Tuesday, November 23, 2010

भारत माँ के ये मुस्लिम बच्चे -III -सतीश सक्सेना

हिंदी लेखन -पत्रकारिता में लगे हुए मुस्लिम लेखकों ने जो योगदान दिया है उस पर समाज का ध्यान कम ही जाता देखा गया है ! हिंदी जगत के विकास के लिए जो बेमिसाल कार्य इन्होने किया और जो सम्मान इन्हें हिंदी जगत से मिलना चाहिए वह या तो मिला ही नहीं अथवा नगण्य ही रहा है !
   
देश के समाज, की मुख्य धारा में आने के लिए सार्थक जद्दोजहद करते हुए, अपने इन हिंदी भाषी मुस्लिम बच्चों को देख, भारत माँ कहीं न कहीं, निश्चित ही प्रसन्न चित्त है ! एक ही भाषा, इस विशाल देश को एकता के क्षेत्र में पिरो सकने की सामर्थ्य रखती है ! आज जिस प्रकार मीठी उर्दू के जानकार , कलम उठ कर हिंदी क्षेत्र में आये हैं निस्संदेह उन्होंने यह सबूत दिया है कि वे हिंदी को संवारने में, किसी से कम नहीं ! 


अभी बहुत काम बाकी है....... बरसों पहले, जब देश में जबानी एकता की दुहाई दी जा रही थी, कोई सोच भी नही पाता होगा कि उर्दू जैसी खूबसूरत भाषा के आँगन में पले और बड़े हुए, हमारे ये बच्चे एक दिन हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए, हिन्दी भाषियों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर आगे चलेंगे ! गर्व कि बात यह है कि आज ये चल ही नही रहें बल्कि हिन्दी के महा विद्वानों में शामिल हैं, मगर चंद हिन्दी भाषी, इन्हे रास्ता चलते, गिराने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते ! संकीर्ण मन यह विश्वास ही नहीं कर पा रहा कि यह भी इस क्षेत्र के जानकर हो सकते हैं और हमसे बेहतर भी हो सकते हैं !


हिन्दी सिर्फ़ हिन्दुओं की भाषा नहीं, बल्कि सारे देश की जबान है, अगर हमारे मुस्लिम भाइयों ने, अपनी मादरी जबान, उर्दू पर, इसे तरजीह देकर इसे खुशी के साथ अपनाया है तो इसका कारण ,देश के लिए उनका अपनापन और सब कुछ करने के अरमान है ! विपरीत परिस्थितियों में हिन्दी का अध्ययन कर, हिन्दी के विद्वानों में शामिल होने की सफल कोशिश..... यह कोई मामूली बात नहीं ! 


चंद बरस पहले जहाँ कभी हिन्दी का एक भी मुस्लिम लेखक नज़र नहीं आता था वहीं आज नासिर शर्मा, असद जैदी, असग़र वजाहत,अब्दुल बिस्मिल्लाह, शहंशाह आलम, अनवर सुहैल  जैसे बेहतरीन लेख़क साहित्यकार कार्य कर रहे हैं  ! आज हिंदी ब्लॉगजगत में हिंदी भाषा में लिखने वाले सैकड़ों लोगों में से  इस्मत जैदी   अली सय्यद,  फिरदौस खान  , सरवत जमालशहरोज़ ,  शाहनवाज़ , शायदा , जाकिर अली रजनीश , युसूफ किरमानी , जैसे लोग खूब चर्चित हैं ! 


अक्सर शिकायतें मिलती रही हैं की हिंदी प्रकाशक इन्हें वह सम्मान नहीं देते जिसके यह लायक हैं , यह मामला बेहद तकलीफदेह है ! ऐसी समस्याएं तो इन्हें उर्दू जबान के नुमाइंदों से मिलनी चाहिए थी पर मिल रही है उनसे, जिन्होंने इन्हे गले लगाना चाहिए ! हमें गर्व होना चाहियें अपने देश के इन मुस्लिम हिन्दी विद्वानों पर, जो सही मायनों में इस देश की संस्कृति का एक हिस्सा बनकर, इसे हर तरह आगे बढ़ाने में मदद कर रहें हैं !

मुझे, इस देश के विशाल ह्रदय पर यह भरोसा है कि मेरे जैसे हजारो दोस्त, और सच्चे भारतीय हैं जो इस शुरूआती दर्द में आपके साथ देंगे , भले ही वह परोक्ष रूप में सामने नहीं दिखाई पड़ रहे ! मेरा यह भी विश्वास है कि एक दिन हिन्दी जगत से वह आदर - सम्मान आपको जरूर मिलेगा जिसके आप हक़दार हैं !
 
मेरा यह मानना है , वास्तविक लेखक तथा कवि , चाहे वह किसी भाषा के क्यों न हों , संकीर्ण स्वभाव  के नहीं ही नहीं सकते ! संकीर्ण स्वभाव का अगर कोई लेखक है तो वह सिर्फ़ पैसा कमाने के लिए या  नाम कमाने के लिए, बना हुआ लेखक है उसे आम पाठक , उन्मुक्त ह्रदय से कभी गले नहीं लगायेगा ! ऐसे व्यक्तियों को लेखक नहीं कहा जाता ! वे सिर्फ़ अपने ज्ञान का दुरुपयोग करने आए है और ढोल बजाकर चले जायेंगे ! कवि ह्रदय, समाज में अपना स्थान सम्मान के साथ पाते हैं और शान के साथ पाते हैं !

56 comments:

  1. आज एक अलग ही मुद्दा उठाया है आपने।

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  2. सतीश भाई आप की यह पोस्ट काबिल इ तारीफ है. आपकी बात से पूर्णतया सहमत की "संकीर्ण स्वभाव का अगर कोई लेखक है तो वह सिर्फ़ पैसा कमाने के लिए या नाम कमाने के लिए, बना हुआ लेखक है उसे आम पाठक , उन्मुक्त ह्रदय से कभी गले नहीं लगायेगा "
    मुझे आप ने किसी लायक समझा इस के लिए शुक्रिया.

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  3. अपना नाम देखना किसे अच्‍छा नहीं लगता। :)

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  4. आपका सशक्त लेखन सीमेंट की तरह इस भाईचारे को सदा मजबूती देता रहे,यही प्रार्थना/दुआ है।

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  5. सतीश जी, आपको शुक्रिया कहूं या न कहूं यह तय नहीं कर पा रहा। क्योंकि मेरे जैसे तुच्छ और अदने से हिंदी प्रेमी को आपने इन लोगों की पंक्ति में शामिल कर लिया, जिसके योग्य मैं खुद को नहीं मानता।
    बहरहाल, आपने बेहद गंभीर मुद्दा उठाया है कि हमारे जैसे लोगों ने उर्दू को न अपनाकर हिंदी को अपनाया। हमारे जैसे लोग और इस सूची में शामिल तमाम लोग अपनेआप को हिंदू-मुसलमान के चश्मे में रखकर कभी तौलते ही नहीं। यह महज मेरे जैसे लोगों के लेखन में ही नहीं रोजमर्रा की जिंदगी में भी शामिल है। लेकिन जब यह अहसास दिलाने की कोशिश की जाती है कि हम तो तुम्हें मुसलमान वाले चश्मे से ही देखते हैं तो दुख होता है। कुछ लोगों ने इस माहौल बेहद घटिया और घिनौना बना दिया। उन्हें यूसुफ किरमानी या उनके जैसे मुस्लिम लेखक तभी पसंद हैं जब वे मुसलमानों में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ लिखते हैं लेकिन अगर वह अयोध्या के मसले पर कोई राय रखते हैं तो फौरन कट्टरपंथी करार दे दिए जाते हैं। उन्हें तब वह करोड़ों आस्थावान लोग नजर नहीं आते जो उनकी परिभाषा के हिसाब से कट्टरवादी ही हैं।
    मेरे पिता जी डॉक्टर थे। जब होश संभाला तो घर में उर्दू के अलावा जिस दूसरी भाषा की इज्जत थी, वह अंग्रेजी थी। लेकिन जब मैंने मुंशी प्रेमचंद की कहानी स्कूल के कोर्स में पढ़ी, तभी से हिंदी को अपने माथे से लगा लिया। ब्लॉगिंग की शुरुआत मैंने अंग्रेजी से की लेकिन इनस्क्रिप्ट की बोर्ड और मंगल फांट का विकास होने के बाद हिंदी में शुरुआत की।
    भारत में रहने वाले मुसलमानों को लेकर तमाम लोगों को अपना नजरिया बदलना होगा। अगर ऐसा न हुआ तो इससे किसी और का नुकसान नहीं होगा बल्कि भारत और यहां के समाज को नुकसान होगा - जिसमें हम सब आप भागीदार हैं। आइए, नए भारत को बनाएं।

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  6. सतीश भाई आपकी पिछली पोस्‍ट की अंतिम पंक्ति में कही गई बात का जवाब मुझे इस पोस्‍ट से मिल गया है। आपने महत्‍वपूर्ण तथ्‍य रेखांकित किया है। मेरे ख्‍याल से साहित्‍य की दुनिया में यह सवाल इस तरह से कभी सामने नहीं आया है। हिन्‍दी में लिखने वाले मुस्लिम लेखकों की लम्‍बी सूची है। और हमारे जीवन के कदम कदम पर बसे फिल्‍मी गानों में हर दूसरा गाना किसी न मुस्लिम शायर की कलम से निकला है। आप कह सकते हैं कि उन्‍होंने उर्दू में लिखा है। लेकिन खड़ी बोली और उर्दू अलग कब हुई हैं। हम तो इन गानों को हिन्‍दीगाने हैं समझते हैं। बहरहाल आपकी यह पोस्‍ट ब्‍लाग जगत के कुछ सिरफिरे और पगलाए लोगों के लिए बहुत जरूरी है। बधाई और शुभकामनाएं।

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  7. ... saarthak abhivyakti .... prasanshaneey post !!!

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  8. स्वस्थ विचारों को हर ओर सम्मान मिले।

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  9. सार्थक अभिलेख। अच्छा संदेश।

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  10. वैसे सत्य तो यह है भाई जी, कि बहुत अच्छा और मेरे मन का आलेख दिया है, आपने !
    मैं इसका समर्थन करता हूँ, भले ही बहन जी हमसे नाराज़ हो जायें !

    मेरा मानना है कि, हमने मुस्लिम बुद्धिजीवियों को अलग तरह से चिन्हित कर इन्हें लगातार मुख्यधारा से हाशिये पर ढकेला है.. बँटवारे के इतिहास से लेकर अब तक यह क्रम जारी है.. राजनैतिक हितों को साधने की गरज़ से यदि कोई पार्टी ऎसा करती भी है, तो हमें ऎसे कपटपूर्ण व्यवहार को मान्यता देने से बचना चाहिये । हम भारतीय समाज में मुस्लिम समुदाय के योगदान को नकार नहीं सकते.. कटु सत्य यह ही मुस्लिम कामगरों के बल पर ही बहुसँख़्यक महिलाओं के सुहागचिन्ह जिन्दा है ।

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  11. आदरणीय गोदियाल जी
    नमस्कार !

    .........सार्थक अभिलेख

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  12. सतीश भाई,
    आज ये कमेंट मैंने शाहनवाज़ सिद्दीकी की पोस्ट पर किया है...न जाने क्यों मुझे वो आपकी इस पोस्ट के लिए भी प्रासंगिक लग रहा है...साथ ही आपका उस पोस्ट पर कमेंट भी...दोनों को रिपीट कर रहा हूं...

    शाहनवाज सहगल साहब, बहुत खूब खुशदीप सिद्दीकी की बधाई कबूल फरमाइए...
    अजय कुमार फिलीप्स पहले ही आ चुके हैं...
    सतीश सिंह पाबला आते ही होंगे...
    जय हिंद...

    आपकी टिप्पणी-
    लो जी सरदार सतीश सिंह हाज़िर हैं ....
    यह नाम अच्छा भी लग रहा है शाहनवाज भाई , शुक्रिया खुशदीप भाई को देते हैं !
    काश यही मस्ती और प्यार सब जगह छा जाए ! लोग हंसते हुए इस छोटे से जीवन का आनंद लेने की कोशिश कब करेंगे ??
    मजेदारी यह कि हम एक दूसरे को जानते तक नहीं मगर अपनी पसंद की राजनीतिक पार्टी और धार्मिक श्रधा को लेकर दांत पीस पीस कर, एक दूसरे को काट लेना चाहते हैं !
    चलिए दुआ करते हैं कि कुछ दुखी आत्माओं को शांति मिले ...और ये लोग कडवाहट भुला मस्ती से हंसना सीख लें !
    सादर

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  13. आप आदरणीय हैं की आपने यह मुद्दा उठाया / वर्तमान मैं हिंदी ,हिंदी नहीं बल्कि हिंदी ओर ऊर्दू का मिश्रण हैं / आज की पीढ़ी ऊर्दू के बिना हिंदी नहीं जान सकती / हिंदी ओर ऊर्दू एक दुसरे के पूरक हैं / फिल्म जगत हो ,मीडिया हो या रोजमर्रा के क्रियाकलाप हों सभी वर्तमान मैं ऊर्दू के बिना नामुमकिन हैं / ऊर्दू के जानने वालों का तो यहाँ स्वागत होना ही चाहिए

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  14. @ मेरे शफ़ीक़ बुजुर्ग जनाब सतीश सक्सेना जी ! आपकी चिंता जायज़ है और उनके प्रति आपकी फ़िक्रमंदी भी सराहनीय है , लेकिन यह बात भी क़ाबिले ग़ौर है कि बहुत से ऐसे हिंदी लेखक भी हैं जो अपना जायज़ मक़ाम न पा सके हालाँकि वे हिंदू हैं ।
    जब इस देश में हिंदी के हिंदू लेखक ही यथोचित सम्मान से वंचित हैं तो फिर मुसलमान लेखकों के साथ न्याय कैसे हो पाएगा ?
    इससे भी ज्यादा क़ाबिले फ़िक्र बात यह है कि लेखकों की दुर्दशा की बात तो जाने दीजिए , खुद हिंदी को ही कौन सा उसका जायज़ मक़ाम मिल गया है ?
    इस देश की बेटी होने के बावजूद हिंदी आज भी उपेक्षित है , हिंदी की दशा शोचनीय है ।
    हक़ीक़त यह है कि एक भ्रष्ट व्यवस्था से किसी को भी कुछ मिला ही नहीं करता , न हिंदू को और न ही मुस्लिम को ।
    मिलता है केवल उन्हें जो व्यवस्था की तरह खुद भी भ्रष्ट होते हैं । आज भ्रष्ट नेता, डाक्टर, इंजीनियर और जज 'आदर्श घोटाले' कर रहे हैं । IAS ऑफ़िसर्स देश के राज़ दुश्मनों को बेच रहे हैं ।
    बिना व्यवस्था को बेहतर बनाए देशवासियों का भला होने वाला नहीं , यह तय है ।
    देश की व्यवस्था को बेहतर कैसे बनाया जाए ?
    बुद्धिजीवी इस पर विचार करें तो इसे बौद्धिक ऊर्जा का सही माना जाएगा ।
    ahsaskiparten.blogspot.com

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  15. bharat maa ke ek hindu bachche ki prtikirya achchi lagi!

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  16. मुस्लिम लेखक तभी पसंद हैं जब वे मुसलमानों में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ लिखते हैं लेकिन अगर वह अयोध्या के मसले पर कोई राय रखते हैं तो फौरन कट्टरपंथी करार दे दिए जाते हैं। उन्हें तब वह करोड़ों आस्थावान लोग नजर नहीं आते जो उनकी परिभाषा के हिसाब से कट्टरवादी ही हैं।

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  17. विद्वता भाषा की मुहताज नहीं होती............भाषा जबकि होती है ....अच्छा आलेख !

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  18. सतीश जी, पहली वाली टिप्‍पणी जल्‍दी में की थी। अभी पूरी पोस्‍ट आराम से पढ़ी। आपने वास्‍तव में धारा के विपरीत जाने का साहस किया है।
    मेरी समझ से आपकी इस पोस्‍ट के महत्‍व को राजेश उत्‍साही जी (बहरहाल आपकी यह पोस्‍ट ब्‍लाग जगत के कुछ सिरफिरे और पगलाए लोगों के लिए बहुत जरूरी है।) ने बहुत अच्‍छे ढंग से व्‍याख्‍यायित किया है।

    अंतर सोहिल जी के शब्‍दों को उधार लेते हुए कहना चाहूँगा: प्रणाम।

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  19. सतीश जी
    आपकी पोस्ट देखी...आपने अपनी पोस्ट में हमारा नाम शामिल किया है, उसके लिए हम आपके शुक्रगुज़ार हैं...

    आपकी पोस्ट देखी...आपने अपनी पोस्ट में हमारा नाम शामिल किया है, उसके लिए हम आपके शुक्रगुज़ार हैं...
    हम कई भाषाओं में लिखते हैं...मगर हिन्दी में काम करने का मौक़ा ज़्यादा मिला...हिन्दी का क्षेत्र बहुत व्यापक है.हिन्दी भारत की सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है। इतना ही नहीं चीनी के बाद हिन्दी दुनियाभर में सबसे ज़्यादा बोली और समझी जाती है। भारत में उत्तर और मध्य भागों में हिन्दी बोली जाती है, जबकि विदेशों में फ़िज़ी, गयाना, मॉरिशस, नेपाल और सूरीनाम के कुछ बाशिंदे हिन्दी भाषी हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ दुनियाभर में क़रीब 60 करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं।

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  20. मुझे, इस देश के विशाल ह्रदय पर यह भरोसा है कि मेरे जैसे हजारो दोस्त, और सच्चे भारतीय हैं जो इस शुरूआती दर्द में आपके साथ देंगे , भले ही वह परोक्ष रूप में सामने नहीं दिखाई पड़ रहे ! मेरा यह भी विश्वास है कि एक दिन हिन्दी जगत से वह आदर - सम्मान आपको जरूर मिलेगा जिसके आप हक़दार हैं !

    मेरी और से भी उपरोक्त पंक्तियां

    प्रणाम

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  21. AAPKA YE PRAYAS PRASANSNIYA EVAM ANUKARNIYA HAI......


    PRANAM.


    (HUMNE APKO PICHLE DINO EK MAIL DI
    THI.....JAWAW NAHI AAYA)

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  22. @ युसूफ किरमानी साहब ,

    मेरा उद्देश्य लोगो और समाज के मन में बैठे अविश्वास और अपने ही घर में हो रहे भेदभाव को मिटाने का प्रयत्न करना मात्र है ! मैं वही लिखता हूँ जो महसूस करता हूँ और अगर कुछ समझदारों का ध्यान आकर्षित करने में सफल हो पाऊँ तो यह लेखन मेरे लिए सुखद हो जायेगा फिलहाल तो सिर्फ तिरस्कार अधिक मिलता है !

    भारतीय मुस्लिम समुदाय को सहयोग और उनके हित की चिंता केवल और केवल हिन्दू समुदाय को करनी चाहिए ऐसा मेरा मानना है ! अशिक्षित लोगों के इस देश में भीड़ को समझाने की हिम्मत करने वाले विरले ही हैं अधिकतर यह भीड़ के नेता अपने हाथ जलने से बचाने के लिए, दूर से ही कन्नी काटते नज़र आते हैं !

    अफ़सोस है कि जब सही बात कहने वालों को गाली दी जाती है तो उन्हें सहारा देने, उस ख़राब वक्त पर कोई नहीं खड़ा होता !

    अच्छा लगा कि आपने बेबाकी से अपनी बात कही हालाँकि विषय बहुत लम्बा है

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  23. @ भाई राजेश उत्साही ,
    उस कमेन्ट को मज़ाक समझें , बहरहाल आपके इस कमेन्ट ने इस पोस्ट को पूरा करने में मदद की है ! आभार !
    @ खुशदीप भाई ,
    शाहनवाज भाई ने आपका कमेन्ट हँसते हँसते सुनाया था और यकीन करे वह मजाकिया कमेन्ट आज के पढ़े कमेंट्स में सबसे अच्छा लगा ! लोग रंजिश और शिकायतें भुलाते नहीं हर जगह नकारात्मकता ही साथ चलती है ! खैर दुआ तो कर ही सकते हैं !

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  24. सतीश भाई ,
    हमने कभी इस दृष्टिकोण से देखा ही नहीं खुद को ! हिंदी अपनी मातृभाषा , तो लिखते हैं उसी में ! भला इसमें नयापन क्या हुआ ?

    मदरसे में अरबी पढ़ी , फिर उर्दू भी और उसके बाद स्कूल में थोड़ी सी अंगरेजी और संस्कृत ,बाद में हल्की सी बांग्ला भी , पर इन सभी में अपना हाथ ज़रा ज़रा तंग ही रह गया या यूं कहिये कि मातृभाषा में लिखते वक़्त जो सहजता अनुभव करते हैं वो इनमें से किसी में ना हुई !

    ख्याल ये कि हिन्दी में लिखा तो कोई अहसान ना किया!ख्याल ये भी कि अभिव्यक्ति के लिए मादरीजबान से बेहतर क्या ?

    बाकी भाईजान आपने मादरे वतन का बच्चा जाना सो खुश हूं पर दिग्गजों के साथ नाम शामिल किया तो थोड़ा झेंप रहा हूं !

    सतीश भाई जानता हूं कि ये आलेख आपने बेहतर नियत से लिखा है इसके बावजूद मैं आपका आभार व्यक्त ना करूं तो सरासर बदतमीजी होगी !

    आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

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  25. किसी भी बात में केवल गुण देखे जाने चाहिए न कि धर्म या फिर जात-पात ...
    आपने सही मुद्दा उठाया है ...

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  26. वास्तविक लेखक तथा कवि , चाहे वह किसी भाषा के क्यों न हों , संकीर्ण स्वभाव के नहीं ही नहीं सकते ! कितना सही कहा है आपने
    बहुत दिनों से मन है इसपर लिखने का.
    और भाषा तो भाषा है सबकी है हर एक हिन्दुस्तानी की है.

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  27. सतीश जी आज मन कर रहा है कि उस्ताद के नाम से एक आई डी बना कर 10 मे से 10 नम्बर आपको दूँ। बहुत सार्थक लेखन है। ब्लागजगत के लिये ही नही पूरे देश के लिये अच्छा सन्देश दिया आपने। बधाई।

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  28. वैसे आपने जो मुद्दा उठाया है वह अपनी जगह चुस्त दुरुस्त है. इस तरह के कई हज़ार या संभवतः लाख लोग होंगे जो ब्लॉग्गिंग से नहीं जुड़े हैं. मेरे ही मातहत एक अफसर था. हम परिपत्र उससे ही लिखवाते थे. किसी ने कहा की हिंदी उत्तर भारतीयों की भाषा है. लेकिन एक विशुद्ध दक्षिण भारतीय होने के नाते हम भी क्यों न कहें "हम भी तो पड़े हैं राहों में" क्योंकि उल्फत हो गयी हिंदी से. अब क्या सब को भारत रत्न दिया जाए?

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  29. सार्थक लेखन........

    हिंदी कहें या हिन्दवी ..... ये परम्परा मेरे ख्याल से भक्ति काल से चली आ रही है....

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  30. ....ईश्वर ने इंसान को एक-दूसरे को देखने के लिए कितनी दिव्य दृष्टि दी है..यही सोंचकर अचंभित हूँ।

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  31. .
    .
    .
    "हमने कभी इस दृष्टिकोण से देखा ही नहीं खुद को ! हिंदी अपनी मातृभाषा , तो लिखते हैं उसी में ! भला इसमें नयापन क्या हुआ ?

    ख्याल ये कि हिन्दी में लिखा तो कोई अहसान ना किया!ख्याल ये भी कि अभिव्यक्ति के लिए मादरीजबान से बेहतर क्या ?"


    अली सैय्यद साहब से सहमत,

    हकीकत तो यही है कि, यह जो हम लोगों की रोजमर्रा की बोलचाल में प्रयुक्त होने वाली जुबान यानी आज की हिन्दी या हिन्दुस्तानी है... उसे हम सब हिन्दू-मुसलमान-सिख-ईसाई बोलते हैं...

    अब अपनी मादरेजुबान में यदि किसी ने लिखा... चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, तो क्या उसे स्वयं के लिये विशेष सम्मान की अपेक्षा करनी चाहिये ?... यह तो कोई बात नहीं हुई न...

    किसी भी भाषा में लिखे का मूल्यांकन लेखक के मजहब के आधार पर करना ही सिद्धान्तत: गलत है।

    ...

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  32. बहुत ही विचारनीय पोस्ट...... सही कहा आपने. आदमी की पहचान उसकी प्रतिभा से होनी चाहिए ना की उसके नाम या धर्म से...

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  34. @ अली भाई !
    आपको मैं पढता हूँ और बहुत कुछ सीखता हूँ ! हार्दिक शुभकामनायें !

    @ निर्मला जी ,
    आशीर्वाद के लिए आभार आपका !

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  35. सतीश जी, क्षमा के साथ एक सवाल मस्तिष्क में कौंध रहा है...
    भला क्षेत्र और भाषाओं का किसी धर्म के अनुयायियों से भी संबंध जोड़ा जाएगा? वो भी अपने ब्लॉग जगत में?
    इस संदर्भ में मेरी धारणा है कि ब्लॉग जगत में लेखकों की पहचान उनकी विषय वस्तु से होनी चाहिए.

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  36. सतीश जी प्रणाम,

    आपने एक बहुत सुन्दर लेख लिखा है इसके लिए बधाई. लेख में कही गयी सभी बातों से मैं सहमत हूँ बस मुझे हर जगह लोगों को उनकी धार्मिकता के हिसाब से बाटने की कोशिश अच्छी नहीं लगती. ये भारत माँ के हिन्दू बच्चे हैं ये मुस्लमान बच्चे ये सिख ये ईसाई ये बात सिर्फ वहीँ आनी चाहिए जब वे अपनी इबादतगाह में जा रहे हों. उसके अतिरिक्त और किसी भी जगह पर ये कोशिश मुझे कांग्रेसी कोशिश लगाती है. हिंदी में वो लिख रहा है जिसे हिंदी में लिखना और खुद को व्यक्त करना सहज लगता है. मैं तो नहीं समझता कोई अपनी माँ को छोड़ दुसरे की माँ की बेवजह और बिना लालच के सेवा करेगा.

    मुझे अली साहब की टिप्पणी बिलकुल सही टिप्पणी लगी.

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  37. सतीश जी ,
    आप के मानवतावादी दृष्टिकोण से ब्लॉग जगत पूरी तरह परिचित है ,आप किसी के भी साथ पक्षपात सहन नहीं कर पाते लेकिन आज मैं ये समझ नहीं पा रही हूं कि हिंदी भाषा के विषय में बात करते हुए हिंदू ,मुसलमान की बात कहां से आ गई "हिंदी" हमारी’राष्ट्र भाषा’है तो ये प्रत्येक भारतीय की भाषा है अब चाहे वो किसी भी धर्म या प्रांत का हो राष्ट्र भाषा पूरे राष्ट्र की एक ही होगी
    हम में से जो भी हिंदी में लेखन कार्य कर रहा है वो हमारे लिये संतोषप्रद है परंतु कोई भारतीय यदि इस भाषा से अनभिज्ञ है तो ये चिंता का विषय ज़रूर है
    हिंदी भाषा में जो लोग भी अच्छी विषय वस्तु प्रस्तुत कर रहे हैं हैं उन्हें ज़रूर सम्मानित किया जाना चाहिये न कि धर्म के आधार पर सम्मान के मापदंड अलग कर दिये जाएं

    अपने लेख में मुझे शामिल करने के लिए धन्यवाद

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  38. @ इस्मत जी!
    किसी भी लेख को लिखने के पीछे की भावना समझने के लिए केवल लेख को ध्यान से पढना आवश्यक होता है ! खेद है कि महत्वपूर्ण विषयों पर भी प्रतिक्रिया देते समय , अक्सर ब्लागर के पास समय का अभाव होता है ! वे बड़े खुशकिस्मत हैं जिनका लेख धयान से पढ़ा जाता है ! शायद लेख में ही कोई कमी रह गयी होगी ! आदरणीय लोगों की भावना को दोष नहीं दिया जा सकता !
    :-)

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  39. जो सही उसे स्वीकारना चाहिए. ये हमारे देश के संविधान का ही असर हैं, और एक धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसा ही होना चाहिए , सबको साथ ले करके ही मंजिल तक पहुंचा जा सकता हैं.

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  40. सतीश जी ,शायद मैं ही अपनी बात स्पष्ट नहीं कर सकी ,मैं आप की भावनाओं की क़द्र करती हूं ,लेकिन मेरे विचार से भाषा जैसे नितांत साहित्यिक विषय में धर्म को शामिल करने की ज़रूरत नहीं,हम किसी भी धर्म के अनुयायी हों हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है इस लिये हमारे लिये महत्वपूर्ण है

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  41. भाषा किसी धर्म की नहीं होती, सच कहूँ तो आज तक न मेरे मन में ये ख्याल आया और न ही आगे आता, परंतु पहली बार आपकी पोस्ट पढ़कर लगा कि ऐसा होता है !!

    विद्यालयों में बच्चों को सजा देना कितना उचित ? मुझे भी अपने बेटे की चिंता हो रही है... क्या आपको है..? (Molestation in School)

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  42. सतीश जी आपका बहुत-बहुत आभार इस बेहतरीन लेख के लिए... और इसलिए भी कि आपने इतने बड़े-बड़े लोगो के साथ मुझे भी शामिल किया...

    हालाँकि बहुत से लोग कह सकते हैं, कि भाषा को किसी धर्म विशेष से जोड़ा नहीं जा सकता... लेकिन यथार्थ के धरातल पर ऐसी कोशिशें मैंने स्वयं देखी हैं. अक्सर ही उर्दू जैसी प्यारी भाषा को कुछ लोग ज़बरदस्ती मुस्लिम समाज के साथ जोड़ते नज़र आते हैं वहीँ हिंदी का प्रयोग करते हुए भी हिंदी से वास्ता नहीं रखने का नाटक भी अक्सर दिखाई दे ही जाता है... मुझे अपने विद्यालय के दिन याद आ गए, मेरी कक्षा के हिंदी के शिक्षक जिन्हें मैं गुरु जी कहकर पुकारता था और वह हर बार जानबूझ का मेरा नाम गलत लेते थे, कभी शहाबुद्दीन कहते थे तो कभी इरशाद.... फिर मैं बताता था कि यह मेरा नाम नहीं है... फिर वह खूब हँसते हुए मुझे जनरल शाहनवाज़ के नाम से पुकारते हुए कहते थे, कि "बेटा तुम्हारा नाम कैसे भूल सकता हूँ". वह मेरे प्रिय शिक्षक थे और मैं उनका प्रिय विद्यार्थी... फिर मैंने उनके घर शिक्षा ग्रहण करने के लिए जाना शुरू किया...

    मैंने "नेहरु चाह" विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता में हिस्सा लिया जिसमें मुझे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ, लेकिन उस निबंध प्रतियोगिता का परिणाम घोषित नहीं किया गया... पता नहीं क्यों!!! लेकिन उसके कुछ दिनों बाद मुझे पता चल गया कि मैं ही प्रथम आया था...

    वर्ष के अंत में जब हमारी परीक्षाओं का परिणाम घोषित हुआ और उसके बाद की कक्षा के पहले दिन विद्यालय के मुख्याध्यापक महोदय ने पुरे विद्यालय में हिंदी में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर मुझे बुला कर सम्मानित किया, तो जिन शिक्षक महोदय ने निबंध प्रतियोगिता आयोजित की थी.. उन्होंने बड़े ही हर्ष के साथ कहा "मुझे बड़ी ख़ुशी है कि एक मुस्लिम समुदाय का लड़के ने हिंदी में प्रथम स्थान प्राप्त किया है"... इस पर मेरे गुरु जी ने टोंका और कहा कि हिंदी किसी धर्म की बपौती नहीं है, यह तो उसकी है जो इसे प्रेम करता है... उस दिन मैंने अपने गुरु जानो का धन्यवाद करते-करते अपने स्वर्गीय नाना जी को याद किया (उस वक़्त तक उनका साया हमारे सर पर मौजूद था) जिन्होंने मुझे हिंदी के प्रति आकर्षित किया था... वह स्वयं अध्यापन के क्षेत्र से थे लेखन उनका भी शौक था... मेरा बचपन अपने ननिहाल में ही गुज़रा है....

    आज आपकी पोस्ट पढ़कर मेरी ढेर साड़ी यादें ताज़ा हो गईं.. बहुत-बहुत धन्यवाद!

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  46. अपने पास के संस्कृत विद्यालय में जब मुस्लिम छात्रों को देखा तो आश्चर्य के साथ ख़ुशी भी हुई ...
    अच्छी पोस्ट ...

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  47. गंगा जमुनी तहज़ीब की आप एक बेहतरीन मिसाल है
    धन्यवाद
    dabirnews.blogspot.com

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  48. भाषा और लेखन किसी भी धर्म और मजहब के मोहताज नहीं है

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  49. इन हो ने ही सलीम खान और तौसिफ हिन्दुस्तानी आदि लोगो को भड़का कर ब्लॉग जगत में प्रदुषण फैला दिया है .
    इन को छोड़ कर सारे भाई धन्यवाद के पात्र है

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  50. बहुत ही विचारनीय पोस्ट
    सबको साथ ले करके ही मंजिल तक पहुंचा जा सकता हैं.

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  51. Good Article,Yusuf ji ka kehna bahut umda hai,satish ji ko is pyare lekh ke liye sadhuwaad
    Arjun Sharma

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  52. बहुत ही बढ़िया लेख है आपका। देश की विषमताओं को लेकर आपकी चिंता जायज है। इस तरह भेदभाव होना गलत है

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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