
में , हर लंगड़ा तैमूर दिखाई देता है !
धोखा पहले पाप बताया जाता था
लेकिन अब दस्तूर दिखाई देता है !
सरवत जमाल साहब के यह शेर हमारी असलियत बयान कर देते हैं ! शक और नासमझी की वदौलत हमारे अपने परिवार और प्यारे रिश्तों में पड़ी दरारें साफ़ नज़र आती हैं सिर्फ दिखावे के लिए आवरण डालकर एक दूसरे को सम्मान देते नज़र आते हैं ! बरसों बीत जाने के बाद भी परिवारों की रंजिशें बरकरार हैं !
बरसों पहले एक लंगड़े तैमूर ने जो जुल्म ढाया था उसके निशान आज भी बाकी हैं ! मगर अगर उस भय को सीने में लिए, तैमूर के भूत से आज भी दहशतजदा होने को, सिवाय कायरता के और क्या कहा जाएगा ! परस्पर बढ़ते हुए अविश्वास के फलस्वरूप जो रंजिश नज़र आती है कई बार दिलों को छील कर रख देती है ! दोनों अपनी जगह पर ईमानदार हैं , दोनों बेहतरीन भी हैं मगर एक दूसरे पर शक के गहराते बादलों के कारण, उत्पन्न संवाद हीनता ने स्थिति और बिगाड़ दी है !
अपने अपने खेमों में, तलवारों पर धार लगाते हम लोग, अपनी अपनी रक्षा की जुगत में , स्नेह लगभग भूल ही गए हैं ! कैसे समझेंगे हम कि एक गुनाहगार के कारण सारा परिवार बुरा नहीं होता है ! आपस की लड़ाई में ,दूसरों की गलतियाँ निकालते हम लोग, अक्सर यह याद नहीं रख पाते कि हम दूसरों को नीचा दिखाने के लिए झूठ बोल रहे हैं और अनजाने में झूठ बोलने की शिक्षा अपने ही बच्चों को दे देते हैं !!
बड़ी से बड़ी गलतफहमियां और झगडे बात करने से निपटाए जा सकते हैं !मगर पहल करना, हर पक्ष को अपमानजनक लगता है ! ऐसी विकट स्थिति में अपने पुराने प्यार को याद करें और बेझिझक पहल करें तो चेहरों पर मुस्कान आते देर नहीं लगेगी !