ब्लाग जगत में हास्य की याद आते ही भाई बृजमोहन श्रीवास्तव की एक रचना याद आजाती है जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी ...( या भगवान जाने किसके लिए ....?) के लिए लिखा था !
"इस पार प्रिये तुम हो , गम हैं ,
उस पार तो कुछ अच्छा होगा "
बेचारे पति की यह बेबसी और फिर भी हिम्मत न हारने का इससे अच्छा उदाहरण अन्यंत्र दुर्लभ है ! दो शब्दों में लगता है सारे पतियों की और से सब कुछ बयां कर डाला ! ;-)
"इस पार प्रिये तुम हो , गम हैं ,
उस पार तो कुछ अच्छा होगा "
बेचारे पति की यह बेबसी और फिर भी हिम्मत न हारने का इससे अच्छा उदाहरण अन्यंत्र दुर्लभ है ! दो शब्दों में लगता है सारे पतियों की और से सब कुछ बयां कर डाला ! ;-)
"इस पार प्रिये तुम हो , गम हैं ,
ReplyDeleteउस पार तो कुछ अच्छा होगा "
.....बेहद उम्दा
वाह सतीश जी... आपको भी अच्छी दो लाइंस याद हैं, वैसे ये हर किसी पर लागू होती है...
ReplyDelete.....गजब लिखा है
ReplyDeleteपतियों की दर्द भरी दास्तान
ReplyDelete5/10
ReplyDeleteपत्नी पीड़ितों के लिए यह दो पंक्तियाँ का महाग्रंथ है.
सिर्फ दो पंक्तियाँ ही क्या कुछ नहीं कह जातीं :)
इतनी छोटी और इतनी हास्यात्मक पोस्ट पहली बार देखी.
ha ha ha... Bahut khub.. Patiyon ka dard bayan ho raha hai.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteलेकिन सर आपको क्या हुआ है ?
ReplyDelete:):):)
हा हा हा ! अच्छा मज़ाक है ।
ReplyDeleteमैं कुछ नहीं कहूँगा सतीश भी. वैसे क्या आज रात खाना घर का ही पका हुआ खाया जा होटल जाना पड़ा? ..
ReplyDeleteचलो उस पार ही चले ......गम से कुछ दूर रहे
ReplyDeleteइन दो पंक्तियों में आधी दुनिया का दर्द समाया हुआ है।
ReplyDeleteइस पार प्रिये तुम हो , गम हैं ,
ReplyDeleteउस पार तो कुछ अच्छा होगा "
हरिवंश राय बच्चन ने लिखा था...
इस पार प्रिय तुम हो
उस पार न जाने क्या होगा ...
अब बाकी अपनी अपनी सोच है और भुगता हुआ जीवन ...
ऊफ हद हो गई है ब्लॉग ना हुआ दिल की भड़ास निकालने की जगह हो गई है | पत्नी के सामने तो किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती है ब्लॉग पर खुलम खुला पत्नियों को इतना कुछ कह जाते है | अब लगता है की सबकी पत्नियों को उनके ऐसे पतियों का ब्लॉग रोज पढाना पड़ेगा तब देखती हु की कितने ब्लॉग पर ये सब लिखा जाता है | :)))
ReplyDeleteसतीशजी । चाहते तो दिल से सभी ये है मगर
ReplyDelete’’जी तो बहुत चाहता है सच बोलें//क्या करें हौसला नहीं होता ’’
लोगों ने तो डर के मारे गानों के बोल बदल दिये । जिये ंतो जिये कैसे संग आपके की जगह कर दिया जिये ंतो जिये कैसे बिन आपके
दूर के ढोल सुहाने होते हैं.
ReplyDeleteपार लगे तो क्या गम है
ReplyDeleteमझधार फंसे तो क्या होगा!
@मासूम भाई,
ReplyDeleteउनको ब्लागिंग में कोई दिलचस्पी नहीं अतः सुरक्षित हूँ ....
@ अनामिका की सदायें ,
:-((
@ शिखा वार्ष्णेय जी ,
हा..हा..हा..हा...
शुभकामनायें मानू या कटाक्ष ??
:-))
@ अंशुमाला जी ,
माफ़ कर दो भाई ...अब नहीं लिखेंगे ! प्रामिस
@ भाई बृजमोहन श्रीवास्तव ,
हरकतें आपकी...... गालियाँ मुझे दिलवा रहे हो भाई जी !
उम्दा :)
ReplyDeleteप्रियवर सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
घर में पत्नी के आते ही घर स्वर्ग और घरवाले स्वर्गवासी … दिल बहलाने को ख़याल अच्छा है ।
… लेकिन , आप भी मानेंगे कि हम सब बेचारे पति हमारे "उन" बिना रुमाल - तौलिया भी नहीं ढूंढ पाते … और काम तो कल्पना भी मत करो …
इसलिए सब मिल कर कहें जय हो पत्नी रानी !
:) ख़ैरियत इसी में है न …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
दोनों के लिए अच्छा होगा -संभावना तो यही है !
ReplyDeleteकुछ भी लिखो बुरा-भला "उनको" शामिल किये बिना नही लिख पाओगे...कभी इस पार तो कभी उस पार तो अच्छा ही होगा...
ReplyDelete.
ReplyDeleteइस पार की कद्र तो उस पार जाने पर ही समझ आती है।
.
दिल्ली में एक पोस्टर खूब दिखायी देता है और वह है - जब पत्नी सताए तो हमें बताएं। ऐसे लोगों को वहाँ पंजीकरण करा लेना चाहिए तत्काल क्योंकि अगला जन्म तो किसने देखा है?
ReplyDeleteबच्चन जी ने तो लिखा था कि इस पार प्रिये तुम हो, मधु है। उस पार न जाने क्या होगा? उन्होंने तो व्यवस्था कर ली थी कि इस पार तुम भी हो और मधु भी है। यहाँ तो आप एक से ही घबरा गए। हा हा हा हा।
वाह..यह तो गागर में सागर वाली स्थिति है..बढ़िया हास्य प्रधान रचना..धन्यवाद
ReplyDelete"इस पार प्रिये तुम हो , गम हैं ,
ReplyDeleteउस पार तो कुछ अच्छा होगा "
ताज्जुब है आप शादीशुदा होकर भी लट्ठ प्रसाद खाने के आनंद से वंचित हैं? प्रिये (पत्नि) के हाथों लट्ठ तो किसी भाग्यशाली को ही नसीब होते हैं, जो प्राणी इस जन्म में प्रिये के हाथों सुबह २ लट्ठ नाश्ते में, ६ लट्ठ लंच में और ४ लटठ डिन्नर में खाता है वो यह जन्म आनंद पूर्वक व्यतीत करके अंत में स्वर्गारोहण करता है. अत: स्वर्ग प्राप्त करना हो तो तुरंत आज से और अभी से ही यह अति श्रेष्ठ व्रत उपाय शुरू करदें.
वैसे भाटिया जी भी आ ही गये होंगे उनसे "मेड-इन-जर्मन" लट्ठ प्राप्त कर लें उससे स्वर्ग प्राप्ति में आसानी रहती है.:)
रामराम.
वाह ,मगर क्या बात है इन दिनों बस चंद लाईनों में ही निपट ले रहे हैं :)
ReplyDeleteडाक्टर की तो सेलिब्रेशन हो जाय :)
@ डॉ अरविन्द मिश्र ,
ReplyDeleteपार्टी पक्की :-))
मगर पहले डिग्री पढ़ तो लूं ...कल से कोशिश कर रहा हूँ !
आप भी उस पार की "मारीचिका" में उलझ गये सर जी!कारण तो फिर कुछ भी हो, क्या फर्क पड़ता है :)
ReplyDeleteहा हा हा हा ये आरपार की लडाई तो कमाल की निकली सर । आप लोगों के तजुर्बे के आगे हम तो नतमस्तक हैं ..अपना तो हम भी बाद में लिखेंगे ..अभी इसी पार हैं ..
ReplyDeleteहा-हा-हा
ReplyDeleteप्रणाम
पढा। अच्छा लगा, पढना।
ReplyDeleteएक बार आजमा कर देख लीजिये पता चल जायेगा उस पार क्या है…………………अच्छा या इससे भी बुरा………………तब किधर जायेंगे वापसी का भी जुगाड नही रहेगा……………हा हा हा।
ReplyDelete@ अजीत गुप्ता जी:
ReplyDeleteदिल्ली के हमारे जिन पोस्टर्स की, सॉरी, आई मीन हमारी दिल्ली के जिन पोस्टर्स की बात आप कह रही हैं, चैक करियेगा गौर से उनपर यह भी लिखा है, ’सिर्फ़ लिखें, मिलें नहीं’ उन साहब को भी अपना भांडा फ़ूटने का डर होगा शायद।
बड़े भाई सतीश जी, तसदीक करियेगा,सही कहा न?
अब हम क्या कहें, चुप रहना ही बेहतर है, ना उस पार ना इस पार
ReplyDeleteअभी तो इस पार की बात हो जाए उस पार को किसने देखा है |
ReplyDeleteहम तुम दोनों साथ यहाँ,
ReplyDeleteसुख दूर कहीं मन मौज रहे।
ये तो अखिल भारतीय पत्नि पीडित संघ के अध्यक्ष के उद्गार लगते हैं.
ReplyDelete