बस्ती के मुकद्दर को ही जान क्या करेंगे ?
आशीष कुबेरों का, लेकर बने हैं हाकिम
लालाओं के बनाये दरबान, क्या करेंगे ?
घुटनों पे बैठ, पगड़ी पैरों में मालिकों के !
बोतल में बंद हैं ये, मतदान क्या करेंगे ?
बेशर्म जमूरे और सच को जमीं बिछाकर
हथियार मदारी के , आह्वान क्या करेंगे !
इक दिन छटे अँधेरा विश्वास की किरण है
जनतंत्र की व्यथा हैं, व्यवधान क्या करेंगे !
जनतंत्र की व्यथा हैं, व्यवधान क्या करेंगे !
बेशर्मी के बख्तर ओढ़े झूठ ही हथियार हैं
ReplyDeleteसच की लाशें बिछाकर आह्वान क्या करेंगे
हमेशा की तरह धारदार और लाजवाब्।
गज़ब प्रोफ़ेसर ,
Deleteबहुत बढ़िया टिप्पणी , आभार आपका !सोंचता हूँ कि पोस्ट का हिस्सा ही बना दूँ !
आपकी लेखनी है ही लाजवाब स्वत:स्फूर्त निकल पड़ते हैं भाव।
Deleteएक दिन छँटे अँधेरा ,विश्वास की किरण है , यही जनतंत्र की व्यथा भी है और सम्बल भी ...
ReplyDeleteस्वागत गिरिजा जी , आभार सहित
Deleteवाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteस्वागत आभार सहित
Deleteआशीष कुबेरों का लेकर, बने हैं हाकिम
ReplyDeleteलालाओं के बनाये दरबान, क्या करेंगे ?
घुटनों पे बैठ , जोड़े हैं हाथ, मालिकों के
बोतल में बंद हैं ये, मतदान क्या करेंगे ?
बहुत खूब हाकिमों की चाटुकारिता पर करारा व्यंग | सादर
स्वागत है रेनू आपका ..
Deleteबहुत उम्दा!
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबेहद सशक्त और सटीक लेखन
ReplyDeleteसादर 🙏🏼🙏🏼
स्वागत के साथ आभार !!
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteस्वागत के साथ आभार भाई
Deleteबोतल में बन्द हैं ये ...
ReplyDeleteक्या बात लिखी है सर ... देश की व्यवस्था जाने कौन रफ़्तार से चल रही है ...
बेशर्म जमूरे और सच को जमीं बिछाकर
ReplyDeleteहथियार मदारी के , आह्वान क्या करेंगे !
इक दिन छटे अँधेरा विश्वास की किरण है
जनतंत्र की व्यथा हैं, व्यवधान क्या करेंगे !
बहुत सही, कभी तो वह दिन आएगा !