"निराशावादी द्रष्टि पालने वालों की यहाँ कमी नहीं और यही प्रवृत्ति मानवीयता को पीछे धकेलने में कामयाब है !
ऐसे लोग ब्लॉग जगत में लिखी रचनाओं के अर्थ, तरह तरह से लगाते हैं ,कई बार अर्थ का अनर्थ बनाने में कामयाब भी रहते हैं !"
कुछ दिन पहले, अली साहब से उपरोक्त विषय पर, लगभग आधा घंटे बात होने के बाद,अविश्वासी और निराशाजन्य स्वभावों पर हुई बातचीत के फलस्वरूप, इस लेख की प्रेरणा मिली !
रचना लिखते समय लेखक की अभिव्यक्ति, विशिष्ट समय और परिस्थितियों में, तात्कालिक मनस्थिति पर निर्भर करती हैं और पाठक उसे अपनी अपनी द्रष्टि, और बुद्धि अनुसार पारिभाषित करते हैं !
अगर लेखक की कथनी और करनी में फर्क नहीं है तो वह किसी भी काल में रचना करे , रचना के मूल सन्देश में फर्क नहीं होगा ! उसकी रचनाएँ उसके चरित्र और व्यवहार का आइना है , जिन्हें पढ़कर लेखक को आसानी से समझा जा सकता है ! अधिकतर ईमानदार लेखकों के विचार समय अनुसार बदलते नहीं हैं , अगर एक लेखक , विषय विशेष से परहेज करते हुए पाठकों की नज़र से,कुछ छिपाना चाहता है तो सतत लेखन फलस्वरूप, कभी न कभी, आवेग में वह,उन्हें व्यक्त कर ही देगा !
लेखक के अर्थ और उद्देश्य के सम्बन्ध में रमाकांत अवस्थी जी ने इन लोगों से कहा था ....
" मेरी रचना के अर्थ, बहुत से हैं...
जो भी तुमसे लग जाए,लगा लेना "
समाज के ठेकेदारों के मध्य प्रसारित, फक्कड़ लोगों की रचनाएँ, अक्सर नाराजी का विषय बन जाती हैं ! अर्थ का अनर्थ समझने वालों की चीख पुकार के कारण , नाराज लोगों की संख्या भी खासी रहती है , ऐसों को कैसे समझाया जाए , वाद विवाद छेड़ने की मेरी आदत कभी नहीं रही अतः यही कह कर चुप होना उचित है ...
कैसे बतलाएं कब मन को ,
अनुभूति हुई वृन्दावन की
बस कवर पेज से शुरू हुई ,
थी, एक कहानी जीवन की !
क्या मतलब बतलाऊँ तुमको,
जो चाहे अर्थ लगा लेना !
संकेतों से इंगित करता, बस यही कहानी जीवन की !
जो प्यार करेंगे, वे मुझको
सपनों में भी, दुलरायेंगे !
जिनको अनजाने दर्द दिया
वे पत्थर ही , बरसाएंगे !
इन दोनों पाटों में पिसकर,
जीवन का अर्थ लगा लेना !
स्नेह,प्यार,ममता खोजे, बस यही कहानी जीवन की !
कुछ लोग देखके खिल उठते
कुछ चेहरों पर रौनक आती
कुछ तो पैरों की आहट का ,
सदियों से इंतज़ार करते !
तुम प्यार और स्नेह भरी,
आँखों का अर्थ लगा लेना !
मेरी रचना के मालिक यह,बस यही कहानी जीवन की
कब जाने दुनिया ममता को ?
पहचाने दिल की क्षमता को
हम दिल को कहाँ लगा बैठे ?
कब रोये, निज अक्षमता पर ?
तुम मेरी कमजोरी का भी,
जो चाहे अर्थ लगा लेना !
हम जल्द यहाँ से जाएँगे , बस यही कहानी जीवन की !
कैसे जीवन को प्यार करें ?
क्यों हम ऐसा व्यापार करें
अपमान जानकी का करते
आंसू की कीमत भूल गए ?
भरपूर प्यार करने वाले ,
अंदाज़ तुम्हारा क्या जाने
वे नम, स्नेही ऑंखें ही , कह रही कहानी जीवन की !
तुम ही तो भूल गए हमको
हम भी कुछ थके, इरादों में
फिर भी तेरी इस नगरी में,
हँसते हँसते ,दुःख भूल गए !
गहरे कष्टों में साथ रहे ,
जो हाथ इबादत में उठते !
मेरे निंदिया के मालिक ये ,बस यही कहानी जीवन की !
ऐसे लोग ब्लॉग जगत में लिखी रचनाओं के अर्थ, तरह तरह से लगाते हैं ,कई बार अर्थ का अनर्थ बनाने में कामयाब भी रहते हैं !"
कुछ दिन पहले, अली साहब से उपरोक्त विषय पर, लगभग आधा घंटे बात होने के बाद,अविश्वासी और निराशाजन्य स्वभावों पर हुई बातचीत के फलस्वरूप, इस लेख की प्रेरणा मिली !
रचना लिखते समय लेखक की अभिव्यक्ति, विशिष्ट समय और परिस्थितियों में, तात्कालिक मनस्थिति पर निर्भर करती हैं और पाठक उसे अपनी अपनी द्रष्टि, और बुद्धि अनुसार पारिभाषित करते हैं !
अगर लेखक की कथनी और करनी में फर्क नहीं है तो वह किसी भी काल में रचना करे , रचना के मूल सन्देश में फर्क नहीं होगा ! उसकी रचनाएँ उसके चरित्र और व्यवहार का आइना है , जिन्हें पढ़कर लेखक को आसानी से समझा जा सकता है ! अधिकतर ईमानदार लेखकों के विचार समय अनुसार बदलते नहीं हैं , अगर एक लेखक , विषय विशेष से परहेज करते हुए पाठकों की नज़र से,कुछ छिपाना चाहता है तो सतत लेखन फलस्वरूप, कभी न कभी, आवेग में वह,उन्हें व्यक्त कर ही देगा !
लेखक के अर्थ और उद्देश्य के सम्बन्ध में रमाकांत अवस्थी जी ने इन लोगों से कहा था ....
" मेरी रचना के अर्थ, बहुत से हैं...
जो भी तुमसे लग जाए,लगा लेना "
समाज के ठेकेदारों के मध्य प्रसारित, फक्कड़ लोगों की रचनाएँ, अक्सर नाराजी का विषय बन जाती हैं ! अर्थ का अनर्थ समझने वालों की चीख पुकार के कारण , नाराज लोगों की संख्या भी खासी रहती है , ऐसों को कैसे समझाया जाए , वाद विवाद छेड़ने की मेरी आदत कभी नहीं रही अतः यही कह कर चुप होना उचित है ...
कैसे बतलाएं कब मन को ,
अनुभूति हुई वृन्दावन की
बस कवर पेज से शुरू हुई ,

क्या मतलब बतलाऊँ तुमको,
जो चाहे अर्थ लगा लेना !
संकेतों से इंगित करता, बस यही कहानी जीवन की !
जो प्यार करेंगे, वे मुझको
सपनों में भी, दुलरायेंगे !
जिनको अनजाने दर्द दिया
वे पत्थर ही , बरसाएंगे !
इन दोनों पाटों में पिसकर,
जीवन का अर्थ लगा लेना !
स्नेह,प्यार,ममता खोजे, बस यही कहानी जीवन की !
कुछ लोग देखके खिल उठते
कुछ चेहरों पर रौनक आती
कुछ तो पैरों की आहट का ,
सदियों से इंतज़ार करते !
तुम प्यार और स्नेह भरी,
आँखों का अर्थ लगा लेना !
मेरी रचना के मालिक यह,बस यही कहानी जीवन की
कब जाने दुनिया ममता को ?
पहचाने दिल की क्षमता को
हम दिल को कहाँ लगा बैठे ?
कब रोये, निज अक्षमता पर ?
तुम मेरी कमजोरी का भी,
जो चाहे अर्थ लगा लेना !
हम जल्द यहाँ से जाएँगे , बस यही कहानी जीवन की !
कैसे जीवन को प्यार करें ?
क्यों हम ऐसा व्यापार करें
अपमान जानकी का करते
आंसू की कीमत भूल गए ?
भरपूर प्यार करने वाले ,
अंदाज़ तुम्हारा क्या जाने
वे नम, स्नेही ऑंखें ही , कह रही कहानी जीवन की !
तुम ही तो भूल गए हमको
हम भी कुछ थके, इरादों में
फिर भी तेरी इस नगरी में,
हँसते हँसते ,दुःख भूल गए !
गहरे कष्टों में साथ रहे ,
जो हाथ इबादत में उठते !
मेरे निंदिया के मालिक ये ,बस यही कहानी जीवन की !