ब्लाग जगत में आज कल एक अघोषित युद्ध सा छिड़ा लगता है ,अपना अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए, इस लड़ाई का अंत क्या होगा कुछ नहीं मालूम मगर हम जैसे निर्गुट मेंबर क्या करें यह समझ नहीं आता ! जो अंदाज़ा हुआ है उसके अनुसार एक तरफ एक मस्त मौला और फक्कड़ सा इंसान , जिस पर लगातार होते वार देख कर मैं कभी विस्मित सा होता था और हैरान होता था कि क्या सहनशक्ति पायी है इस भले आदमी नें और दूसरी तरफ एक बढ़िया दिल वाला शानदार व्यक्तित्व जिसने बिना किसी उद्देश्य सैकड़ों नवोदित लडखडाते ब्लागर्स को सहारा दिया और उनकी हिम्मत अफजाई की ! निस्संदेह ये सबके सम्मान के अधिकारी हैं !
आश्चर्य है कि यह ब्लाग जगत ऐसा किसको क्या दे रहा है कि सृजन शीलता छोड़ इनके अनुयायियों ने अपने अपने सेनानायक बनाकर, एक दूसरे के खिलाफ हल्ला बोल रखा है और अगर जल्द स्थिति न सुलझी तो बात गाली गलोग से भी आगे, अनुयायिओं में मारपीट तक भी पहुँच सकती है ! और अफ़सोस है कि अधिकतर अनुयायी जवान प्रतिभाशाली लड़के हैं जिनके दिल में आग भरने का कार्य कुछ वरिष्ठ मगर पिटे हुए ब्लागर, कर रहे हैं !
प्रतिभाशाली नयी पौध को आगे बढ़ाने की जगह उनमें द्वेष भावना विकसित करने का यह प्रयास सर्वाधिक निंदनीय है और जो भी इसके प्रायोजक हैं उनकी भर्त्सना होनी ही चाहिए ! हिन्दी के उत्थान के नाम पर यह लोग एक जहरीली फसल बोने का कार्य कर रहे हैं जिससे इस भाषा की खुशबू,बढ़ने के वजाय कम ही होगी !
मैं उम्मीद करता हूँ कि कुछ जानकार लोग सामने आकर इस समस्या से अवगत कराने में सार्थक भूमिका अदा करेंगे !
ब्लाग जगत कि क्रियायों प्रतिक्रियाओं से, लगातार नियमित संपर्क न रखने के कारण, किंकर्तव्यविमूढ़ सा महसूस कर रहा हूँ ! आजकल यही नहीं समझ पा रहा हूँ कि मैं जिन्हें बहुत अच्छा रचनाकार और सृजन शील समझ रहा हूँ किस गैंग के मेम्बर हैं ! ऐसा लगता है कि जमूरों को अपने से अधिक भीड़ इकट्ठी करते देख मदारी अपना आपा खो रहे हैं !
चलिए आप उदासीन और तटस्थ रहकर इसी तरह बीच बीच में आकर अपनी घोर चिंता व्यक्त करते रहा करिए -ब्लागजगत का जो होना है वह तो हो ही जाएगा.
ReplyDeletenirgut jyada fayade me rahtaa he, sarkaar ki ginati me jaroorat hoti he to ye hi nirgut kaam aate he../ baharhaal, aapki chinta..kya he sirf blog ke aghoshit yudhdh ki yaa..ghoshit yudhdh ki???,
ReplyDeletevese vicharottejak he vishay.
कोई फ़र्क नहीं पड़ता है, गुटबाजी से, जो अच्छा लिख रहे हैं, उन्हें लोग पढ़ भी रहे हैं, जो टांग खिंचाई कर रहे हैं, या घमासान कर रहे हैं, उनके बारे में कुछ बोलने की जरुरत ही नहीं है।
ReplyDeleteबड़े भाई!
ReplyDeleteयह आभासी जगत ही सही लेकिन उद्भूत तो इसी वास्तविक जगत से हुआ है।
परेशान मत हो दोस्त
ReplyDeleteये गर्द एक दिन खतम हो जायेगी
और इस चक्कर मे जो लोग रचना शीलता छोडकर गुट्वाजी करेगे वक्त उनका भी हिसाब करेगा.
सतीशजी,
ReplyDeleteखुद का गुट घोषित कर दो... निर्गुट ब्लॉग संघ/यूनियन/एसोसिएशन :))
मित्र अगर हमारी मानो तो गुट केवल कल्पना हैं पूरी तरह आभासी हैं तथा यथार्थ में उनका कोई अस्तित्व नहीं है। खुद ही सोचो क्या आप किसी कहने से ये या वो कहेंगे/करेंगे। सो भी ब्लॉगिंग में जहॉं लोग आए ही अपने मन की कहने हैं. कम से कम हम तो किसी के कहने से किसी को न भला कहेंगे न बुरा और इसीलिए अपने भले/बुरे करम का क्रेडिट व ब्लेम भी खुद ही लेंगे किसी गुट/प्रतिगुट/निर्गुट को न देंगे, न लेने देंगे।
इसलिए हमारी सलाह मानें बिंदास रहो, बिंदास लिखो
सतीश भाई, आपके साईड बार में ये जो कविता लिखी है, वो किसकी रचित है. ऐसा लग रहा है,इसी पोस्ट के लिए टांकी हुई है. :)
ReplyDeleteहम प्यार लुटाने बैठे हैं !
साजिश है आग लगाने की
कोई रंजिश, हमें लड़ाने की
वह रंज लिए, बैठे दिल में
हम प्यार, बांटने निकले हैं!
वे नफरत बाँटें इस जग में,
हम प्यार लुटाने बैठे हैं !
रामराम.
सतीश मेरे भाई
ReplyDeleteयह तो हूबहू वो ही मसला आपने फिर उठा लिया जो कुछ माह पूर्व खुशदीप भाई को विचलित कर रहा था. उनकी शंका का समाधान करने में कितनी लम्बी टिप्पणी तो की थी, आप भी वहीं पढ़ लो, शायद शंका समाधान हो जाये.
http://deshnama.blogspot.com/2009/11/blog-post_3564.html
वरना तो क्या कहा जाये. हमें तो ऐसा कोई अहसास नहीं.
सतीश जी बिल्कुल सही बात कही आपने पता नही क्यों लोग छोटी छोटी बातों का मुद्दा बना कर एक दूसरे पर शब्दों से प्रहार करने पर तुले है....सोचनीय बात है इस ब्लॉग संसार के लिए ...
ReplyDeleteसतीश जी , अब तो सब शांत सा लगता है।
ReplyDeleteवैसे बीच बीच में ज्वार भाटा आ जाता है।
सतीश जी, मेरी समझ में ही नहीं आता कि ब्लॉग-जगत में जबकि सब अपनी-अपनी मर्जी का लिख रहे हैं तब वहां गुटबाजी की गुन्जाइश ही क्यों होनी चाहिये? ये राजनैतिक अखाडा नहीं है. लोग निष्पक्ष होकर बोलना कब सीखेंगे?
ReplyDeleteसतीश जी,
ReplyDeleteमुझे याद है कि आपने सितम्बर माह में मेरे ब्लॉग पर अपनी टिप्पणी में लिखा था:कई बार आपसे प्रेरणा लेता हूं अनूप भाई,हंसते-हंसते अपनी बात कहना और लोगों के फ़ेंके हुये पत्थर सहने की बड़ी शक्ति है आपमें!मैं जब ब्लॉगजगत में आया तो लगता था कि बहुतों की बात सुनूंगा और अपनी कहने का प्रयत्न करूंगा! मगर यहां ब्लॉग जगत की हालत बेहद दयनीय है,लोग अपने को बेहतर साबित करने के लिये, और दूसरों को नीचे गिराने के लिये क्या नहीं करते।
यहां लोगों ने अपने अपने गैंग तथा गुट बना रखे हैं,और किसी की बेइज्जती करवाने के लिये ,बाकायदा फ़ोन करके मेल भेजकर उकसाया जाता है,और लोग इन महान विभूतियों की बात मानकर कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
उघड़े हुये मुखौटों के नीचे छिपे चेहरों की झलक पाकर मैं कई बार अचंभित रह जाता हूं!मेरे मन में बसी उनकी पूर्व सौम्य आकृति और यह नया वीभत्स रूप देखकर मेरा खुद का लिखने का दिन नहीं करता!लेखन चाहे कुछ भी क्यों न हो मगर लोक व्यापक होता है, मगर उस पर अपना महत्व बताने के लिये ,अपने कमेंट देने ये गैंगस्टर अवश्य पहुंचते हैं! इनका एक ही मकसद है कि आप इनको इज्जत बक्सें तभी आप ब्लॉग जगत में शांति पूर्वक रह पायेंगे।
इस पर मेरी प्रति टिप्पणी थी:
सतीश सक्सेनाजी,शुक्रिया आपकी प्रतिक्रिया का। मुझे तो ब्लॉगजगत में सब बहुत प्यारे लगते हैं। पत्थर-सत्थर का क्या?जिसके पास जो सबसे अच्छा होगा वही तो देगा! मुखौटा, गैंग, साजिश कुच्छ नहीं चलता लम्बे समय में!आखिर में अच्छा लिखा ही याद करते हैं लोग!एक और बात जो मैं जानता हूं और मानता हूं वह यह है कि बेवकूफ़ से बेवकूफ़ आदमी चालाक से चालाक व्यक्ति के बारे में जानता है और अपनी राय रखता है। प्रकट भले न कर पाये।इज्जत का क्या? करते रहेंगे सबकी। लिखते रहिये , लिखना मत छोड़िये।
आपकी पोस्ट में चिंतायें लगभग वही हैं जो टिप्पणी में थीं। हमारी हाल में कोई बहुत अधिक बदलाव नहीं आया है। लोगों के पत्थर थोड़े बढ़ गये हैं। दो मानहानि के दावे ठुक गये।
लेकिन आपको सच बतायें मुझे इसमें कुछ भी अनहोनी नही लगती। ब्लॉग जगत वैसा ही तो होगा जैसे समाज के लोग होंगे। एकाध दिन की तो बात है नहीं जो मुखौटा धारण किये रहें।
लेकिन सच यह भी है कि ऐसे लोग अल्पसंख्यक हैं। बहुत कम हैं। बहुमत अच्छे लोगों का है अब भी। ज्यादा क्या कहें आप खुद समझ हैं। मेरी हालिया बातचीत सुनिये न! http://sanskaardhani.blogspot.com/2010/02/blog-post_07.html
मेरा जित्ता अनुभव है कि ब्लॉगजगत में कोई गुट लम्बे समय तक सफ़ल नहीं हो सकता। कोई सेनानायक यहां स्थायी नहीं हो सकता। सब मन के भ्रम हैं। आज जिसके साथ मिलकर आप कोई साजिश रचते हैं कल को वह आपके व्यवहार भाष्य बतायेगा कि आप ऐसे हैं।
मैं ब्लॉगजगत में न अभी न ही आगे कोई संकट देखता हूं। आपको कुछ लगता भी है तो बस चंद दिनों में ही वह भी निपट जायेगा जब ब्लॉग इतने हो जायेंगे कि अपने पसंदीदा ब्लॉग बांचने की ही फ़ुर्सत न होगी।
व्यस्त रहिये- मस्त रहिये।
वैसे आप मौज खूब ले लिये। :)
निर्गुट बेगुट बेसंघ
ReplyDeleteसबके रहेगा अब सदा संग
पोस्टों के साथ मिलेगा
अब टिप्पणियों का अंग अंग
पर पहले होली पर तो
लगा लें
पोस्टों पर टिप्पणियों का
रंग रंगा रंग
तब तक नो जंग
नो दंग
सिर्फ भंग
भंग की नहीं
ब्लॉगरी की तरंग।
आप लोगों के जवाब के लिए मैं दिल से आभारी हूँ , मेरी शिकायत नयी पीढ़ी, जो कई मायनों में, हमसे बहुत अच्छा सोचती है, का ध्यान भटकाने के प्रयत्न के खिलाफ है ! ये बच्चे हम बड़ों का सम्मान करते हैं तो हम उनका अप्रत्यक्ष रूप में भावनात्मक शोषण करें, उचित नहीं लगता ! हमारे लेखन को श्रद्धा देते हुए बच्चे हमसे अभिन्न होकर जुड़ जाते हैं और जब वे फ़ोन और प्रतिक्रियाओं के जरिये अपने मार्गदर्शक पर कोई हमला होता महसूस करते हैं तो स्वाभाविक गुस्सा बाहर आ जाता है, इस अग्नि में जलते ये नन्हे दीपक अपनी सृजनशीलता भूल अपने गुरु के अपमान का बदला लेने की कोशिश में लग जाते हैं !
ReplyDeleteआप दोनों में कोई नाराजी नहीं हैं यह जानकर अच्छा लगा मगर अपने समर्थकों को तो आप अच्छी तरह जानते ही हैं उनमें शानदार प्रतिभाओं के साथ साथ अवांछनीय व्यक्तित्व भी शामिल हैं जिनका सौम्यता और शील से कोई नाता ही नहीं है उनके प्रति आंखे बंद न करें अन्यथा आप भी कहीं न कहीं इस आरोप के गुनाहगार हैं ! कुछ बढ़िया कपडे पहने,गंदे लोग, अपने पाँव टिकाये रखने के लिए, आपके पीताम्बर का छोर पकड़ कर दुसरे पर थूकते रहते हैं , समस्या यहाँ से शुरू होती है !
गन्दगी को साफ़ करने की प्रक्रिया चलती रहनी चाहिए अगर मोहवश आप कुछ ऐसे शिष्यों को पनाह देने को मजबूर भी हैं तो भी कम से कम उसे डांट तो सकते ही हैं, दुर्योधन ( शिव जी से क्षमायाचना सहित ) अंत में परिवारघाती ही सिद्ध हुआ !
मेरी नज़र में समीर लाल निश्छल हैं तो आप परम आदरणीय , आप दोनों ने यह परिवार बनाया है , सो इस होली पर अपना कर्त्तव्य पूरा करें !
सर आज शिव रात्रि पर एक बात याद आ रही है
ReplyDeleteसत्यं शिवं सुंदरम .....मतलब साफ़ है यानि जो सत्य सुंदर होगा वही शिव बना रहेगा । और हां आपकी चिंता जायज़ है हमारे युवा नए ब्लोग्गर्स के लिए मैं जल्द ही एक पोस्ट लिखने वाला हूं अपनी समझ के अनुसार । इसलिए कोशिश ये होनी चाहिए कि हम सत्य ......और सुंदर सत्य लिखें वही शाश्वत रहेगा और चिर भी ।
अजय कुमार झा
@अजय !
ReplyDeleteआप नयी पीढी के उचित प्रतिनिधि और प्रतिभावान हैं अतः आपकी पोस्ट का इंतज़ार रहेगा ..
@अरविन्द मिश्र ,मैं उदासीन और महात्मा नहीं हूँ, हाँ ईमानदार और मुखर जरूर हूँ ! आपकी बात को समझने का प्रयत्न करूंगा :-)
ReplyDelete@सुमन, सुमन वर्षा ( अरविन्द जी से साभार ) देख कर, दिल खिल गया ! कृपया हर पोस्ट पर कृपा बनाये रखें ...
@मसिजीवी , गुरुदेव आप द्रोणाचार्य है , जो सिखायेंगे सीखना है मगर हम भी आधुनिक शिष्य हैं ...छांट लेंगे आपके दिए हुए से ... आभार आपके आगमन का !
@ ताऊ बुड्ढे हो गए हो अब , यह गीत मेरा लिखा हुआ है , उस पर तुम्हारा आशीर्वाद भी मिला है , दुबारा पढो
वे नफरत बाँटें इस जग में हम प्यार लुटाने बैठे हैं !
http://satish-saxena.blogspot.com/2008/09/blog-post_19.html
@ सतीश भाई,
ReplyDeleteकहते हैं गुरजियेफ़ बुड्ढा ही पैदा हुआ था. और ताऊ पैदा तभी होता है जब वो बुड्ढा हो चुका होता है. तो हम बुड्ढे ही पैदा हुये यानि सठियाये हुये.:)
मुझे मालूम है ये आपके द्वारा रचित गीत है. सिर्फ़ आपको हालात का जायका याद दिलाने के लिये पूछा था कि ये रचना किसकी है.
यहां बली और महाबली सब अपनी सफ़ाई देते रहते हैं. दे भी गये हैं. हम कहीं कुछ ज्यादा बोलते हैं तो चेले चपाटे आकर हमको भी गरिया जाते हैं...नंगा करते हैं...अब वो ये नही जानते कि बुड्ढों की क्या औकात उनके सामने?
इसलिये अपन किसी की रामायण में नही है...मर्जी आया तो लिख लिया वर्ना बैठे हैं..और हमारे बहाने कई चेलों को बह्डास निकालने का मौका मिल जाता है. आपके यहां भी आते ही होंगे...हम इसलिये कहीं भी एक लाईन से ज्यादा की टिप्पणी नही करते.
रामराम.
drarvind3@gmail.com
ReplyDelete(क्या कहूं)
ReplyDeleteमैं इन सब के बीच उन्मुक्त जी जैसे चिठ्ठाकरों की सोंचती हूँ , जो शांति से अपना काम कर रहे हैं.
ReplyDeleteबड़ा सुकून मिला यहाँ आकर !
ReplyDeleteकल से मैं कुछ इन्हीं अजीबो-गरीब दुश्चिंताओं से
गुजर रहा हूँ .. यहाँ आया तो जैसे बेचैनी प्रशमित हुई हो .. आभार !
अनूप जी की टिप्पणी को कई बार पढ़ा --- शक्ति दे रहे साहित्य की तरह !
दुखी - दुखी आया था यहाँ और निश्चिंतता के भाव से जा रहा हूँ ! सक्सेना जी , धन्यवाद !
सुन्दर लगा सुनकर ..
ReplyDeleteशिवरात्रि की शुभकामनाएं ..
कोई धर्मयुद्ध नहीं सतीश जी... मेरी नज़र में तो बस तफरी चल रही है और क्या..... जब थक जायेंगे तो अपने आप सब ख़त्म हो जायेगा.
ReplyDeleteऔर नहीं थकेंगे तो सड़कों पे आके लड़ेंगे.. दुनिया भी तो जानेगी की एक ब्लॉग जगत नाम की भी दुनिया है.. हैं जी.. नुक्सान क्या है??? अपनी तो चित भी और पट भी.. :)
आपको महाशिवरात्रि पर्व मंगलमय हो..
जय हिंद... जय बुंदेलखंड...
मैं कहां हूं....हूं भी कि नहीं हूं
ReplyDeleteसतीश जी ,आप की चिंता बिलकुल सही और स्वाभाविक है ,न सिर्फ ये की गुट बने हुए हैं बल्कि एक गुट के लोग दूसरी जगह रचनाएँ पढने भी नहीं पहुँचते चाहे उस से उनका फायेदा भी हो रहा हो ,achchha साहित्य वैसे भी बहुत अधिक उपलब्ध नहीं ,क्या भारत जैसे देश में ,साहित्य के संसार में ये उचित है ?
ReplyDeleteआज मेरी भी nice कहने की इच्छा हो रही है,सुमन जी से साभार।वैसे ये सब तो चलता ही रहेगा हम समाज से अलग नही है,सवाल इस बात का है कि क्या खोटा सिक्का खरे सिक्के को बाज़ार से हटा सकता है।आपकी चिंता जायज और ये आप जैसे बहुत से लोगों की है मेरी भी है।
ReplyDeleteबहुत सही आलेख है । वैसे गुट बन्दी मे पडने की आवश्यकता ही क्या है जितनी ऊर्जा यहाँ खराब करनी है उतने मे अपनी रचना करो टिप्पिया लो पढ लो और भी बहुत से काम है। आप भी मस्त हो कर लिखें । हमे तो ये भी पता नही कि कौन सा गुट किसका है बस जो अच्छा लगा उस पर जा कर टिपिया दिया। आजकल तो घर मे भी गुटबन्दी हो जाती है फिर ये तो इतना बडा ब्लागवुड है। आप जैसे लोगों का उत्साह पा कर हमे भी किसी गुट मे न होने पर कोई परेशानी नही होती। इस लिये ऐसा ही जज़्वा बनाये रखें धन्यवाद्
ReplyDeleteसतीश जी ... क्या फ़र्क पढ़ता है इस गुटबाजी से ..... जिसने जो करना है उसे करने दीजिए ... हर कोई अपने अपने तरीके से जो करना चाहता है वो कर रहा है ...समय अपने आप दूध का दूध और पानी का पानी कर देता है ..... अपना कर्म किए जाना चाहिए ... आप एक संवेदनशील इंसान हैं और प्का दर्द समझ में आता है पर इस दुनिया में अपने हाथ में कुछ नही होता ..... होये है वही जो राम रची राखा ...
ReplyDeleteयह तो सब चलता ही रहता है....अपनी मौलिकता बनाये रखने की चुनौती सामने है....इससे ज्यादा कुछ भी नहीं..!
ReplyDeleteसतीश जी छोडिये ना, आप किसी गुट के ननही है आप को जिसका लिखा अच्चा लगे टिप्पणी देते रहिये उनका उत्साह बढाते रहिये वही जरूरी और महत्वपूर्ण है । हम झगडों में नही पडेंगे तो वे खत्म बी हो जायेंगे । आपकी टिप्पणी का शुक्रिाया ।
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