( यह ख़त प्रोफ़ेसर अली की क्लास में फेंक कर भाग लिए - हास्य )
सन्दर्भ : कुछ पिछली घटनाएं
संतोष त्रिवेदी : आपकी इस दार्शनिक-टाइप पोस्ट को एक बार पढके चक्कर खा गया हूँ.लोककथाएं भी दुरूह होती हैं ? ( समझ न आने की मजबूरी )
प्रोफ़ेसर अली सय्यद |
प्रोफ. अली : और मैं आपकी टिप्पणी पढ़के चक्कर खा रहा हूं ..( झुंझलाहट प्रोफ़ेसर की )
संतोष त्रिवेदी : दुबारा से पढ़ा हूँ,पर पूरी तरह से समझ नहीं पाया (शालीनता और सौम्यता बच्चे की )
प्रोफ. अली : हद कर दी आपने ...( गुस्सा प्रिंसिपल सर का )
असली बात :
अली सर ,
आपकी कक्षा में कुछ कम पढ़े लिखे बच्चे भी " यह क्लास सबके लिए खुली है " बोर्ड देख कर अन्दर आ गए हैं !
बदकिस्मती से इन्हें अन्तरराष्ट्रीय समाज शास्त्र की छोडिये, देसी समाज की ही समझ नहीं है और अक्सर जब तब विशिष्ट विद्वानों से पिटते रहते हैं !
पिछले दिनों एक बच्चे संतोष त्रिवेदी ने, आपके शब्द न समझ आने की शिकायत कर दी थी जिसे आपने डांट कर बैठा दिया था !
उनको डांट खाते देख मैंने अपना उठाया हुआ हाथ अपने सर पर लेजाकर खुजाते हुए नीचे कर लिया था ! आपके एक विशिष्ट मित्र डॉ अरविन्द मिश्र उस बात से नाराज होकर, संतोष त्रिवेदी को मिलते ही, गरियाने लगते हैं !
उस दिन के बाद से मैंने, संतोष त्रिवेदी के साथ, आपकी क्लास रूम से दूर,आपका चित्र सामने लगा कर, गुल्ली डंडा खेल कर, अपना समय पास करने का फैसला किया है !
पढ़े लिखों से दूर ही रहें, तभी ठीक है :)
सतीश भाई ,
ReplyDeleteस्पीड पोस्ट सर्विस होती तो शायद आपका खत फौरन के फ़ौरन ना मिलता ! जिसके आप जैसे गहरे दोस्त हों उन्हें और ज्यादा गहरे दोस्तों की क्या ज़रूरत है :)
संतोष जी को मैं जितना भी प्रेम से कह सकता था , कहा पर आपने मेरे कहे की , हवा निकल दी ! बमुश्किल दो स्माइली चिपकाईं थीं वहां ! उनको हटा के आपने मेरी झुंझलाहट और नाराजगी घुसा दी :)
बहरहाल अब मैं आप दोनों के हाथों से जबरिया गुल्ली डंडा छुडाने आ रहा हूं :)
अब आप खेलने भी नहीं दोगे गुरु
Delete:)
हम तो भाई साहब सन्दर्भ से ही वाकिफ नहीं हैं .पढ़ लिए हैं इस पोस्ट को .शुक्रिया .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
शुक्रवार, 25 मई 2012
सिजेरियन सेक्शन की सौगात बचपन का मोटापा
http://veerubhai1947.blogspot.in/
is kaksha tak aate-aate to apan....apni upasthiti bhi darz na kar
ReplyDeletepaye.....jabke, sare sawal-jawaw harf-b-harf dekhte rahe.........
ye blog-balak apne balyakal me 'tat-patti' pathshala me guruji ko
dantte-fatkarte use hi dekha.....jo kabil-o-tez hota tha.........
air haan, balak kahin-na-kahin khush isliye hai ke, ab bare bhai
logon ko bhi harkane/dourane ke liye hamare pas (prof.) ali sa hain na.....
bakiya, khat phekte hue aap pakre nahi gaye, ali sa ke class me...ye ek bari baat hue......
pranam
इतना बढ़िया कमेन्ट हिंदी में देते तो कितना आनंद आता ....
Delete:(
संजय झा जी का अपना अलग स्टाइल है...!!
Delete:):) यह भी खूब रही
ReplyDelete...बहुत दिनों के बाद हमें विद्यार्थी बनकर घुसने का मौका मिला था,पर अनुभवी प्रोफ़ेसर ने बहुत पहले ही ताड़ लिया था कि यह 'लम्पट' विद्यार्थी किसका शिष्य है..?
ReplyDeleteसतीश जी,हम आपके साथ गुल्ली-डंडा खेलने लायक तभी हुए जब हमारे गुरूजी आदरणीय मिश्रजी ने हमें 'आई पी एल' के लायक न समझा !
प्रोफ़ेसर अली साहब जैसे विद्वान यदि किसी के मित्र हों तो उसे इस कायनात से और क्या चाहिए.....अरविन्द जी,आप और हम इस मामले में बड़े सौभाग्यशाली हैं और यही बात श्रीमान अनूप शुक्ल जी को खटकती है !
...दोनों सुदर्शन चित्र ऊपर रखे ,अच्छा किया.....इससे हमें अहसास रहेगा कि हम ज़मीन पर ही हैं.हाँ,अली साहब का यह चित्र आज ही देखा है.
...मुझे 'मेरे गीत' की कवर-स्टोरी में छापकर आपने ठीक नय किया है,इससे आपके कई चाहने वाले नाराज़ हो सकते हैं.
...और अब एक गंभीर टीप:
नतमस्तक हूँ आप तीनों के सामने !
@ नतमस्तक हूँ आप तीनों के सामने !
Deleteतुम तीनों को एक साथ बेवकूफ नहीं बना सकते यार ....
हमारे शास्त्रों में ब्रह्मा,विष्णु,महेश का अर्चन एक साथ किया जाता है,फिर...?
Deleteउनको डांट खाते देख मैंने अपना उठाया हुआ हाथ अपने सर पर लेजाकर खुजाते हुए नीचे कर लिया था !
ReplyDeleteअब ये पढ़ कर, मेरे कुछ और लिखने की ज़रूरत ही कहां बची है ☺☺☺
नज़र तेज है काजल भाई .....
Deleteकुछ कुछ समझे......कुछ नहीं समझे...
ReplyDelete:-)
सादर.
हई देखिये!! एतना सबकुछ हो गया अऊर हमको पतों नहीं चला.. असल में पोरफेसर साहब हमरा डीऊटी घंटी बजाने में लगा दिए थे.. त किलास में का हो रहा है हम बूझिये नहीं पाए!!
ReplyDeleteमगर आज बहुत दिन बाद सतीस बाबू का ई लेटर देखकर अच्छा लगा!!
आपकी इस चिट्ठी से आपकी डयूटी पढ़कर हमें और राहत मिली :)
Deleteअपना गुल्ली डंडा अच्छा रहा !
सतीश जी,आपका ये पोस्ट पढकर जानकारी मिली,पूरी तरह इस किस्से की वजह समझ नही पा रहा हूँ,,,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
आपको लिंक पढने पढेंगे :))
Deleteआपको अली सा का लेटेस्ट फोटो कहाँ से मिला ? :)
ReplyDeleteडॉक्टर साब....आप गूगलिंग कर लीजिए बहुत फोटो मिल जायेंगे,ऐसा अली सा ने बताया है !
ReplyDeleteआजकल के छात्र अध्यापकों के नेत्र खोल देते हैं।
ReplyDeleteहमको भी पुस्तक मिली, जय जय मेरे गीत |
ReplyDeleteएक एक प्रस्तुति पढ़ी, जागी प्रीत-प्रतीत |
जागी प्रीत-प्रतीत, मुबारक होवे भैया |
रविकर प्रचलित रीत, भाव की लेत बलैया |
हर्षित मन-अरविन्द, पटल-मानस पर चमको |
बस्तर वाले अनिल, विषय भय भाया हमको ||
इस तरह का निर्मल हास्य आप लिखा कीजिए। अच्छा लगा।
ReplyDeleteहर विधा में जानदार --हास्य ऐसी --हँसते रही।
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