Thursday, July 10, 2014

कैसे कैसे लोग भी, गंगा नहाये इन दिनों ! ! -सतीश सक्सेना

अनपढ़ों के वोट से , बरसीं घटायें  इन दिनों !
साधू सन्यासी भी आ मूरख बनायें इन दिनों !

झूठ, मक्कारी, मदारी और धन के जोर पर ,
कैसे कैसे लोग भी , गंगा  नहाये इन दिनों !

सैकड़ों बलवान चुनकर , राजधानी आ गए !
आप संसद के लिए, आंसू बहायें इन दिनों !

देखते ही देखते सरदार को , रुखसत किया ,
बंदरों ने सीख लीं कितनी कलायें इन दिनों !

ये वही नाला है जमुना नाम था,जिसके लिए, 
साफ़ करने के लिए,चलती हवायें इन दिनों !

20 comments:

  1. नदियों को कूड़ा करने का यह सिलसिला पुराना है :(
    अच्छी रचना !

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  2. सटीक , समसामयिक पंक्तियाँ

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  3. गंगा तो सबको स्वच्छ कर देती है शायद इनका भी भला हो जाये...

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  4. चोर डाकू चुन चुना के , राजधानी आ गए ,
    आप संसद के लिए, आंसू बहायें इन दिनों !
    ..दिखाना पड़ता है जनता को कि हमें कितनी चिंता है

    बहुत सटीक

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  5. चोर डाकू चुन चुना के , राजधानी आ गए ,
    आप संसद के लिए, आंसू बहायें इन दिनों ...
    सच लिखा है ... अखाड़ा बन चूका है आज अपना संसद भवन ....

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  6. पढ़े लिखों के वोट कहाँ गये :) ?
    बहुत सुंदर ।

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  7. बहुत सुन्दर और सटीक ग़ज़ल...

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  8. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आपका-

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  9. अबकी तो आशा बँधी है - गंगा स्वच्छ होंगी अविरल होंगी ,यमुना आदि नदियों का भी उद्धार होगा !
    होगा ,होगा ,अवश्य होगा !

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  10. वाह बेहतरीन गजल सुन्दर कटाक्ष
    घाट भी सजते गये काशी के देखो ।
    कैसे कैसे लोग भी गंगा नहाए इन दिनों।।

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  11. बहुत कुछ होरहा है इन दिनों..बढ़िया प्रस्तुति-

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  12. ये वही नाला है जमुना नाम था,जिसके लिए,
    साफ़ करने के लिए, चलती हवायें इन दिनों !..kya baat hai !

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  13. चोर डाकू चुन चुना के , राजधानी आ गए ,
    आप संसद के लिए, आंसू बहायें इन दिनों !
    ​वाह ! क्या बात है

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  14. ये वही नाला है जमुना नाम था,जिसके लिए,
    साफ़ करने के लिए, चलती हवायें इन दिनों !
    नदियों को पहले गन्दा करो फिर करोडो डालकर साफ करो ये कहाँ की बात है ? जब तक ये पापी लोग पाप धोने के लिए नदियों का प्रयोग करते रहेंगे जमुना जैसी पवित्र नदियों का अस्तित्व खतरे में रहेगा ! सटीक रचना !

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  15. satik chot deti hui rachna...

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  16. बहुत सुंदर रचना है like

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- सतीश सक्सेना

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