Monday, May 19, 2014

खो रहे विश्वास को,बापस बुलाना चाहता हूँ -सतीश सक्सेना

सुलगते घर में,मधुर धारा बहाना चाहता हूँ ! 
हो रहे बरसों से ये,झगडे मिटाना चाहता हूँ !

मानवों को ज्ञान नफरत का पढ़ाया है बहुत
पंडितों  से दूर,इक बस्ती,बसाना चाहता हूँ !

साधुओं के रूप  में, शैतान सम्मानित न हो !
आस्था मासूम की,केवल बचाना चाहता हूँ !

जो भी जन्में साथ में,उनका भी हक़ पूरा रहे !
खो रहे विश्वास को,बापस बुलाना चाहता हूँ !

ढोंगियों ने देश को, बरबाद करके रख दिया !
मेरा घर खुशहाल हो ये गीत गाना चाहता हूँ !

15 comments:

  1. बहुत उम्दा रचना ।

    आपकी इन करामातों को
    करने धरने के लिये
    मैं भी साथ आना चाहता हूँ
    राम बनने की इच्छा
    कभी भी नहीं रही लेकिन
    कटखन्ने बंदरों की
    एक सेना बनाना चाहता हूँ :)

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  2. ढेरों बहाने मिल जायेंगे इन्हें पीटने के...
    निकाल डालिए मन की भड़ास.....
    :-)

    सादर
    an

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  3. आक्रोश स्वाभाविक है - जूतों के देव बातों से नहीं मानते !

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  4. जो भी जन्में साथ हैं उनका भी हक़ पूरा रहे !
    खो रहे विश्वास को,बापस बुलाना चाहता हूँ !..

    आशावादी विचार लिए ... बहुत ही सुन्दर छंद ... विश्वास वापस आएगा ...

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  5. ढोंगियों ने देश को, बरबाद करके रख दिया !
    इनको जीभर पीट लेने का बहाना चाहता हूँ !

    बहुत सही . ....मेरा मन भी होता है कुछ ऐसा ही...... पर किसी को पीटूं

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  6. This is the anguish against injustices and self-assertion, which is sometimes needed. Keep this fire. Regards.

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  7. इरादे बहुत तीखे मगर नेक हैं । ऐसे विचारों को मौका पाकर व्यवहार में बदल ही डालिये ।

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  8. सार्थक ...सुन्दर पंक्तियाँ

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    Replies
    1. बहुत सही . ....सार्थक लेखन

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  9. क्षमा वीरस्य भूषणम् ।

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  10. कितना ही कुछ कह ले पर इसके बिना काम भी नहीं चलता

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  11. ढोंगियों ने देश को, बरबाद करके रख दिया !
    इनको जीभर पीट लेने का बहाना चाहता हूँ !
    vaah kya baat hai :)

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  12. प्यारे सुथरे ख्याल--सुन्दर अभिव्यक्ति

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- सतीश सक्सेना

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