Monday, June 8, 2020

बस्ती के मुकद्दर को ही जान क्या करेंगे -सतीश सक्सेना


ये कौम ही मिटी, तो वरदान क्या करेंगे !
धूर्तों से मिल रहे, ये अनुदान क्या करेंगे ?

गुंडों के राज में भी, जीना लिखा के लाये
बस्ती के मुकद्दर को ही
  जान क्या करेंगे ?

आशीष कुबेरों का, लेकर बने हैं हाकिम  
लालाओं के बनाये दरबान, क्या करेंगे ?

घुटनों पे बैठ, पगड़ी पैरों में मालिकों के !
बोतल में बंद हैं ये, मतदान क्या करेंगे ?

बेशर्म जमूरे और सच को जमीं बिछाकर
हथियार मदारी के , आह्वान क्या करेंगे !

इक दिन छटे अँधेरा विश्वास की किरण है 
जनतंत्र की व्यथा हैं, व्यवधान क्या करेंगे !

17 comments:

  1. बेशर्मी के बख्तर ओढ़े झूठ ही हथियार हैं
    सच की लाशें बिछाकर आह्वान क्या करेंगे

    हमेशा की तरह धारदार और लाजवाब्।

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    1. गज़ब प्रोफ़ेसर ,
      बहुत बढ़िया टिप्पणी , आभार आपका !सोंचता हूँ कि पोस्ट का हिस्सा ही बना दूँ !

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    2. आपकी लेखनी है ही लाजवाब स्वत:स्फूर्त निकल पड़ते हैं भाव।

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  2. एक दिन छँटे अँधेरा ,विश्वास की किरण है , यही जनतंत्र की व्यथा भी है और सम्बल भी ...

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    1. स्वागत गिरिजा जी , आभार सहित

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  3. वाह! बहुत सुंदर।

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    1. स्वागत आभार सहित

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  4. आशीष कुबेरों का लेकर, बने हैं हाकिम
    लालाओं के बनाये दरबान, क्या करेंगे ?
    घुटनों पे बैठ , जोड़े हैं हाथ, मालिकों के
    बोतल में बंद हैं ये, मतदान क्या करेंगे ?
    बहुत खूब हाकिमों की चाटुकारिता पर करारा व्यंग | सादर

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    1. स्वागत है रेनू आपका ..

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  5. बेहद सशक्त और सटीक लेखन
    सादर 🙏🏼🙏🏼

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    1. स्वागत के साथ आभार !!

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति

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    1. स्वागत के साथ आभार भाई

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  7. बोतल में बन्द हैं ये ...
    क्या बात लिखी है सर ... देश की व्यवस्था जाने कौन रफ़्तार से चल रही है ...

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  8. बेशर्म जमूरे और सच को जमीं बिछाकर
    हथियार मदारी के , आह्वान क्या करेंगे !

    इक दिन छटे अँधेरा विश्वास की किरण है
    जनतंत्र की व्यथा हैं, व्यवधान क्या करेंगे !

    बहुत सही, कभी तो वह दिन आएगा !

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- सतीश सक्सेना

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