Sunday, June 1, 2008

खंडित विश्वास

सारा जीवन जिया दर्द में
पीड़ा बैठ गई तनमन में
जैसे प्यार दे रहीं मुझको
कैसे खुशियाँ सह पाऊँगा
अब तो जैसे वर्षों से ना , युग युग से नाता पीड़ा का
रिश्ता मधुर बन गया दुःख से इसके बिन अब जीना क्या

अटूट रिश्ता है चोटों से
जख्मों को सहलाना क्या
गहरे घाव ह्रदय में लेकर
खिल खिल कर हँस पाना क्या
मैं क्या जानू जख्मीं होकर घाव भरे भी जाते हैं
छेड़ छाड़ मीठी झिड़की , आलिंगन का सुख होता क्या

कैसे झेलूँ प्यार तुम्हारा
टूटा मन शीशे जैसा
हर मीठी नज़रों के पीछे
प्यार छिपा ! शंकित मन है
खंड - खंड विश्वास हुआ है मोहपाश मैं बंधना क्या !
मेरे एकाकी जीवन को मधुर हास से लेना क्या !

बहुत मनाऊँ अपने मन को
पर विश्वास कहाँ से लाऊं
तेरी बाँहों का सम्मोहन
क्यों बेमानी लगता है
लगता मेरा बिखरा मन अब कभी नहीं जुड़ पायेगा
कैसे समझाऊँ मैं तुमको पीड़ा का सुख होता क्या

6 comments:

  1. वाह सतीश जी .......... कमाल की रचना है ये ......... दुख से, दर्द से, और चोट से इंसान का अट्टू रिश्ता बन जाता है ....... फिर वो दवा का काम करने लगते हैं ......... किसी का आलिंगन सर्प पाश जैसे लगता है .......... बहुत ही लाजवाब रचना है ....... शुक्रिया इस रचना को पढ़वाने के लिए और मेरे ब्लॉग पर आ कर मुझे अनुग्रहित करने के लिए ........

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  2. वाह!
    हैं सबसे मधुर वे गीत जिन्हें हम ...

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  3. कैसे झेलूँ प्यार तुम्हारा
    टूटा मन शीशे जैसा
    हर मीठी नज़रों के पीछे
    प्यार छिपा ! शंकित मन है
    खंड - खंड विश्वास हुआ है मोहपाश मैं बंधना क्या !
    मेरे एकाकी जीवन को मधुर हास से लेना क्या

    ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं सर!

    सादर

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  4. कैसे समझाऊँ मैं तुमको पीड़ा का सुख होता क्या

    बहुत बढ़िया...
    पीड़ा का भी अपना सुख है...

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  5. bahut prabhaavotpadak bhaav abhivyakti hai tootTe dil ki, dard ki, gam ki, chubhan ki, vishwas ghat ki.

    sab kuchh samait diya thode se hi shabdo me.

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- सतीश सक्सेना

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