ब्लॉग जगत में, कई बार हम लोग, रचनाओं में निज दर्द उड़ेल देते हैं , जो बात अक्सर बोल नहीं पाते वह उनकी कलम , लिख देती है ! ऐसी रचनाओं पर टिप्पणी देते समय समझ नहीं आता कि क्या सलाह दी जाए , पति पत्नी के मध्य का दर्द पब्लिक में कहने का क्या फायदा ? बेहतर है कि दोनों बैठकर विचार करें और सोंचे कि कैसे इस बबूल वृक्ष को, घर से उखाड़ना है ! गृह युद्ध के असर से परिवार को अवश्य बचाए रखें !
इसी विषय पर यह रचना है .....
क्या खोया क्या पाया हमने ,
क्या छीना , इन नन्हों से !
क्यों न आज हम खुद से पूछें
बचपन की मुरझाई आँखें,
खूब रुलाये , हमने मीत !
देख सको तो आँखें देखें , अपने शिशु की, मेरे गीत !
अहम् हमारे ने, हमको तो
शक्ति दिलाई , जीने में !
मगर एक मासूम उम्र के,
छिने खिलौने, जीवन में !
इससे बड़ा पाप क्या होगा,
बच्चों से छीनी थी प्रीत !
असुरक्षा बच्चों को देकर , खूब झगड़ते, मेरे गीत !
हम तो कभी नहीं हँस पाए ,
विधि ने ही कुछ पाठ पढ़ाए !
बच्चों का न , साथ दे पाए ,
इक दूजे को, सबक सिखाएं !
पाठ पढ़ाया किसने, किसको ?
वाह वाह करते हैं गीत !
अपने हाथों शाख काट के, कालिदास , रचते हैं गीत !

अभी समय है, चलो खिलाएं ,
हम अपनी मुस्कानों को,
तुम आँचल की छाया दे दो
मैं कुछ लाऊँ भोजन को !
नित्य रोज घर उजड़े देखें ,
तड़प तड़प रह जाएँ गीत !
इतना दर्द सुनाऊं किसको , कौन समझता मेरे गीत !
एक बार देखो शीशे में ,
खुद से ही कुछ बात करो
जीवन भर का लेखा जोखा
जोड़ के , सारी बात करो !
खाना पीना और सो जाना,
जीवन यही न होता मीत !
मरते दम तक साथ निभाएं ,कहाँ से लायें ऐसे गीत !
किसी कवि की रचना देखूं !
दर्द उभरता , दिखता है !
प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
क्लेश हर जगह मिलता है !
क्या शिक्षा विद्वानों को दूं ,
टिप्पणियों में, रोते गीत !
निज रचनाएँ ,दर्पण मन का, दर्द समझते मेरे गीत !
अपना दर्द किसे दिखलाते ?
सब हंसकर आनंद उठाते !
दर्द, वहीं जाकर के बोलो ,
भूले जिनको, कसम उठाके !
स्वाभिमान का नाम न देना,
बस अभिमान सिखाती रीत ,
अपना दर्द, उजागर करते , मूरख बनते मेरे गीत !
आत्ममुग्धता मानव की
कुछ काम न आये जीवन में !
गर्वित मन को समझा पाना ,
बड़ा कठिन, इस जीवन में !
जीवन को कड़वी बातों को,
कहाँ भूल पाते हैं गीत !
हार और अपमान याद कर, क्रोध में आयें मेरे गीत !
सारे जीवन की यादें ही
अक्सर साथ निभाती हैं !
न जाने कब डोर कटे,
कमजोर सी पड़ती जाती है !
एक दिवस तो जाना ही है,
बहुत लिख लिए हमने गीत !
जिसको मधुर लगे वे गाएँ ,चहक चहक कर मेरे गीत
तेरी ऐसी याद कि मेरी हर,
चिट्ठी बन गयी , कहानी !
जिसे कलम ने, तुझे याद कर
लिखा ,वही बन गयी रुबाई !
लगता जैसे महा काव्य का,
रूप ले रहे मेरे गीत !
धीरे धीरे तेरे दिल में, जगह बनाएं मेरे गीत !
कौन हवन को पूरा करने
कमल, अष्टदल लाएगा ?
अक्षत पुष्प हाथ में लेकर
कौन साथ में गायेगा ?
यज्ञ अग्नि में समिधा देने,
कहीं से आयें मेरे मीत !
पद्मनाभ की स्तुति करते , आहुति देते मेरे गीत !
( अभी कुछ देर पहले अरुण चन्द्र राय ने सूचना दी कि "मेरे गीत " का प्रकाशन हो गया है , पुस्तक छप चुकी है ) निस्संदेह मेरे लिए यह एक अच्छी खबर है ! आप सब पाठक और ब्लोगर साथियों ने जो हौसला दिया उसी कारण , मेरी रचनाएं छपने लायक बन पायीं है !
आप सभी का आभार !