बहुत वर्षों के बाद एक अच्छे कैमरे से फोटो खींचना एक सुखद अनुभव रहा ! बचपन से पापा की फोटोग्राफी से प्रभावित ,गौरव ने जब यह कैमरा ख़रीदा तो चेहरे से खुशी और उत्तेजना साफ़ झलक रही थी ! निकोन डिजिटल सिंगल लेंस रिफ्लेक्स कैमरा D-90 , 50mm ऍफ़ १.४ लैंस , निकोन १८-२०० mm जूम लैंस के साथ यह कैमरा किसी भी फोटोग्राफर के लिए गर्व का कारण हो सकता है !
1970-72 के वे दिन जब मैंने पहला कैमरा ख़रीदा था ! एग्फा -III कैमरा उन दिनों लगभग ८० रूपये में मिला था ! बदायूं में शायद पूरे मोहल्ले में, सिर्फ मैं ही कैमरा मालिक था और खास मौकों पर फिल्म डलवा , खटिया पर बैठाकर ,गुडिया और नीलू के फोटो खींच , फिल्म को धुलवाने बाज़ार भागना और अपने खींचे फोटो लेकर देखने और सबको दिखाना ही मेरी सबसे बड़ी हाबी थी !
कुछ समय बाद बाज़ार में आया आइसोली -I , खरीदना एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट था क्योंकि यह नवीनतम कैमरा क्लिक III से लगभग दूना महंगा था !
जिज्जी से लड़ झगड़ कर उन दिनों १५० रुपया निकलवाना आसान नहीं था मगर मेरे लिए वे बडबडाती हुईं , आखिर दे ही देतीं थी ! इस कैमरे को लेकर बदायूं के पुराने किले नुमा खंडहरों , टूटी पडी बावडियों और गाँव में बाग़ , नदी के फोटो मेरे विद्यार्थी जीवन की सुखद यादों में से एक हैं ! फिक्स शटर क्लिक III के मुकाबले , इस कैमरे से अपने हाथ से फोकस करने में गर्व महसूस होता था !
साइंस की बेहतरीन ईजादों में से एक , कैमरा उन दिनों सबकी पंहुच में नहीं था ! इसी कमी की वजह से आज भी ,मैं अपने आपको उन बदकिस्मत लोगों में से एक गिनता हूँ जिनके पास अपने माता पिता का कोई फोटो नहीं है ! शायद इस अभाव को बड़ी से बड़ी उपलब्धि भी न भर पाए !
बचपन कभी आपको यह नहीं कह पाता कि उसे क्या चाहिए , अक्सर मैं आज भी छोटे बच्चों के फोटो खूब खींचता हूँ , आपको नहीं लगता कि ये मासूम मुस्कराहटें, इनके बड़े होने के बाद आपको कभी नहीं दिखेंगी ! क्यों न इन्हें हमेशा के लिए कैमरे में कैद करके रखा जाए ! यकीन मानिए यह आपको कुछ समय बाद बहुत सुकून देंगी ! और शायद हमारे बाद, परिवार के सदस्य , इन यादों को हमारे छोड़े निशान माने !
काश मेरे घर में कोई मेरा जैसा होता जो मेरे बचपन में मेरे माता पिता के फोटो खींचता ! इसी दुखद अहसास के चलते मैंने अपने शौक के दिनों में भी अपने बड़े बूढों के फोटो खूब खींचे ! और आज उनके न होने पर कहीं न कहीं मुझे यह संतोष रहता है कि फोटो के रूप में इन लोगों की यादें तो मेरे पास हैं ही !
1970-72 के वे दिन जब मैंने पहला कैमरा ख़रीदा था ! एग्फा -III कैमरा उन दिनों लगभग ८० रूपये में मिला था ! बदायूं में शायद पूरे मोहल्ले में, सिर्फ मैं ही कैमरा मालिक था और खास मौकों पर फिल्म डलवा , खटिया पर बैठाकर ,गुडिया और नीलू के फोटो खींच , फिल्म को धुलवाने बाज़ार भागना और अपने खींचे फोटो लेकर देखने और सबको दिखाना ही मेरी सबसे बड़ी हाबी थी !
कुछ समय बाद बाज़ार में आया आइसोली -I , खरीदना एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट था क्योंकि यह नवीनतम कैमरा क्लिक III से लगभग दूना महंगा था !
जिज्जी से लड़ झगड़ कर उन दिनों १५० रुपया निकलवाना आसान नहीं था मगर मेरे लिए वे बडबडाती हुईं , आखिर दे ही देतीं थी ! इस कैमरे को लेकर बदायूं के पुराने किले नुमा खंडहरों , टूटी पडी बावडियों और गाँव में बाग़ , नदी के फोटो मेरे विद्यार्थी जीवन की सुखद यादों में से एक हैं ! फिक्स शटर क्लिक III के मुकाबले , इस कैमरे से अपने हाथ से फोकस करने में गर्व महसूस होता था !
साइंस की बेहतरीन ईजादों में से एक , कैमरा उन दिनों सबकी पंहुच में नहीं था ! इसी कमी की वजह से आज भी ,मैं अपने आपको उन बदकिस्मत लोगों में से एक गिनता हूँ जिनके पास अपने माता पिता का कोई फोटो नहीं है ! शायद इस अभाव को बड़ी से बड़ी उपलब्धि भी न भर पाए !
बचपन कभी आपको यह नहीं कह पाता कि उसे क्या चाहिए , अक्सर मैं आज भी छोटे बच्चों के फोटो खूब खींचता हूँ , आपको नहीं लगता कि ये मासूम मुस्कराहटें, इनके बड़े होने के बाद आपको कभी नहीं दिखेंगी ! क्यों न इन्हें हमेशा के लिए कैमरे में कैद करके रखा जाए ! यकीन मानिए यह आपको कुछ समय बाद बहुत सुकून देंगी ! और शायद हमारे बाद, परिवार के सदस्य , इन यादों को हमारे छोड़े निशान माने !
काश मेरे घर में कोई मेरा जैसा होता जो मेरे बचपन में मेरे माता पिता के फोटो खींचता ! इसी दुखद अहसास के चलते मैंने अपने शौक के दिनों में भी अपने बड़े बूढों के फोटो खूब खींचे ! और आज उनके न होने पर कहीं न कहीं मुझे यह संतोष रहता है कि फोटो के रूप में इन लोगों की यादें तो मेरे पास हैं ही !
आप इस फोटो मशीन का उपयोग जनहित से जुडी अनियमितताओं को खोजी रूप में उजागर करती फोटो के लिए भी करें ,इसके लिए मैं आपका सदा आभारी रहूँगा /
ReplyDeleteसर, जरा पैक पर देख कर बताइए क्या यह लिनुक्स (linux) और मैक (Mac OSX) कम्पेटिबल है ? दाम कितना है? लेंस किस मेक का है?
ReplyDeleteक्लिकIII से पहले क्लिकI आया था इसमें 120का रोल डलता था और 12 फ़ोटो खींचता था। बिना फ़्लैश के था। क्लिकIII में फ़्लैश अटेचमेंट की सुविधा थी।
ReplyDeleteयह शौक भी जुनुन की हद तक ही रहता है। इसके बाद तो कई आए और गए।
सतीश जी आपने पुरानी यादें ताजा करवा दी
आभार
@ honesty...
ReplyDeleteमेरा प्रयत्न होगा की मैं समय के साथ आपकी रूचि के कुछ फोटो पोस्ट कर सकूं !
@ गिरिजेश राव ,
कृपया निम्न लिंक पर एक निगाह डालें !
http://www.koppenburg.org/D90/
सामान्य दृश्यों में असमान्य देख लेने की कला जानते हैं फोटोग्राफर । ऐसे ही जीवन को भी निहारते रहें । शुभकामनायें ।
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteआप किन किन विधाओं में पारंगत हैं...जानकर रश्क हो रहा है...
पब्लिक सर्वेंट, लेखक, होम्योपैथ, फोटोग्रॉफर, समाजसेवक, घुमक्कड़ी के शौकीन....और इन सबसे पहले बेहतरीन इनसान...
बदायूं की बात सुनकर शत्रुघ्न सिन्हा का डॉयलॉग याद आ रहा है...जिओ, मेरे बदायूं के लल्ला...
जय हिंद...
सतीश जी,
ReplyDeleteअब हमने कैमरा-कैमरा खेलना शुरू किया है।
सतीश जी, आप तो बहुअयामी व्यक्तित्व के धनी निकले...साधुवाद.
ReplyDelete____________________
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com
ब्लॉग के लिए एक कैमरा खरीदवाने का जिम्मा आपको दिया जाता है।
ReplyDeleteसतीश जी, बहुत अच्छा लगा. वेसे आप जब युरोप मै आ ही रहे है तो क्यो ऎन वक्त पर इसे खरीद लिया, बाबा यहां एक से बढ कर केमरे आप की इंतजार कर रहे है, यानि एक ही मार्के के हजारो केमरे एक लाईन मै लगे है, आप उन्हे चला कर देख सकते थे ओर संतुष्टी होने पर ही उन्हे खरीद सकते थे, ओर आप को करीब २०% सस्ते मिलते यानि टेक्स फ़्रि, चलिये केमरा बहुत अच्छा लगा अब इस से सुंदर सुंदर चित्र खींच कर दिखाये तो मजा दुगना आयेगा
ReplyDeleteफोटोग्राफी का शौक और कैमरे का प्रयोग दिलचस्प होता है. कैमरे का महत्व बहुत अधिक है.
ReplyDeleteआपके कैमरे का चित्र बहुत खूबसूरत है. किस कैमरे से लिया है.
जहाँ जहाँ भी तसव्वुर ने रहनूमाई की
ReplyDeleteवहीं वहीं पे मुझे सूरत तेरी दिखाई दी.
Waah.. kitne ka pada ye bhi bata den sir mashal.com@gmail.com par
ReplyDeletemere yahan bhi vaise photography ka kaam hota aaya hai pichhle 50-55 salon se.. :)
वाह सक्सेना जी
ReplyDeleteललित भैया को पुरानी यादें लौटा दीं
ललित जी रूमाल भेजूं
नाइस पोस्ट
आग्फा क्लिक III
ReplyDeleteसतीश जी आपकी कहानी तो हमसे मिलती जुलती है ।
वैसे ये फोटोग्राफी का शौक है बड़ा प्यारा ।
आपने कैमरा भी बड़ा अच्छा लिया है । बस अब इंतज़ार रहेगा कुछ शानदार तस्वीरों का । बधाई ।
कैमरे के वारे थोड़ा और विस्तार से बताने की कृपा करें
ReplyDeleteलो जी. जिस कैमरे के बारे में शीर्षक में बता रहे हैं उसकी फोटो तो दिखाना ही भूल गए! पुराने कैमरों की फोटो क्यों लगाई हैं?
ReplyDeleteहम भी सोच रहे हैं एक ईओएस लेने के बारे में लेकिन घर में पड़े पांच पुराने कैमरों का क्या करें. पिछला तो तीन महीने पहले ही लिया था!
आजकल चीज़ें साली एक-दो साल में ही पुरानी हो जाती हैं.
कहाँ कहाँ से आप खोज के ले आते हैं बिसय... एकदम से ताजा अऊर खुस्बूदार... गुरुदेव! ई एक आँख का जादू का पिटारा देखाकर त आप nostalgic कर दिए... दुर हमहूँ अंगरेजी बोलने लगे आपका संगत में...
ReplyDeleteअरे ई का कमाल कर दिए आप!!! इन्ने हम कमेंट छापे, ओन्ने छपिओ गया… ई कमेंटवा रोकने वाला जंतरवा हटा लिए हैं का???
ReplyDelete@चला बिहारी ...भैया !
ReplyDeleteआज कुछ मूड ठीक हो गया लगता है ...कल तो काफी नाराज हो गए थे भाई से ... :-)
सर! एक बेहद नायाब और अनमोल विषय... मेरे कलेक्शन में एक पतला सा दिखने वाला हॉट शॉट कैमेरा भी था ..शायद याद हो आपको... जस्ट एम अॅण्ड शूट – खिट्टाक्क!! ये विज्ञापन करती थी ग़ज़ल गायिका चित्रा सिंह की पुत्री मोनिका चौधरी ( ईश्वर उसकी आत्मा को शंति देः पिछले दिनों आत्महत्या कर ली उसने)... बस वो भा गई और धनतेरस पर कैमेरा ख़रीद ही लिया. वो काली सफेद फोटोग्राफी से लेकर आज की डिजिटल फोटोग्राफी तक एक लम्बा सफर आपने फिल्म की तरह दिखा दिया... बस एक कसक रह गई… जाने अनजाने बच्चे, जानवर, फूल, प्रकृति, अपने पराए के बीच मेरी तस्वीरें बहुत कम हैं... तब समझ में आया कि ईश्वर की रचना तो देखती है, पर वो क्यों नहीं दिखाई देता... ख़ैर, पिछले महीने अपनी बिटिया को निकॉन कूलपिक्स दिया है लाकर, शायद उसके भी डैडी की फोटो वो बाहिफ़ाज़त सहेज पाए... एक बार फिर धन्यवाद सर!!!
ReplyDelete(इमोशन में ज़्यादा ही लम्बा कमेंट हो गया )…
@ लिनुक्स लिंक - आभार।
ReplyDeleteहमको पाप लगाइएगा का... आपसे नराज होने का त सवाले पैदा नहीं होता है... हमरा मूड त आपका पोस्टवे पढकर हरिअर हो जाता है...
ReplyDeleteअच्छा तो आपको छोटे बच्चो का फोटो लेंने अच्छा लगता है , ठिक है अब सोच रहा हूँ कि भी एकाध फोटो खिचवां ही लूँ आपसे आता हूँ जल्दी ही ।
ReplyDeleteमैने भी रो रो कर क्लिक ४ खरीदा था शायद १५० रु. का था . सन ८० की बात है .
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