Wednesday, September 21, 2011

वेदना -सतीश सक्सेना

साजिश है, आग लगाने की
कोई रंजिश, हमें लड़ाने की
वह रंज लिए, बैठे दिल में
हम प्यार, बांटने निकले हैं!
चाहें कितना भी रंज रखो 
फिर भी तुमसे आशाएँ हैं ! 
हम आशा भरी नज़र लेकर, उम्मीद लगाए बैठे हैं !

वे शंकित, कुंठित मन लेकर,
कुछ पत्थर हम पर फेंक गए
हम समझ नही पाए, हमको
क्यों मारा ? इस बेदर्दी से ,
बेदर्दों को तकलीफ  नहीं, 
कैसी कठोर क्षमताएँ हैं !
हम चोटें लेकर भी दिल पर, अरमान लगाये बैठे हैं !

फिर जाएँगे  , उनके दर पर,
हम हाथ जोड़ अपने पन से,
इक बाल हृदय को क्यूँ ऐसे  
भेदा अपने , तीखेपन से  !
शब्दों में शक्ति तुम्हीं से हैं, 
सब तेरी ही प्रतिमाएँ  हैं !
हम घायल होकर भी सजनी कुछ आस जगाये बैठे हैं !

हम जी न सकेंगे दुनिया में
माँ जन्में कोख तुम्हारी से
जो कुछ भी ताकत आयी है 
पाये हैं, शक्ति तुम्हारी से !
इस घर में रहने वाले सब, 
गंगा ,गौरी,दुर्गा,लक्ष्मी , 
सब तेरी  ही आभाएँ  हैं ! 
हम अब भी आंसू भरे तुझे, टकटकी लगाए बैठे हैं !

जन्मे दोनों इस घर में हम
और साथ खेल कर बड़े हुए
घर में पहले अधिकार तेरा,
मैं, केवल रक्षक इस घर का
भाई बहना का प्यार सदा 
जीवन की  अभिलाषाएँ हैं !
अब रक्षा बंधन के दिन पर,  घर के दरवाजे बैठे हैं !

क्या शिकवा है क्या हुआ तुम्हें 
क्यों आँख पे पट्टी बाँध रखी,
क्यों नफरत लेकर, तुम दिल में
रिश्ते, परिभाषित करती हो,
कहने सुनने से होगा क्या 
फिर भी मन में आशाएँ हैं ! 
हम पुरूष ह्रदय, सम्मान सहित, कुछ याद दिलाने बैठे हैं !

जब भी कुछ फूटा अधरों से
तब तब ही उंगली उठी यहाँ
जो भाव शब्द के परे रहे
वे कभी किसी को दिखे कहाँ
यह वाद नहीं प्रतिवाद नहीं,
मन की उठती धारायें हैं, 
ले जाये नाव दूसरे तट, हम पाल चढ़ाये बैठे हैं ! (यह खंड श्री राकेश खंडेलवाल ने लिखा है )

Saturday, August 20, 2011

कौवे की बोली सुनने को, हम कान लगाये बैठे हैं - सतीश सक्सेना

शुरू से ही पुत्री के प्रति, अधिक संवेदनशील रहा हूँ , दिन प्रति दिन, बड़ी होती पुत्री की विदाई याद कर, आँखों के किनारे नम हो जाते हैं !स्नेही पुत्री के घर में न होने की कल्पना ही, दिल को झकझोरने के लिए काफी है !  
ऐसे ही एक क्षण , निम्न कविता की रचना हुई है जिसमें एक स्नेही भाई और पिता की वेदना  का वर्णन किया गया है .....  

जन्मे दोनों इस घर में हम 
और साथ खेल कर बड़े हुए

इस घर के आंगन में दोनों 
घुटनों बल चलकर खड़े हुए
घर में पहले अधिकार तेरा, 
हम रक्षक है तेरे घर के !
अब रक्षा बंधन के दिन पर, घर के दरवाजे बैठे  हैं !

पहले  तेरे जन्मोत्सव पर
त्यौहार मनाया जाता था,
रंगोली  और  गुब्बारों से !
घर द्वार सजाया जाता था
तेरे जाने के साथ साथ,
घर की रौनक भी चली गयी !
राखी के प्रति, अनुराग लिए, कुछ याद दिलाने बैठे हैं  !

पहले इस घर के आंगन में
संगीत , सुनाई पड़ता था  !
झंकार वायलिन की सुनकर 
घर में उत्सव सा लगता था
जब से जिज्जी तू विदा हुई,
झाँझर पायल भी रूठ गयीं ,
छम छम पायल की सुनने को, हम आस लगाए बैठे  हैं !

पहले घर में , प्रवेश करते ,

एक मैना चहका करती थी
चीं चीं करती,  मीठी  बातें
सब मुझे सुनाया करती थी
जबसे तू  विदा हुई घर से,
हम लुटे हुए से बैठे हैं  !
टकटकी लगाये रस्ते में, घर के  दरवाजे  बैठे हैं ! 

पहले घर के हर कोने  में ,

एक गुड़िया खेला करती थी
चूड़ी, पायल, कंगन, झुमका 
को संग खिलाया करती थी
जबसे गुड्डे संग विदा हुई , 
हम  ठगे हुए से बैठे हैं  !
कौवे की बोली सुननें को, हम  कान  लगाये बैठे हैं !

पहले इस नंदन कानन में

एक राजकुमारी रहती थी
घर राजमहल सा लगता था
हर रोज दिवाली होती थी !
तेरे जाने के साथ साथ ,
चिड़ियों ने भी आना  छोड़ा !
चुग्गा पानी को लिए हुए, उम्मीद  लगाए बैठे    हैं !

Friday, August 19, 2011

है अभी स्वप्न, मेरा अधूरा अधूरा !-सतीश सक्सेना

आज की रात में , 
कुछ नया सा लगा 
थक गया था बहुत 
आंख बोझल सी थी 
स्वेद पोंछे,  किसी 
हाथ  ने, प्यार  से  !
फिर भी लगता रहा कुछ, अधूरा अधूरा !

कुछ पता ही नहीं, 
कौन सी गोद थी ,
किसकी थपकी मिली 
और  कहाँ  सो गया !
एक अस्पष्ट चेहरा  
दिखा   था   मुझे    !
पर समझ  न  सका सब, अधूरा अधूरा !

आज सोया, 
हजारों बरस बाद मैं ,
जाने कब से सहारा,
मिला ही  नहीं  ,
रंग गीले अभी,  
विघ्न  डालो नहीं ,
है अभी चित्र  मेरा, अधूरा अधूरा !

स्वप्न आये नहीं थे,
युगों से  मुझे   !
आज सोया हूँ मुझको 
जगाना नहीं  !
क्या पता ,आज
राधा मिले नींद में
है अभी स्वप्न मेरा, अधूरा अधूरा  !

इक मुसाफिर थका  है ,
यहाँ   दोस्तों   !
जल मिला ही नहीं 
इस बियाबान में  !
क्या पता कोई 
भूले से, आकर मेरा  
कर दे पूरा सफ़र जो, अधूरा अधूरा !

Tuesday, August 16, 2011

ये आंसू - सतीश सक्सेना

आजकल बहिन भाई का नैसर्गिक प्यार भी, दिखावे का बन कर रह गया है ! आजकल पुरुषों में संवेदनशीलता का लगभग अभाव सा हो गया है जिसमें अपनी बहन के प्रति ममत्व और करुणा कहीं नज़र नहीं आती ! 

अक्सर संवेदनशील बहिन मायके को याद करते, मुंह छिपा कर आंसूं पोंछते देखी जाती हैं ...! यह बेचारी किससे कहे और किसे दिखाए कि वह अपने भाई को कितना प्यार करती है ??

मा पलायनम पर डॉ मनोज मिश्र   ( डॉ अरविन्द मिश्र के छोटे भाई  हैं ) के हाल के लिखे लेख पर उक्त कमेन्ट देते समय मेरा अस्थिर सा हो गया सोंचा कि यह क्यों न आप सबसे चर्चा करूँ !

संवेदनशीलता और स्नेह की अवहेलना, समय के साथ हमें और समाज को बहुत महंगी पड़ेगी ! यह याद रहे कि जिस स्नेह  और अपनत्व का हम तिरस्कार कर रहे हैं वही एक दिन भूत बनकर हमारे सामने होगा,  कहीं ऐसा न हो घर में हमारा व्यवहार सावधानी से देख रहे , हमारे बच्चे, ब्याज समेत हमें लौटा दें और उस समय बहुत तकलीफ होगी ! 

हमारे जीवित रहते, माँ और बहिन की आँखों में आंसू नहीं छलकने  चाहिये  !

Friday, August 12, 2011

दिल तो बच्चा है जी ...-सतीश सक्सेना

मुझे याद है नवजवान दिनों में, ३५ -३७ साल के लोगों से बात करने का दिल भी नहीं करता था कि इन बुड्ढों से क्या बात करनी  ? ४० के दिनों में यही सोंच ५५ साला लोगों के लिए थी  और अब जब ५५ साल कब के गुजर गए जब भी पीछे देखता हूँ तो समझ नहीं आता कि समय इतनी जल्दी कैसे गुज़र सकता है ! सब कुछ कल का ही लगता है ! 
two sisters !

आज जब इस भरी पूरी उम्र में , अपने आपको देखता हूँ तो लगता है कि दिन तो अब शुरू हुए हैं ! कुछ भी तो नहीं बदला, न इच्छाएं कम हुईं और न हंसने और मस्त रहने की ललक , बल्कि जो अब तक नहीं कर सका उसे करने का मन करता है  ! जी करता है पंख लग जाएँ और दुनियां के उन सुदूर क्षेत्रों में जाकर लोगों से कहूं, जहाँ कोई न पंहुचा हो कि चलो .....उड़ते हैं ! 

मगर सुनता आया हूँ कि घर के मुखिया को ( बुड्ढों को ),ढंग से रहना चाहिए, इस उम्र में टीशर्ट नहीं चलेगी , बेड रूम से  बाहर निकलना, ढंग से चाहिए, निकर टीशर्ट बदलो और कुरता पायजामा पहन लो, लोग पता नहीं क्या सोंचेंगे  :-)

हमारी आदतें हैं कि टीशर्ट कारगो पहनकर आज एक महत्वपूर्ण मीटिंग में चले गये ! लोगों का विचार है कि जिम्मेवारी के काम शर्ट पैंट पहन कर ही हो सकते हैं ! बाकी के कपडे घर के लिए अथवा कम उम्र के लोगों के लिए हैं !     

Gaurav with kawasaki
बेटे की इच्छा है कि स्पोर्ट्स मोटर सायकिल खरीदने की , उनका कहना है आप मेरी कार ले लीजिये मुझे एक बाइक चाहिए  ! अब मेरी परमीशन की शर्त यह है बाप बेटा आधा आधा महीना रखेंगे , मुझे भी अपनी निकलती हुई तोंद की चिंता है ...कार में बैठकर तो घटने से रही ! मगर मेरी मांग देख मेरे बेटे ने फिलहाल अपनी इच्छा स्थगित करदी है !


Gaurav 
मेरा यह मानना है कि अगर हम छोटे बच्चों से हँसना और हँसाना सीख लें तो कुछ समय में ही परिवर्तन महसूस किया जा सकता है ! विद्वता का लबादा ओढ़े , चेहरे को गंभीर बनाकर बात करते हुए,लोगों को देख, मुझे हंसी आ जाती  है ! हम लोग सामान्य क्यों नहीं हो सकते ? हर आने वाले का स्वागत, बच्चों जैसी मुस्कान के साथ क्यों नहीं कर सकते !   


आजकल सुबह ६ बजे स्वीमिंग, करने पिछले दो महीने से जाना शुरू किया है और शाम को बेटी के साथ प्ले स्टेशन पर मूव लेकर  टेबल टेनिस और तीरंदाजी करता हूँ ! लगता है १० साल उम्र घट गयी है ....

Tuesday, August 9, 2011

बूढ़ा वट वृक्ष -सतीश सक्सेना

मित्रो,
मॉल  में घूमते हुए, आपका ध्यान, मैं  बाहर खड़े, सूखते वट वृक्ष और जीर्ण कुएं की ओर दिलाना चाहता हूँ जो इस विशाल एयर कंडीशंड बिल्डिंग बनने से पहले, आपके लिए छाया और पानी देने का एकमात्र स्थान था  ! याद करें, हमारे बचपन में, शीतल पानी और छाया केवल वहीँ मिलती थी  ! 
आजकल  वहां कोई नहीं जाता   !

क्या कभी आपने  कमजोर होते, माता पिता के बारे में सोंचने  की  जहमत उठाई है कि इस उम्र में, बिना आपके, वे अपना सही इलाज़ कैसे कर पा रहे होंगे ! 

क्या आपने सोचा है कि  उनके  जैसे , कमजोर असहायों वृद्धों  को, अस्पताल, जिनका उद्देश्य मात्र पैसे कमाना है, तक पंहुचना, कितना तकलीफदेह और भयावह होता होगा  !

                              बीमार हालत में, दयनीय आँखों से, डाक्टर को ताकते , ये वही हैं, जिनकी गोद में आप सुरक्षित रहते हुए, विशाल वृक्ष बन चुके हो और ये लोग, उस ताकतवर वृक्ष से दूर ,निस्सहाय, गलती हुई जड़ मात्र , जिन्हें बचाने वाला कोई नहीं !
मात्र आपकी निकटता से, यह अपने आखिरी समय में, सुरक्षित महसूस करेंगे !
इस समय इन्हें आपकी आवश्यकता है ......

अंतिम समय में इन्हें सम्मान के साथ विदा करें  जो इनका हक़ है यकीन मानें, आपके पास बैठने मात्र से, यह शांति से अपनी ऑंखें बंद कर लेंगे !

                                 खैर ! अच्छे वैभवयुक्त जीवन के लिए, आपको हार्दिक शुभकामनाएं ! 

Friday, August 5, 2011

उन्मुक्त हंसी -सतीश सक्सेना

            सुबह सुबह टहलने जाते  समय , अक्सर पार्क में ठहाका लगते अधेड़ उम्र के लोग मिलते हैं , उनके साथ खड़े होकर, हास्यास्पद और बनावटी हंसी, हँसते देखने पर,  यकीन मानिए आपकी हंसी छूट जायेगी  कि क्या हँसी है यह भी  ??
             हँसते समय शारीरिक व्यायाम के साथ साथ, रक्त में ओक्सिजन का बेहतर संचार और मांसपेशियों में खिंचाव बेहतर तरीके से होता है ! हाँ जबरन हँसी के साथ , मानसिक संतुष्टि शायद ही कभी महसूस कर पायेंगे ! सामूहिक हंसी से, हंसने की आदत पड़ने में अवश्य सहायता मिलती है अतः जो लोग हंसना भूल चुके हों उन्हें इस प्रकार के लाफिंग क्लास अवश्य ज्वाइन करने चाहिए !  
            मुझे लगता है कि उन्मुक्त होकर हँसने के लिए सबसे पहले, एक निर्मल और चिंतामुक्त मन चाहिए ! अगर आपने  कभी बच्चों की हंसी, का दिल से आनंद लेना हो तो खिलखिलाते वक्त उनकी आँखों में झाँक कर देखें, उनमें आपके प्रति प्रगाढ़ विश्वास और प्यार भरा होगा  ! यही  है असली हंसी..... इस हंसी से आपका तनाव दूर भाग जाएगा और ब्लड प्रेशर कभी पास नहीं आएगा ! मनीषियों ने, इसी हँसी को सेहत के लिए आवश्यक बताया है ! 
खेद है, कि हम लोग  हँसी का अर्थ जाने बिना,हंसने का प्रयत्न करते हैं , आइये स्वाभविक रूप में हंसने के लिए बच्चों के साथ कुछ देर खेलते हैं ! 
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