खुशदीप भाई फोन करके बताया कि अलबेला खत्री ने, अपनी पोस्ट में तिलयार लेक पर, रात्रि भोज और पैग शैग के बाद लिखा कि "सतीश सोने चले गए " ! इस पोस्ट से महसूस होता है कि आप रात में वहाँ मौजूद थे, जबकि आप उस दिन हमारे साथ थे ! इसपर क्या स्पष्टीकरण दोगे ??
ब्लॉगजगत के इस मजाकिया कैरेक्टर के लिखे हुए शब्दों में, दोधारी धार तो होती ही है ! अपने द्विअर्थी शब्दों से दादा कोंडके को पीछे छोड़ता यह "कलाकार " वाकई धुरंधर है और आजके रोते पीटते समय और लोगों के बीच, अगर मुझे वाकई जमीन पर बैठ, उस दिन डिनर का मौका मिला होता तो मैं अपने आपको घाटे में नहीं मानता !
इस स्पेशल कैरेक्टर को जानते हुए , मैंने इस पर खुद शिकायत करने से परहेज किया ! खुद शिकायत करने के बदले में अलबेला का जो जवाब मिलता उसका मुझे अंदाजा था कि
"सतीश जी, उस पार्टी में किचन के रसोइये का नाम भी सतीश था ....हा...हा...हा...हा...."
और मैं ऐसी कोई ग़लतफ़हमी नहीं पालना चाहता कि ब्लाग जगत में मैं इतना प्रसिद्द हूँ कि यहाँ हर जगह लिखे गए "सतीश ...","सतीश सक्सेना" और "सक्सेना" मेरे लिए ही लिखा गया है, चाहे संकेत मेरी तरफ ही क्यों न हो ! रोज सैकड़ों लेख़क अपनी अपनी व्यक्तिगत डायरी लिख रहे हैं, किसी ने मेरे लेख को पढ़कर क्या अंदाजा लगाया और मेरे बारे में क्यों लिखा .. इस को लेकर तनाव में आना मैं अपनी मूर्खता ही मानूंगा ! मेरा विचार है कि आरोप प्रत्यारोप कभी समाप्त नहीं हो सकते... प्रसिद्धि की तमन्ना लिए लोग ये मौके ढूँढ़ते रहते हैं !
हास्य और मनोरंजन के बिना जीवन अधूरा मानता हूँ , मैं उन्हें बदकिस्मत मानता हूँ जिनके मित्र नहीं होते और उन्हें सबसे बुरा मानता हूँ जो अपने बारे में बताते हुए, समाज की निगाह में बुराइयाँ, छिपा कर अच्छी अच्छी बाते करते हैं और मौका मिलते ही वे सब काम करते हैं जो "बुरे " माने जाते हैं !
मुझे यह शेर बहुत पसंद है, जिसमें ईमानदारी और निडरता साफ़ नज़र आते हैं !
साकी शराब पीने दे , मस्जिद में बैठकर !
या वो जगह बता,कि जहाँ पर खुदा न हो !
साल में बहुत कम मौकों पर पीने वाला मैं ,उसदिन योगेन्द्र मौदगिल के विशेष अनुरोध करने पर, बार में बैठकर, जिसमें ललित शर्मा शामिल थे , बाकियों ( खुशदीप सहगल,अजय झा और शाहनवाज सिद्दीकी )को बिना बताये एक पैग लेने से रोक न सका जिससे योगेन्द्र मौदगिल और ललित शर्मा की कंपनी, थोड़े समय और मिले !
और इस मस्ती के समय में, यकीनन मस्त चर्चाएँ हुई !
कृपया ध्यान रहे कि...
यह लेख "सतीश सक्सेना जी " अथवा "सतीश जी", का लिखा नहीं है ! यह एक ईमानदार आत्मा ने लिखा है, जो सतीश के साथ अक्सर रहती है !
इस लेख से जिसे जिसे कष्ट हो, उससे पहले ही, अपनी हर हाल में खुश रहने की आदत के कारण, क्षमा याचना कर लेते हैं ! !
जिंदगी जिन्दादिली का नाम है ...
मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं
( यह लेख विशुद्ध हास्य है जिसमें अपने ऊपर व्यंग्य किया है ..कृपया विद्वान्, और मुझे बड़ा मानने वाले न पढ़ें. किसी अन्य का नाम लेकर आरोप लगाने वाली गंभीर टिप्पणिया इस लेख पर स्वीकार नहीं हैं . पुरानी बातों का स्पष्टीकरण पहले ही दिया जा चुका है )
ब्लॉगजगत के इस मजाकिया कैरेक्टर के लिखे हुए शब्दों में, दोधारी धार तो होती ही है ! अपने द्विअर्थी शब्दों से दादा कोंडके को पीछे छोड़ता यह "कलाकार " वाकई धुरंधर है और आजके रोते पीटते समय और लोगों के बीच, अगर मुझे वाकई जमीन पर बैठ, उस दिन डिनर का मौका मिला होता तो मैं अपने आपको घाटे में नहीं मानता !
इस स्पेशल कैरेक्टर को जानते हुए , मैंने इस पर खुद शिकायत करने से परहेज किया ! खुद शिकायत करने के बदले में अलबेला का जो जवाब मिलता उसका मुझे अंदाजा था कि
"सतीश जी, उस पार्टी में किचन के रसोइये का नाम भी सतीश था ....हा...हा...हा...हा...."
और मैं ऐसी कोई ग़लतफ़हमी नहीं पालना चाहता कि ब्लाग जगत में मैं इतना प्रसिद्द हूँ कि यहाँ हर जगह लिखे गए "सतीश ...","सतीश सक्सेना" और "सक्सेना" मेरे लिए ही लिखा गया है, चाहे संकेत मेरी तरफ ही क्यों न हो ! रोज सैकड़ों लेख़क अपनी अपनी व्यक्तिगत डायरी लिख रहे हैं, किसी ने मेरे लेख को पढ़कर क्या अंदाजा लगाया और मेरे बारे में क्यों लिखा .. इस को लेकर तनाव में आना मैं अपनी मूर्खता ही मानूंगा ! मेरा विचार है कि आरोप प्रत्यारोप कभी समाप्त नहीं हो सकते... प्रसिद्धि की तमन्ना लिए लोग ये मौके ढूँढ़ते रहते हैं !
हास्य और मनोरंजन के बिना जीवन अधूरा मानता हूँ , मैं उन्हें बदकिस्मत मानता हूँ जिनके मित्र नहीं होते और उन्हें सबसे बुरा मानता हूँ जो अपने बारे में बताते हुए, समाज की निगाह में बुराइयाँ, छिपा कर अच्छी अच्छी बाते करते हैं और मौका मिलते ही वे सब काम करते हैं जो "बुरे " माने जाते हैं !
मुझे यह शेर बहुत पसंद है, जिसमें ईमानदारी और निडरता साफ़ नज़र आते हैं !
साकी शराब पीने दे , मस्जिद में बैठकर !
या वो जगह बता,कि जहाँ पर खुदा न हो !
साल में बहुत कम मौकों पर पीने वाला मैं ,उसदिन योगेन्द्र मौदगिल के विशेष अनुरोध करने पर, बार में बैठकर, जिसमें ललित शर्मा शामिल थे , बाकियों ( खुशदीप सहगल,अजय झा और शाहनवाज सिद्दीकी )को बिना बताये एक पैग लेने से रोक न सका जिससे योगेन्द्र मौदगिल और ललित शर्मा की कंपनी, थोड़े समय और मिले !
और इस मस्ती के समय में, यकीनन मस्त चर्चाएँ हुई !
कृपया ध्यान रहे कि...
यह लेख "सतीश सक्सेना जी " अथवा "सतीश जी", का लिखा नहीं है ! यह एक ईमानदार आत्मा ने लिखा है, जो सतीश के साथ अक्सर रहती है !
इस लेख से जिसे जिसे कष्ट हो, उससे पहले ही, अपनी हर हाल में खुश रहने की आदत के कारण, क्षमा याचना कर लेते हैं ! !
जिंदगी जिन्दादिली का नाम है ...
मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं
( यह लेख विशुद्ध हास्य है जिसमें अपने ऊपर व्यंग्य किया है ..कृपया विद्वान्, और मुझे बड़ा मानने वाले न पढ़ें. किसी अन्य का नाम लेकर आरोप लगाने वाली गंभीर टिप्पणिया इस लेख पर स्वीकार नहीं हैं . पुरानी बातों का स्पष्टीकरण पहले ही दिया जा चुका है )
सतीश जी ,चलिए इसी बहाने आप की सही ऊम्र भी मालूम हो गयी. लगते तो भाई ३५ के हैं.
ReplyDeleteबस एक ही कमेन्ट हो सकता है... धन्यवाद ऐसे पल भी बांटने के लिए...
ReplyDeleteवैसे ब्लॉग जगत में "शरीफों" का क्या काम???
अरे सतीश भाई ...अलबेला खत्री जी का क्या कहें ...बार बार मुझे संजय कह कर पुकार रहे थे ....मैंने कहा मैं संजय नहीं ...केवल हूँ ...तो कहने लगे ....आपकी कमीज का कलर एक जैसा था इसलिए ....हा ...हा .....हा ......!
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteसच बताऊं जब आप हॉल से उठ कर गए थे तो मैं सनक की हद तक कार्यक्रम की रिपोर्ट पूरे ब्लॉगजगत तक पहुंचाने की जुगत में लगा था...इसलिए मुझे पता ही नहीं चला कि आप कब गए और कब वापस आए...आपने वापस आकर मुझे टोका भी था कि खाना तो खा लो...खाने की प्लेट मेरी पिछली चेयर पर पड़ी थी, जिसमें मैं बीच-बीच में एक टुकड़ा तोड़ लेता था...बाकी नाम को लेकर भ्रम कहीं भी नहीं होना चाहिए...तरंग में आदमी कुछ भी बोल सकता है, कुछ भी समझ सकता है...लेकिन जब पूरे होशोहवास में पोस्ट लिखता है तो इस तरह की भूल नहीं होनी चाहिए...मुझे नहीं लगता कि उस दिन तिलयार में आपके अलावा और कोई सतीश मौजूद थे...वैसे बेबाकी के मामले में आप भी अब अनिल पुसदकर जी और महफूज़ वाली लाइन में आते जा रहे हैं...और यही मुझे सबसे ज़्यादा पसंद है...
जय हिंद...
देख के ही जा रहा हूँ .........................हमारा आना तो अभी मना है ही :)
ReplyDeleteumar pachpan ka dil bachpan ka......sir ye pata chal chuka hai...ha ha ha ha........:)
ReplyDeleteआपने रोका था लेकिन मैंने तो इसे पढ़ लिया , अब क्या होगा मेरी शराफ़त का ?
ReplyDeleteबहन पूजा का एक कमेँट आपकी पूरी पोस्ट का खुलासा लगता है ।
ReplyDeleteखुशदीप जी को धन्यवाद देते हुए यही कहूँगी कभी कभी सोचती हूँ जो ब्लॉगर ६ दिन ऑफिस मे बिताते हैं और ७ दिन मीटिंग मे जाते हैं वो भी महीने मे दो बार उनकी पत्निनिया इस विषय मे क्या सोचती हैं । अब सब तनेजा दम्पत्ति कि तरह साथ जाए और साथ रहे तो संवाद का नज़रिया , नैतिकता कि बात इत्यादि शायद दूसरी हो । नाम मे कुछ नहीं रखा हैं लेकिन अगर ये लिख दिया जाता कि रात मे सतीश रचना के साथ देखे गए तब !!!!!!!!!!!
ReplyDeleteदिलचस्प संस्मरणात्मक विवरण!
ReplyDeleteमुझे कौई शरीफ कहता है तो अब कहना छोड दे भाई
ReplyDeleteमैं भी अब अपनी पोल खोलने वाला हूँ :)
वाह जी वाह!
अकेले अकेले
मुझे भी बुला लिया होता तो एक आध चुटकुला मैं भी सुना कर उठता।:)
प्रणाम
बहुत खूब, लाजबाब !
ReplyDeleteरचना ,
ReplyDeleteमैं जानता हूँ कि तुमने एक बेहतरीन सुसंस्कृत परिवार में जन्म लिया है और विदेशी कल्चर विभिन्न विदेश यात्राओं के दौरान, बहुत नज़दीक से देख चुकी हो !
मुझे रचना जैसी विदुषी को, इस विशाल देश के रीति रिवाज,रहन सहन तथा खाने पीने के रिवाज के बारे में समझाना अच्छा नहीं लगेगा !
जहाँ एक तरफ तू प्यार में अपने पिता और बाबा को बोला जाता है वहीँ दूसरी तरफ इसे अपमान माना जाता है !
जनानी शब्द जहाँ एक तरफ सामान्य है वहीँ आधुनिक काल में कुछ लोग इसे अपमानजनक मानते हैं !
जिस काम के लिये कोई मना करे वो हो ही जाता है जैसे आपकी ये पोस्ट मुझ से भी पढी गयी। शुभकामनायें।
ReplyDelete
ReplyDeleteखुशदीप सहगल को मैं डॉ अनवर जमाल के बराबरी वाला ओहदा देता हूँ !यह लोग खाते पीते नहीं सिर्फ भजन करते हैं ......( अनवर भाई माफ़ करें और यहाँ के कमेन्ट को गंभीर न माने )
इस मजाकिया प्राणायाम से बिना कुछ कहे अमित शर्मा चले गए इसका अफ़सोस है ...
अमित आजकल कुछ अधिक गंभीर हैं कम से कम मुझे यह अच्छा नहीं लगता !
मुझे गर्व है कि यह युवक मेरा आदर्श है !
चेतावनी के बाद भी पढ़ लिया ....कहेंगे कुछ नहीं :)
ReplyDeletejindagi jindadilli ka naam hai---
ReplyDeletehamare liye to bas aap ka yahi pegam hai.
itnae exclamation lagaa kar likha hua kament aap ko serious kyun lagaa ???
ReplyDeletei spost par serious discussion allowed nahin thaa yahii soch kar kament kiyaa
vidushi mae hun haen bhrm kam sae kam mujh mae nahin haen
ReplyDelete@रचना सिंह
@ रचना के साथ में रात को देखे जाने ...
सैकड़ों रचनाओं से मेरा क्या मतलब ?
मुझे क्या फर्क पड़ेगा ?
मगर यदि रचना सिंह के बारे में बात कर रही हैं अच्छा लगेगा क्योंकि मैं इस कर्कश बोलने वाली लड़की के अन्दर छिपे स्नेही दिल को पहचानता हूँ
मैं इससे बहिन के साथ साथ माँ जैसा स्नेह भी लेने में समर्थ हूँ !
हाँ जिस भाव से तुम इस समय मुझे कह रही हो
अगर इस भावना से कोई यह हरकत करता है तो मैं कमज़ोर नहीं हूँ रचना और फैसला करूंगा कि पहली बार गलती समझ अनदेखा करूँ अथवा वह वर्ताव करूँ जो हरामजादों के साथ किया जाता है !
सतीश भाई,
ReplyDeleteइतना भी सूफ़ी मत समझिए...यारों का दिल रखने के लिए कभी कभी बीयर पर हाथ साफ कर लेता हूं...हो गया न बदमाश ब्लॉगर...मिल गया न अब तो आपकी पोस्ट पढ़ने का लाइसेंस...
आज सुबह राम त्यागी से मुलाकात के दौरान आपको मिस किया...निजामुद्दीन स्टेशन पर हुए इस एनकाउंटर पर रात को पोस्ट लिखूंगा...
जय हिंद...
सतीश भाई, यह अच्छा ही हुआ की आपने हमें बताया नहीं.... वैसे आपकी उम्र सच में 55 की नहीं लगती है और जज्बा तो बिलकुल जवान ही है... माशाल्लाह गाडी भी जवानों की तरह ही चलाते हैं.. कमाल का मेंटेन किया है साब!
ReplyDeleteचलिए आपने कुछ पल मज़े में बिताए और वो हम सबसे साझा किये ... शुक्रिया !
ReplyDeleteइन दिनों हज़ारों ब्लागर हमको पढ़ रहे हैं वे पढ़ते समय अपनी मनस्थिति एवं बुद्धि के अनुसार उस लेख का अर्थ निकालते हैं ! यह बिलकुल आवश्यक नहीं कि वे हमारी तारीफ करें अगर उन्होंने लेख का अर्थ कुछ और समझ लिया तो यकीनन उनकी प्रतिक्रिया हमारे विरोध में ही होगी !
ReplyDeleteप्रतिक्रिया स्वरुप हम हर एक से लड़ते रहे यह न तो उचित है और न ही संभव !
ऐसे में सिर्फ मज़ाक उड़ाया जाता रहेगा ! और ध्यान रहे चिढने वाले का मज़ाक और उड़ाया जाता है ! सो शांत रहेना चाहिए और अपने ईमानदार लेखन पर भरोसा रखें !समय के साथ पाठक पहचान भी लेंगे और इज्ज़त भी देंगे !
अन्तरंग क्षणों में बंद कमरे में हम अक्सर प्रधानमंत्री तक का मज़ाक उड़ाते हैं, जो भी व्यक्ति हमारे सर्कल में ऊंचा स्थान लिए होगा अथवा ऊंचा बनाने की चेष्टा कर रहा होगा उसका मज़ाक ऐसी महफ़िलों में हमेशा उड़ाया जाता रहा है ! और यह बेहद स्वाभाविक भी है !
मैं रचना सिंह की तकलीफ और विरोध समझाता हूँ और उसे नितांत गलत भी नहीं ठहराता ! !
गलती हुई है मगर उसमें आग न डाली जाए तो बेहतर होगा !
@रचना सिंह kehane kaa kyaa tat paryaa haen
ReplyDeleteरचना hi kehaa karey mae blog jagat mae isii naam sae jaanii jaatee hun
Read the following which I found when I googled for SATIRE
ReplyDeleteSatire is primarily a literary genre or form, although in practice it can also be found in the graphic and performing arts. In satire, vices, follies, abuses, and shortcomings are held up to ridicule, ideally with the intent of shaming individuals, and society itself, into improvement.[1] Although satire is usually meant to be funny, its greater purpose is constructive social criticism, using wit as a weapon.
Pl read this when i googled for DOUBLE ENTENDRE { dwiarthee }
ReplyDeleteA double entendre (French pronunciation: [dublɑ̃tɑ̃dʁə]) or adianoeta[1] is a figure of speech in which a spoken phrase is devised to be understood in either of two ways. Often the first meaning is straightforward, while the second meaning is less so: often risqué, inappropriate, or ironic.
The Oxford English Dictionary defines a double entendre as especially being used to "convey an indelicate meaning". It is often used to express potentially offensive opinions without the risks of explicitly doing so.
प्रमाणित करता हूं कि मैं शरीफ ब्लॉगर नहीं हूं
ReplyDeleteअविनाश बदमाश
इसलिए पढ़ लिया
राम त्यागी जी का दिल्ली के दिलवालों की बस्ती में हार्दिक स्वागत है। खुशदीप जी के सचित्र विवरण का इंतजार रहेगा।
कैनन का एस एक्स 210 : खरीद लूं क्या (अविनाश वाचस्पति गोवा में)
विश्व सिनेमा में स्त्रियों का नया अवतार : गोवा से अजित राय
अमिताभ बच्चन ने ट्रैक्टर चलाया और ट्विटर पर बतलाया
सिनेमा का बाजार और बाजार में सिनेमा : गोवा से
'ईस्ट इज ईस्ट' के बाद अब 'वेस्ट इज वेस्ट' : गोवा से
ऊंट घोड़े अमेरिका जा रहे हैं हिन्दी ब्लॉगिंग सीखने
मुझे इस बात का मलाल है कि अलबेला जी के पहुचते ही मै वंहा से निकल गया | केवल उंके दर्शन ही कर पाया | उनकीरचना(माफ करे कोइ नाराज ना हो जाए) कविता को सुन नहीं पाया | अब तो यंहा कोइ कविता भी नाराज हो जायेगी | ..... तो क्या लिखू ? बहुत सुन्दर ,बहुत अच्छा ,नाईस ये सब तो हर जगह नहीं लिख सकता हूँ |
ReplyDelete@ डॉ अनवर जमाल,
ReplyDelete@ अब क्या होगा मेरी शराफ़त का
आप गुरु लोग है ...आपकी शराफत हमेशा सेफ रहती है :-)))
(बुरा न मानना )
patakshep ho is prakaran ka.....
ReplyDeletepranam.
आप कहते हो ग़मज़दा क्यों हो, कुछ कहकहाया भी किया करो
ReplyDeleteकहकहा क्या ख़ाक लगाएं पर, जब तबियत-ऐ-जहाँ नासाज हो
कोई ना, हामी-ऐ-गैरत यहाँ पर , बस गैरियत सी जमी जहाँ पर
कह ना पाए बात अपनी रवानी में, ठण्ड सी घुली है हर जवानी में
आप जो पूछा किया करते हो हाल-ऐ-अमित तफ़ज्जुल है आपका
वरना तफावत से ही पडा करता है आजकल हमारा वास्ता
लिखा-लिखी और कहा-कहिन के ब्लोग-ब्लोग के इस खेल में,
ReplyDelete"कुछ तो लोग कहेंगें,
लोगों का काम है कहना......"
सतीश जी,
ReplyDeleteयदि उस दिन ललित जी ने अपनी पोस्ट तुरन्त हटा ली होती और कमेण्ट डिलीट कर दिये होते, तो कईयों की कई-कई पोस्ट बनने से रह जातीं… कई टिप्पणियाँ, कई विवाद, कई "तल्खियाँ" बच जातीं… लेकिन ऐसा न हुआ… यही तो "हिन्दी ब्लॉगिंग" है… जय हो, जय हो…
यह पोस्ट भी इसीलिये पढ़ी कि मुझे "शरीफ़" कहलाने का कोई शौक नहीं है… हम "अछूत" ही भले… :) :)
ReplyDeleteसतीश जी,
ReplyDeleteउस दिन आपसे मिलकरे अच्छा लगा।
और क्या कहूं?? यहां तो युद्ध के हालात हैं।
भाटिया जी भारत तो क्या आये, कुछ लोगों को खुजली होने लगी।
अगर हम उनसे मिलने रोहतक चले गये, आपस में कुछ खाना-पीना हो गया, मिलना-जुलना हो गया, तो इसमें उन्हें दिक्कत क्यों है?
और आपने अपने यहां मेरा खींचा चित्र लगाया, बहुत खुशी की बात है मेरे लिये।
ReplyDeleteअब चेतावनी थी तो पढ़ना तो जरुरी था :)
ReplyDeleteसुरेश भाई ,
ReplyDeleteधन्यवाद शराफत से जान छुटाने के लिए और धन्यवाद के साथ आपका स्वागत है इस मस्त मंडली में !
मजेदार बात है एक से एक शरीफ बच्चे वार्निंग के बावजूद यहाँ आने को तैयार हैं !
अपनी शराफत खोने के भय से चिंतित अनवर जमाल साहब , और अब आप खुद भी आने के लिए मजबूर हुए सो इस लेख को लिखने का मकसद आसानी से पा लिया ....
महिलाओं में रचना से शुरू होकर निर्मला जी , पूजा , संगीता स्वरुप और शिखा हँसते हुए शामिल हुई हैं ... ,
हम क्यों बिना व्यक्तिगत तौर पर जाने एक दूसरे से चिढने लगते हैं ! आप लोग ऐसे विद्वान् हो जिन्हें घंटो मनोयोग से पढ़ा जा सकता है ! क्यों हम ब्लागर एक विस्तृत परिवार नहीं बिना सकते और बड़प्पन का प्रभामंडल फेंक क्यों नहीं सकते
आजकल टिपणी देते हुए ये भी सोचना पड़ता है कि कोइ इस टिप्पणी को किस प्रकार तोड़ मरोड़ कर अर्थ का अनर्थ कर देगा | कोइ घर में अपनी मा बहन के पास भी अगर बैठ कर हंस रहा हो तो गंदे लोग गंदी बात ही कहेंगे
ReplyDelete'नैनों तले धुआँ जले'
ReplyDeleteनहीं, मैं आपको गाना नहीं बल्कि अपनी कैफ़ियत बता रहा हूं । कुछ दिन से बर्फ़ पड़ी और सर्दी बढ़ी तो नेट पर मेरा समय भी बढ़ गया तो जानकारों के , रिश्तेदारों के हाल चाल जानने निकल पड़े ।
सुबह से हो गई शाम
बस नेट का ही काम
आँखों में जलन
सर में चुभन
और यह भी देखने आना बार बार
कि अब क्या फ़रमाते हैं सरकार
सरकार तो फिर भी सरकार हैं
टिप्पणीकार भी पूरे कलाकार हैं
आया मैं यहाँ जितनी बार
टिप्पणियां मिलीं दमदार
सतीश जी को मैंने कम पढ़ा है
वाक़ई, इसका मुझे दुख बड़ा है
सभा ये सुंदर बड़ी है
सच, यादगार घड़ी है
@ अमित शर्मा ,
ReplyDeleteकोशिश करता हूँ समझने की ! मगर तुम्हारे क्षेत्र का अधिक जानकार न होने के कारण उचित प्रतिक्रिया नहीं दे पाता ! कभी कभी दूर भी रहने की कोशिश करता हूँ !
@ मोहतरम बुज़ुर्गवार ! आपने ख़ुशदीप जी को मेरे रूतबे का कह दिया , अब यह तो पता नहीं कि उनका कद कितना कम हुआ लेकिन आपने मुझे जरूर बुलंद कर दिया है ।
ReplyDelete2. यह जानकर अच्छा लगा कि अमित जी आपके आदर्श हैं कम से कम अब मैं आपके पीने पिलाने की शिकायत किसी से कर तो सकता हूँ और यह भी जान लें कि जो युवा आपका आदर्श है वह मेरा भाई है , आप तस्दीक़ कर सकते हैं ।
3. क्या आपको लगा कि मैं आपकी बात का बुरा मानूंगा ?
और अगर मान भी जाऊँ तो भी आपको छोड़ने वाला नहीं मैं ।
डर तो आपका है क्योंकि आप संवेदनशील आदमी हैं । मेरी संवेदनाएं तो कम होती जा रही हैं जब से यहाँ कदम लगा है।
आप में अभी तक बाकी हैं यह एक हैरत की बात है , है कि नहीं ?
एक शराफ़त शेष थी अपने पास , उसे भी आपकी पोस्ट ले गई ।
खैर शराफ़त भले ही चली गई लेकिन मज़ा पूरा आ गया ।
शुक्रिया .
भाई जी साधू और बिच्छू वाली कथा याद होगी...
ReplyDeleteअपना-अपना स्वभाव है.....
कुछ जंतु जन्मते ही पूर्वाग्रहग्रस्त हो जाते हैं..लेकिन छिमा बड़ेन कूं चाहिए छोटन को उत्पात.............
शेष बस इतनी सी बात कि आज रात इन सारी poston v tippaniyon ko do pag le kar padne ka man hai....
कृपया नोट करें की जंतु शब्द बिच्छू के सन्दर्भ में है....फिर भी अपना-अपना अर्थ तलाशने व् अन्यथा लेने के लिए सभी स्वतंत्र हैं..........जय राम जी की....
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख लिखा आपने सतीश जी। मजेदार बातें पढ़ने मिलीं। धन्यवाद।
ReplyDeleteआपकी इस वैज्ञानिकता से भरपूर , विश्लेषणात्मक आलेख के लिए इस बार का गोल्डन ग्लोब और ऑस्कर का शेक बना कर उसका एक घूंट दिया जाता है । कमाल है नहीं समझे , लीजीए
ReplyDeleteइत्ते गजब का एंगल , किसी भी बात से सिर्फ़ और सिर्फ़ वही निकाल सकता है जो चुपचाप सभी साथियों को छोड कर , पैग मारकर , दोबारा उनके बीच पहुंच जाए
इत्ते कमाल की समझाईश निबंध सिर्फ़ वही लिख सकता है जो बेशक उम्र में पचपन मगर जज्बे में जवानी रखता है और दिखता ..अनिल कपूर हो ,
और तीसरी बात ये प्रमाणित होती है कि ...बताओ यार इत्ते बदमाश हैं यार इस ब्लॉगजगत में , और अभी तो कित्ते ही बांकी है भाई ....ओह ये बेचारी शरीफ़ सी ब्लॉग्गिंग क्या होगा इसका ... :) :) :) :) :) :) ..सर गौर किया जाए हमने स्माईली लगाई है ..मुस्काती हुई स्माईली ..
शीर्षक देख कर ही थोड़ी देर को शराफत बगल में रख के आपका ये पोस्ट पढ़ लिया. नहीं तो आपका ये पोस्ट का शीर्षक बनाम जिद्दी कीड़ा न जाने कितने के दिमाग खराब करने वाला है. मुझे तो शांति चाहिये थी इस सवाल के जवाब के साथ कि पोस्ट में आखिर ऐसा क्या लिखा है? आखिर मिल गई शांति.......
ReplyDeleteदिलचस्प विवरण
ReplyDeleteपहले सोचा कि सतीश भाई ने चेता ही दिया है ! ठीक है नहीं पढते !
ReplyDeleteफिर ख्याल आया कि ऐसा भी क्या ? कि शरीफ बन्दा लिखे मगर शरीफ लोग पढ़ ना पायें !
खैर शाम गहरा गयी है और अंधेरे में पढ़ लेने से अपने पे कोई आंच भी ना आयेगी !
मुसीबत ये कि कपडे फाड़ते हुए देखे / सुने / पढ़े थे ! अब धागे फाड़ते हुए भी देख / सुन / पढ़ लिये !
दूसरों पर उबलते / बिलबिलाते / खदबदाते रहने और खुद का खून जलाते रहने से तो बेहतर था कि आप ने एक पैग ले ली :)
bahut koob bhaisahab..dilchasp vivran...!!
ReplyDelete@अजय कुमार झा
ReplyDelete@अली भाई
कमाल है भाई लोगों का ध्यान मेरे एक पैग पर सबसे अधिक जा रहा , अजय कुमार झा की बात हज़म की जा सकती है मगर अली सर की निगाह भी मेरे पैग पर है !
:-)
@ खुशदीप भाई, मुझे बेहद अफ़सोस रहा कि सुबह आपका साथ नहीं दे सका ! घर में कुछ मेहमान थे जिनके साथ रहना बेहद आवश्यक था !
@ शाहनवाज सिद्दीकी,
यह सब आप जैसे युवा दोस्तों का कमाल है जो मुझे खासी लिफ्ट देते हैं ! :-)
@ अमित शर्मा ,
शायरी ...?? खैरियत तो है ??
@ अविनाश जी ,
आपके बारे में बरसों से पता है ...:-)
@ नीरज जाट,
बड़ा प्यारा फोटो लगा , धन्यवाद !
एक सज्जन जो सबसे बदमाश हैं ! धोखा धडी, बेईमानी से बने रईस कहीं नज़र नहीं आये ! ताऊ कहाँ है ?
ReplyDelete@ अजय झा - "…बताओ यार इत्ते बदमाश हैं यार इस ब्लॉगजगत में , और अभी तो कित्ते ही बांकी है भाई ....ओह ये बेचारी शरीफ़ सी ब्लॉग्गिंग क्या होगा इसका ... :) :) :) :) :) :) ..सर गौर किया जाए हमने स्माईली लगाई है ..मुस्काती हुई स्माईली .. "
ReplyDeleteचार ठो स्माइली हमरी भी दर्ज की जायें…
हा हा हा सुरेश भाई आपने सतीश भाई के ब्लॉग पर दी है इसलिए दो दो ...सक्सेना जी और झा जी के हिस्से आ गई है ...अगली बार अकेले अकेले के लिए कम से कम पांच तो दीजीए न
ReplyDeleteवाह इतने सारे बदमाश ब्लॉगर पहली बार पता चला है।
ReplyDeleteबाप रे..!कमेंट दर कमेंट, पढ़ते-पढ़ते मूल पोस्ट भूल गया।
ReplyDeleteएक ईमानदार ५५ वर्षीय आत्मा का लिखा पढा, मलाल है कि इस आत्मा के पोस्टों को नियमित नहीं पढ़ पाया.
ReplyDeleteअब गूगल रीडर में सब्सक्राईब कर लिये हैं, बिना टिप्पणियों के रेलमपेल, मूल पोस्ट और मूल आत्मा की आवाज को पढ़ पायेंगें.
वर्जित वस्तु की ओर आकर्षण और प्रबल हो जाता है न !- दोषी पढ़नेवाला क्यों (पढ़ा तो और ज़्यादा जाएगा),इसे आकर्षक बनानेवाले को सारा श्रेय जाना चाहिये ,क्यों सतीश जी !
ReplyDeleteहमने तो सिर्फ़ इसलिये पढ़ा कि मना किया गया था.
(गंभीर न हों )
पोस्ट से अधिक मजा कमेन्ट में आया..
ReplyDeleteअगली बार मैं भी आऊंगा शाकाहारी मीट में शामिल होने..
पैग-शैग देख लिया जायेगा..
शर्मा जी का डांस भी...
हुजूर कैमरा तो हम भी लायेंगे...
आपका एक फोटू ले जायेंगे..
फिर लगायेंगे ब्रेकिंग न्यूज..
ओह ! जब सब शराफत छोड़कर यहाँ पढने चले आये तो हम शराफत से क्यूँ चिपके रहें :)
ReplyDeleteआपका लेख आपकी साफ और जिंदा दिली का प्रतीक है
ReplyDeleteभारतीय नागरिक जी
ReplyDeleteशाकाहारी मीट में शामिल होने आयें
तो अपनी शाकाहारिता को प्रमाणित करने के लिए
सब्जी मंडी से शाक सब्जी कंद मूल अवश्य
भरपूर मात्रा में साथ ले आएं
इससे आपकी नागरिकता और
शाकाहारिता सबके साथ मिलकर संगत की
नई रंगत का असरकारी असर करेगी
कैनन का एस एक्स 210 : खरीद लूं क्या (अविनाश वाचस्पति गोवा में)
विश्व सिनेमा में स्त्रियों का नया अवतार : गोवा से अजित राय
अमिताभ बच्चन ने ट्रैक्टर चलाया और ट्विटर पर बतलाया
सिनेमा का बाजार और बाजार में सिनेमा : गोवा से
'ईस्ट इज ईस्ट' के बाद अब 'वेस्ट इज वेस्ट' : गोवा से
ऊंट घोड़े अमेरिका जा रहे हैं हिन्दी ब्लॉगिंग सीखने
द्विअर्थी शब्दों के पुरोधा और लक्षित परसोना की एक ही कटेगरी है -इनकी एक ही नियति है जबतक ये सुधरते नहीं ! आप काहें हलकान विद्रोही बने जाते हो! और काहें का इतना स्पष्टीकरण दे रहे हो आप ?
ReplyDeleteकहीं कुछ तो गड़बड़ है :)
भाई अरविन्द मिश्र,
ReplyDeleteआपके कमेन्ट हैं तो समझाना तो पड़ेगा ही ! वैसे भरोसा बनाये रखिये, शक की कोई गुंजाइश ही नहीं आपके मित्र पर ! :-))
ओह ! तमाम शरीफ ब्लॉगर तो पहले ही पढ़ चुके , कई अभी भी लाइन में हैं । हम भी कल से कोशिश कर रहे थे टिपियाने की … आज सफल हुए हैं ।
ReplyDeleteऔर ग़लतफ़हमी क्या , आपके अलावा कोई ईमानदार आत्मा सतीश ब्लॉगजगत में है ही कौन ! :)
नमन है बड़े भाईसाहब !
वैसे ये ब्लॉगर मीटिंग्स की रिपोर्ट्स और फोटो क़यामत ही है …
दो दिन पहले नीरज जाट जी के ब्लॉग पर कई ब्लॉगर कपड़ों से बाहर नज़र आए थे …:)
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बांच लिया अब किधर रखिये गा मुझे
ReplyDeleteहा हा हा
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अपने खुद के उपर व्यंग्य लिखना बहुत ही कठिन होता है ब्रेकेट जो टिप्पणी लिखी है उसमें विव्दान के बाद कौमा लगा दिया होता
ReplyDelete@ आदरणीय बृजमोहन श्रीवास्तव,
ReplyDeleteगलती सुधार दी है, आभार आपका !
जब सभी शरीफ ब्लागर पढ़कर चले गए तब हमने सोचा अब तो हम भी पढ़ ही लें क्योंकि अपन तो इस श्रेणी में आते ही नहीं।
ReplyDeleteहम तो सम्मेलन के बारे में ही पढ़े, उसके इतर क्या घट गया?
ReplyDeleteइतना क्यूं हिचकिचा रहे हैं, पी ली तो पी ली ।
ReplyDeleteहंगामा नही बरपा है ।