निम्न कविता की रचना इस देश से कुरीतियाँ व अस्पृश्यता मिटाने के प्रयास में शामिल होने हेतु लिखी गई थी (1992-93)! निस्संदेह यह मेरी सर्वोत्तम कविताओं में से एक है ! इसे स्वान्तः सुखाय ही लिखा था ! बहुत लंबा गीत है , कुछ लाइने निम्नलिखित हैं !
मानव कुल में ले जन्म, बाँट
क्यों रहे, अरे अपने कुल को ?
कर वर्ण व्यवस्था नष्ट,संगठित
कर पहले अपने कुल को ,
हो एक महामानव विशाल !
त्यागो यह भेदभाव भारी !
तुलसी की विह्वलता में बंध, क्यों लोग मनाते दीवाली !
हरिजन को सेवा करने के
बदले में नफरत देते हो ?
यह तो कुल में लक्ष्मण जैसा
क्यों पास नहीं बैठाते हो ?
सेवा सम्मानित कर न सके,
उपहास घृणा का पात्र बना ,
लक्ष्मण का सेवा भाव भूल , क्यों लोग मनाते दीवाली ?
मत भूलो रचनाकार प्रथम
श्री रामचरित रामायण के,
थे महापुरुष श्री बाल्मीकि
ऋषि,ज्ञानमूर्ति,रामायण के
हो शूद्र कुलोदभव,फिर भी
जगजननी को पुत्री सा समझा
उनके वंशज , अपमानित कर, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
बचपन से ही कक्षाओं में
गुणगान देश का सुनता था
गौतम,गाँधी से महापुरुष
अपनी शिक्षा में पढता था
गौतम ने छोड़ा राजपाट,
क्या यही न्याय दिलवाने को ,
अंगुलिमालों का हार पहन, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
गाँधी ने अपने जीवन में ,
कुछ माँगा देशवासियों से
चाहा दिलवाना हरिजन को
सामाजिक न्याय हिन्दुओं से
माँगा इस लज्जाजनक रूप से,
मुक्ति मिले इन दलितों को
बापू इच्छा को रौंद तले , क्यों लोग मनाते दीवाली ?
.....क्रमश
मानव कुल में ले जन्म, बाँट
क्यों रहे, अरे अपने कुल को ?
कर वर्ण व्यवस्था नष्ट,संगठित
कर पहले अपने कुल को ,
हो एक महामानव विशाल !
त्यागो यह भेदभाव भारी !
तुलसी की विह्वलता में बंध, क्यों लोग मनाते दीवाली !
हरिजन को सेवा करने के
बदले में नफरत देते हो ?
यह तो कुल में लक्ष्मण जैसा
क्यों पास नहीं बैठाते हो ?
सेवा सम्मानित कर न सके,
उपहास घृणा का पात्र बना ,
लक्ष्मण का सेवा भाव भूल , क्यों लोग मनाते दीवाली ?
मत भूलो रचनाकार प्रथम
श्री रामचरित रामायण के,
थे महापुरुष श्री बाल्मीकि
ऋषि,ज्ञानमूर्ति,रामायण के
हो शूद्र कुलोदभव,फिर भी
जगजननी को पुत्री सा समझा
उनके वंशज , अपमानित कर, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
बचपन से ही कक्षाओं में
गुणगान देश का सुनता था
गौतम,गाँधी से महापुरुष
अपनी शिक्षा में पढता था
गौतम ने छोड़ा राजपाट,
क्या यही न्याय दिलवाने को ,
अंगुलिमालों का हार पहन, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
गाँधी ने अपने जीवन में ,
कुछ माँगा देशवासियों से
चाहा दिलवाना हरिजन को
सामाजिक न्याय हिन्दुओं से
माँगा इस लज्जाजनक रूप से,
मुक्ति मिले इन दलितों को
बापू इच्छा को रौंद तले , क्यों लोग मनाते दीवाली ?
.....क्रमश
सुंदर अलग सा है ..लिखते रहे
ReplyDeleteबहुत सुंदर ! कुरीतियाँ , भेदभाव तभी दूर हो सकते हैं जब ऐसे विचार और रचनाएं मन को छूती हैं । लिखते रहिये ।
ReplyDeleteअनुषी
बहुत सुंदर ! कुरीतियाँ , भेदभाव तभी दूर हो सकते हैं जब ऐसे विचार और रचनाएं मन को छूती हैं । लिखते रहिये ।
ReplyDeleteअनुषी
बहुत अच्छा सतीशजी आपको नहीं लगता क्या कि कविता मैं कुछ अधिक ही कटुता है, अब छूआछुत की यह स्थिति नहीं है, अब तो शादियां भी वर्णभेद से ऊपर उठ्कर होने लगीं हैं, हां कविता व भाव दोनों श्रेष्ठ हैं, आचरण मैं भी इनका समावेश होगा एसी आशा है. मेरे ब्लोग पर विजट करें-
ReplyDeletewww.rashtrapremi.blogspot.com
सार्थक विषय पर दिल छूनेवाली रचना है--ये छुआछूत ,भेदभाव सब समाज के ठेकेदारों का दिया मुलम्मा है।
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