तिलयार ब्लागर मीट का समापन के बाद, जिस प्रकार आपस में,बेलगाम आरोप प्रत्यारोप हो रहे हैं , वह हिंदी ब्लाग जगत के लिए शर्मनाक हैं ! ब्लाग जगत की व्यक्तिगत रंजिशें और संकीर्ण मनस्थितियों ने जो कुछ ब्लाग जगत को दिया, वह एक बुरा हादसा है !
लगभग ४ बजे शाम , अधूरी मीटिंग छोड़ कर, जब मैं वहाँ से विदा हुआ था , बेहद खुशनुमा माहौल रहा था , डॉ दराल के पिताजी के स्वर्गवास के कारण , उनसे मिलना हम लोगों ( खुशदीप सहगल, अजय कुमार झा ,शाहनवाज सिद्दीकी और मैं खुद ) के लिए बहुत आवश्यक था अतः गुडगाँव के लिए गाड़ी स्टार्ट करते समय , आदरणीय योगेन्द्र मौदगिल द्वारा जिस प्यार से अपना कविता संग्रह "अंधी ऑंखें गीले सपने " भेंट की वह यादगार रहेगी !
लगभग ६ बजे सायं ,गुडगाँव में भारी ह्रदय, से डॉ दराल के घर पर , पिताश्री को श्रद्धांजलि अर्पित करते समय, संवेदनशील डॉ दराल के चेहरे पर, पिताजी के अचानक जाने का कष्ट देख, वातावरण भारी रहा ! ऐसे कष्ट में, समझाते भी नहीं बनता सिवा एक मूक उपस्थिति के !
लगभग ६ बजे सायं ,गुडगाँव में भारी ह्रदय, से डॉ दराल के घर पर , पिताश्री को श्रद्धांजलि अर्पित करते समय, संवेदनशील डॉ दराल के चेहरे पर, पिताजी के अचानक जाने का कष्ट देख, वातावरण भारी रहा ! ऐसे कष्ट में, समझाते भी नहीं बनता सिवा एक मूक उपस्थिति के !
वाकई मां-बाप का बिछोह बहुत दुखदाई होता है..
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ReplyDelete@ डॉ अनवर जमाल ,
ReplyDeleteमैं आपसे उम्मीद करता हूँ की आप पोस्ट पढ़ कर कमेन्ट करें अत खेद सहित आपका कमेन्ट हटाने को मजबूर हूँ !
सादर
सतीश भाई , सभी कठिनाइयों के बावजूद आपका आना इस बात का संकेत देता है कि ब्लॉग जगत में सद्भावना और सौहार्दपूर्ण वातावरण भी है ।
ReplyDeleteअगर इसे बनायें रखें , तो हिंदी ब्लोगिंग का विकास अवश्यमभावी है ।
तिलायार में आप लोगों का मिलन तो अच्छा ही रहा .. बहुत लोगों से मिलना हुआ ...बाकी आरोप और प्रत्यारोप इंसानी फितरत है ...मन को तल्ख़ मत कीजिये ...डा० दराल जी के शोक में आप लोंग शामिल हुए बस यही सहयोग की भावना है ...
ReplyDeleteसर , आपने एक समस्या को निहायत ही कम शब्दों में बयान कर दिया है , इसलिए यह पोस्ट अच्छी कहलाने की हकदार है ।
ReplyDeleteसमय कम था , बिस्तर भी बुला रहा है हो सभी बातों के मद्देनज़र मैंने मुख़्तसर तौर पर लिख दिया था
Nice post .
आरोप प्रत्यारोप का क्या है ...हर जगह होते हैं.ब्लॉग मिलन सफल रहा बस और क्या चाहिए.
ReplyDeleteयही परिवार है..दराल साहब को शोक में आप शामिल हुए..हम सब प्रार्थना करते रहे.
ReplyDeleteईश्वर पुण्य आत्मा को शांति दे.
... और डा. दराल साहब के पिता जी की जुदाई के लिए सचमुच एक मौन के हम कुछ कर भी नहीं सकते , आपका यह अहसास भी दुरुस्त है .
ReplyDeleteमोहतरम ! पोस्ट का केंद्रीय विषय डा . दराल जी के शोक में शिरकत है लेकिन शीर्षक में उसके संबंध में एक शब्द भी नहीं है ।
ReplyDeleteपूरा शीर्षक ब्लागर मीट और उससे उपजी विसंगतियों पर ही केंद्रित है । आप चाहें तो मुनासिब तब्दीली कर सकते हैं ।
अगर तल्ख़ मन की जगह दुखी मन भी कर दिया जाए तब भी काफ़ी है । आपको
ईमेल करना चाहा लेकिन रिस्पॉन्स ही नहीं है, Technical problem.
इसलिए कमेँट करना पड़ा , यह कमेँट प्रकाशन के उद्देश्य से प्रेषित नहीं है ।
डिलीट कर देंगे तो बेहतर रहेगा ।
शब बख़ैर
ब्लॉगिंग इक ख्वाब है,
ReplyDeleteख्वाब में झूठ क्या,
और भला सच क्या...
जय हिंद...
ब्लाग जगत की व्यक्तिगत रंजिशें और संकीर्ण मनस्थितियों ने जो कुछ ब्लाग जगत को दिया, वह एक बुरा हादसा है
ReplyDeleteसतीश जी आप सही कह रहे हैं लेकिन यह भी दो देखिएं की दूसरी तरफ आप लोग मिल के डॉ दराल के घर पर , पिताश्री को श्रद्धांजलि अर्पित करने गए. यह सद्भावना और सौहार्दपूर्ण वातावरण की दलील है.
अच्छे बुरे दोनों पहलू हैं लेकिन है तो बात अफ़सोस की
ReplyDeleteमैं दिल्ली में ही था, पर .... विधना की मर्ज़ी !
डॉ. दराल के पितृशोक में हमारा परिवार भी सम्मिलित है !
सुख दुःख बस ऐसे ही साथ चलते रहते हैं !
ReplyDeleteडाक्टर दराल के दुःख में हमें भी साथ जानिये !
डा० दराल जी के शोक में आप लोंग शामिल हुए बस यही सहयोग की भावना है ...
ReplyDeleteहम सब प्रार्थना करते रहे.
ईश्वर पुण्य आत्मा को शांति दे.
@ धन्यवाद अनवर भाई ,
ReplyDeleteअधिक संवेदनशील होने के कारण, तल्खी शायद मेरे स्वाभाव का एक हिस्सा है , और यह पोस्ट उसी की उपज है !
सादर
सही कहा खुशदीप भाई ने...
ReplyDeleteब्लॉगिंग इक ख्वाब है,
ख्वाब में झूठ क्या,
और भला सच क्या...
जय हिंद...
हम लोग भावुक है, इसलिए रिश्ते बना लेते हैं... और जब रिश्ते बन जाते हैं तो उनकी ख़ुशी में खुश और दुःख में दुखी हो जाना कुदरती है. दुखी मत होइए यह तो जीवन का हिस्सा है.
सतीश भाई ...अपने मन को तल्ख़ मत कीजिये ...अगर बुराई न होती तो अच्छाई का एहसास कैसे होता...निंदक नीयरे राखिये ... आप डॉ . दराल जी के घर गए...जाहिर कर दिया की आप सब में इंसानियत कूट -कूट कर भरी है ...आभार
ReplyDeleteआरोप प्रत्यारोप कहां नही होते? हमारे मन में भी जो द्वंद चलता है उसी द्वंद की प्रत्यक्ष परिणीति यह व्यवहारिक जगत में होती है. इसके बिना ना आपका ब्लागजगत चलेगा ना यह संसार. आलोचना समालोचना सभी को बर्दाश्त करनी पडती है. अत: इसकी चिंता नही करें, आप लोगों ने खुले मन से रोहतक में सभी को बुलाकर और शायद आज तक की अधिकतम ब्लागर संख्या को आपस में मिल बैठकर बात करने का मौका बिना किसी एजेंडा के दिया, यह बहुत बडी बात है.
ReplyDeleteडाक्टर दराल को पितृ शौक हुआ यह ईश्वर की मर्जी है. पर माता पिता का साया सर से उठना कितना व्यथित करता है यह भुक्तभोगी ही जानता है. इस दुखद क्षण में मैं हार्दिक संवेदनाएं व्यक्त करता हूं. ईश्वर उनकी दिवंगतात्मा को शांति दे और परिजनों को इसे सहन करने की क्षमता प्रदान करें. यही प्रार्थना है.
रामराम.
सतीश भाई ब्लॉग जगत भी एक परिवार है ना परिवार में भी तो रंजिशे मनमुटाव चलते हैं कुछ वैसे ही समझ लें । आप को अपनी प्रतिक्रिया उसी वक्त जता देनी थी ।
ReplyDeleteदराल साहब के दिवंगत पिता जी को श्रध्दांजली ।
सतीश जी,
ReplyDeleteआरोप-प्रत्यारोप ब्लॉगिंग में नये नहीं हैं। कोई किसी के समझाने से एक बार में नहीं माना तो समझो वो मानेगा भी नहीं।
और ब्लॉगिंग की एक ताकत यह भी है कि अगर हम किसी के साथ हंसी-खुशी के पल गुजार रहे हैं, तो दुख के पल भी गुजारने होते हैं।
सतीश जी, हमारी कठिनाई क्या है कि दस लोग अच्छे हैं और अच्छी बाते कर रहे हैं इतने में ही एक नकारात्मक व्यक्ति आ जाता है और सारे ही दस लोग दुखी हो जाते हैं। हमारे ऊपर नकारात्मक विचार हावी हो जाते हैं। वैसे तो हम बहु संख्यक वाद का सिद्धान्त मानते हैं लेकिन ऐसे हम एक व्यक्ति से ही प्रभावित हो जाते हैं। इसलिए जब तब बहुतायत में लोग किसी भी बात को गलत ना कहे, उसे गलत ना माने। हम जब सारा दिन एक-दूसरे के विचारों को पढ़ने में लगाते है तो साक्षात मिलने का मन भी होता ही है और ऐसे सम्मेलन इसी प्रयोजन को पूर्ण करते हैं। हम एक दूसरे से जितना संवाद करेंगे हमारे विचार और अधिक पुष्ट होंगे। हमें यह समझना चाहिए कि हम मीडिया का विकल्प समाज को देने के लिए आए हैं अत: केवल लक्ष्य इसी पर रहना चाहिए। ऐसे समाचार या विचार जो मीडिया प्रसारित नहीं करती हमें उनपर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए ना कि व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपों पर।
ReplyDeleteआप सभी दराल साहब के यहाँ संवेदना के लिए हम सबके प्रतिनिधि के रूप में गए इसके लिए हम आभारी हैं।
डाक्टर दराल को पितृ शौक के दुखद क्षण में मैं हार्दिक संवेदनाएं व्यक्त करता हूं. ईश्वर उनकी दिवंगत आत्मा को शांति दे और परिजनों को इसे सहन करने की क्षमता प्रदान करें.
ReplyDeleteदीपक बाबा की टिप्पणी भूल से हट गए है उनका टिप्पणी प्रकाशित कर रहा हूँ ...
ReplyDeleteकहते हैं दुखों के बोझ से पत्थर भी फट जाते हैं पर इंसान जिन्दगी फिर अपने ढरे पर चल पड़ती है... एक नई यात्रा पर ... कुछ खुशियों की तलाश में....... परमात्मा....
दाराल साहिब के पिताजी को श्रद्धांजलि
मेरी टिप्पणी नहीं प्रकाशित करने का "भी" धन्यवाद… आपका ब्लॉग है, आपकी मर्जी है…
ReplyDeleteसतीश जी , खुशदीप , अजय और शाहनवाज़ के साथ आपने एक ही दिन में वो दो काम किये जो सभ्य समाज में इंसान से अपेक्षित है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और ख़ुशी और ग़म ये दो ऐसी अवस्थाएं हैं , जो अपने हितैषियों के बगैर अधूरी रहती हैं ।
ReplyDeleteआप चारों और सभी ब्लोगर मित्रों का शुक्रगुजार हूँ , इस कठिन समय पर साथ देने के लिए ।
मुझे पूरा विश्वास है आपकी यह दरियादिली ब्लॉगजगत के लिए एक उदाहरण बनेगी ।
आपकी पोस्ट के जरिये ही मैं डाकटर दराल साहब को पितृ शोक पर अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूँ ...ईश्वर मुक्त आत्मा को शान्ति दे और परिवार को धैर्य !
ReplyDeleteमन की तल्खी स्वाभाविक ही है लेकिन ये आपने बहुत अच्छा किया जो तिलयार मीट के समापन के बाद डा. दराल साहब के घर गये। शोक के समय अपनों का साथ भरोसा देता है।
ReplyDeleteहम सभी शोकग्रस्त हैं।
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