Sunday, November 28, 2010

जब हम जवान थे - सतीश सक्सेना

चले सावन की मस्त बहार
हवा में उठती एक सुगंध,
कि मौसम दिल पर करता चोट
हमारे दिल में उठे हिलोर,
किन्ही सुन्दर नैनों से घायल होने का दिल करता है !

किसी चितवन की मीठी धार
किसी के ओठों की मुस्कान
ह्रदय में उठते मीठे भाव
देख के बिखरे काले केश
किसी के दिल की गहरी थाह नापने का दिल करता है !

किसी के मुख से झरता गान
घोलता कानों में मधुपान,
ह्रदय की बेचैनी , बढ़ जाए
जान कर स्वीकृति का संकेत
कहीं से लेकर मीठा दर्द, तड़पने का दिल करता है !

कहीं नूपुर की वह झंकार ,
कहीं कंगन की मीठी मार
किन्ही नयनों से छूटा तीर
ह्रदय में चोट करे, गंभीर !
कसकते दिल के गहरे घाव दिखाने का दिल करता है !

झुकाकर नयन करें संकेत ,
किसी के मौन ह्रदय की थाह
किसी को दे डालो विश्वास
कहीं पूरे कर लो अरमान !
किसी की चौखट पर अरमान लुटाने का दिल करता है !


Friday, November 26, 2010

तिलयार लेक के इस लेख को "शरीफ ब्लागर" न पढ़ें -सतीश सक्सेना

खुशदीप भाई फोन करके बताया कि अलबेला खत्री ने, अपनी पोस्ट में तिलयार लेक पर, रात्रि भोज और पैग शैग के बाद लिखा कि "सतीश सोने चले गए " ! इस पोस्ट से महसूस होता है कि आप रात  में वहाँ मौजूद थे, जबकि आप उस दिन हमारे साथ थे  ! इसपर क्या स्पष्टीकरण दोगे  ??
ब्लॉगजगत के इस मजाकिया कैरेक्टर के लिखे हुए शब्दों में, दोधारी धार तो होती ही है ! अपने द्विअर्थी शब्दों से दादा कोंडके को पीछे छोड़ता यह "कलाकार " वाकई धुरंधर है और आजके रोते पीटते समय और लोगों के बीच, अगर मुझे वाकई जमीन पर बैठ, उस दिन डिनर का मौका मिला होता तो मैं अपने आपको घाटे में नहीं मानता !

इस स्पेशल कैरेक्टर को जानते हुए , मैंने इस पर खुद शिकायत करने से परहेज किया ! खुद शिकायत करने के बदले में अलबेला का जो जवाब मिलता उसका मुझे अंदाजा था कि
"सतीश जी, उस पार्टी में किचन के रसोइये का नाम भी सतीश था  ....हा...हा...हा...हा...."

और मैं ऐसी कोई ग़लतफ़हमी नहीं पालना चाहता कि ब्लाग जगत में मैं इतना प्रसिद्द हूँ कि यहाँ हर जगह लिखे गए "सतीश ...","सतीश सक्सेना" और "सक्सेना"  मेरे लिए ही लिखा गया है, चाहे संकेत मेरी तरफ ही क्यों न हो ! रोज सैकड़ों लेख़क अपनी अपनी व्यक्तिगत डायरी लिख रहे हैं, किसी ने मेरे लेख को पढ़कर क्या अंदाजा लगाया और मेरे बारे में क्यों लिखा .. इस को लेकर तनाव में आना मैं अपनी मूर्खता ही मानूंगा ! मेरा विचार है कि आरोप प्रत्यारोप कभी समाप्त नहीं हो सकते... प्रसिद्धि की तमन्ना लिए लोग ये मौके ढूँढ़ते रहते हैं !  
       
हास्य और मनोरंजन के बिना जीवन अधूरा मानता हूँ , मैं उन्हें बदकिस्मत मानता हूँ जिनके मित्र नहीं होते और उन्हें सबसे बुरा मानता हूँ जो अपने बारे में बताते हुए, समाज की निगाह में बुराइयाँ, छिपा कर अच्छी अच्छी बाते करते हैं और मौका मिलते ही वे सब काम करते हैं जो "बुरे " माने जाते हैं !
मुझे यह शेर बहुत पसंद है, जिसमें ईमानदारी और निडरता साफ़ नज़र आते हैं ! 
साकी  शराब पीने दे , मस्जिद में बैठकर  ! 
या वो जगह बता,कि जहाँ पर खुदा न हो !

साल में बहुत कम मौकों पर पीने वाला मैं ,उसदिन योगेन्द्र मौदगिल के विशेष अनुरोध करने पर, बार में बैठकर, जिसमें ललित शर्मा शामिल थे , बाकियों ( खुशदीप सहगल,अजय झा और शाहनवाज सिद्दीकी )को बिना बताये एक पैग लेने से रोक न सका जिससे योगेन्द्र मौदगिल और ललित शर्मा की कंपनी, थोड़े समय और मिले !
और इस मस्ती के समय में, यकीनन मस्त चर्चाएँ हुई !

कृपया ध्यान रहे कि...
यह लेख "सतीश सक्सेना जी " अथवा "सतीश जी", का लिखा नहीं है ! यह एक ईमानदार आत्मा ने लिखा है, जो सतीश के साथ अक्सर रहती है !

इस लेख से जिसे जिसे कष्ट हो, उससे पहले ही, अपनी हर हाल में खुश रहने की आदत के कारण,  क्षमा याचना कर लेते हैं  ! !

जिंदगी जिन्दादिली का नाम है ...
मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं 

( यह लेख विशुद्ध हास्य है जिसमें अपने ऊपर व्यंग्य किया है ..कृपया विद्वान्, और मुझे बड़ा मानने वाले न पढ़ें. किसी अन्य का नाम लेकर आरोप लगाने वाली गंभीर टिप्पणिया इस लेख पर स्वीकार नहीं हैं . पुरानी बातों का स्पष्टीकरण पहले ही दिया जा चुका है ) 

Thursday, November 25, 2010

तिलयार ब्लागर मीट और तल्ख़ मन - सतीश सक्सेना

तिलयार ब्लागर  मीट का समापन  के बाद, जिस प्रकार आपस में,बेलगाम आरोप प्रत्यारोप हो रहे हैं , वह हिंदी ब्लाग जगत के लिए शर्मनाक हैं !  ब्लाग जगत की व्यक्तिगत रंजिशें और संकीर्ण मनस्थितियों ने जो कुछ ब्लाग जगत को दिया, वह एक बुरा हादसा है !

लगभग ४ बजे शाम , अधूरी मीटिंग छोड़ कर, जब मैं वहाँ से विदा हुआ था , बेहद खुशनुमा माहौल रहा था , डॉ दराल के पिताजी के स्वर्गवास के कारण , उनसे मिलना हम लोगों ( खुशदीप सहगल, अजय कुमार झा ,शाहनवाज सिद्दीकी और मैं खुद )  के लिए बहुत आवश्यक था अतः गुडगाँव के लिए गाड़ी स्टार्ट करते समय , आदरणीय योगेन्द्र मौदगिल द्वारा जिस प्यार से अपना कविता संग्रह "अंधी ऑंखें गीले सपने " भेंट की वह यादगार रहेगी !


लगभग ६ बजे सायं ,गुडगाँव में भारी ह्रदय, से डॉ दराल के घर पर , पिताश्री को श्रद्धांजलि अर्पित करते समय, संवेदनशील डॉ दराल  के चेहरे पर, पिताजी के अचानक जाने का कष्ट देख, वातावरण भारी रहा ! ऐसे कष्ट में, समझाते भी नहीं बनता सिवा एक मूक उपस्थिति के !    

Wednesday, November 24, 2010

टिप्पणिया देने की विवशता - सतीश सक्सेना

किसी भी लेख की महत्ता बिना टिप्पणियों के बेकार लगती है ,लगता है किसी वीराने में आ गए हैं ! और टिप्पणिया चाहने के लिए टिप्पणिया देनी बहुत जरूरी हैं ! सो हर लेख के तुरंत बाद ५० अथवा उससे अधिक जगह टिप्पणी करनी होती है तब कहीं २५ -३० टिप्पणियों का जुगाड़ होता हैं !  :-((
अब लम्बा लेख कैसे पढ़ें ..समझ ही नहीं आता ! ऐसे लेख पर टिप्पणी करने के लिए अन्य टिप्पणीकर्ता की प्रतिक्रिया देख कर उससे मिलती जुलती टिप्पणी ठोकना लगता होता है ! चाहे उस बेचारे का बेडा गर्क हो जाये :-)
  • अगर किसी बहुत बेहतरीन लेख का कबाड़ा करना हो तो पहली नकारात्मक टिप्पणी कर दीजिये फिर देखिये उस बेचारे की क्या हालत होती है ! बड़े बड़े मशहूर लोग उसकी कापी करते चले जायेंगे ! 
  • किसी अन्य टिप्पणी कर्ता जिसे आप विद्वान् समझते हों की टिप्पणी की कापी करना अच्छा लगेगा और लोग आपकी टिप्पणी को ऐवें ही नहीं लेंगे ! 
और हम जैसे मूढ़ लोग अपने आप पर और अपनी संगत पर हँसेंगे  ...दुआ करता हूँ कि कुछ लेख को ध्यान से पढने वाले भी आ जाएँ  तो इतनी मेहनत करना सार्थक हो ! मेरे जैसे मूढमति, टिप्पणी न करें तो ठीक ही होगा सो आज से टिप्पणी कम करने का प्रयत्न करूंगा , जिससे बदले में टिप्पणी न मिलें  और दुआ मानूंगा कि कम लोग पढने आयें मगर वही आयें जो मन से पढ़ें !
:-)))) 
( यह लेख एक व्यंग्य है )   

Tuesday, November 23, 2010

भारत माँ के ये मुस्लिम बच्चे -III -सतीश सक्सेना

हिंदी लेखन -पत्रकारिता में लगे हुए मुस्लिम लेखकों ने जो योगदान दिया है उस पर समाज का ध्यान कम ही जाता देखा गया है ! हिंदी जगत के विकास के लिए जो बेमिसाल कार्य इन्होने किया और जो सम्मान इन्हें हिंदी जगत से मिलना चाहिए वह या तो मिला ही नहीं अथवा नगण्य ही रहा है !
   
देश के समाज, की मुख्य धारा में आने के लिए सार्थक जद्दोजहद करते हुए, अपने इन हिंदी भाषी मुस्लिम बच्चों को देख, भारत माँ कहीं न कहीं, निश्चित ही प्रसन्न चित्त है ! एक ही भाषा, इस विशाल देश को एकता के क्षेत्र में पिरो सकने की सामर्थ्य रखती है ! आज जिस प्रकार मीठी उर्दू के जानकार , कलम उठ कर हिंदी क्षेत्र में आये हैं निस्संदेह उन्होंने यह सबूत दिया है कि वे हिंदी को संवारने में, किसी से कम नहीं ! 


अभी बहुत काम बाकी है....... बरसों पहले, जब देश में जबानी एकता की दुहाई दी जा रही थी, कोई सोच भी नही पाता होगा कि उर्दू जैसी खूबसूरत भाषा के आँगन में पले और बड़े हुए, हमारे ये बच्चे एक दिन हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए, हिन्दी भाषियों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर आगे चलेंगे ! गर्व कि बात यह है कि आज ये चल ही नही रहें बल्कि हिन्दी के महा विद्वानों में शामिल हैं, मगर चंद हिन्दी भाषी, इन्हे रास्ता चलते, गिराने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते ! संकीर्ण मन यह विश्वास ही नहीं कर पा रहा कि यह भी इस क्षेत्र के जानकर हो सकते हैं और हमसे बेहतर भी हो सकते हैं !


हिन्दी सिर्फ़ हिन्दुओं की भाषा नहीं, बल्कि सारे देश की जबान है, अगर हमारे मुस्लिम भाइयों ने, अपनी मादरी जबान, उर्दू पर, इसे तरजीह देकर इसे खुशी के साथ अपनाया है तो इसका कारण ,देश के लिए उनका अपनापन और सब कुछ करने के अरमान है ! विपरीत परिस्थितियों में हिन्दी का अध्ययन कर, हिन्दी के विद्वानों में शामिल होने की सफल कोशिश..... यह कोई मामूली बात नहीं ! 


चंद बरस पहले जहाँ कभी हिन्दी का एक भी मुस्लिम लेखक नज़र नहीं आता था वहीं आज नासिर शर्मा, असद जैदी, असग़र वजाहत,अब्दुल बिस्मिल्लाह, शहंशाह आलम, अनवर सुहैल  जैसे बेहतरीन लेख़क साहित्यकार कार्य कर रहे हैं  ! आज हिंदी ब्लॉगजगत में हिंदी भाषा में लिखने वाले सैकड़ों लोगों में से  इस्मत जैदी   अली सय्यद,  फिरदौस खान  , सरवत जमालशहरोज़ ,  शाहनवाज़ , शायदा , जाकिर अली रजनीश , युसूफ किरमानी , जैसे लोग खूब चर्चित हैं ! 


अक्सर शिकायतें मिलती रही हैं की हिंदी प्रकाशक इन्हें वह सम्मान नहीं देते जिसके यह लायक हैं , यह मामला बेहद तकलीफदेह है ! ऐसी समस्याएं तो इन्हें उर्दू जबान के नुमाइंदों से मिलनी चाहिए थी पर मिल रही है उनसे, जिन्होंने इन्हे गले लगाना चाहिए ! हमें गर्व होना चाहियें अपने देश के इन मुस्लिम हिन्दी विद्वानों पर, जो सही मायनों में इस देश की संस्कृति का एक हिस्सा बनकर, इसे हर तरह आगे बढ़ाने में मदद कर रहें हैं !

मुझे, इस देश के विशाल ह्रदय पर यह भरोसा है कि मेरे जैसे हजारो दोस्त, और सच्चे भारतीय हैं जो इस शुरूआती दर्द में आपके साथ देंगे , भले ही वह परोक्ष रूप में सामने नहीं दिखाई पड़ रहे ! मेरा यह भी विश्वास है कि एक दिन हिन्दी जगत से वह आदर - सम्मान आपको जरूर मिलेगा जिसके आप हक़दार हैं !
 
मेरा यह मानना है , वास्तविक लेखक तथा कवि , चाहे वह किसी भाषा के क्यों न हों , संकीर्ण स्वभाव  के नहीं ही नहीं सकते ! संकीर्ण स्वभाव का अगर कोई लेखक है तो वह सिर्फ़ पैसा कमाने के लिए या  नाम कमाने के लिए, बना हुआ लेखक है उसे आम पाठक , उन्मुक्त ह्रदय से कभी गले नहीं लगायेगा ! ऐसे व्यक्तियों को लेखक नहीं कहा जाता ! वे सिर्फ़ अपने ज्ञान का दुरुपयोग करने आए है और ढोल बजाकर चले जायेंगे ! कवि ह्रदय, समाज में अपना स्थान सम्मान के साथ पाते हैं और शान के साथ पाते हैं !

Monday, November 22, 2010

तिलयार झील पर ब्लोगर भोज - सतीश सक्सेना

कल तिलयार झील पर ब्लोगर भोज  का आयोजन राज भाटिया ने किया था  ! कुछ याद रखने लायक झलकियाँ  दे रहा हूँ ...

  • बिना किसी अनुरोध के, हमेशा की तरह अजय कुमार झा अपने कैमरे के साथ व्यस्त रहे !शाहनवाज सहगल की मदद से खुशदीप मियां लैपटॉप पर लाइव रिपोर्टिंग का बोरिंग कार्य करते रहे ! अधिकतर ऐसे आयोजन में जब सबका ध्यान  नए लोगों से परिचय और खूबसूरत माहौल में पेश हो रहे ड्रिंक्स,चाय, काफी  और स्नैक्स पर हो ...तब जी टीवी में सीनियर प्रोडयूसर पोस्ट  पर कार्यरत खुशदीप सहगल सब कुछ भूल कर पूरे मिलन काल में लगातार " बड़ी खबर " को सजाने में व्यस्त रहे ! जब भी मैं पनीर पकौड़ा हाथ में लेता खुशदीप भाई ,अजय जी और शाहनवाज इस काम को बखूबी निभाते रहे ! ब्लाग जगत प्रमोशन के प्रति इतना समर्पण भाव दुर्लभ है !
  • विनम्र अंतर सोहिल आयोजक की तरफ से सारा कार्य जिस भावना से कर रहे थे ,अनुकरणीय था ! राज भाटिया खुशकिस्मत हैं कि उन्हें इतना निष्ठावान छोटा भाई मिला हुआ है ! 
  • खुशदीप जी , डॉ दराल के पिता के स्वर्गवास होने के कारण , यह तय कर चुके थे कि इस आयोजन से निकलने के बाद हमें डॉ दराल से मिलने गुडगाँव पंहुचाना है  ! मानवीय गुणों से सरावोर खुशदीप को  नमन !
  • आदरणीया निर्मला कपिला और ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी ने वहाँ पंहुच कर, सबको  आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता और महफ़िल को गरिमा प्रदान की !
  • सदाबहार मस्तमौला दम्पति राजीव -संजू तनेजा महफ़िल के आकर्षण थे !    
  • योगेन्द्र मौदगिल के कारण महफ़िल में  ठहाके गूंजते रहे !
  • केवल राम , नीरज जाट ,  नरेश सिंह राठौर  एवं संजय भास्कर अपनी प्रभावशाली प्रविष्टि हर क्षण दर्ज कराते रहे ...बधाई ! 
  • इस खूबसूरत टूरिस्ट काम्प्लेक्स के बारकर्मी  ललित शर्मा और योगेन्द्र मौदगिल के बीच मुझे फंसा देख बेहद खुश हुए थे ! वहाँ बैठकर कुछ ख़ास करने का फैसला किया गया !

Saturday, November 20, 2010

ब्लोगिंग एक लत - सतीश सक्सेना

कल एक और आयोजन भाई राज भाटिया और अमित ( अंतर सोहिल ) द्वारा रोहतक में किया जा रहा है ! स्नेही अमित और राज भाई का आमंत्रण ठुकराया नहीं जा सकता अतः व्यस्तता के बावजूद ,भी रोहतक जाना पड़ेगा !
अपने ढाई साल के ब्लोगिंग काल  का अनुभव बांटू तो यह मानिए कि ब्लोगिंग एक बुरा नशा है, जो आपके सारे कार्यकलापों को उसी तरह प्रभावित करता है जिस तरह कोई और नशा कर सकता है ! शायद इसका नशा, शराब से कहीं अधिक है ! अपने मन में, अपने ही बनाये हुए प्रभामंडल को, सहेजने की कोशिश करता हुआ ब्लागर, किसी ब्लाग पर समान विचारों के कारण न्योछावर और कहीं अपने विचारों का तीब्र खंडन होते देख,गुस्से में आग बबूला होता नज़र आता है ! फलस्वरूप अक्सर इस आभासी जगत में ,दो ब्लागरों के मध्य रंजिश देखना,और उसे पालना, आम बात हो गयी हैं


ब्लाग जगत में अपनी पसंद और नापसंद के बारे में, कुछ मजबूत ब्लागर , अपनी धारदार कलम और अपनी प्रतिभा का उपयोग, आपस के हिसाब बराबर करने में अधिक लगाते  हैं  ! 
तमाम विषयों पर लिखते लोगों में, सबसे ख़राब ब्लागिंग, दूसरे धर्मों को बुरा बताते लोगों की है ! सर्व -धर्म -सद्भाव की नसों में, जहर घोलने का प्रयास करते यह लोग, हमारी अगली पीढ़ी के अपराधी हैं ! 
अपनी श्रद्धा को सर्वोच्च बताते यह लोग, दुर्भावना पूर्वक, दूसरों की श्रद्धा का मज़ाक उड़ा, ब्लोगिंग के जरिये नफरत फ़ैलाने में, कामयाब होते नज़र आ रहे हैं !     


दूसरों के धर्म में कमियां निकालते और उनकी श्रधा के खिलाफ नफरत की आग में जलते ये लोग, अक्सर नैतिकता के साथ साथ कानूनी धाराओं का भी उल्लंघन करते देखे जा सकते हैं ! अनजाने में की गयी जोशीली गलती को माफ़ किया जा सकता है मगर जान बूझ कर भारतीय कानूनों का उल्लंघन करने वाले  ब्लागर, यकीनन किसी अन्य शक्ति से प्रायोजित हैं , ऐसे लोगों से हमें सावधान रहना होगा !

Monday, November 15, 2010

कुछ अनकही बातें दिल्ली ब्लागर सम्मलेन की -सतीश सक्सेना

-प्रभावशाली समीर लाल जी के बहुआयामी सरल व्यक्तित्व से मिलकर ब्लागिंग करना सार्थक महसूस हुआ  ! समीर लाल  जी को मैंने उनके द्वारा, शुरुआत के दिनों में, लगातार प्रोत्साहित करने  के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित की ! 
-समीर लाल जी द्वारा मुझे धन्यवाद देने पर, मैंने कहा कि अगर वे मेरी कुछ मदद करना चाहते हैं तो कृपया एक बार ताऊ से अवश्य मिलवा दें ! पूरे ब्लाग जगत को हंसते हँसते बेवकूफ बना कर, अपने प्रोडक्ट बेचने  वाली इस शख्शियत से अवश्य मिलना चाहता हूँ कि यह चीज क्या है !जिस पर उन्होंने ताऊ को पटा कर, मुझे मिलाने के लिए अपनी कोशिश करने का भरोसा दिलाया !
- पूरे समय के दौरान स्मार्ट और विनम्र अजय झा शांत भाव से फोटोग्राफी में व्यस्त रहे !
- सरल स्वभाव एम्  वर्मा जी सदा की तरह सबको अपना परिचय देते हुए कैमरे का सदुपयोग करते रहे ! 
- शांत और गंभीर पद्मसिंह ने मुझे इंदु माँ के निमंत्रण याद दिलाया , और साथ ही मेरे प्रति अनुराग भी  तब मुझे लगा कि मैं इन दोनों के समक्ष कितना छोटा हूँ ...इंदु पुरी के प्यारे व्यक्तित्व से घबराए ,भाई पद्मसिंह को मनाने  में थोडा समय लगा कि वे इन्दु मां  के निमंत्रण के सम्बन्ध में मुझे बचाने के साथ साथ, मेरी मदद भी करें ! इस ममतामयी के स्नेह से से हम दोनों का डर स्वाभाविक ही है  !
-बिना पगड़ी रतन सिंह शेखावत को पहचानने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता ...मगर अपनी गंभीरता और राजस्थानी भाषा से वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल थे !
- दीपक बाबा अपनी पूरी मस्ती के साथ मौजूद थे उन्हें देख मुझे संजय ( मो सम कौन )की कमी खलती रही  !
- मैंने राजीव और संजू तनेजा  जैसे दम्पति नहीं देखे जो कि इस प्रकार के आयोजन में सदाबहार मुस्कान के साथ बढचढ कर हिस्सा लेते रहे हैं ! वे हमेशा ऐसी महफ़िलों कि रौनक रहे हैं !  
मुझे लगता है कि ब्लागर मिलन के जरिये, आपस में एक दूसरे विचारों के प्रति बेहतरीन समन्वय संभव हो सकता है ! अतः कोई भी बहाना क्यों न हो इस प्रकार के आयोजन होने ही चाहिए और मैं इसके लिए अविनाश वाचस्पति और उनके हाथ में एक रहस्यमय थैले के प्रति आभारी हूँ !
     


Saturday, November 13, 2010

जिन्हें भरा हम समझ रहे थे वे खाली पैमाने निकले -सतीश सक्सेना

आज विनोद कुमार पाण्डेय की एक रचना पढ़ते हुए लगा कि ब्लाग जगत की कहानी पढ़ रहा हूँ  ! हमारे समाज की हकीकत दिखाती यह कविता मेरे व्यक्तिगत विचार से एक कालजयी रचना है , मैं इसे हमेशा के लिए अपने संकलन में रखना चाहूंगा ! इतनी कम उम्र में विनोद पाण्डेय की संवेदनशीलता और ईमानदारी उनकी कविताओं की जान है और माँ शारदा का वरदान इस नवयुवक को शीघ्र ही उन ऊँचाइयों पर पंहुचा देगा जिसके लिए लोग बरसों से सपने देखते हैं !!
आधुनिक समाज  की हकीकत दर्शाती यह रचना देखिये 

जो अंधों में काने निकले 
वे ही राह दिखाने निकले

उजली टोपी सर पर रख कर
सच का गला दवाने निकले 

चेहरे रोज़ बदलने वाले 
दर्पण को झुठलाने निकले 

बाते सत्य अहिंसा की हैं 
पर चाकू सिरहाने निकले 

जिन्हें भरा हम समझ रहे थे 
वे खाली पैमाने निकले   !

मुश्किल में जो उन्हें पुकारा 
उनके बीस बहाने निकले  ! 

कल्चर को सुलझाने वाले 
रिश्तों को उलझाने निकले 

नाले ,पतनाले  बारिश में ,
दरिया को धमकाने निकले !

आज के समय में इंसान के नैतिक मूल्यों में गिरावट से परेशान, विनोद के उदगार  लगता है आंसू बनकर छलक पड़े हैं  ! इंसानियत को देख भगवान् भी परेशान हैं कि मैंने क्या बनाया और यह क्या बन गया  !


कल रात ही एक और ने भी हार मानी भूख से 
पाए गए आंसू जमीन पर रो पड़ा था चाँद भी !

स्वभाव से बेहद विनम्र विनोद ने अपने परिचय में लिखा है कि अगर मैं आपके किसी काम आ सकूं तो समझूंगा कि इंसान बनने की शुरुआत हो गयी ! इंसानियत और संवेदना भूलते जा रहे हम लोगों की भीड़ से  , विनोद अपनी रचनाओं से हमारी प्रसन्नता की अपेक्षा करते है ! 
मुझे लगता है वे अपने कार्य में सफल रहे हैं !
हार्दिक शुभकामनायें !   
 

Friday, November 12, 2010

उस पार तो कुछ अच्छा होगा -सतीश सक्सेना

ब्लाग जगत में हास्य की याद आते ही भाई बृजमोहन श्रीवास्तव की एक रचना याद आजाती है जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी ...( या भगवान जाने किसके लिए ....?) के लिए लिखा था !

"इस पार प्रिये तुम हो , गम हैं ,
उस पार तो कुछ अच्छा होगा "

बेचारे पति की यह बेबसी और फिर भी हिम्मत न हारने का इससे अच्छा उदाहरण अन्यंत्र दुर्लभ है ! दो शब्दों में लगता है सारे पतियों की और से सब कुछ बयां कर डाला ! ;-)

Monday, November 8, 2010

पापा के चले जाने का अर्थ - सतीश सक्सेना

                खुशदीप सहगल के पापा दीवाली के दिन उनको छोड़ कर चले गए ! सरल ह्रदय खुशदीप के लिए यकीनन यह सबसे मनहूस दीवाली होगी जिस दिन उनके ऊपर से पापा का हाथ हट गया !

               बड़ों को एक न एक दिन हमें अकेला छोड़ कर जाना ही होता है ! मगर आज की आपाधापी में हम, उनके वे बचे हुए दिन शायद सहेजने की कोशिश नहीं कर पाते !

               और एक दिन चुपके से वह मनहूस घडी आ जाती है जिस दिन हमको तेज धूप से बचाता और खुद चुपचाप कष्ट सहता हुआ यह मजबूत वृक्ष अचानक गिर जाता है !

अक्सर बहुत देर हो जाती है समझने में ,कि यह वृक्ष हमारे कितने काम का था .......

Monday, November 1, 2010

ब्लाग जगत की बेहतरीन शख्शियत - ताऊ रामपुरिया

ताऊ के बारे में सोंचते ही, आम ब्लागर का ध्यान मस्ती में जीते, एक ऐसे किरदार पर जाता है जो हर समय इस तेज भागती जिंदगी में ,पैसे कमाने के जुगाड़ में लगा रहता है ! शुरू शुरू में ताऊ चरित्र मुझे आम से बढ़कर कुछ नहीं लगा मगर जब इनको ध्यान से पढना शुरू किया तो इस जबरदस्त प्रतिभाशाली लेख़क से इस कदर प्रभावित हुआ कि ब्लागजगत में इस श्रेणी का, कोई भी कद इनसे बड़ा नज़र ही नहीं आता !

पी सी रामपुरिया, जिस बेदर्दी से अपने चरित्र की मज़ाक उड़ाते हैं वह आज के समाज में अद्वितीय है  ! आधुनिक समय की आपाधापी में, आदमी रिश्ते नाते प्यार सम्मान भूल कर सिर्फ रईस बनने की दौड़ में लगा रहता है ! ऐसे में जो भी मौका मिलता है उसमें शामिल होने में देर नहीं लगाता ! समाज में होते धंधो का पर्दाफाश ,देखना हो तो  अपनी ही मज़ाक उडवाते ताऊ के धारदार लेखन से, बखूबी जाना जा सकता है  !
कई बार ताऊ का लेख पढ़कर, शांत मन से सोंचता हूँ तो ताऊ के इन व्यंग्य लेखों से, अधिक  गंभीर लेख कही नहीं नज़र आते  ! आधुनिक समाज की कमजोरियों और लालच का, जो शब्द चित्र  पी सी रामपुरिया ने खिंचा है वह अन्यंत्र दुर्लभ है !हिंदी ब्लाग जगत में अपना अपना रौब पेलते ब्लागरों के बीच  ताऊ हमेशा अपनी मस्ती में ही बात कहता है सो "गंभीरता की देवी "की नाराजी देखिये ! 
कुछ उदाहरण देखिये ...

ताऊ को ब्लागर गुण  सिखाती हुई इस देवी की शिक्षा देखिये ....
प्रोफाइल में मातम मनाती सी फ़ोटो लगा ले....बिखरे बाल वाली...जिससे दार्शनिक सा लुक आये.....
उसके बाद गूगल मे से कोई जर्मन, फ़्रेंच, रुसी या अंग्रेजी भाषा का कम प्रचलित शब्द खोज ले. और उसको कोट करते हुये लिख डाल मुर्ख.... तेरी धाक जम जायेगी और तू जिम्मेदार और धीर गंभीर लेखक कहलाने लगेगा. समाज मे मान सम्मान और सम्मानित ब्लागर कहलाने लगेगा... 
 और डर के मारे ताऊ ने गंभीर बनने की कसम खाली ...जैसे तैसे नींद आते ही मुस्कान देवी सपने में आ गयी 


 आते ही मुस्कान देवी बोली - हे ताऊ, तूने मेरी बडी सेवा की है. लोगों को हंसाया. अब तू एक ताऊ ठिल्लुआ क्लबबना ले और सब हंसोडो को इक्कट्ठा कर ले और इन गुरु गंभीर लोगों को भाड मे जाने दे.

ताऊ बोला - हे मुस्कान देवी, आपकी बात सही है. मैं ये काम बहुत आसानी से कर सकता हूं. पर मुझे धीर-गंभीर लोग ऐसा करने से मना करते हैं. और आज तो उन्होने गंभीरता की देवी को ही भेज दिया था मुझे डराने के लिये. आप तो जानती ही हैं कि मैं तो पैदायशी सियार हूं और लोग अब ये फ़तवा दे रहे हैं कि सियारों, कायरो और कुत्ते बिल्लियों को ब्लागिंग छोड देना चाहिये. तो अब ये बताओ कि मैं बिना शेर, सियार, गीदड, कुत्ते और बिल्लियों के कैसे ब्लागिंग करूं. मुझे तो बस इन जानवरों की भाषा ही समझ आती है... और ब्लागिंग नही करुं तो लोगों को हंसाऊं कैसे?



और वाकई ताऊ ने हा हा ठी ठी  करते करते, वह रच दिया जो ब्लाग जगत में किसी ने सोचा भी न होगा , बड़े बड़े नामधारी, चमचे धारी लोग, जो अपने आप को सर्वेसर्वा  समझते थे , को धूल चटाते ताऊ ब्लाग सिरमौर कब बन गया लोगों को पता भी न चला ! ऐसे ही दुःख से दुखी ,जलन और ईर्ष्या को दर्शाते हुए एक मेरी कविता पढ़ें ...

सज्जनों और देवियों, सतीश सक्सेना का नमस्कार. ताऊ वार्षिक कवि सम्मेलन में अपनी रचना सुना रहा हूं...आशा करता हूं आपको अवश्य पसंद आयेगी...आपसे दाद चाहुंगा...हां तो ताऊ....
तुम्हारे ब्लाग ने ब्लाग जगत का सत्यानाश कर के रख दिया है ताऊ ! सारी भीड़, अपनी चार सौ बीस खोपड़ी की ११०% एफिसिएंसी प्रयोग करते हुए,खींच लेते हो और हमारे जैसे धुरंधर, बढ़िया बढ़िया पोस्ट लिखे बैठे रहते हैं ! कोई आता ही नहीं पढने !

गुस्से का मामला यह है कि तुम सरासर लोगो को मूर्ख बनाकर अपना देसी माल बेचे जा रहे हो अबतो मुझे यह भी यकीन हो गया है कि समीरलाल भी इस धंधे में शामिल हैं ! तेरे रूप कंचन तेल की ऐसी की तैसी न की तो मेरा नाम नहीं ! सबका धंधा चौपट कर के रख दिया ..
.

दुर्भावना एक मेरी भी ले लो 
वाकई बेमिसाल हो ! ताऊ 

बेईमानी तेरी रुकती तो नहीं 
खोपड़ी, बेमिसाल है !ताऊ !
लोग पागल बनाये जाते है
लेखनी बेमिसाल है ! ताऊ

आग ऐसे गुरु की धोती में,
जिसके चेले का नाम है ताऊ

ताई कैसे गुज़ारा कर पाए
अगर तू बंद हो गया ताऊ !

हेरा फेरी , तुरंत बंद करो
सब बहुत तुझसे त्रस्त हैं ताऊ !


और सबसे अंत में , ब्लाग जगत में नंबर एक का स्थान पाए इस शानदार व्यक्तित्व ने आज तक अपने असली चेहरे को प्रकट नहीं किया है ! पूरे ब्लाग जगत में इनका असली चेहरा किसी को नहीं पता ..यह एक रहस्य है कि  ताऊ रामपुरिया कौन हैं  ?

आज जहाँ हर व्यक्ति अपने नाम और सम्मान के लिए लड़ रहा है , ऐसे समय ब्लाग जगत में कार्यरत यह मशहूर लेखनी , अपने चेहरे को बिना आगे लाये, जो कार्य कर रही है वह हम सबके लिए एक मिसाल है बशर्ते कि हम समझ सकें !

ताऊ को इस दीपावली पर, इस लेख के द्वारा ,सम्मान देते समय मैं गर्व महसूस कर रहा हूँ !  
 

Related Posts Plugin for Blogger,