Wednesday, November 13, 2013

तो हम होली दिवाली,माँ से मिलने घर गए होते -सतीश सक्सेना

अगर हम ऐसी वैसी धमकियों से, डर गए होते !
अभी तक दोस्तों के हाथ, कब के मर गए होते !

तेरे जज़्बात की हम को , अगर चिंता नहीं होती ,
तो हम होली दिवाली,माँ से मिलने घर गए होते !

अगर हम वाकई मन में ,यह शैतानी लिए होते !
तुम्हारे दिल  के , अंदेशे भी , पूरे कर गए होते !

अगर हमने भी डर के ऐसे, समझौते किये होते !
तो बरसों की मेरी मेहनत, कबूतर चर गए होते !

अगर हम  दोस्तों में ऐसे , कद्दावर नहीं  होते !
हमारे घर की दीवारें , वे काली कर गए होते !

32 comments:

  1. अगर तेरे ही जज़बातों की,कुछ चिंता नहीं होती !
    तो हम होली दिवाली माँ,से मिलने घर गए होते !
    वाह!!! बहुत खूब!!
    सादर
    अनु

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  2. अगर तेरे ही जज़बातों की,कुछ चिंता नहीं होती !
    तो हम होली दिवाली माँ,से मिलने घर गए होते !

    एक विवशता की सार्थक अभिव्यक्ति के हार्दिक आभार बन्धु।

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  3. अगर हमने भी डर के ऐसे, समझौते किये होते !
    तो बरसों की मेरी मेहनत,कबूतर चर गए होते !
    बहुत सुंदर.

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  4. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 14/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -43 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  5. क्या बात है आदरणीय-
    सुन्दर प्रस्तुति
    शुभकामनायें-

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  6. और जो देख ले होती आपकी सदाबहार जवानी ,रूबरू होके ,
    जाने कितने यार आपके , मारे खीज़ के ,खुद जल गए होते ........ :) :)

    आजकल आप बहुत रफ़्तार में हैं और धार में भी , पढते पढते मूड बनता जा रहा है ......... :) :) जारी रहिए ...

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  7. बेलौस, बेबाक गीत। सुन्दर !

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  10. अगर हम दोस्तों में ऐसे , कद्दावर नहीं होते !
    हमारे घर की दीवारें , वे काली कर गए होते !
    सही कहा सभी सटीक पंक्तियाँ !

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  11. aapki baton se aapki saafgoi jhalakti hai...bahut khub...

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    Replies
    1. शुक्रिया वाणभट्ट जी !

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  12. बंदूक की गोलियां
    कोई ऐसे ही
    नहीं लिखता
    वो जो लिखता है
    उसे देखने का
    चश्मा भी
    ऐरे गैरे के पास
    नहीं मिलता :P

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  13. बहुत खुबसूरत रचना ...बधाई !!

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  14. हमें मालूम है कि आपका शायराने का अपना अनूठा अंदाज़ है, फिर भी अगर आप इसमे कुछ शास्त्रीय पना लाए तो इससे बहुत लाभ होगा।

    बहरहाल स्टॉक में ये माल अच्छा आया है , जारी रखिये।

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    Replies
    1. लगता है यह पोस्ट आपने ध्यान से पढ़ी है. . .
      शास्त्रीय पना सीखा नहीं , अनपढ़ों से यह उम्मीदें , अब आप जैसों से सीखने की कोशिश करेंगे , कुछ दिनों में !
      बशर्ते मुखौटा घर रख कर आयें ,
      आते रहिये !

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  15. बहुत सटीक अभिव्यक्ति !
    नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ

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  16. अगर हम दोस्तों में ऐसे , कद्दावर नहीं होते !
    हमारे घर की दीवारें , वे काली कर गए होते !
    .....वाकई..!!!!!

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  17. बहुत सटीक और सशक्त.

    रामराम.

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  18. सुन्दर ,सार्थक रचना,बेहतरीन,
    सादर मदन

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  19. ओशेष धोन्नवाद , , ,
    :)

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  20. सच में, क्या बात
    बहुत सुंदर

    मित्रों कुछ व्यस्तता के चलते मैं काफी समय से
    ब्लाग पर नहीं आ पाया। अब कोशिश होगी कि
    यहां बना रहूं।
    आभार

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  21. अभी मेरी पोस्टिंग दंतेवाड़ा में है। वहाँ के हालात और नक्सलवाद पर आपकी लिखी कविता अक्सर जेहन में आ जाती है। कनेक्टिविटी की दिक्कत होने के कारण हमेशा आपको पढ़ पाना संभव नहीं होता लेकिन जब भी पढ़ता हूँ एक सुखद अनुभव मेरे दिल में उतर जाता है।

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  22. क्या बात है आदरणीय सर। हमेशा की तरह सुन्दर कविता आभार।

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  23. सुन्दर रचना

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  24. क्या बात बात है, क्या जज़बा है।

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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