किसी भी लेख की महत्ता बिना टिप्पणियों के बेकार लगती है ,लगता है किसी वीराने में आ गए हैं ! और टिप्पणिया चाहने के लिए टिप्पणिया देनी बहुत जरूरी हैं ! सो हर लेख के तुरंत बाद ५० अथवा उससे अधिक जगह टिप्पणी करनी होती है तब कहीं २५ -३० टिप्पणियों का जुगाड़ होता हैं ! :-((
अब लम्बा लेख कैसे पढ़ें ..समझ ही नहीं आता ! ऐसे लेख पर टिप्पणी करने के लिए अन्य टिप्पणीकर्ता की प्रतिक्रिया देख कर उससे मिलती जुलती टिप्पणी ठोकना लगता होता है ! चाहे उस बेचारे का बेडा गर्क हो जाये :-)
- अगर किसी बहुत बेहतरीन लेख का कबाड़ा करना हो तो पहली नकारात्मक टिप्पणी कर दीजिये फिर देखिये उस बेचारे की क्या हालत होती है ! बड़े बड़े मशहूर लोग उसकी कापी करते चले जायेंगे !
- किसी अन्य टिप्पणी कर्ता जिसे आप विद्वान् समझते हों की टिप्पणी की कापी करना अच्छा लगेगा और लोग आपकी टिप्पणी को ऐवें ही नहीं लेंगे !
और हम जैसे मूढ़ लोग अपने आप पर और अपनी संगत पर हँसेंगे ...दुआ करता हूँ कि कुछ लेख को ध्यान से पढने वाले भी आ जाएँ तो इतनी मेहनत करना सार्थक हो ! मेरे जैसे मूढमति, टिप्पणी न करें तो ठीक ही होगा सो आज से टिप्पणी कम करने का प्रयत्न करूंगा , जिससे बदले में टिप्पणी न मिलें और दुआ मानूंगा कि कम लोग पढने आयें मगर वही आयें जो मन से पढ़ें !
:-))))
( यह लेख एक व्यंग्य है )
( यह लेख एक व्यंग्य है )
मैं तो तीन साल से यह नहीं समझ पाया कि टिपण्णी आखिर कितनी बड़ी चीज़ है जिसके लिए इतनी मगजमारी की जाए.
ReplyDeleteआपने कहा "टिप्पणिया चाहने के लिए टिप्पणिया देनी बहुत जरूरी हैं ! सो हर लेख के तुरंत बाद ५० अथवा उससे अधिक जगह टिप्पणी करनी होती है तब कहीं २५ -३० टिप्पणियों का जुगाड़ होता हैं !"
और इतनी टिप्पणियों का जुगाड़ कर लेने के बाद क्या करते हैं आप?
वाह वाह क्या बात है ... बहुत सुन्दर रचना है ... बेहतरीन, लाजवाब, भावनात्मक, खूबसूरत इत्यादि इत्यादि ...
ReplyDeleteधन्यवाद कि आपने सच लिखा है ...
सतीश जी प्रणाम,
ReplyDeleteआपका कहना बिलकुल सही है की किसी लेख को पूरी तरह से समझ कर ही टिप्पणी की जानी चाहिए. मैं तो हमेशा यही कोशिश करता हूँ की पहले लेखक की लेख लिखने की मंशा को पहचान लूँ फिर टिप्पणी करूँ. मैं ये भी प्रयास करता हूँ की अपनी टिप्पणी में, मैं स्पष्टतः वही लिखूं जो भाव मैं लेख के प्रति अपने मन में रखता हूँ ना की दूसरों की देखा देखी मन की आंख बंद करके हाँ में हाँ मिला दूँ.
एक बात और कह दूँ कि मेरी समझ से आप उन खुशकिस्मत ब्लोग्गेर्स में से हैं जिनके लेख यहाँ ध्यान से पढ़े जाते हैं.
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ReplyDeletenar ho na nirash karo man ko ........tippani margdarshan ke avshak hai...basharte vo imandari se kiya gaya ho.......
ReplyDeleteसतीश जी आज तो आपने मेरे मन की बात कह दी मै भी कुछ दिन से यही सोच रही हूँ। अधिक टिप्पणियाँ पाने के लिये अधिक पढना भी पडता है तो निश्चित है कि आपकी लिखने की क्षमता भी कम होती है। मै बहुत दिन से कुछ भी लिख नही पा रही हूँ। अब सोचती हूँ कि मै भी आपके जैसा ही कुछ करूँ।लेकिन ये भी तय है कि जब आप सब के ब्लाग पर नही जाते तो कोई आपके ब्लाग पर नही आयेगा ये सोच कर लगता है कि टिप्पणी करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना ब्लाग पर लिखना। शुभकामनायें।
ReplyDeleteमहाराज
ReplyDeleteटिप्पणी का ऑप्शन बन्द कर दें और वहाँ लिख दिजिये कि इस आलेख के संबंध में कुछ विशिष्ट प्रतिक्रिया देनी हो तो निम्न ईमेल पर भेजें जिसे यदि उपयुक्त हुआ एवं जिस पर अन्य लोगों के विचार जानने के लिए सार्वजनिक करना जरुरी समझा गया तो ब्लॉग प्रबंधक द्वारा बतौर टीप छाप दिया जायेगा.
इससे केवल विमर्श योग्य टिप्पणियों को आप छाप भी देंगे और झूठमूठ तारीफ वाली या तो आयेंगी नहीं और आईं भी तो छपेंगी नहीं.
मात्र एक सुझाव है आपकी परेशानी देखते हुए. :)
मैं पूरी तरह से असहमत हूँ , मुझे लगता है अच्छी पोस्ट को टिप्पणियाँ भी अच्छी मिलती हैं...
ReplyDeleteसतीश जी, मैं आपकी बात को अपने संदर्भ में नहीं मानती। मैं भी पढ़ती हूँ ढेर सारी पोस्ट को। लेकिन उनके पीछे टिप्पणी नहीं होती। मुझे जो पोस्ट पढनी है और उसमें टिप्पणी भी किसी की देखा-देखी जैसी नहीं करती। चाहे तो आप मेरी टिप्पणियों उठाकर देख लें। सार्थक पाठक ही पोस्ट को सार्थक करते हैं, लेखक के विश्वास को बढाते हैं। इसलिए जिस दिन यह टिप्पणी का खेल बन्द होगा उस दिन फालतू पोस्ट आना बन्द होगी और सार्थक ब्लागिंग की ओर हम बढेंगे।
ReplyDeleteआपका विचार भी चिंतनीय है और समीर जी की सलाह भी।
ReplyDelete@ निशांत मिश्र,
ReplyDeleteयह लेख एक व्यंग्य है इसे व्यंग्य मात्र ही माने
@ उड़न तश्तरी ,
आपके सुझाव पर विचार करूंगा मुझे लगता है यही ठीक होगा !
@
समीर चचा की बात बहोत मस्त है..अच्छी लगी :)
ReplyDeleteवैसे मुझे टिप्पणियों से कुछ लेना देना नहीं..टिपण्णी आयें तो अच्छा लगता है, नहीं आयें अगर फिर भी कोई गम नहीं...
वैसे मुझे ज्यादा अच्छा तब लगता है जब मेरे परिवार वाले, मेरे कुछ खास दोस्त पढ़ के टिपण्णी देते हैं..
जब मैं ब्लॉग में किसी को जानता नहीं था, किसी के ब्लॉग पढता नहीं था..तब भी मेरे ब्लॉग पे २० टिपण्णी आ ही जाते थे..वो भी बस मेरे दोस्तों के, जिनका ब्लॉग से कोई सम्बन्ध नहीं...अब वो टिपण्णी नहीं करते लेकिन मुझे मेसेज से, फेसबुक पे बता देते हैं की उन्हें मेरा लिखा कैसा लगा...
ब्लॉग में जो कुछ लोगों से एक रिश्ता बना है, मुझे ये यकीन है की वो मेरा पूरा लेख पढ़ के ही टिपण्णी देते हैं..:)
वैसे मैं बहुत ज्यादा दूसरे ब्लोग्स नहीं पढता..लेकिन फिर भी पढता हूँ...कोशिश करता हूँ की जितने ब्लॉग पढूं, अच्छे से पढूं :)
बहुत अच्छी बात उठाई है आपने इस पोस्ट के जरिये..
लो जी हमने तो इस पर एक लम्बी टिप्पणी लिखी थी। पर गूगल वालों ने उसे छापने से मना कर दिया। व्यंग्य लेख पर इस बड़ा व्यंग्य क्या होगा।
ReplyDelete*
वैसे बस इतना ही कहना चाहता हूं व्यंग्य में नहीं गंभीरता से कि आप जैसे मूढ़मतियों को टिप्पणी कम नहीं अधिक करने का अभियान चलाना चाहिए। भले ही अपनी पोस्ट कम कर दें।
काबिलियत को किसी का मोहताज नहीं होना चाहिए,Sir ji
ReplyDeleteसक्सेना जी,
ReplyDeleteटिप्पणी का ऑप्शन तो खुला रखिये लेकिन टिप्पणियों को हावी मत होने दीजिये।
मैं भी तो ऐसा ही करता हूं।
भैय्या नित नए बखेड़ा देखकर अब टीप देने में भी डर लगने लगा है .... फिर भी टीप दे रहा हूँ .... व्यंग्य बढ़िया लगा.....
ReplyDeleteसर जी! आपके अंतिम वाक्य कि "यह लेख एक व्यंग्य है" ने कंफ्यूज़ कर दिया है, समझ नहीं आया कि ठहाका लगायें या कुछ कहें इस बाबत?
ReplyDeleteखैर फिलहाल, ठहाका तो अपने कंफ्यूज़न पर ही लगा लिया हमने!
बेशक व्यंग्य है मगर जूता दुशाले मे लपेट कर मारा है………………वैसे अजित जी का कहना सही है जो अच्छा लगे पढो और टिप्पणी दो न लगे तो कोई जोर ज़बर्दस्ती तो है नही…………वैसे ये टीप्पणियो का खेल एक बार तो सभीको परेशान करता ही है मगर जब हम इस ब्लोगजगत मे आये हैं तो सोच समझ कर ही कदम उठाने चाहियें और किसी खेल का हिस्सा नही बनना चाहिये।
ReplyDeleteबिल्कुल सही मुद्दा उठाया है सर जी...
ReplyDeleteशुर-शुरू में मेरे लिए भी वो बहुत मायने रखतीं थीं, पर एक खतरनाक वाकये के बाद से मैंने वहां टिप्पणी देना बंद कर दिया, जिनसे मैं सहमत नहीं होती हूँ.
टिप्पणी या प्रचार बोर्ड
ReplyDelete'ईस्ट इज ईस्ट' के बाद अब 'वेस्ट इज वेस्ट' : गोवा से
ऊंट घोड़े अमेरिका जा रहे हैं हिन्दी ब्लॉगिंग सीखने
‘ग्रासरूट से ग्लैमर’ की यात्रा : ममता बैनर्जी ने किया 41वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह का शुभारंभ : गोवा से अजित राय
बहुत चिंतित है ब्लु लाइन बसे
शनिवार को गोवा में ब्लॉगर मिलन और रविवार को रोहतक में इंटरनेशनल ब्लॉगर सम्मेलन
शिवम् मिश्रा जी से मैं तो मिल लिया, आप भी मिल लीजिए
विज्ञान भवन रिहर्सल का एक अस्पष्ट वीडियो
बड़ी मुश्किल है .... 20.10.2010 को आई नैक्स्ट में प्रकाशित व्यंग्य
cहिन्दी ब्लॉगिंग खुशियों का फैलाव है
प्रिंट मीडिया में वर्धा सेमिनार चर्चा : पाखी में प्रतिभा कुशवाहा ने लिखा : क्या आपने नहीं पढ़ा, वर्धा लाइव ...
हर किसी का अपना अपना विचार है ....
ReplyDeleteवैसे अपने इसे व्यंग की संगया दी है .. तो इतना तो ज़रूर कहूँगा .. व्यंगमें दम है ....
किसी भी लेख की महत्ता बिना टिप्पणियों के बेकार लगती है ,लगता है किसी वीराने में आ गए हैं !
ReplyDeleteपहली पंक्ति यह लिख कर भी टिप्पणियों का ऑप्शन बंद करने की कोई तुक नज़र नहीं आती ...यदि टिप्पणियों का बॉक्स बंद होता है तो मेरे जैसे पाठक को तो अच्छा नहीं लगता ...क्यों की पढने के बाद हम कुछ कह ही नहीं सकते वहाँ ...दूसरों की टिप्पणियाँ देख कर टिप्पणी देने की कला ताऊ के विश्वविद्यालय में जा कर सीखनी पड़ेगी ...पता नहीं अभी यह कोर्स वहाँ शुरू हुआ है या नहीं ...
आपने अपने मन की दुविधा लिख दी ...बाकी पढने वाले पर छोडिये ....टिप्पणी देना और लेना कोई ज़बरदस्ती नहीं कर सकता ..
पोस्ट के अंत में दी गयी टीप " यह लेख एक व्यंग्य है " अच्छी लगी. .
ReplyDeleteचलिए इस बात की ख़ुशी है कि लोग मान तो रहे है कि टिप्पणियां जरूरी है ... मुझे तो जिस दिन ५ मिल जाती है मैं मान लेता हूँ कि पोस्ट बढ़िया लगाई है मैंने !
ReplyDeleteमैं तो लिख़्ख़ाड कम और टिप्पण्णक ज्यादा हूं, पर यूं ही 40-50 नहिं कर देता। मैं वहां जाता हूँ जहां या तो मेरे विचारों के अनुकूल लेख हो अथवा प्रतिकूल। क्योंकि वहां चर्चियाना मुझे अच्छा लगता है। और इसी प्रकार मैं अपनी विचारधारा का परिमार्जन करता रहता हूँ।
ReplyDeleteएक दो बार टिप्पणीयों से अनुगामी टिप्पणीयों का प्रयास किया, तब लक्षय मात्र अपना लेख पढवाना था। जो कि मैं मानता था उसे अधिक लोगो को पढना चाहिए। अन्यथा मैं संख्या आधारित चिंता नहिं करता।
## अच्छा यह व्यंग्य था?, अब पढा!! मैं तो गम्भीर हो उठा।
पोस्ट के बराबर टिप्पणी को महत्ता यदि दी जाती है तो टिप्पणी को ही इतना रुचिकर बना दीजिये कि उसमें पोस्ट का आनन्द आ जाये। तब टिप्पणियों को प्रेरित पोस्ट के रूप में माना जाये।
ReplyDeleteब्लॉग जैसा पेड टिप्पणीयों के खाद पर लहलहाता है | इसके बिना भी खडा रहेगा मगर बिना फल फूल के |
ReplyDelete:)
ReplyDeleteक्या बताना पड़ता है कि ये व्यंग है.
@विचार शून्य जी ,
ReplyDeleteयहाँ कोई किसी की तारीफ़ नहीं करता सो धन्यवाद देता हूँ ! आप जैसे जागरूक लोगों के कारण ब्लॉगजगत में सक्रियता बनी रहने की उम्मीद करता हूँ !
आम ब्लागर्स अगर विभिन्न मतों के लोगों के विचारों का अर्थ सही लगाना भी सीख जाएँ तो भी हम लोगों का लेखन साथक मन जाये ! अभी तक तो निराशा ही हाथ लगी है !
सादर
सही खिंचाई की है जी
ReplyDeleteवैसे जहां तक मेरी बात है मैं कभी भी बिना पढे टिप्पणी नहीं करता हूँ। और पढने के बाद मुझे कुछ कहने जैसा लगे तो ही टिप्पणी करता हूँ।
प्रणाम
@ हर लेख के तुरंत बाद ५० अथवा उससे अधिक जगह टिप्पणी करनी होती है तब कहीं २५ -३० टिप्पणियों का जुगाड़ होता हैं !
ReplyDelete# इन दिनों तो मैं किसी ब्लॉग पर टिपण्णी ही नहीं कर पा रहा हूँ ,,,,,, फिर भी जब कभी समय चुराकर कोई पोस्ट लिखता हूँ तो टिपण्णी और मात्र टिपण्णी ही नहीं अच्छी खासी चर्चा चल पड़ती है , इसलिए मेरा तो मानना है की टिपण्णी की मगजमारी कोई समस्या नहीं है.
समस्या तो यह है--------
@ अगर किसी बहुत बेहतरीन लेख का कबाड़ा करना हो तो पहली नकारात्मक टिप्पणी कर दीजिये फिर देखिये उस बेचारे की क्या हालत होती है !
# इससे बड़ी कोई समस्या नहीं है , अब इसके लिए तो या तो सारा काम छोड़कर टकटकी लगायें कम्प्यूटर महाराज की सम्मुख ही बैठा जाये .........या फिर सारी चिंता छोड़कर जो हमारा मन गवाही दे वही लिखें और सब भूल जाएँ .............मैंने तो अब यही फैसला किया है :)
ReplyDeleteउत्कृष्ट व्यँग्य,
पापे, तुस्सी छा गये !
@ डॉ अमर कुमार ,
ReplyDeleteछाने में आपके सहयोग के लिए धन्यवाद ! ! आप भी क्या चीज हो प्राजी ??
एक सार्थक व्यंग्य पर सबसे उपयोगी टिप्पणी अविनाश जी की .
ReplyDeleteमैं शुरू से ही कम ब्लॉग्स पर जाता हूँ और टिप्पणियाँ भी कम ही करता हूँ लेकिन इसके बावजूद लोग मेरा लिखा इतने ध्यान से पढ़ते हैं कि मेरे ब्लाग पर चाहे टिप्पणी दें या न दें लेकिन अपने अपने ब्लाग पर मेरे लेखन की समीक्षा जरूर करते रहते हैं .
जो खुद को मेरे लेखन की समीक्षा में अक्षम पाते हैं वे मेरे व्यक्तित्व की ही आलोचना करके आनंदित होते रहते हैं।
मैं तो उनके बारे में भी यही सोचता हूँ कि
गुलों से ख़ार बेहतर हैं जो दामन थाम लेते हैं
सतीश जी बेहतरीन व्यंग के लिए धन्यवाद्. भाई मुझे कभी कभी लगता है टिप्पणिओं का शौक भी एक नशा है. टिप्पणी यदि लेख़ पढ़ के दी गयी हो तो टिप्पणी करने वाला ब्लोगर याद रहता है और इस से प्रेम बढ़ता है.
ReplyDeleteलेकिन अधिकतर टिप्पणी केवल अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए की जाती हैं. यह भी एक मजबूरी है, प्रेम बना रहे इसका भी तो ख्याल रखना पड़ता है.
मेरा मानना है की आप दिन मैं चाहे २ लेख़ पढ़ें लेकिन टिप्पणी लेख़ पढके करें.
अरे समीर जी यह क्या कह दिया टिप्पणी का ऑप्शन बन्द कर दें . उनका क्या होगा जो अपने ब्लॉग पे दूसरों न्योता देने के लिए टिप्पणी किया करते हैं.?
देख के अच्छा लग रहा है, कोई भी ब्लोगर इस पोस्ट पे बग़ैर पढ़े टिप्पणी नहीं दे रहा.
@ डॉ अनवर जमाल ,
ReplyDeleteआपका व्यंग्य समझ सकता हूँ अनवर भाई ! हम में से सब अपने अपने उद्देश्य को ठीक कहते हैं मगर यह ठीक माना तब जायेगा जब आम पाठक उसे स्वीकार कर ले !
शुभकामनायें आपको !
@दीपक बाबा,
ReplyDeleteयही त्रासदी है यार :-))))
@ अमित शर्मा ,
ReplyDeleteसमस्या का निदान फिलहाल तो समझ नहीं आ रहा ...शायद कुछ लोग समय के साथ और कुछ अपना सब कुछ लुटा कर समझें :-) !
मगर कहीं ऐसा न हो कि
"सब कुछ लुटा के होश में ए तो क्या हुआ"
तुम्हारे जैसे अच्छे लोगों से बहुत आशा है अमित ...ब्लॉग जगत में मन लगा रहता है !
:-))
आपकी बात पर विचार करते हुए समीर जी की टिप्पणी को ही कॉपी करने का मन कर रहा है :) वैसे देखिये आपको तो कितनी सारी टिप्पणी मिली हैं और सार्थक भी.)
ReplyDelete@ अज़ीज़ मोहतरम सक्सेना जी ! आपकी समझदारी पर शुब्हा मुझे कभी नहीं रहा ।
ReplyDeleteलेकिन हकीकत यह है कि मैंने व्यंग्य नहीं किया है ।
ब्लाग जगत की दर्जनों पोस्ट्स मेरी बात की सदाक़त की गवाह हैं ।
मैंने जिन ब्लाग्स पर कभी एक भी टिप्पणी नहीं की उन्होंने भी मुझे अपने ब्लाग पर याद किया है ।
* आम आदमियों के फैसले कभी दुरुस्त नहीं होते । यह बात साबित करने के लिए उनके चुने हुए जनप्रतिनिधियों पर एक नज़र डालना काफी है ।
¥ क्या वाकई वे सही लोगों को चुनते हैं ?
अगर शुरूआती 5-6 महीनों को छोड दिया जाए, तो उसके बाद के इन दो सालों में हमारा द्वारा की गई टिप्पणियाँ तो महज इतनी ही होंगी कि जिन्हे उँगलियों पर गिना जा सके....ब्लागिंग के लिए जो थोडा सा समय निकाल पाते हैं, प्रयास रहता है कि उसे पढने में ही खर्च किया जाए.
ReplyDeleteसतीषजी,
ReplyDeleteआपका आज का लेख टिप्पणियां देने की विवशता- आप 50 देते हैं और पलटकर 25-30 ही आ पाती हैं । तो क्या यहाँ ये टिप्पणी सही लगती है ?
"टिप्पणी- तेरे तीन काम,
लेजा, देजा, खाजा राम"
aisi baten pahle bhi kai baar dekha hai....aur abhi bhi doosre jagah pe
ReplyDeletemaujood hai....khair,
ek pathak ki is tarah ki koi majboori nahi hoti...
tippani ke maddenazar apki chinton par sameerji ka kathan-manniya hai...
aur apke dwara dr. jamal ko diye prtiuttar pe unka khandan "aam admi
dwara khas admi(chune hue pratinidhi) kabhi sahi sabit hua hai kya par hamari pratitippani ye
hai ki 'khas admi ki khas baten isi
blogwood me anami/benami/sunami/kshdmanami se adhik bawal machaye hue hain'
yse is post se main poori tarah sahmat hoon.....
pranam.
५० अथवा उससे अधिक जगह टिप्पणी करनी होती है तब कहीं २५ -३० टिप्पणियों का जुगाड़ होता हैं !
ReplyDeleteइत्ता घाटा सह कर भी आप ये दुकान चला रहे हैं? भाभीजी को पता चला तो आपका क्या होगा? कहीं राज भाटिया जी ने मेड-इन जर्मन भाभीजी को भेंट कर दिया होगा तो? आपका क्या होगा जनाबे आली?
प्रणाम!
रामराम.
सतीश भाई ,
ReplyDeleteआपकी दुआ क़ुबूल हुई ,दूसरों का पता नहीं पर मैंने बहुत मनोयोग से पढ़ा ये व्यंग :)
आलेख पर प्रतिक्रियाओं में , पर्दा प्रथा लगभग खत्म सी है सो अच्छा या बुरा जो भी हो आपके सामने होता है ! ऐसे में सच को कुबूलने में कोई बुराई नहीं ! पर...
घूंघट में प्रत्याशित सन्नारियों के स्थान पर कोई नरपुंगव आपकी खाल खींच जाए तो क्या कीजियेगा :)
टिप्पणियाँ कैसे मिलें इस पर भी लिखें, विवशता तो यह है कि अगर टीपा नहीं तो अपनी पोस्ट पढ़ने कौन आयेगा।
ReplyDeleteहम तो सबको चैट पर भी लिंक भेजते रहते हैं, पर फ़िर भी ज्यादा टिप्पणियाँ नहीं पाते हैं, हम टिप्पणी भुक्कड़ हैं :) हमारे पास भी आईये।
पचास हों उससे पहले अनवर भाई और भारतीय नागरिक जी का शुक्रिया अदा कर दूं ताकि वे और अन्य सभी टिप्पणीकार मेरे दिए गए लिंक पर पधार कर पुण्य के भागी बनें और कुछ पुण्य लाभ भाई सतीश सक्सेना जी को मिले और उन्हें उनके पावन उद्देश्य में सक्सेस हां मिले।
ReplyDeleteअब जो ब्लॉगवाणी के न जीवंत होने के कारण जो घाटा हो रहा है, उसकी भरपाई भी तो कहीं होनी ही चाहिए।
और लगे हाथ एक लिंक और आप सबकी सेवा में गोवा से प्रस्तुत है, इसे गोवा का छिलकेदार काजू समझ ग्रहण करें
सिनेमा का बाजार और बाजार में सिनेमा : गोवा से
व्यंग्य बढ़िया लगा.....
ReplyDeleteagar yeh vuang hai to ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------.kaushal
सतीश जी ये टिप्पणी बिना किसी आदान- प्रदान के भाव से लिख रही हूँ । आपने शायद बहुत से लोगों की भावनाओं को शब्दबद्ध किया है ।
ReplyDeleteएक बात तो है जब टिप्पणी का काउण्टर बढता है तो उतनी ही खुशी होती है जितनी किसी निवेशक को शेयर मार्केट के उछाल पर होती है , खासकर नये ब्लागर्स को । आपका व्यंग काफी रोचक लगा ।और आपकी रोहतक यात्रा किसी रही ।
जिसका करता है ,हर ब्लोगर इंतजार ,
ReplyDeleteलगता है आप भी है बेक़रार ,
यह लीजिये टिप्पणी रूपी पुरस्कार ,
पर लिखते रहिये सदाबहार .
सच को व्यंग्य के माध्यम से व्यक्त करना वास्तव में बहुत प्रभावशाली होता है.
ReplyDeleteहाँ ,टिप्पणियाँ देने में मैं भी बहुत कमज़ोर हूँ.
आदरणीय सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
किसी भी लेख की महत्ता बिना टिप्पणियों के बेकार लगती है
बहुत अच्छी बात उठाई है आपने इस पोस्ट के जरिये..
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteअब तक छप्पन
ReplyDelete@ क़ाबिले अहतराम भाई अविनाश वाचस्पति जी ! इस पोस्ट का सही उपयोग वास्तव में किया ही आपने है ।
आपकी सूझबूझ ने मुझे तेनालीराम की याद दिला दी ।
सच बात यह है कि इस पोस्ट में एक ब्लागर की मनोदशा और व्यथा का चित्रण बहुत ही नज़ाकत और नफ़ासत से किया गया है ।
¥ जो साहब ब्लाग्स पर रिसर्च कर रहे हैं उनके लिए तो यह विशेष रूप से एक दस्तावेज़ की हैसियत रखता है ।
जितनी बार इसे पढ़ा नई टिप्पणियों ने नया आनंद दिया ।
@ ताऊ रामपुरिया जी ! आपकी टिप्पणी पढ़कर ऐसा लगा मानो आप शब्दों के ज़रिए अंतर्मन को गुदगुदा रहे हों । आप जैसा एक भी मिल जाए तो 50 जगह कमेँट करना भी सफल है और यहाँ तो 40 से भी ज्यादा हैं ।
यक़ीन कीजिए सतीश जी घाटे मेँ नहीँ हैं ।
आपका भी शुक्रिया !
@ अविनाश जी ! मैं आ रहा हूँ आपके ब्लाग पर , बस खटका यही है कि कहीं मॉडरेशन न लगा हो वहाँ भी ?
bina pura padhe main tippani kabhi nahin likhti aur vichar hamesha mere apne hote hain.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी पोस्ट ,
ReplyDeleteमुझे समझ में नही आता की आखिर टिप्पड़ी कैसे आप के लेख की गुणवत्ता तय कर सकती है .
ऐसी ही एक पोस्ट डा. दिव्या जी ने भी लिखी थो तो बहुत से तो यही भी कर गए की महिलाओ को टिप्पड़िया ज्यादा मिलती है .
मैं रोज बहुत सी पोस्ट पढता हू पर टिप्पड़ी कुछ पर ही करता हू . जब मुझे लगता है की मेरे सुझाव की जरुरत है . बाकि सब का अपना अपना नजरिया है
चिढ़ाया तो आपने खूब, और इसके अंत में ये एक व्यंग्य है लिखकर तो आपने हमें पूरी तरह से जला-भुना दिया|
ReplyDelete...
..
.
और हाँ पूरा पढ़ा है|
@ अभिषेक मिश्रा ,
ReplyDeleteहर व्यक्ति की लेखन शैली और विषय वस्तु अलग होने के कारण एक पोस्ट अथवा एक वाक्य के आधार पर राय कायम नहीं होनी चाहिए ! मेरा अनुरोध है की आप जैसे लेखक को, किसी के बारे में, राय कायम करने में अधिक विचार करना चाहिए !
आज आपका ब्लॉग देखा , आप बेहतर और अलग कार्य कर रहे हैं ! हार्दिक शुभकामनायें !
सतीश जी बिलकुल सही कहा आपने. खाश करके नए लेखक अगर कहीं जा कर टिपण्णी ना दे तो शायद ही कोई इनके ब्लॉग की तरफ मुड़े, लेकिन अगर वही अगर महिला हुई तो तब तो बल्ले बल्ले .....वही धाकड़ महाराजों के पोस्ट आते ही धडाधड लोग हाजिरी लगा देते है . इन टिप्पणियों का गड़बड़झाला तो है...
ReplyDeleteसतीश भाई आप जो भी कहे । पर मुझे तो लगता है कि बिन टिप्पणि सब सून । सोचिये कि आपने लिखा महनत से औ रएक भी टिप्पणि नही आई कितने हतोत्साहित होते हैं आप आप का पता नही मै तो हो जाती हूँ । मै पचास तो नही पर हां 25 -30 तो दे ही देती हूँ । पढती भी हूँ चाहे टिप्पणी एं वें ही लगे ।
ReplyDeletesir
ReplyDeletebahut sahi likha hai
kya baat kahi hai ..
regards
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
Satish ji!
ReplyDeleteblog par jaakar padhna to padta hai...... han jo lekh bahut bade aakar ke hote hain unka printout lekar fursat mein padhti hun....
achha laga to tipni dene mein kya harz!.
..jahan achha nahi lagta wahan shayad hi koi tipani karta hoga...
...main to yahi kahungi pasand apni-apni...
आपका यह लेख एक आईना भी है और सीखने वालों के लिए भी इसमें बहुत कुछ है। अपनी यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के लिए आज हम यह लेख पेश कर रहे हैं।
ReplyDeleteकृप्या निम्न लिंक पर आकर अपनी राय और अनुमति अवश्य दें।
धन्यवाद !
‘टिप्पणी का सच जानता है बड़ा ब्लॉगर'
सतीश जी ....क्या सच में आप लोग मिल कर हम जैसो को इस ‘टिप्पणी ...के माया जाल से बाहर निकाल सकते है क्या ? क्या सच में ऐसा कुछ हो सकता है ...कि हम सब एक मंच पर १ साथ हो ..बिना किसी स्वार्थ के ....ऐसा कुछ हो सकता है क्या ?
ReplyDelete