अब हंसीं, मुस्कान भी ,
विश्वास के लायक़ नहीं
ध्यान केवल जेब पर
और कहते हैं कि डरते क्यों ?भले इंसान हैं !
क्या कहेंगे, क्या करेंगे
नज़र चेहरे पर लगी है, ध्यान केवल जेब पर
और कहते हैं कि डरते क्यों ?भले इंसान हैं !
काम गंदे सोच घटिया
कृत्य सब शैतान के ,
क्या बनाया ,सोच के
इंसान को भगवान ने
इनके चेहरे पर कभी ,
आती नहीं शर्मिंदगी !
फिर भी अपने आपको कहते कि वे इंसान हैं !
बाप के चेहरे को देखो
सींग दो दिखते वहाँ !कृत्य सब शैतान के ,
क्या बनाया ,सोच के
इंसान को भगवान ने
इनके चेहरे पर कभी ,
आती नहीं शर्मिंदगी !
फिर भी अपने आपको कहते कि वे इंसान हैं !
बाप के चेहरे को देखो
कौन पुत्री जन्म लेगी
कंस के ,प्रासाद में !
अपनी माँ के पेट में ,
दम तोड़ देतीं बेटियां !
पूतना अब माँ बनी हैं, फिर भी ये इंसान हैं !
खिलखिलाती बच्चियों से
ही, धरा रमणीय रहती !
प्रणय और आसक्ति बिन
सृष्टि कहाँ सम्पन्न होती !
अपने बाबुल हाथ ,
मारी जा रही हैं, बच्चियां !
एक कन्या मार कर, कहते हो हम इंसान हैं !
पाप क्या कर पाओगे !
नन्ही बच्ची क़त्ल करके ,
क्या ख़ुशी ले पाओगे !
जब हंसोगे, कान में गूंजेंगी
उसकी सिसकियाँ !
एक गुड़िया मार कहते हो कि, हम इंसान हैं !
काम गंदे सोंच घटिया
ReplyDeleteकृत्य सब शैतान के ,
क्या बनाया ,सोंच के
इंसान को भगवान् ने
फिर भी चेहरे पर कोई, आती नहीं शर्मिंदगी !
क्योंकि अपने आपको, हम मानते इंसान हैं !
bahut sundar !!
...आम संवेदना को तिलांजलि देकर हम इंसान बने हैं,
ReplyDeleteजबकि हमारे हाथ हर खून से सने हैं !
कन्या भ्रूण हत्या पर एक सशक्त रचना ।
ReplyDeleteवेदों तभी कहा है कि "मनुर्भव:"
ReplyDeleteदो पाया मनुष्य नहीं बन पाया है।
बाप के चेहरे को देखो
ReplyDeleteसींग दो दिखते वहाँ !
कौन पुत्री जन्म लेगी
कंस के ,प्रासाद में !
जन्म से पहले ही पुत्री , मारते खुद बाप हैं !
Read more: http://satish-saxena.blogspot.com/2012/05/blog-post_24.html#ixzz1vzsA31uM
बाप के चेहरे को देखो
ReplyDeleteसींग दो दिखते वहाँ !
कौन पुत्री जन्म लेगी
कंस के ,प्रासाद में !
जन्म से पहले ही पुत्री , मारते खुद बाप हैं !
पूतना अब माँ बनीं हैं ,कहते हम इंसान है सशक्त रचना आज की ज्वलत समस्या कन्या भ्रूण वध पर .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
23 मई 2012
ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )
http://veerubhai1947.blogspot.in/
यहाँ भी देखें जरा -
बेवफाई भी बनती है दिल के दौरों की वजह .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
शुक्रिया वीरू भाई ....
Deleteपूतना की याद दिलाने को ...
आपके गीत जीवन में व्याप्त विषमता को छूते हैं.. कटाक्ष करते हैं... ऐसे ही एक संजीदा विषय पर सशक्त गीत.... गीत में इस विषय को ढालना एक चुनौती पूर्ण काम है... बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteआपकी तेज नज़र के लिए आभार अरुण ...
Deleteदेवकी वासुदेव
Deleteदेवकी वासुदेव ,खुद ही मारते अब लडकियां ,कोख माँ की बन गई शमशान है ,आज मानव ये तमाशा देख कर हैरान है .,फिर भी हम इंसान हैं .शुक्रिया सतीश भाई पूतना को समाहित करने के लिए ....
हाँ आपकी टिपण्णी आज़ाद कर दी गई है स्पैम की कैद से .शुक्रिया याद दिलाने के लिए .दो टिपण्णी निकलीं स्पैम बक्से से .कृपया यहाँ भी पधारें -
23 मई 2012
ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )
http://veerubhai1947.blogspot.in/
यहाँ भी देखें जरा -
बेवफाई भी बनती है दिल के दौरों की वजह .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
something, which is very awesome...
ReplyDeletejabarjast katakshh...
par sach yahi hai...
ummeed hai ki pootna Yashoda ji mei parivartit ho jae...
aur pita kans ki jagah Janak mei... :)
भ्रूण हत्या पर ...... सशक्त रचना....सतीश जी
ReplyDeleteइतना सब कुछ कर के और खुद को दुनिया का सबसे समझदार प्राणी भी कहते हैं...
ReplyDeleteआप भी शामिल हैं आज 24-5-2012 ब्लॉग बुलेटिन पर... धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
ReplyDeleteKANYA BHROON HATYA PER SARTHAK LEKH..........
ReplyDeletejabarjast...
ReplyDeletekya katakshh hai... aur satya bhi...
bas ek ummeed hai ki shayad wo din bhi aae jab pootna, Yashida ji mei parivartit ho jae aur kans Janak ji mei...
दुआ करते हैं कि समाज अच्छा हो ...
Deleteआभार पूजा!
गंभीर विषय पर शशक्त गीत.
ReplyDeleteबहुत ही धारदार!! जीवन के अवमूल्यन पर करा्री चोट
ReplyDeletebadhai...dardnak sach
ReplyDeleteज्वलंत समस्या पर तीखा प्रहार किया है आपके इस गीत ने .... सशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDeleteभ्रूण हत्या से घिनौना ,
ReplyDeleteपाप क्या कर पाओगे !
नन्ही बच्ची क़त्ल करके ,
ऐश क्या ले पाओगे !
झक्झोड जाती हैं ये पंक्तियाँ अंदर तक ... बहुत ही मार्मिक और सच्चे शब्द हैं सतीश जी ...
उत्तम रचना ...
आपने एक अच्छे मुद्दे पर लिखा है आज का गीत,
ReplyDeleteमानव अधिकार का सर्वाधिक हनन स्त्रियों पर होने वाला अत्याचार,
इनसे जुडी है भ्रूण हत्या, आनर किलिंग इस अमानवीय व्यवहार का अभी तक सरकार या समाज के पास कोई
हल नहीं है यह दुखद है ! अच्छी रचना आभार ......
दुआ करते हैं कि समाज अच्छा हो ...
Deleteआभार सुमन जी !
इस गीत के भाव मन को झकझोरते हैं। दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है।
ReplyDeleteसामाजिक विसंगतियों पर प्रहार!!
ReplyDeleteबहुत बदल गया इनसान
ReplyDeleteकाश इंसान बनने की राह में बढ़ना ही हो जाये..
ReplyDeleteहैवान ही अब इन्सान है ...
ReplyDeleteइतने संवेदनशील विषय पर आपने जिस तरह संवेदनशील गीत रचा है वह केवल महसूस किया जा सकता है!! प्रणाम आपको!!
ReplyDeleteKHUBSURAT GEET KE LIYE. BADHAI .
ReplyDeleteबहुत ही सम्वेदनशील रचना ....!!
ReplyDeleteमन उद्वेलित कर गयी ...!!
एक चिंतन दे गयी ...आभार ...!!
इंसान खून चाहे न पिए लेकिन वह खून बहुत बहाता है. ऐसे में मानवता के प्रति संवेदना जगाता आपका गीत. ख़ूब.
ReplyDeleteउद्वेलित करने वाली रचना
ReplyDeleteइंसान आखिर कब इंसान होगा
जब हंसोगे, कान में गूंजेंगी,उसकी सिसकियाँ !
ReplyDeleteएक गुडिया मार कहते हो कि, हम इंसान हैं !
सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन प्रभावी रचना,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
गीत के माध्यम से एक ज्वलंत समस्या पर अच्छा प्रहार किया है सतीश जी..बधाई
ReplyDeleteमन भावुक और उद्वेलित कर दिया इस रचना ने बिलकुल सही लिखा है आपने इंसान से तो जानवर भी बेहतर हैं
ReplyDeleteजन्म से पहले ही जननी,मारती मासूम को
ReplyDeleteपूतना अब माँ बनीं हैं,फिर भी हम इंसान हैं !
शब्दों के तीर सीधे दिल को लगते हैं ..पर क्या करे यह सच भी तो हैं ...
इंसानियत का समझते ही नही हैं मतलब
ReplyDeleteफिर भी कहते जाते हैं, सच मानो हम इनसान हैं ।
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ReplyDeleteअनूप भाई ,
Deleteआपको पढने के लिए गिरीश पंकज जी की यह रचना दे रहा हूँ ....
आशा है समझ आएगी !
दिल का क्या कब कौन सुहाए
बात यही कुछ समझ न आए
सुबह सुहानी खूब सुहाए
उजियाला भीतर बस जाए
हर दिन हो सबका ही सुन्दर
दर्द किसी को नहीं सताए
सब लगते हैं समझदार अब
किसको जा कर को समझाए
सब के सब उस्ताद लगे हैं
ज्ञान कोई अब पचा न पाए
रहो मौन यह सबसे उत्तम
जाए दुनिया जहां भी जाए
अपने बन कर दगा करे हैं
इन लोगों से राम बचाए
उसको अब पहचान लिया है
फिर भी देखा तो मुस्काए
http://sadbhawanadarpan.blogspot.in/2012/05/blog-post_22.html
सब के सब उस्ताद लगे हैं
Deleteज्ञान कोई अब पचा न पाए
इसका तो उन लोगों संबंध है जो लोग ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं। हमको क्या लेना-देना ज्ञान से जी। हम तो ऐं-वैं ही बात करते हैं। अहमन्य सरीखी जैसे डा.अरविन्द मिश्र ने कहा।
हर किसी का उपहास नहीं उड़ाया जाना चाहिए हो सकता है सामने आपके पिता अथवा गुरु ही हों , मगर मूर्ख बच्चे विदूषक का पार्ट अदा करते करते परिवार में अपनों के मध्य भी विदूषक का रोल अदा करेंगे तो परिवार को कष्ट ही देगा !
Deleteहमें स्नेह और घ्रणा में अंतर समझना आना चाहिए...
कई बार व्यंग्य करते करते व्यंग्यकार खुद को ही उपहास का पात्र बना लेता है !
This comment has been removed by the author.
Deleteवो कमेंट हमने पढ़कर ही किया था। लेकिन आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर लगा कि जैसा लगे वैसी बात कहना भी उचित नहीं रहता हमेशा। यह भी तो बेवकूफ़ी की ही बात है कि मैं गीतकार से कहूं कि भाई आप ऐसा नहीं वैसा कहें/लिखें। इसलिये अपनी टिप्पणी हमने मिटा दी। निर्मल मन से ।
Deleteबाकी कौन व्यंग्यकार! कहां का व्यंग्यकार! सब ऐसा ही है- उपहास का पात्र।
सत्यमेव जयते से रेजोनेट होती पोस्ट कविता ....
ReplyDelete"आपकी कविताओं का ताना-बाना निराशाजनक और नकारात्मक होता है।"
ReplyDelete@अनूप जी अजब की अहमन्यता है आपकी भी -संवेदना से सराबोर कवितायें आपको नकारात्मक दिखती हैं और विसंगतियों और उपहास को प्लेटफार्म देती आपकी खुद अपनी कवितायें प्रकारांतर से सकारात्मक लगती हैं :)
काहें इतना मद हो गया है ?ऐसी कोई प्रभुता भी तो नहीं मिली है अब तक ....या ब्लॉग जगत की मौजूदा स्थिति ने आपकी खुशफहमी में थोडा इजाफा कर डाला है ? :)
अरविंदजी,
Deleteहमको तो जैसा लगा पाठक की हैसियत से वैसा हमने बताया। यह आपको हमारी अहमन्यता लगती है तो वैसा ही सोचिये हमारी प्रतिक्रिया के बारे में। हम कवि से कुछ आशा भी तो रख सकते हैं।
मद और प्रभुता वाली बात हमको पता है। आपको इन दोनों शब्दों का प्रयोग करती तुलसीदास जी की चौपाई याद है। बाकी ब्लॉगजगत हमेशा से इसी तरह का या इससे दायें-बायें ही रहा है। तो उसके चलते क्या गमी और क्या खुशफ़हमी।
@अनूप जी,
Deleteआप की कुछ बातों के गहरे मर्म होते हैं और मेरे छिछले -सही कह रहा हूँ :)
मानव-मूल्यों और संवेदनाओं के प्रति सचेत करती सुन्दर रचना हेतु बधाई !
ReplyDeleteआपने सौ टंच खरी बात कही है की ''हर किसी का उपहास नहीं उड़ाया जाना चाहिए हो सकता है सामने आपके पिता अथवा गुरु ही हों , मगर मूर्ख बच्चे विदूषक का पार्ट अदा करते करते परिवार में अपनों के मध्य भी विदूषक का रोल अदा करेंगे तो परिवार को कष्ट ही देगा ! हमें स्नेह और घ्रणा में अंतर समझना आना चाहिए... कई बार व्यंग्य करते करते व्यंग्यकार खुद को ही उपहास का पात्र बना लेता है !'' लेकिन दुर्भाग्य यही है की लोग अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आते. आपके मर्म को समझ कर लोग अपना कर्म ठीक-ठाक करें, यही शुभभकामना है. मेरी कविता आपके किसी काम आई, यह देख कर दंग रह गया.
ReplyDeleteऔर हाँ, आपके गीत की बात तो रह ही गयी. बधाई, इस धारदार गीत के लिये . मर्म स्पर्शी इसे ही कहते हैं.
ReplyDeleteआपका आभार भाई जी ...
Deleteदिल्ली कभी आयें तो बताइयेगा ...
कन्या भूर्ण हत्या पर सशक्त लेखनी ...शब्द शब्द परिपूर्ण खुद में
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील और प्रासंगिक गीत है..........अरुण जी से आपका गीत संग्रह प्राप्त हुआ ....पढकर पता चला कि आपका भी बदायूं से नजदीकी रिश्ता रहा है .........गीत संग्रह के प्रकाशन की हार्दिक बधाइयाँ !
ReplyDeleteबदायूं में, तुम्हारे पिता डॉ उर्मिलेश से हमारे पारिवारिक सम्बन्ध थे बेटा !
Deleteवे उन लोगों में से एक थे जिन से मुझे गीत लेखन की प्रेरणा मिली थी .... शुभकामनायें !
ओहो! इतनी प्रभावी कविता मुझसे छूट गयी थी .. अभी नजर पड़ी..
ReplyDeleteइतने नाज़ुक विषय पे दिल से निकली सशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDelete