इस पृष्ठ पर लिखी अधिकांश पंक्तियाँ, मेरे १३ वर्षीय , किशोर विद्यार्थी बेटे के उलझन भरे प्रश्नों के उत्तर तथा एक पिता के सुझाव हैं ! ज्ञात हो की यह कविता १९९३ में लिखी गई थी !
समाज की बुराईयों तथा अन्याय के खिलाफ लड़ने की एक अतिरिक्त इच्छा मेरे अन्दर शुरू से थी, उस दर्द की परिणिति इन रचनाओं के माध्यम से हुई! मगर कभी प्रसिद्धि की इच्छा नही थी इसलिए यह कवितायें डायरी में बंद रहीं ! गूगल ट्रांसलिटरेशन एवं ब्लोगिंग के कारण यह सम्भव हुआ ! और वो कवितायें आपके सम्मुख आ पा रहीं हैं, अगर पसंद आयें तो लेखन सफल मानूंगा !
सदियों का खोया स्वाभिमान
वापस दिलवाना है इनको ,
हम लोगों द्वारा ही बोये
काँटों से मुक्ति मिले इनको
ठुकराए गए भाइयों का ,
अधिकार दिलाने आ आगे ,
अधिकार किसी का छीन अरे,क्यों लोग मनाते दीवाली?
कुछ कार्य नया करने आओ
आओ नवयुग की संतानों
अपने समाज में व्याप्त रहीं
इन बुरी रीतियों को जानों
हो शादी विवाह मानवों में,
जाति बन्धन का नाम मिटे ,
रूढ़ि बन्धन में बंधे बंधे , क्यों लोग मनाते दीवाली ?
बच्चों मानवकुल ने अपने
कुछ लोग निकाले घर से हैं !
बस्ती के बाहर ! जंगल में ,
कुछ और लोग भी रहते हैं !
निर्बल भाई को बहुमत से ,
घर बाहर फेका है हमने !
आचरण बालि के जैसा कर क्यों लोग मनाते दीवाली?
घर के आँगन में लगे हुए
कुछ वृक्ष बबूल देखते हो !
हाथो उपजाए पूर्वजों ने ,
कांटे राहों में, देखते हो !
काटो बिन मायामोह लिए,
इन काँटों से दुःख पाओगे
घर में जहरीले वृक्ष लिए , क्यों लोग मनाते दीवाली ?
आओ हम शक्ति आजमाएं
उन दुर्योधनों से लड़ते हैं !
जो निर्बल, बाल ,ब्रद्ध, नारी
कुल को अपमानित करते हैं
रक्षित बन इनके जीवन में ,
तुम पुण्य कमाओगे भारी
शक्ति का करके दुरुपयोग , क्यों लोग मनाते दीवाली ?
......क्रमश
समाज की बुराईयों तथा अन्याय के खिलाफ लड़ने की एक अतिरिक्त इच्छा मेरे अन्दर शुरू से थी, उस दर्द की परिणिति इन रचनाओं के माध्यम से हुई! मगर कभी प्रसिद्धि की इच्छा नही थी इसलिए यह कवितायें डायरी में बंद रहीं ! गूगल ट्रांसलिटरेशन एवं ब्लोगिंग के कारण यह सम्भव हुआ ! और वो कवितायें आपके सम्मुख आ पा रहीं हैं, अगर पसंद आयें तो लेखन सफल मानूंगा !
सदियों का खोया स्वाभिमान
वापस दिलवाना है इनको ,
हम लोगों द्वारा ही बोये
काँटों से मुक्ति मिले इनको
ठुकराए गए भाइयों का ,
अधिकार दिलाने आ आगे ,
अधिकार किसी का छीन अरे,क्यों लोग मनाते दीवाली?
कुछ कार्य नया करने आओ
आओ नवयुग की संतानों
अपने समाज में व्याप्त रहीं
इन बुरी रीतियों को जानों
हो शादी विवाह मानवों में,
जाति बन्धन का नाम मिटे ,
रूढ़ि बन्धन में बंधे बंधे , क्यों लोग मनाते दीवाली ?
बच्चों मानवकुल ने अपने
कुछ लोग निकाले घर से हैं !
बस्ती के बाहर ! जंगल में ,
कुछ और लोग भी रहते हैं !
निर्बल भाई को बहुमत से ,
घर बाहर फेका है हमने !
आचरण बालि के जैसा कर क्यों लोग मनाते दीवाली?
घर के आँगन में लगे हुए
कुछ वृक्ष बबूल देखते हो !
हाथो उपजाए पूर्वजों ने ,
कांटे राहों में, देखते हो !
काटो बिन मायामोह लिए,
इन काँटों से दुःख पाओगे
घर में जहरीले वृक्ष लिए , क्यों लोग मनाते दीवाली ?
आओ हम शक्ति आजमाएं
उन दुर्योधनों से लड़ते हैं !
जो निर्बल, बाल ,ब्रद्ध, नारी
कुल को अपमानित करते हैं
रक्षित बन इनके जीवन में ,
तुम पुण्य कमाओगे भारी
शक्ति का करके दुरुपयोग , क्यों लोग मनाते दीवाली ?
......क्रमश
आप बेहतर लिखते हैं. बस लिखते रहिये. और क्या कहूँ.
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उल्टा तीर
शुक्रिया अमित !
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