पा लगा दें।

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  16. BEAUTIFUL INTERESTING.SO NICE POST.

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  17. सतीश जी, बधाइयाँ...इस पोस्ट के लिए...ये संयोग आपको मिला...मुझे लगता है...अगर विचारों का आदान-प्रदान और दूसरों के विचारों के प्रति सम्मान हो...तो चरम बिंदु नहीं आता...

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  18. यादों के झरोखों पर बैठ कर अतीत को देखना बहुत सुखद लगता है. शुभकामनाएँ भाई.

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  19. गोडसे जी के पत्र से इतिहास को एक नये प्रकाश में देखने की दृष्टि मिलती है ।

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  20. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट "कबीर" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।

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  21. बहुत ही दुर्लभ पोस्ट सर । संग्रहणीय और सहेजने लायक ।

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  22. bahut hee gyanvardhk jankaree ke liye abhar..

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  23. सतीश जी में आपके विचारों से सहमत हूँ क्या गोपाल विनायक गोडसे की पुस्तक क्या इन्टरनेट पर उपलब्ध है.

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  24. interesting thoughtful post

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  25. गोडसे को गाँधी के अतिरिक्त आज पहली बार देखा....

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    1. यह आवश्यक भी है प्रज्ञा ...
      हर इंसान के अपनी विशेषताएं होती है बशर्ते हम पूर्वाग्रहों से मुक्त हों, बेहतर रहेगा अगर हम किसी की भी सब विशेषताएं देखने का प्रयत्न तो करें !

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  26. मैंने भी पढ़ी थी ये पुस्तक।

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  27. इस बारे में कोई जानकारी नहीं :}

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    1. कमाल है महाराष्ट्र की बेटी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं ...
      :)

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  28. नमन उन विभूति को ! और अभिनन्दन आपका जो ऐसी शख्शियत के साथ आपका जुड़ाव रहा !

    @ वे आगरा एवं दिल्ली के पुराने भवनों में ,पुरातन भारतीय स्थापत्य कला के चिन्ह पाकर उत्साहित होते थे !

    यही तो दुर्भाग्य है :( सच्चाई को ढंकने का प्रयास किया गया हमें नपुंसक और आत्मगौरव हीन बनाने के लिए, और हम बड़े आसानी से बनते गए ............................ जो कोई पुरातन के वैभव का उदघाटन करे वह जाहिल और जो पुरावैभव गान का गला घोंटे वह महान बुद्धिजीवी ................................. वैसे ज्ञानवंत होने की सिद्धि तो सिर्फ वामाचारियों (वामपंथी) के लिए ही सुरक्षित है .................................. चाहे जितना अपने अंतर में सत्य स्वीकार करता हो पर बाहर अपने अकादमिक होने के प्रदर्शन के लिए भारत-वैभव को गरियाना लतियाना आवश्यक है .......... खुद ना कर पायें तो समर्थन ही करना आवश्यक है .

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  29. Good to know about people and their view..Do share few more facts, Satish ji.

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  30. किसी ऐसे व्यक्तित्व का जिसका आप पर गहरा प्रभाव पड़ा हो और जिनके साथ वक्त बीता हो, अरसे बाद अचानक कुछ ऐसा मिल जाए जिससे अतीत की सभी बातें याद आ जाये, मन को बहुत खुशी देता है. पुरातत्वों के बारे में लोगों के अलग अलग विचार हैं, सत्यता का आधार भी मुझे प्रामाणिक नहीं लगा कभी. चाहे जिसने भी जो बनवाए वास्तुकला अद्भुत है. बहुत अच्छी जानकारी मिली. गोपाल गोडसे जी के बारे कुछ और भी जानकारी दें तो जानना अच्छा लगेगा, उनकी पुस्तक मैंने नहीं पढ़ी है अतः कुछ भी नहीं जानती. शुभकामनाएँ.

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  31. मैं तो भैया सौ कि सीधी एक बात जानता हूँ कि जिसने भी बापू की हत्या करी वो अच्छा आदमी नहीं हो सकता। हत्यारे के विचारों का जो समर्थन करे वो भी अच्छा आदमी नहीं हो सकता। फिर चाहे लाख तर्क देकर कोई यह सिद्ध करना चाहे, मैं सुनना ही पसंद ना करूँ।

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  32. गोडसे जी का अद्भुत व्यक्तित्त्व प्रभावित करता है. आपके साथ उनके संबंधों को पढकर अच्छा लगा. यह पुस्तक तो मैंने भी पढ़ी है.

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  33. Our history is fabricated .....पोस्ट के बहाने आपके सारे लिंक्स पढ़ लिए! किताब तो हमने बहुत पहले पढ़ी थी पर गोपालजी गोडसे के बारे में हम जादा जान न पाए थे!बहुत उम्दा पोस्ट सादर !

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  34. इतिहास को दुहराना गोडसे जी के साथ --पढ़ना अच्छा लगा।

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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