यह ख़त मैंने इरफान को "टूटी हुई बिखरी हुई" ब्लाग पर दिनांक ११-६ -०८ को छपे बीकानेर का एक संस्मरण के जवाब में लिखा है ! यह ख़त बहुत तकलीफ से लिखा है सो चाहा की अपने ब्लाग पर अन्य भाइयों के लिए प्रकाशित करूं शायद इससे कुछ लोगों का भला हो ! मुझे आप सबसे, सहमति चाहिए , कृतार्थ हूँगा !
इरफान भाई !
"अलाउद्दीन खिलजी मुसलमान था परन्तु दयालु था !" निस्संदेह यह तोडे मरोड़े भारतीय इतिहास का एक हिस्सा है जो इस देश के बच्चे बचपन से पढते चले आ रहे हैं ! संकीर्ण बुद्धि के हिंदू विद्वानों द्वारा लिखे गए इस कुत्सित इतिहास के वदौलत ही, हम दोनों भाई प्यार के साथ, सच्चे मन से हंस भी नही पाते हैं. इस इतिहास में हर मुसलमान बादशाह को निर्दयी तथा कट्टर व हर हिंदू राजा को आदर्श बताया गया ! बालमन इसी इतिहास को सही मान कर आचरण करने लगा जिसकी परिणिति स्वरूप आप जैसे भारत पुत्र को भी अपने देश में अपमान झेलना पड़ा !
अशिक्षा और असहिष्णुता ने इस देश के दोनों बच्चों का बहुत नुकसान किया है ! खासतौर पर मुस्लिम भाई अविश्वास और असुरक्षा के वातावरण में न केवल रह रहे हैं बल्कि उन्हें बार-बार अग्निपरीक्षा भी देने को मजबूर किया जाता रहा है कि यह देश उनका भी है !
हजारों जातियों वाले इस देश में अपनी जाति और कौम का साथ देते, हजारों स्वाभाविक उदाहरण हैं ! मगर मुस्लिम उदाहरण हमें नागवार लगते हैं ! मोहम्मद शुएब को आई पी एल में खेलते देख लाखो हिन्दुओं ने तालियाँ बजाई तो कोई बात नहीं मगर इस टूर्नामेंट से पहले अगर कोई, किसी भारतीय मुस्लिम को पाकिस्तान - ऑस्ट्रेलिया मैच में शुएब की तारीफ में तालियाँ बजाते देखता, तो भवें तन जाती !
हम शिक्षित हिन्दुओं व तथाकथित साहित्यक विद्वानों का यह दायित्व बनता है कि बहुमत में सामाजिक चेतना जगाकर सही बात लोगों को बताने का प्रयत्न करें, खास तौर पर मासूम बच्चों को इस ग़लत इतिहास पढने से रोकें ! जिससे हमारा भविष्य गर्व से आगे बढ़ सके ! लगभग १३ वर्ष पहले एक कविता लिखी थी शायद आपको पसंद आए !
जाति पांति और भेदभाव
के नाम चढ़े भगवान भी
नास्तिक आज बचाने जाते जन्मभूमि श्रीराम की !
राजनीति के लिए ख़रीदे
जाते हैं भगवान भी
रामनाम को बेच रहे हैं धर्म के ठेकेदार भी !
अन्तिम सच को भूल
फिरें इतराते झूठी शान में
धर्म आड़ में लेकर लड़ते क़समें खाते राम की !
मानवता की बली चढाते
सीना ताने खून बहाते
रक्त होलिका खेलें, फिर भी गाते महिमा राम की !
दिल में घ्रणा समेटे मन
में बदले की भावना लिए
राज्यपिपासु खोजने जाते, जन्मभूमि श्रीराम की !
परमपिता परमात्मा की भी
जन्मभूमि सीमित कर दी
मां शारदा निकट नही आईं, करते बातें ज्ञान की !
प्राणिमात्र पर दया, धर्म
सिखलाता बारम्बार है
पवनपुत्र के शिष्य, लुटाते मर्यादा श्रीराम की !
सादर आपका
सतीश
बहुत सुन्दर. मार्मिक.
ReplyDelete---
उल्टा तीर
बहुत खरी बात लिखी है सतीशजी,
ReplyDeleteइरफ़ान जी का पत्र मैने नही पडा किन्तु आपका जबाब सही निशाना है.
इरफान के ब्लाग पर लिखे लेख के जवाब मैं यह पत्र लिखा गया है . वह पत्र आप यहाँ
ReplyDeletehttp://tooteehueebikhreehuee.blogspot.com/2008/06/blog-post_11.html पर पढ़ सकते हैं ! काश हम सब ब्लागर इस पर एक मजबूत बहस छेड़ कर हम अपने भाइयों का दर्द में राहत दे सकें !
सतीश जी आपका आह्वान सराहनीय है और आपकी सम्वेदंशीलता के अनुरुप ही है किंतु सामाजिक धारणाओँ को केवल इंटरनेट पर हमारे-आपके अभियान चलाने से नहीँ बदला जा सकता, आतँकवाद जो फैला रहै है, वे अपने आप को इस्लाम के अनुयायी बताकर इस्लाम को बदनाम कर रहै हैँ, इस्लाम को उन लोगोँ से केवल इस्लाम के धर्माधिकारी ही बचा सकते हैँ, जनता की अवधारणायेँ बुध्दिवादियोँ के अनुसार नही बन सकतीँ उग्र परिणामोँ से ही बनती हैँ. मेर ब्लोग पर एक विचारणीय विषय है, उचित लगे तो उस पर लिख सकते हैँ.
ReplyDeleteसतीश भाई
ReplyDeleteबहुत अच्छे विचार हैं !
लाल जी गुप्ता
सतिशजी एक सच्चे राष्ट्रप्रेमी कि तरहां अन्याय के सामने आवाज़ उठाने के लिये हमारी ओर से धन्यवाद।
ReplyDeleteमैंने रविवार के लिए आपके ब्लॉग पढ़ने का तय कर रखा था ! पर अपने आपको रोक नही पाया ! और ऊपर से लेकर यहाँ तक
ReplyDeleteपढ़ चुका हूँ ! क्या गजब का लिखते हैं आप ? अब मैं आपके लेखन का मुरीद तो बन ही चुका हूँ ! मैं और कुछ भी टिपन्नी करूं उसके पहले आपको बधाई देने से स्वयं को नही रोक नही पा रहा हूँ ! क्रपय्या मेरी शुभकामनाए स्वीकार कर
मुझे अनुग्रहित करे !
Nameste Uncle,
ReplyDeleteThe poem 'भारत मां के ये मुस्लिम बच्चे !' is really super. I have read only this poem, when i have time then i will read others.
Thanks & Regards
Anoop K. Saxena
Bareilly
Sir,
ReplyDeletethese poem so simple & touchy.
I always to see you as my elder.
Hitender
काश ऐसा सच हर कोई बोल पाता और ऐसे जज्बातों को समझ पाता ..........एक और हैट्स ऑफ आपकी सोच को |
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