Thursday, December 15, 2011

बस यही कहानी जीवन की -सतीश सक्सेना

"निराशावादी द्रष्टि पालने वालों की यहाँ कमी नहीं और यही प्रवृत्ति मानवीयता को पीछे धकेलने में कामयाब है !
ऐसे लोग ब्लॉग जगत में लिखी रचनाओं के अर्थ, तरह तरह से लगाते हैं ,कई बार अर्थ का अनर्थ बनाने में कामयाब भी रहते हैं  !"
                          कुछ दिन पहले, अली साहब से उपरोक्त विषय पर, लगभग आधा घंटे बात होने के बाद,अविश्वासी और निराशाजन्य स्वभावों पर हुई बातचीत के फलस्वरूप, इस लेख की प्रेरणा मिली !
                         रचना लिखते समय लेखक की अभिव्यक्ति, विशिष्ट समय और परिस्थितियों में, तात्कालिक  मनस्थिति पर निर्भर करती हैं और पाठक  उसे अपनी अपनी द्रष्टि, और बुद्धि अनुसार पारिभाषित करते हैं  !
                        अगर लेखक की कथनी और करनी में फर्क नहीं है तो वह  किसी भी काल में रचना करे , रचना के मूल सन्देश में फर्क नहीं होगा ! उसकी रचनाएँ उसके चरित्र  और व्यवहार का आइना है , जिन्हें पढ़कर लेखक को आसानी से समझा जा सकता है ! अधिकतर ईमानदार लेखकों  के विचार समय अनुसार बदलते नहीं हैं , अगर एक लेखक , विषय विशेष से परहेज करते हुए पाठकों की नज़र से,कुछ  छिपाना चाहता है तो सतत लेखन फलस्वरूप, कभी न कभी, आवेग में वह,उन्हें व्यक्त कर ही देगा ! 
                       लेखक के अर्थ और उद्देश्य के सम्बन्ध में रमाकांत अवस्थी जी ने इन लोगों से कहा था ....
" मेरी रचना के अर्थ,  बहुत से हैं...
जो भी तुमसे लग जाए,लगा लेना "
                      समाज के ठेकेदारों के मध्य प्रसारित, फक्कड़ लोगों की रचनाएँ, अक्सर नाराजी का विषय बन जाती हैं ! अर्थ का अनर्थ समझने वालों की चीख पुकार के कारण , नाराज लोगों की संख्या  भी खासी रहती है , ऐसों को कैसे समझाया जाए , वाद विवाद छेड़ने की मेरी आदत कभी नहीं रही अतः यही कह कर चुप होना उचित है ...  

कैसे बतलाएं कब मन को ,
अनुभूति हुई वृन्दावन की 
बस कवर पेज से शुरू हुई , 
थी, एक कहानी जीवन की ! 
क्या मतलब बतलाऊँ तुमको,
जो चाहे अर्थ लगा लेना !
संकेतों से इंगित करता, बस  यही कहानी जीवन की !

जो प्यार करेंगे, वे  मुझको 
सपनों में भी, दुलरायेंगे ! 
जिनको अनजाने दर्द दिया 
वे पत्थर ही , बरसाएंगे  !
इन दोनों पाटों में पिसकर,
जीवन का अर्थ लगा लेना !
स्नेह,प्यार,ममता खोजे, बस यही  कहानी जीवन की  !

कुछ लोग देखके खिल उठते 
कुछ चेहरों पर रौनक  आती  
कुछ तो पैरों की आहट का ,
सदियों से इंतज़ार  करते   !
तुम प्यार और स्नेह भरी,
आँखों  का अर्थ लगा लेना !
मेरी रचना के मालिक यह,बस यही कहानी जीवन की

कब जाने दुनिया ममता को ?
पहचाने दिल की क्षमता को 
हम दिल को कहाँ लगा बैठे ?
कब रोये, निज अक्षमता पर ?
तुम मेरी कमजोरी का भी, 
जो  चाहे  अर्थ लगा लेना  !
हम जल्द यहाँ से जाएँगे , बस यही कहानी जीवन की !

कैसे जीवन को प्यार करें ? 
क्यों हम ऐसा व्यापार करें
अपमान जानकी का करते 
आंसू की कीमत भूल गए ? 
भरपूर प्यार करने वाले , 
अंदाज़ तुम्हारा क्या जाने
वे नम, स्नेही ऑंखें ही , कह रही कहानी जीवन की !

तुम ही तो भूल गए हमको 
हम भी कुछ थके, इरादों में 
फिर भी तेरी इस नगरी  में, 
हँसते हँसते ,दुःख भूल गए !
गहरे  कष्टों में साथ रहे ,
जो  हाथ  इबादत में उठते !
मेरे निंदिया के मालिक ये ,बस यही कहानी जीवन की !

Saturday, December 10, 2011

श्रद्धा -सतीश सक्सेना

जाकी रही भावना जैसी , 
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी....

तुलसी दास  की यह लाइनें, हम सबको इस विषय की गूढता समझाने के लिए काफी हैं ! सामजिक परिवेश में , इस का नमूना, लगभग हर रोज दिखाई देता है ! पूरी श्रद्धा के साथ ध्यान और आवाहन, किसी भी समय, किसी भी स्थिति में करें ,परमेश्वर का प्रत्यक्ष अहसास आपको उसी क्षण होगा !
परिवार में भली भांति एक दूसरे को समझने का  दावा  करने वाले हम लोग, शायद ही कभी पूर्वाग्रह रहित होकर,अपनों के बारे में, सही राय कायम कर पाते हों ! 

पत्थर की बनायीं एक मूर्ति, चाहे राम की हो या केशव की , मनचाहा फल देने में समर्थ है बशर्ते कि इस कामना में श्रद्धा शामिल हो ! रावण परम विद्वान था, यह बात मर्यादा पुरषोत्तम, महा शत्रुता के बाद भी नहीं भूले थे , मरते समय,एक आशा के साथ लक्ष्मण को आदेश दिया था कि अंतिम समय गुरु रावण से कुछ ग्रहण करने का प्रयत्न अवश्य करें !
साधारण से सरकारी कर्मचारी  नेकचंद ( बाद में पद्मश्री से विभूषित ) को कूड़े के ढेर में ऐसी सुन्दरता नज़र आई कि उसने भारतीय शिल्पकला की झलक लिए पूरा पार्क ही रच दिया और विश्व ने उसे कला का एक नायाब नमूना माना ! सकारात्मक, आशावादी स्वभाव  का यह उदाहरण ,विश्व में दुर्लभ है  ! काश हम सबको  ऐसी नज़र मिल पायें !
अपने आपको ब्रह्माण्ड का सबसे विद्वान मानने की भूल, एवं अपनों पर अविश्वास , अक्सर अर्थ का अनर्थ करवाने के लिए पर्याप्त है !

Thursday, December 1, 2011

भीड़ चाल -सतीश सक्सेना

              संसार का शायद ही कोई आदमी ऐसा होगा जो अपने आपको कम अक्ल मानता होगा , हमारे देश में सामान्यतः यह कमी कहीं नज़र नहीं आती बल्कि बहुतायत ज्ञान सिखाने वालों की है ,जो हर गली कूंचों में बिखरे पड़े हैं !
              मगर विकिपीडिया  कुछ और ही कहती है , सन २००८ के आंकड़ों को देखें तो,  उसके हिसाब से २५ प्रतिशत लोग अभी भी अनपढ़ हैं तथा  मात्र १५ % भारतीय छात्र हाई स्कूल एवं ७ % ग्रेजुएट बन  पाते हैं  ! महिलाओं में स्थिति पुरूषों के मुकाबले और अधिक ख़राब है ! 
              आधुनिक भारतीय समाज के पास मनोरंजन का साधन , और दुनिया से जुड़े रहने के लिए टेलीविजन एक मात्र माध्यम है और उस पर दिखाई गयी बातों पर गहरा विश्वास करते हैं ! आज भी अक्सर शर्त लगाने पर जीत अक्सर उसकी  होती है, जो प्रमाण स्वरुप , उसे लिखा हुआ कहीं दिखा दे ! चाहे लिखा किसी भ्रष्ट बुद्धि ने ही हो :-) 
              अक्सर पूंछा जाता है कि कहाँ लिखा है ...?  दिखाओ तो जाने ? से हमारी लेखन और लेखक के प्रति आस्था का पता चलता है ! 
              ऐसी परिस्थिति में , नोट कमाने के लिए मार्केट में उतरे , टेलीविजन कैमरा और उनके लिए ढोल बजाते नगाडची , भारतीय  भीड़ को अपनी सुविधानुसार, राह दिखाने में खूब कामयाब हो रहे हैं !

          आम जनता के नाम पर, टीवी कैमरे के सामने खड़े, एक सामान्य घबराए व्यक्ति से, मनचाहे शब्द बुलवाकर , हर न्यूज़  को  अपने मन मुताबिक़ शक्ल देकर, आम जनता को भ्रमित करना, राष्ट्रीय अपराध होना चाहिए !   
          पूरे राष्ट्र को, सरेआम बेवकूफ बनाते, मीडिया के इन धुरंधरों के खिलाफ, कोई कानून नहीं है  !

Friday, November 25, 2011

बुनियाद.... -सतीश सक्सेना


                  सामाजिक परिवेश में रहते हुए हमारे अपनों को, बहुत कम मौकों पर एक दूसरे की तरफ ,याचना युक्त द्रष्टि से देखा जाता है, हर हालत में इस नज़र का सम्मान किया जाना  चाहिए ! अपने ही घर में, महज अपनी आत्मसंतुष्टि  के लिए, अपनों को निराश करने की प्रवृत्ति , मानवीय प्रवृत्ति नहीं कही  जा सकती निस्संदेह ऐसी प्रवृत्तियों को समाज, समय के साथ ऐसा ही जवाब देगा मगर शायद तब तक समझने में, बहुत देर हो चुकी होगी !
                 किसी से भी आदर पाने के लिए स्नेह और आदर देना आवश्यक होता है ! और यही मजबूत घर की बुनियाद होती है !हमारे  होते , अपनों की आँख से आंसू नहीं गिरने चाहिए ,इन आँखों से गिरता हर आंसू, स्नेहमाला के टूटते हुए मोती हैं ....
               गंभीर और कष्टकारक स्थितियों में, हमें अपने बड़ों का साथ देना चाहिए न कि हम उनका उपहास करें और उनकी कमियां गिनाते हुए उपदेश दें , ऐसे  उदाहरण, मात्र क्रूरता माना जायेंगे ! ममता भरे आंसुओं को न पहचान सकने वाले अभागे हैं , भविष्य और इतिहास ऐसे लोगों को कभी  प्यार नहीं करेगा !
जब समय लिखे इतिहास कभी
जब  मुस्काए, तलवार कभी,
जब शक होगा, निज बाँहों पर ,
जब इंगित करती आँख  कहीं 
जब बिना कहे दुनिया जाने,  कृतियाँ, जीवित कैकेयी   की !
हम बिलख बिलख जब रोये थे, परिहास तुम्हारे चेहरे पर !               
                      निरंतर परिवर्तनशील समाज, किसी को भी, लगातार राज करने की स्वीकृति नहीं देता है ! जो आज ताकतवर है वह कल कमजोर होगा और जो आज कमजोर है वह कल राज करेगा ! वे मूर्ख हैं जो आज कमजोर की याचना का मान नहीं रखते ! गर्व को हमेशा झुकना पड़ा है और जीत विनम्रता की ही होती आई है!
साजिश है आग लगाने की
कोई रंजिश, हमें लड़ाने की
वह रंज लिए, बैठे दिल में
हम प्यार, बांटने निकले हैं!
इक सपना पाले बरसों से,लम्बी यात्रा पर जाने को     
हम आशा भरी नज़र लेकर, उम्मीद लगाए बैठे हैं !


तुम शंकित, कुंठित मन लेकर,
कुछ पत्थर हम पर फ़ेंक गए,
हम समझ नही पाए, हमको 
क्यों मारा ? इस बेदर्दी से 
फिर भी आँखों में अश्रु भरे, देखें तुमको उम्मीदों से !  
हम चोटें लेकर भी दिल पर, अरमान लगाये बैठे हैं !
                  भाई बहिन  के मध्य स्नेह को मैं बहुत महत्व देता हूँ , विवाह उपरान्त बहिन अपने पूरे जीवन, भाई की ओर आशान्वित निगाहों से देखती है जिसमें अपने प्रति भाई के प्यार का भरोसा रहता है ! यही भरोसा उसके जन्मस्थान से उसको जोड़े रहने में सहायक होता है ! जो लोग इस विश्वास स्नेह भरी नज़र को सम्मान नहीं दे पाते वे सच्चे प्यार को शायद ही कभी समझ पायेंगे !

किस घर को अपना बोलूं माँ
किस दर को , अपना मानूं !
भाग्यविधाता ने क्यों मुझको
जन्म दिया है , नारी का,
बड़े दिनों के बाद, आज भैया की याद सताती है
पता नहीं क्यों सावन में पापा की यादें आती है !

अक्सर नारी ही कष्ट क्यों उठाती है ? उसे ही समझने में क्यों भूल की जाती है ? पुरुष प्रधान समाज में  पुरुषों का  अहम् , कोमल और स्नेही स्वभाव, माँ और बहिन को अक्सर रुलाता है !

इस सम्बन्ध में बेटी से मेरा कहना है ....
सभी सांत्वना, देते आकर 
जहाँ लेखनी , रोती पाए !
आहत मानस, भी घायल
हो सच्चाई पहचान न पाए !
ऎसी ज़ज्बाती ग़ज़लों को , ढूंढें अवसरवादी गीत !
मौकों का फायदा उठाने, दरवाजे पर तत्पर गीत !

                   अन्याय और क्रूरता सहती ये महिलायें, कष्ट इसलिए सह रही हैं कि वे हमें प्यार करती हैं और इसी स्नेही और कोमल स्वभाव की सजा, अक्सर महिलायें भोगती आई हैं !
हम पुरुष कब तक इस स्नेह को बिना पहचाने, आदिकालीन भावनात्मक शोषण जारी रखेंगे   ?
कई बार मुझे लगता है कि विद्रोह का समय आ गया है ...
भविष्य की मजबूत बुनियाद के लिए, इन लड़कियों को मज़बूत होना चाहिए... 
इन्हें समझना होगा कि प्यार की भीख नहीं मांगी जाती !

Tuesday, November 22, 2011

आपका स्नेहाशीर्वाद चाहिए -सतीश सक्सेना



"सतीश जी ने इस बीच दो बहुत बड़ी खुशखबरी सुनाई...पंजाबी टच वाली इन खुशखबरियों का राज़ मैं यहां नहीं खोलने जा रहा..उम्मीद करता हूं कि सतीश जी खुद ही किसी पोस्ट में ये जानकारी देंगे..."
             उपरोक्त लाइनें, भाई  खुशदीप सहगल ( वरिष्ठ प्रोडयूसर जी न्यूज़ और मशहूर ब्लाग लेखक) की हैं, जिनके स्नेह ने मजबूर कर दिया कि मैं अपनी व्यक्तिगत खुशियों से  ब्लोगर साथियों को अवगत कराऊँ !
बेटी गरिमा की, उसके जन्मस्थान से, विदा की तैयारी की शुरुआत हो चुकी है , एक राजकुमार मिल चुका है, जिसने मेरी  लाडली को  खुश रखने का वायदा किया है,  बड़ा  ही प्यारा कोलगेट स्माइली बच्चा है !:-)
अमेरिकन एक्सप्रेस में, साथ साथ काम करते इन दोनों बच्चों ने एक साथ जीवनसूत्र में बंधने का फैसला किया है जिसको हम दोनों परिवारों ने सहर्ष मंज़ूर कर लिया है ! खुशकिस्मत महसूस करता हूँ कि  इशान  के माता पिता सुभाषिनी - जितेन्द्र कुमार , बहुत ही प्यारी शख्शियत के मालिक हैं और नॉएडा में ही रहते हैं !
१७ नवम्बर को नॉएडा गोल्फ क्लब में हुए सगाई समारोह में, इन दोनों बच्चों ने एक दूसरे को अंगूठी पहनाकर , समस्त परिजनों के सामने , साथ साथ, हँसते हुए जीवन बिताने का वचन  लिया है ! 


        यह स्वर्णिम क्षण, मेरे जीवन के अनमोल क्षणों में से एक रहेगा , मेरी कामना है कि हमारे दोनों परिवार एक दूसरे के प्रति वह स्नेह और अपनापन दे सकें जो आजकल के व्यस्त समय में अन्यन्त्र दुर्लभ लगने लगा है !
            आजकल विवाह के बाद, अक्सर बच्चों के परिवारों के मध्य केवल दिखावे का स्नेह मिलता है जो त्योहारों अथवा परिवारों में शुभवसरों पर ही मुखर होता है ! मेरी कामना है कि हमारे दोनों परिवार परस्पर स्नेह और अपनापन का एक उदाहरण कायम कर सकें !
              इशान -गरिमा  के लिए आपका स्नेहाशीर्वाद, उनके लिए मज़बूत घरौंदे की बुनियाद रखेगा !

Tuesday, October 11, 2011

लड़कियों का घर ? - सतीश सक्सेना

गरिमा, पिता के साथ  
पहले इस नंदन कानन में 
एक राजकुमारी  रहती थी 
घर राजमहल सा लगता था 
हर रोज दिवाली होती थी ! 
तेरे जाने के साथ साथ,चिड़ियों ने भी आना छोड़ा ! 

                  मैंने इस गीत द्वारा, घर से बेटी की विदाई के बाद, भाई और पिता की  स्थिति का, एक शब्द चित्र खींचने का प्रयास किया था  ! इस मार्मिक गीत को, लिखने के बाद, छलछलाती आँखों के कारण , मैं आज तक पूरा नहीं पढ़ नहीं पाया ! विवाह योग्य पुत्री की विदाई की कल्पना भी, दारुण दुःख देती है , पता नहीं उसकी विदाई कैसे झेल पाऊंगा !


पूर्वा राय द्विवेदी 
इस रचना को पढ़कर , एक और प्यारी बेटी के पिता दिनेश राय द्विवेदी , के  आँखों में आंसू छलछला उठे ! डबडबाई  आँखों से, उनके द्वारा मेरे लेख पर लिखी गयी एक लाइन की यह टिप्पणी, मुझे भाव विह्वल करने को काफी है ! अपनी पुत्री की विदाई की याद करके ही दिनेश राय द्विवेदी जैसे प्रख्यात एडवोकेट तक रो पड़ते हैं .... 
"बहुत बहुत रुलाते हैं, तेरे ये गीत ! सच में बहुत रुलाते हैं"

उनकी इस टिप्पणी के साथ, इस गीत  को लिखने का उद्देश्य पूरा हुआ ! पुत्री को अपना घर छोड़ना ही होता है  और एक नए माहौल , नए लोगों के साथ मिलकर , नए घोसले का निर्माण करना  होता है ! ऐसे विषद संक्रमण काल में, उसे अक्सर भारी मानसिक तनाव और  कष्ट से गुजरना होता है !इस समय में, अक्सर इस लड़की को,अपने पिता और भाई से, हर समय जुड़े महसूस रहने का अहसास ही , इसकी राह आसान बनाने को, काफी होता हैं !

इस पोस्ट का शीर्षक, दिनेश राय द्विवेदी की मेधावी पुत्री पूर्वा राय द्विवेदी , द्वारा लिखी एक पोस्ट "लड़कियों का घर कहाँ है ? " की देन है, जिसमें पूर्वा के कहे शब्दों ने, मुझे इस पोस्ट को लिखने को प्रेरित किया ! मैथमैटिकल साइंस में एम् एस सी, कुमारी पूर्वा, जनस्वास्थ्य से जुडी एक परियोजना में शोध अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं !



विवाह के बाद लड़की इतना क्यों रोती है ? इस प्रश्न के जवाब में पूर्वा ने कहा था कि शादी के बाद उसका घर छीन लिया जाता है और उसका घर, मायका बन जाता है और नया घर, ससुराल  ! अपने घर को छिन जाने के कारण वह रोती है कि कोई बताये लड़कियों का घर कहाँ होता है ??

                      कहते हैं लड़की ही, घर में सबसे कमजोर होती है और मगर यह समाज, सुरक्षा देने की जगह ,उससे उसका "घर "छीन कर उसे मायका और ससुराल उपहार में दे देते हैं ! और यह काम दोनों ही पक्ष के लोग धूमधाम से करते हैं !
                       पुत्री को हमें  यह अहसास दिलाना होगा कि वह इस परिवार में बेटे की हैसियत रखती है और अपने भाई के समान  अधिकार और सम्मान की हकदार है और  हमेशा रहेगी ! यही बात, वह बहू बनकर नए घर में भी याद रखे कि उस घर की पुत्री का भी घर में समान अधिकार है और हमेशा रहेगा !
                        नए घर के निर्माण में, जो थकान होती है, उसे दूर करने को, अपने परिवार द्वारा बोले स्नेह के दो शब्द काफी हैं ! अपने मज़बूत पिता और भाई की समीपता का अहसास ही, हमारे परिवार वृक्ष की इस खुबसूरत डाली को, हमेशा तरोताजा रखने के लिए काफी होता है !

Monday, September 26, 2011

घायल सिक्किम - सतीश सक्सेना

प्राकृतिक आपदा में बुरी तरह से घायल सिक्किम , इनदिनों अपने जख्म सहला रहा है  ! इस भयानक त्रासदी में मारे गए सौ से नागरिक और घायलों की अनगिनत संख्या भी, टेलीविजन चैनल्स का ध्यान खींचने में असमर्थ है !

नोर्थ ईस्ट की खबरों में शायद अधिक टी आर पी की संभावना नहीं है !

६.९ रेक्टर स्केल का भयानक भूकंप झेल चुके, सुदूर क्षेत्र में स्थिति हमारे इस पर्वतीय राज्य को, पूरे परिवार का साथ और सहानुभूति चाहिए !

दिल्ली, मुंबई में चटपटी खबरों को ढूँढती , सैकड़ों ओ बी वैन, इस भयानक त्रासदी के समय, हमारे इस सुदूर पूर्वीय राज्य से गायब थीं ! 

पिछले दिनों भारी वर्षा में भी, बसों की छत पर चढ़ कर, पानी में भीगते, दहाड़ते मीडिया के जाबांज , सिक्किम की इस तकलीफ में, दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहे थे  ! 

कुछ न्यूज़ चैनल सिक्किम वासियों से महज़ अपील कर रहे थे कि वे कुछ तबाही के विडिओ अथवा फोटो भेंज दें ताकि वे  सिक्किम में अपनी उपस्थिति दिखा सकें ! हाँ अधिकतर चैनलों की यह चिंता जरूर है कि अगर दिल्ली में इस तीव्रता का भूकंप आया तो हमारा क्या होगा !

यह चोट सिक्किम को नहीं देश के सीने में लगी है , मीडिया के पहलवानों को समझाने की जरूरत है क्या ?

हमें वृहत और संयुक्त परिवार में जीने का सलीका आना चाहिए  अन्यथा पड़ोसियों के द्वारा हमारा उपहास उड़ाया जा सकता है !

आपके होते दुनिया  वाले   ,मेरे दिल पर राज़ करें 
आपसे मुझको शिकवा है,खुद आपने बेपरवाई की
      
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