लगभग १५ दिन कीबोर्ड से दूर रहूँगा , शायद ब्लागजगत की टिप्पणियों से और पोस्ट से भी वंचित मैं , कुछ दिन शांत रहकर अपनी मूर्खताओं और कमियों के बारे में सोंचता हूँ जो मैंने ब्लाग लिखते समय की हैं ! कीबोर्ड से दूर रहने के कारण यह और भी आसान होगा !
ब्लाग लेखन में कम से कम दो बार ऐसा महसूस हुआ की मैंने गलती की अथवा भावावेश में गलत लिखा ! मगर लिखने और बोलने के बाद परिवर्तन की गुंजायश कम रहती है ! सो क्रास फिंगर इंतज़ार करता रहा कि लोग क्या कहेंगे !
आश्चर्य ! लोगों ने इन गलतियों पर ध्यान नहीं दिया शायद इसलिए कि यहाँ ध्यान से कम ही पढ़ा जाता है ! और जिन्होंने पढ़ा भी होगा उन्होंने मेरे प्रति मित्र भाव के कारण महत्व नहीं दिया !
सोचता हूँ १५ दिन के इस ब्लॉग मौन के दौरान अपने को खोजने का प्रयत्न करुँ और शायद विदेश प्रवास में यह और भी आसान होगा !शायद भविष्य में कुछ और सुकून के लायक काम कर सकूं !!
आप सब को सादर नमस्कार !!
Friday, May 14, 2010
Thursday, May 13, 2010
एक नन्हे दोस्त का आपरेशन, जिसमें मेरा साथ देने वाला कोई नहीं था - सतीश सक्सेना
कुत्तों की एक दोस्त संस्था ,"Friendicoes" डिफेन्स कालोनी फ्लाईओवर के नीचे कार्यरत थी , वहाँ के व्यवस्थापक गौतम को फोन लगा कर आपातकालीन सहायता की मांग की , उन्होंने तुरंत एम्बुलेंस की व्यवस्था कर भेजना स्वीकार किया ! लगभग १ घंटे इंतज़ार करने के बाद एम्बुलेंस पार्क में पंहुच चुकी थी ! चिंताजनक मिनी को अपनी गोद में उठाकर एम्बुलेंस तक ले जाते समय मुझे पार्क में बैठे लोग विचित्र नज़र से देख रहे थे !
शायद मणिपुरी की डॉ देवी, ने देखते ही कह दिया कि इसके बच्चे पेट में मर जाने के कारण, जहर फैलने का खतरा है !आपरेशन तुरंत करना होगा !ओपरेशन टेबल पर उसे बेहोशी का इंजेक्शन देते समय , जिस तरह से मिनी मुझे देख रही थी वह मैं कभी नहीं भूल सकता ! आपरेशन के दौरान मैंने टेलीफोन पर अपने बॉस और सहकर्मियों को "मेरी एक दोस्त का आपरेशन है अतः आफिस नहीं आ सकता ...हाँ ...कुतिया सुनकर.. मेरा साथ देने कोई नहीं आया !
लगभग १५ दिन मिनी उस हास्पिटल में रही , इस दोस्त के कारण , मेरा वहाँ जाना नियमित ही रहा ! इस बीच में वहां जीवों के प्रति लगाव रखने वाले कितने ही लोगों से मुलाक़ात हुई ! हास्पिटल से मिनी को लाने के लिए मैं अपनी गाड़ी और पार्क में भ्रमण करने वाले पड़ोसी मित्र राजपाल को लेकर वहाँ पंहुचा ! गरीब मिनी जो कभी चलती गाडी में नहीं बैठी थी ,घबराहट में उसने पिछली पूरी सीट गंदी कर दी ! दुबारा गाडी लेकर हॉस्पिटल जाकर सीट साफ़ कराई, इस बीच हमारे वे मित्र अपना माथा पकड़ कर, मेरी हरकतों के साक्षी बने रहे ! बहरहाल लगभग १५ दिन अस्पताल में रहने के बाद, मिनी को जब वापस उसी पार्क में लाकर बाहर छोड़ा तो एक कोने से दूसरे कोने में उसका उछल उछल कर दौड़ते हुए देखना ,आकर मुझे चाटना, मेरी सारी थकान, मेहनत और पैसे का खर्च भुला चुका था !
निदा फाजली का एक शेर मुझे बहुत पसंद है , आपकी नज़र कर रहा हूँ , गौर से पढियेगा !
"घर से मस्जिद है बहुत दूर,चलो यूं करलें
किसी रोते हुए बच्चे को, हंसाया जाए "
Tuesday, May 11, 2010
गोपाल विनायक गोडसे (Gopal Godse ) के साथ एक दिन - सतीश सक्सेना
अपने कैमरे के साथ की यादें लिखते समय ,आदरणीय गोपाल गोडसे की याद आ गयी ! वह जब भी दिल्ली आते थे मुझे अपना दोस्त कहते हुए, मिलना न भूलते !महात्मा गांधी की हत्या में शामिल, इस शख्शियत से पहली मुलाकात ११-३-१९९१ में दिल्ली में हुई थी ! पहली मुलाकात में ही लगभग 73 वर्षीय,मगर मजबूत इच्छा शक्ति का यह वृद्ध व्यक्ति, मुझे अपनी विलक्षण विद्वता से आसानी से, प्रभावित कर लेगा, यह सोचा भी न था ! मुझे सिविल इंजिनियर जान कर उनका पहला प्रश्न था कि क्या आप इस देश के पहले इंजिनियर का नाम बताएँगे ?



१९९१ में लगभग 73 वर्ष के इस जवान ( अब दिवंगत )के साथ, इतिहास की छिपी परतों का उनका मूल्यांकन और शुद्ध हिन्दी का उच्चारण और देशभक्ति आज भी नहीं भुला पाया हूँ !
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Monday, May 10, 2010
निकोन डी -९० की निगाह में, मैं और मेरी गर्ल फ्रेंड -सतीश सक्सेना

साथ का फोटो टिन्नी के साथ का है ! हम दोनों में उम्र का फर्क सिर्फ ५३ साल का है ! मगर फिर भी हम अच्छे दोस्त हैं, दोनों एक दूसरे का साथ बहुत पसंद करते हैं ! दिल करता है कि एक दूसरे की ऊँगली पकडे सारे दिन मॉल से बाहर ही न निकलें मगर सामान भी क्या क्या घर ले जाएँ ...?? हर चीज पर मन ललचाता है ....अगर सब कुछ ले लिया तो घर जाकर हर हालत में डांट तो पड़नी ही है !
निकोन D-90 मशीन और सिगमा 50mm F-1.४ EX लेंस कम्बीनेशन में अपर्चर १.४,शटर स्पीड १/१५ सेकंड ,कलर टेम्प्रेचर ५००० केल्विन ,के कारण ,साधारण टयूब लाइट के प्रकाश में खिंचा यह फोटो ( ऊपर }अच्छा बन पड़ा है !
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Saturday, May 8, 2010
यह हमारे बुज़ुर्ग -सतीश सक्सेना
आज के समय में ,जब मैं घर के ६५-७० वर्षीय बुजुर्गों, को मोहल्ले की दुकान पर ही खड़े होकर, खरीदे गए सामान में से ,जल्दी जल्दी कुछ खाते हुए देखता हूँ तो मुझे अपने माता पिता याद आते हैं कि काश वे लोग होते और मुझे उनकी सेवा का मौका मिला होता यकीनन वे एक सुखी माता पिता होते ! मगर मुझ अभागे की किस्मत में यह नहीं लिखा था ..
और क्या अपना खून देकर आपको सींचने वाली माँ की स्थिति कहीं ऐसी तो नहीं ? अगर हाँ तो निश्चित मानिए आपके साथ इससे भी बुरा होगा !
Friday, May 7, 2010
चला बिहारी ब्लागर बनने ....सतीश सक्सेना
आप जो भी हैं मगर अपनी तमाम मानवीय कमजोरियों के बावजूद यहाँ लिखते हुए हजारों से, वाकई अच्छा और कुछ अलग सा लिखते हो अतः आप कम समय में ही अपनी अलग पहचान बनाने में समर्थ हुए हो !
चूंकि ब्लागजगत में कमेंट्स की इज्ज़त अधिक होने के कारण कोई किसी का लिखा ध्यान से नहीं पढता अतः लेखन का महत्व बहुत कम है सो स्थापित होने में हो सकता है जरूरत से अधिक समय लगे ! मगर आपकी शब्द सामर्थ्य की तारीफ़ करनी होगी जिसने बिहारी बोली को ब्लाग जगत में एक नया आयाम दिया है .......यकीनन इस समृद्ध बोली को लोकप्रिय बनाने में आप जैसे लोगों का बहुत बड़ा हाथ होगा !
शेष भारत में, बिहारी ( भैया ) की विनम्रता तथा मेहनत का तथाकथित बुद्धिविकसित और टाई सुशोभित विद्वानों द्वारा , आसानी से मज़ाक उड़ाते देखा जा सकता है !
जहाँ इस मधुर भाषा को बिना ध्यान से समझे, अनपढ़ों की भाषा बताने में कोई देर नहीं लगाते , इन विद्वानों के बीच, ठेठ बिहारी में कोई ब्लाग लेखन शुरू करे, सुखद विस्मय का विषय है ! अपनापन,शिष्टता से परिपूर्ण इस मधुर भाषा और ऐतिहासिक गौरवशाली संस्कृति को मेरा सादर प्रणाम !
इस प्यार की भाषा में योगदान के लिए , मेरी एक बार फिर हार्दिक शुभकामनायें और आशीर्वाद ( अगर मुझसे उम्र में छोटे हैं तो )
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Thursday, May 6, 2010
मेरी नयी फोटो मशीन Nikon SLR - D90 -सतीश सक्सेना
बहुत वर्षों के बाद एक अच्छे कैमरे से फोटो खींचना एक सुखद अनुभव रहा ! बचपन से पापा की फोटोग्राफी से प्रभावित ,गौरव ने जब यह कैमरा ख़रीदा तो चेहरे से खुशी और उत्तेजना साफ़ झलक रही थी ! निकोन डिजिटल सिंगल लेंस रिफ्लेक्स कैमरा D-90 , 50mm ऍफ़ १.४ लैंस , निकोन १८-२०० mm जूम लैंस के साथ यह कैमरा किसी भी फोटोग्राफर के लिए गर्व का कारण हो सकता है !
1970-72 के वे दिन जब मैंने पहला कैमरा ख़रीदा था ! एग्फा -III कैमरा उन दिनों लगभग ८० रूपये में मिला था ! बदायूं में शायद पूरे मोहल्ले में, सिर्फ मैं ही कैमरा मालिक था और खास मौकों पर फिल्म डलवा , खटिया पर बैठाकर ,गुडिया और नीलू के फोटो खींच , फिल्म को धुलवाने बाज़ार भागना और अपने खींचे फोटो लेकर देखने और सबको दिखाना ही मेरी सबसे बड़ी हाबी थी !
कुछ समय बाद बाज़ार में आया आइसोली -I , खरीदना एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट था क्योंकि यह नवीनतम कैमरा क्लिक III से लगभग दूना महंगा था !
जिज्जी से लड़ झगड़ कर उन दिनों १५० रुपया निकलवाना आसान नहीं था मगर मेरे लिए वे बडबडाती हुईं , आखिर दे ही देतीं थी ! इस कैमरे को लेकर बदायूं के पुराने किले नुमा खंडहरों , टूटी पडी बावडियों और गाँव में बाग़ , नदी के फोटो मेरे विद्यार्थी जीवन की सुखद यादों में से एक हैं ! फिक्स शटर क्लिक III के मुकाबले , इस कैमरे से अपने हाथ से फोकस करने में गर्व महसूस होता था !
साइंस की बेहतरीन ईजादों में से एक , कैमरा उन दिनों सबकी पंहुच में नहीं था ! इसी कमी की वजह से आज भी ,मैं अपने आपको उन बदकिस्मत लोगों में से एक गिनता हूँ जिनके पास अपने माता पिता का कोई फोटो नहीं है ! शायद इस अभाव को बड़ी से बड़ी उपलब्धि भी न भर पाए !
बचपन कभी आपको यह नहीं कह पाता कि उसे क्या चाहिए , अक्सर मैं आज भी छोटे बच्चों के फोटो खूब खींचता हूँ , आपको नहीं लगता कि ये मासूम मुस्कराहटें, इनके बड़े होने के बाद आपको कभी नहीं दिखेंगी ! क्यों न इन्हें हमेशा के लिए कैमरे में कैद करके रखा जाए ! यकीन मानिए यह आपको कुछ समय बाद बहुत सुकून देंगी ! और शायद हमारे बाद, परिवार के सदस्य , इन यादों को हमारे छोड़े निशान माने !
काश मेरे घर में कोई मेरा जैसा होता जो मेरे बचपन में मेरे माता पिता के फोटो खींचता ! इसी दुखद अहसास के चलते मैंने अपने शौक के दिनों में भी अपने बड़े बूढों के फोटो खूब खींचे ! और आज उनके न होने पर कहीं न कहीं मुझे यह संतोष रहता है कि फोटो के रूप में इन लोगों की यादें तो मेरे पास हैं ही !
1970-72 के वे दिन जब मैंने पहला कैमरा ख़रीदा था ! एग्फा -III कैमरा उन दिनों लगभग ८० रूपये में मिला था ! बदायूं में शायद पूरे मोहल्ले में, सिर्फ मैं ही कैमरा मालिक था और खास मौकों पर फिल्म डलवा , खटिया पर बैठाकर ,गुडिया और नीलू के फोटो खींच , फिल्म को धुलवाने बाज़ार भागना और अपने खींचे फोटो लेकर देखने और सबको दिखाना ही मेरी सबसे बड़ी हाबी थी !
कुछ समय बाद बाज़ार में आया आइसोली -I , खरीदना एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट था क्योंकि यह नवीनतम कैमरा क्लिक III से लगभग दूना महंगा था !
जिज्जी से लड़ झगड़ कर उन दिनों १५० रुपया निकलवाना आसान नहीं था मगर मेरे लिए वे बडबडाती हुईं , आखिर दे ही देतीं थी ! इस कैमरे को लेकर बदायूं के पुराने किले नुमा खंडहरों , टूटी पडी बावडियों और गाँव में बाग़ , नदी के फोटो मेरे विद्यार्थी जीवन की सुखद यादों में से एक हैं ! फिक्स शटर क्लिक III के मुकाबले , इस कैमरे से अपने हाथ से फोकस करने में गर्व महसूस होता था !
साइंस की बेहतरीन ईजादों में से एक , कैमरा उन दिनों सबकी पंहुच में नहीं था ! इसी कमी की वजह से आज भी ,मैं अपने आपको उन बदकिस्मत लोगों में से एक गिनता हूँ जिनके पास अपने माता पिता का कोई फोटो नहीं है ! शायद इस अभाव को बड़ी से बड़ी उपलब्धि भी न भर पाए !
बचपन कभी आपको यह नहीं कह पाता कि उसे क्या चाहिए , अक्सर मैं आज भी छोटे बच्चों के फोटो खूब खींचता हूँ , आपको नहीं लगता कि ये मासूम मुस्कराहटें, इनके बड़े होने के बाद आपको कभी नहीं दिखेंगी ! क्यों न इन्हें हमेशा के लिए कैमरे में कैद करके रखा जाए ! यकीन मानिए यह आपको कुछ समय बाद बहुत सुकून देंगी ! और शायद हमारे बाद, परिवार के सदस्य , इन यादों को हमारे छोड़े निशान माने !
काश मेरे घर में कोई मेरा जैसा होता जो मेरे बचपन में मेरे माता पिता के फोटो खींचता ! इसी दुखद अहसास के चलते मैंने अपने शौक के दिनों में भी अपने बड़े बूढों के फोटो खूब खींचे ! और आज उनके न होने पर कहीं न कहीं मुझे यह संतोष रहता है कि फोटो के रूप में इन लोगों की यादें तो मेरे पास हैं ही !
Wednesday, May 5, 2010
क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छिपी रहे ......सतीश सक्सेना
"इंशा अल्लाह -आप प्यारे से मासूम मनई हैं ,मुझे पसंद हैं ! आधी दुनिया में होते तो अब तक कम से कम एकाध बार लाईन भी मार चुके होते ...इसी पसंद के कारण "
डॉ अरविन्द मिश्रा का दिया हुआ उपरोक्त सर्टिफिकेट मानवीय कमजोरियों के होते अच्छा लगा, अरविन्द जी का कथन है कि अगर मैं अपनी इसी मासूमियत और ईमानदारी के साथ अगर महिला रूप में होता तो वे इस उम्र में भी कई बार लाइन मार चुके होते, मतलब हुजुर उम्र में अपने से ५-६ साल बड़ी महिलाओं पर भी लाइन मारने से नहीं चूकते !
इस उम्र में यह साफगोई, यह जानते हुए कि पिछले वर्षों में ही हिंदी समाज में लगभग ५०००० विद्वान् कीबोर्ड लेकर उनकी प्रतिद्वंद्विता में खड़े हैं , कुछ अधिक ही आत्मविश्वास दीखता है डॉ अरविन्द मिश्रा में ! इसीलिये बदनाम हो महाराज, सुधर जाओ !
हममे से अधिकतर महिला या पुरुष, प्रौढ़ावस्था तक पंहुचते पंहुचते अपनी हंसी,आनंद अभिव्यक्ति और वास्तविकता को छिपाने का प्रयत्न करने में सफल हो ही जाते हैं ! उसके बाद अगर कोई हमउम्र हँसते दिखा तो बस पेशानी पर बल और "यह भी कोई आदमी है " का भाव और अपने शानदार प्रभामंडल की ओर गर्व से देखना " हमने सालों से यह लुच्चई छोड़ रखी है और इसे देखो ...गन्दा आदमी हैं यह ..लिखता भी अजीब अजीब है ! इसे क्या पढना !
ब्लाग जगत की ईमानदारी देखनी हो तो एक द्विअर्थी या चटपटा वर्जित शीर्षक से एक पोस्ट लिखकर उसपर आये पाठकों की संख्या और कमेंट्स में फर्क का अंदाज़ लगाकर देखिये !
आज के समय ईमानदारी दुर्लभ होती जा रही है, ब्लाग जगत में भी स्पष्टवादिता को कौन झेल पाता है ? समाज द्वारा वर्जित विषय को नजदीक जाकर देखना और उस आनंद को महसूस करना हर मानव चाहता है मगर "लोग क्या कहेंगे " के कारण जो पहले हिम्मत करता "पकड़ा" जाये उसे गाली जरूर देंगे ! और अगर वह प्रौढ़ और स्पष्टवक्ता है तब तो इन सफेदपोश लफंगों द्वारा और भी अक्षम्य है !
डॉ अरविन्द मिश्रा का दिया हुआ उपरोक्त सर्टिफिकेट मानवीय कमजोरियों के होते अच्छा लगा, अरविन्द जी का कथन है कि अगर मैं अपनी इसी मासूमियत और ईमानदारी के साथ अगर महिला रूप में होता तो वे इस उम्र में भी कई बार लाइन मार चुके होते, मतलब हुजुर उम्र में अपने से ५-६ साल बड़ी महिलाओं पर भी लाइन मारने से नहीं चूकते !
हममे से अधिकतर महिला या पुरुष, प्रौढ़ावस्था तक पंहुचते पंहुचते अपनी हंसी,आनंद अभिव्यक्ति और वास्तविकता को छिपाने का प्रयत्न करने में सफल हो ही जाते हैं ! उसके बाद अगर कोई हमउम्र हँसते दिखा तो बस पेशानी पर बल और "यह भी कोई आदमी है " का भाव और अपने शानदार प्रभामंडल की ओर गर्व से देखना " हमने सालों से यह लुच्चई छोड़ रखी है और इसे देखो ...गन्दा आदमी हैं यह ..लिखता भी अजीब अजीब है ! इसे क्या पढना !
ब्लाग जगत की ईमानदारी देखनी हो तो एक द्विअर्थी या चटपटा वर्जित शीर्षक से एक पोस्ट लिखकर उसपर आये पाठकों की संख्या और कमेंट्स में फर्क का अंदाज़ लगाकर देखिये !
आज के समय ईमानदारी दुर्लभ होती जा रही है, ब्लाग जगत में भी स्पष्टवादिता को कौन झेल पाता है ? समाज द्वारा वर्जित विषय को नजदीक जाकर देखना और उस आनंद को महसूस करना हर मानव चाहता है मगर "लोग क्या कहेंगे " के कारण जो पहले हिम्मत करता "पकड़ा" जाये उसे गाली जरूर देंगे ! और अगर वह प्रौढ़ और स्पष्टवक्ता है तब तो इन सफेदपोश लफंगों द्वारा और भी अक्षम्य है !
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Monday, May 3, 2010
हमारा लेखन और ब्लाग जगत -सतीश सक्सेना
मुझे याद है, शंकित होने पर समाधान के लिए हमारा पहला प्रश्न "यह कहाँ लिखा है " होता था ! हमें अखबार में लिखे अनजान लेख़क के कहे पर अखंड विश्वास रहता था और हर उस सुझाव और समस्या समाधान पर एक श्रद्धा भाव रहता था जो प्रिंट मीडिया से मिलता था, हमारे देश में अज्ञानता और अशिक्षा के कारण, शायद आज भी कमोवेश स्थिति लगभग वैसी ही है !
ब्लाग और गूगल की मदद से आज कोई भी अपने आपको लेख़क सिद्ध करने में समर्थ है और यह लेखन जगत के इतिहास में एक लम्बी छलांग है और भाषा की सम्रद्धता के साथ साथ परस्पर स्नेहिक संवाद कायम कराने में भी बेहद कामयाब है !
हम किसी को भी पढ़ें ,मगर पढने से पहले जान लें कि हम किसे पढ़ रहे हैं ! बहुत से लोग यहाँ अपनी मौलिक मानसिक विकृतियाँ जाने अनजाने में प्रकाशित करने में कामयाब हैं !और हम अनजाने में, वाहवाही देकर, उन्हें प्रोत्साहित करते रहते हैं ! कितने लेखकों का पुस्तकालय के सामने बैठ या हाथ में किताबें पकड़ फोटो खिचवाना, उनकी विशिष्ट मानसिकता का जीता जागता प्रतीक है ! कुछ पुस्तक संग्रह करके ,बिना पढ़े शीघ्र विद्वान् बन ,इन मनीषियों से , मुझ अनपढ़ का ,कुछ भी सीखने का मन नहीं होता !
मगर ब्लाग पॉवर देखकर मैं कभी कभी विस्मित रह जाता हूँ ! संवेदना के स्वर नामक ब्लाग लिखने वाले चैतन्य और सलिल कमाल के मित्र हैं , भिन्न भिन्न शहरों में रहते हुए भी , एक साथ ब्लाग लिखना , एक साथ टीवी देखना , एक साथ लेखन से पहले शोध करना और प्रकाशित करना आपस में भिन्न स्वाभाव के बावजूद एक साथ ब्लाग जगत के लिए चिंतन और आम आदमी की तरफ से समाज को लेखन देना , निस्संदेह इनका बहुत बड़ा उपहार है !
ब्लाग और गूगल की मदद से आज कोई भी अपने आपको लेख़क सिद्ध करने में समर्थ है और यह लेखन जगत के इतिहास में एक लम्बी छलांग है और भाषा की सम्रद्धता के साथ साथ परस्पर स्नेहिक संवाद कायम कराने में भी बेहद कामयाब है !
हम किसी को भी पढ़ें ,मगर पढने से पहले जान लें कि हम किसे पढ़ रहे हैं ! बहुत से लोग यहाँ अपनी मौलिक मानसिक विकृतियाँ जाने अनजाने में प्रकाशित करने में कामयाब हैं !और हम अनजाने में, वाहवाही देकर, उन्हें प्रोत्साहित करते रहते हैं ! कितने लेखकों का पुस्तकालय के सामने बैठ या हाथ में किताबें पकड़ फोटो खिचवाना, उनकी विशिष्ट मानसिकता का जीता जागता प्रतीक है ! कुछ पुस्तक संग्रह करके ,बिना पढ़े शीघ्र विद्वान् बन ,इन मनीषियों से , मुझ अनपढ़ का ,कुछ भी सीखने का मन नहीं होता !
मगर ब्लाग पॉवर देखकर मैं कभी कभी विस्मित रह जाता हूँ ! संवेदना के स्वर नामक ब्लाग लिखने वाले चैतन्य और सलिल कमाल के मित्र हैं , भिन्न भिन्न शहरों में रहते हुए भी , एक साथ ब्लाग लिखना , एक साथ टीवी देखना , एक साथ लेखन से पहले शोध करना और प्रकाशित करना आपस में भिन्न स्वाभाव के बावजूद एक साथ ब्लाग जगत के लिए चिंतन और आम आदमी की तरफ से समाज को लेखन देना , निस्संदेह इनका बहुत बड़ा उपहार है !
जुड़वां न होते हुए दो वयस्क व्यक्तियों द्वारा जुड़वां भाइयों जैसा वर्ताव, मनोविज्ञान के क्षात्रों के लिए शोध का विषय हो सकता है !
सारी विसंगतियों के बावजूद, हिंदी ब्लाग जगत का भविष्य बहुत शानदार है , जो बिना नाम कमाने की इच्छा लिए, समाज के लिए लिखेंगे, लोग उन्हें याद रखेंगे और वे अपने निशान छोड़ने में निश्चित रूप से कामयाब रहेंगे !Sunday, May 2, 2010
क्या लिख रहें हैं आप ?? -सतीश सक्सेना
अगर किसी लेख़क के व्यवहार और व्यक्तित्व के बारे में जानना हो तो उसके कुछ लेख ध्यान पूर्वक पढ़ लें , उस व्यक्ति की मानसिकता और व्यवहार आपको उसके लेखन में से साफ़ साफ़ दिखाई देगा !
लोगों को प्रभावित करने के लिए लिखे लेखों पर चढ़ा कवर, थोडा ध्यान से पढने पर ही उतरने लग जाता है ! अपना चेहरा चमकाने की कोशिश में लगे लोग, खुशकिस्मत हैं कि ब्लाग जगत में ध्यान से पढने की लोगों को आदत ही नहीं है ! यहाँ तो यही होड़ है कि रोज एक लेख अवश्य लिखा जाये और हम शिखर के नज़दीक बने रहें और दूसरों पर मुस्कराते रहें !
इन महान लेखकों को शायद यह अंदाजा नहीं है कि जो कूड़ा वे यहाँ फैला रहे हैं यह अमर है ! लेखन और बोले शब्द अमर होते हैं और परिवार , समाज पर गहरा असर डालते हैं ! आप जो भी लिख रहे हैं, ऐसा नहीं हो सकता कि आपके बच्चे , और परिवार के अन्य सदस्य देर सवेर उसे नहीं पढेंगे , उस समय आपको पढ़कर और जानकर वही इज्ज़त और सम्मान आपको देंगे जिसको आपका लेखन इंगित करता है !
मेरा यह विश्वास है कि आने वाला समय बेहतर होगा , हमारी नयी पीढी यकीनन प्यार ,सद्भाव में हमसे अधिक अच्छी होगी अतः आज जो हम ब्लाग के जरिये दे रहे हैं, उसे एक बार दुबारा पढ़ के ही प्रकाशित करें ! कहीं ऐसा न हो कि आपको कुछ सालों के बाद पछताना पड़े कि यह कूड़ा मैंने क्यों लिखा था !
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सवाल आप दोनों का कम और चर्चाकारों का अधिक है, मुझे लगता है कि कहीं न कहीं आप लोगों के प्रसंशकों ने दो अलग खेमें बना डाले हैं, और उन खेमों में आप लोगों की रोज आरती हो रही है ! कैसे लोग हैं यह सब, जिन्होंने अपनी पीठ पर दो मनुष्यों का नाम लिख लिया और अब अखाड़े में दो दो हाथ करने को तैयार बैठे हैं ! शायद अंगरेजी भाषा के ब्लागर इसीलिये हमें हेय समझते हैं !
दुखित मन से
आपका"