Friday, May 14, 2010
समीरलाल, अनूप शुक्ल और ज्ञानदत्त -कहीं आप जाने अनजाने में इनके सैनिक तो नहीं बन गए ? -सतीश सक्सेना
35 comments:
चाचा जी मेरे मन की बात कही आपने दुनिया में हर व्यक्ति से कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है बात इसपे निर्भर करती है की हम क्या देखते है और क्या नज़रअंदाज करते है...रही बात हिन्दी सेवा की यह भी सही है कि सभी लोग यहाँ हिन्दी सेवा करने आएँ है जब सब कुछ मिलता जुलता है फिर यह विवाद कैसा यहाँ श्रेष्टता जताना कोई अच्छी बात नही क्योंकि किसी की नज़र कोई श्रेष्ट है और किसी के नज़र में कोई ..अगर विवाद खड़ा किया जाय तो बहुत बड़ा विवाद बन जाएगा पर यह उचित नही मैने भी सबका सम्मान करता हूँ..क्योंकि व्यक्ति विशेष से बढ़ कर मेरे लिए विचार और भावनाएँ महत्व रखती है..
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आज ब्लॉगिंग में १ साल से उपर हो गये मैने अनूप शुक्ला जी और ज्ञानदत्त जी मुझे ठीक से जानते भी है की नही ये मुझे नही पता पर मुझे याद है की मेरी दूसरी या तीसरी पोस्ट से ही समीर लाल जी मेरा हौसला आफजाई करते रहें .उनसे सीखा भी मैने बहुत कुछ..फिर और आगे मैने क्या कहूँ फिर भी मैने सभी को अपने से बड़ा और अच्छा लेखक मान कर अनुसरण करता रहता हूँ...विवाद ना हो यहीं दुआ करता हूँ..आपके विचार से मैने बहुत प्रभावित हूँ....प्रणाम स्वीकारें..- Anonymous14 May, 2010 07:23
चूँकि मैंने शुक्ल जी को नही पढा है इसलिए वो कैसा लिखते हैं मुझे नही मालूम.
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बिना किसी को पढे उसके बारे में कमेन्ट करना अपने आप के साथ और उनके साथ अन्याय होगा,सो वो गलत काम तो हम करेंगे नहीं. यूँ हर व्यक्ति की अपनी शैली,अपना अंदाज़ होता है इसलिए इस विषय में कुछ नही कहना या लिखना चाहते.
शेक्सपियर ज्यादा अच्छे या प्रेमचंद ?
क्या ये प्रश्न उचित है? न्यायसंगत है? विद्वतापूर्ण है?
इसी तरह हमें तो ये विवाद या वाद विवाद का विषय लगता ही नही.
हर ब्लोगर की अपनी महत्ता है , दोनों अपनी अपनी जगह अच्छे लेखक होंगे तभी दोनों की अपनी एक पहचान है.
हम समीर दादा को अक्सर पढते हैं .
उनका एक रूप जो शायद आप लोंगों ने ना देखा हो , हमने देखा है .
अच्छे लिखने वाले कई मिल जायेंगे .किन्तु अच्छा लिखना और अच्छा इंसान होना दोनों अलग बातें हैं .
कुछ लोंगों से हमारा भी 'पाला' पड़ा. जो बहुत अच्छा लिखते हैं पर ओन लाईन आते ही उन्होंने अपनी 'औकातें' दिखानी शुरू कर दी,मैंने उन्हें किक आउट कर दिया हमेशा के लिए .
समीरजी से जब ब्लॉग के मार्फत ही मिली तो जाना कि वे मात्र अच्छा लिखते ही नहीं है औरतों का सम्मान करना भी जानते हैं .उनके लिखे शब्दों में कहीं भी एक शब्द भी किसी स्त्री के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला नही होता. ओन लाईन आने पर भी वे जिस तरह सभ्यता,शिष्टता से पेश आते हैं ,सम्मानपूर्वक बात करते हैं वो उन्हें आम लोंगों से ही अलग नही करता विशिष्ट बना देता है.
मुझ जैसी अनजान,अजनबी औरत में जो व्यक्ति अपनी नन्ही सी बच्ची और माँ का रूप देखता हो वो 'सामान्य 'कैसे हो सकता है?
मुझे नही मालूम था कि वो ब्लॉग की दुनिया की एक नामी हस्ती हैं,मैं शुरू में उनसे बेहद 'रूडली' पेश आई थी और मैंने उन्हें लिखा था कि
' यदि आपको मेरे आर्टिकल पूरे और ध्यान से फुर्सत से पढ़ने का समय नही है तो मुझे आपको 'बाय' कहना होगा , ' अच्छा' , 'बहुत अच्छा' 'दिल को छू गया' जैसे कमेंट्स मुझे नही चाहिए.मैं आपसे बहुत कुछ सीख सकती थी पर अफ़सोस .ब्लॉग से सर्र सर्र करके निकलने वालों की मुझे कोई आवश्यकता नही'
तब उन्होंने मुझे बहुत धैर्य के साथ समझाया,जवाब दिया.और ...............
धीरे धीरे वो मेरे 'दादा' बन गए.
मैं जानती हूँ मुझ जैसे हजारों उनके फेहरिश्त में है पर....दादा जैसा भाई,दोस्त,ब्लोगर,मार्ग दर्शक,मोटीवेटर हर किसी को नसीब नही होता.
उनकी चारित्रिक विशेषताओं के कारण ही 'मैं' इंदु पुरी -जो एक निहायत ही बद दिमाग,बे अदब, बद तमीज,रूड,तेजतर्रार एक मिनट में ही किसी की बारह बजा देने वाली और माँ बेन की गालियाँ धडल्ले से बोलने वाली औरत जो अपने चारों ओर इतनी ऊंची २ दीवारे खड़ी कर के रखती है कि कोई उसमें एंटर ही नही हो सकता ,उसने उन्हें अपना बड़ा भाई , अपना दादा मान लिया और उन्हें अपने अंतर्मन से सम्मान देती है .
समीरजी जैसे इंसानों के लिए विवाद खड़ा करना मेरी दृष्टि में एक निहायत ही विवेकहीन बात करने जैसा है.
उन जैसे लोग ईश्वर हर घर में पैदा करे मैं तो ईश्वर से यही मांगूंगी.
हाँ ! मेरी इस बात को पढ़ कर कोई क्या सोचता है इसकी मुझे ज्यादा परवाह भी नही .
क्या करूँ ईसीच हूँ मैं .
दादा! भीड़ में सबसे पीछे खडी हूँ मैं आपके प्रसंशकों में, आप तक नही आ सकती.पर..... आप मेरे पूजनीय,सम्मानीय हैं और हमेशा रहेंगे . आपकी-- छुटकी श्री अरविन्द मिश्र के कमेंट्स का एक अंश दे रहा हूँ !
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@ श्री अरविन्द मिश्र,
आपके समस्त प्रखर विचार नहीं छाप पा रहा हूँ...आशा है बुरा नहीं मानेंगे !
....................................................................मगर क्या कीजे ,यह लोक तंत्र है -जो है सो है -बजा कहे जिसे आलम .....
टिप्पणीकर्ताओं ने भी अपने को खोल दिया है -आपने(ज्ञान जी ) सबका परीक्षण कर लिया -राम झरोखे बैठकर सबका मुजरा लेत ....
कुछ लोग अपने पैजामें से बाहर हो गए हैं कुछ ने शर्म से नाड़ा ही नहीं खोला तो कुछ कूटनीति में रह गए ....यहाँ अब सब दर्ज है ...सनद है !
...............................................................................................................
सतीश भाई ,आप इन्हें छोड़ें जैसे गिरिजेश जी छोड़ गए हैं ...ये सचमुच बड़कवे लोग हैं और कई बड़कवे बनने को छान पगहा तुड़ा रहे हैं टिप्पणियाँ बता रहीहैं ...समय सबसे बड़ा निर्णायक है !पिछले कमेंट से आगे:
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६. समीरलाल कवि होने होने के साथ बढिया इंसान भी हैं की बजाय मेरी समझ में एक बढिया इंसान होने के साथ कवि भी हैं। यह सोने में सुहागा है!
७.ज्ञानजी सरल व्यक्तित्व के हैं। इसके बावजूद मानव मन के न जाने कितने पेंच होते हैं। उनको समझना हरेक के बस की बात नहीं होती। जिन्दगी में किसी बात पर न जाने कैसे-कैसे आवेग-संवेग के चपेटे में आकर दूसरों के बारे में कैसा-कैसा सोच जाते हैं। ब्लॉगिंग में त्वरित प्रकाशन की सुविधा के चलते उसको अभिव्यक्त भी कर लेते हैं। वही ज्ञानजी ने किया। उन्होंने अपनी बात कही अब आप उससे सहमत हैं, असहमत हैं खुश हैं ,नाराज हैं यह आपकी अपनी समस्या है।
८.मैं इसको ज्ञानजी की भूल कहकर उनकी आलोचना करने के बजाय इसी बहाने ब्लॉग जगत की मानसिकता का टेस्ट करने वाली पोस्ट मानता हूं। इसी बहाने यह सामने आ रहा है कि लोगों में अपने खिलाफ़ बात सहने का कितना माद्दा है और उस पर लोग कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त हैं।
९. मैं ज्ञानजी से किसी स्पष्टीकरण या भूल सुधार की अपेक्षा नहीं करता। अगर वे इस तरह का कोई काम करते हैं तो मुझे खराब लगेगा। ज्ञानजी के प्रति मेरे मन में आदर भाव है और वे आकर उस मंच (ब्लॉग मंच)पर अपनी सफ़ाई/स्पष्टीकरण दें जो उनके द्वारा एक बात कहने पर उनकी ऐसी-तैसी कर रहा है यह मैं किसी भी रूप में नहीं देखना चाहता। आपकी यह इच्छा खोटी है। संबंध में महसूस करना बहुत बड़ी चीज होती है। आप उनको ऐसे पेश कर रहे हैं जैसे उन्होंने कोई अपराध कर डाला। जो उन्होंने कहा वह एक बड़े के नाते कहा। उस पर आप उनसे स्पष्टीकरण की अपेक्षा करते हैं। माफ़ करिये सक्सेनाजी, आप संबंधो की बात काफ़ी करते हैं लेकिन उनकी केमेस्ट्री से बहुत अपरिचित हैं। मैं जिस व्यक्ति का आदर करता हूं वह सार्वजनिक रूप से अपनी किसी स्वत:स्फ़ूर्त रूप से कही बात का स्पष्टीकरण दे तो मैं इससे बहुत आहत महसूस करूंगा।
१०. हमारे ब्लॉग पर मेरे एक आत्मीय सीनियर ब्लॉगर ने मुझसे किसी बात के लिये अपनी गलती मानते हुये सॉरी लिखा था। मैंने वह कमेंट प्रकाशित नहीं किया और उनको लिखा आप मुझसे क्षमा मांगने के अधिकारी नहीं है। कम से कम मेरे टिप्पणी बक्से में आप यह हरकत नहीं कर सकते। फ़िर उनके कहने पर उनकी क्षमा वाली बात हटाने के बाद मैंने उनकी टिप्पणी प्रकाशित की।
११. आप हिन्दी समाज की बेइज्जती से आहत हैं! आपसे पूछना चाहता हूं कि आपने ऐसी पोस्टों पर कितनी जगह खिलाफ़ टिप्पणियां की जहां ज्ञानजी के खिलाफ़ बेसिर-पैर की बातें की जा रही हैं और हमारी भाई समीरलाल उसे अपना सम्बल बढ़ाये जाने की बात कहते हुये आभार व्यक्त कर रहे हैं।
१२. आपकी इस पोस्ट पर अकबर इलाहाबादी का शेर याद आ रहा है:
कौम से डर से खाते हैं डिनर हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ
१३. और आप जो लिखे हैं न अंगरेजी भाषा के ब्लागर इसीलिये हमें हेय समझते हैं ! तो आप यह बताइये कि क्या हम अपना चरित्र प्रमाणपत्र अंग्रेजी ब्लॉगरों से चाहिये? कौन है वो अंग्रेजी ब्लॉगर जो हिन्दी का ब्लॉग पढ़ता है और हेय समझता है। आपसे अनुरोध है कि अंग्रेजी ब्लॉग जगत में तीन-चार साल पहले हुई बहसें
देख लें और देखें कि जित्ती छीछीलेदर वहां तीन-चार साल पहले हो चुकी वहां तक भी पहुंचने के लिये अभी हिन्दी ब्लॉग जगत को समय लगेगा। हिन्दी ब्लॉगिंग में पतन की असीम सम्भावनायें हैं।
१४. टिप्पणी पोस्ट की तरह लम्बी हो गयी। निष्कर्षत:
अ. मुझे नहीं लगता कि इस मसले पर आपको चिन्तित होने की जरूरत है।
ब. हमारे, समीरलाल के संबंध इत्ती उठापटक वाले नहीं हैं कि आप इनको सुधरवाने के लिये परेशान रहें। अगर कुछ है भी तो आपस में फ़रिया लेंगे। अब हम बड़े हो गये हैं। आप इनकी चिंता छोडकर बड़े लफ़ड़े देखिये हिन्दू-मुसलमान आदि।
स. ज्ञानजी से मैं किसी स्पष्टीकरण की अपेक्षा नहीं करता। आपसे भी अनुरोध है कि आप इस पर विचार करें कि बडप्पन की भूमिका निभाते के चक्कर में ज्ञानजी को भारतीय संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार में तो नहीं लंगड़ी लगा रहे। कहीं आप बिना बात उनको बिना बात के अपराध बोध तो नहीं महसूस करा रहे हैं और जो गुनाह उन्होंने किया ही नहीं उसके लिये अपराध साबित करते हुये उनसे स्पष्टीकरण की अपेक्षा कर रहे हैं। देख लीजिये कहीं कल को ज्ञानजी यह न कहने लगें:
मैं जो कभी नहीं था
वह भी दुनिया ने कह डाला
और जहां यह कहा जा रहा है वहां उसका विरोध करने की बजाय यहां सुरक्षित जगह से आप उनका स्पष्टीकरण मांग रहे हैं।
अगर कोई बात खराब लगी हो तो अग्रिम रूप से अफ़सोस व्यक्त करता हूं।सक्सेनाजी, मैंने कल ही अपनी पोस्ट में लिखा था:
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सतीश सक्सेनाजी में बड़ा भाईपन बहुतायत में है। वे हमेशा हमें बड़े भाई की तरह टोंकते रहते हैं, हमेशा हमें बताते रहते हैं कि मैं खराब लोगों से घिरा हुआ हूं, अक्सर हममें और समीरलाल में सुलह का आवाहन करते रहते हैं। कभी-कभी तो लगता है कि सतीश सक्सेनाजी न होते तो मुझसे और समीरलाल में अब तक मारपीट हो गयी होती। मैं सतीश सक्सेनाजी की उनके इस घणे बडप्पन भाव का बहुत सम्मान करता हूं।
आपकी पोस्ट ने मेरे विश्वास की रक्षा की और एक बार फ़िर से साबित किया कि कठिन से कठिन समय में भी आपका हमारे प्रति भाईसाहब वाला अन्दाज बना रहता है और आप सच्चे मन से हमारा हित चाहते रहते हैं और बता-बताकर विवाद खतम करते करवाते रहते हैं। आप न हों तो न जाने कित्ती बातों को सामान्य समझकर भूल जायें। ये तो आप हैं जो बताते रहते हैं कि अरे नहीं भाई ये साधारण बात नहीं ये तो विवाद है।
आप की बात पर मेरे बिन्दुवार विचार:
१. पहली बात आपने अपने पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर लिखी है। कम से कम इस मामले में। आप कृपया बतायें कि मेरे समर्थन में मेरे किस साथी ने कोई पोस्ट लिखी है। हमें उत्सुकता है।
२.अगर इस बात से हमारी बेइज्जती हुई है तो हमें ऐसी इज्जत की कोई कामना नहीं है जो मेरे खिलाफ़ कुछ पोस्टों को लिखने से उतर जाये। यही बात मैं हिन्दी समाज के लिये कहता हूं। हिन्दी समाज अगर इत्ता छुई-मुई है कि जरा से वाद-विवाद में बेइज्जत हो जाये तो हम उस समाज से बाहर ही रहना चाहेंगे।
३.मेरी समझ में हमारा कोई अपमान नहीं हुआ है। आप ही मुझे याद दिला रहे हैं कि मेरा अपमान हुआ है, बेइज्जती हुई है। इस चक्कर में मुझे बार-बार अपने मान-अपमान का आडिट करना पड़ रहा है। सब खाता दुरुस्त है। क्या आपके पास मेरे मान-अपमान का कोई और डुप्लीकेट एकाउंट है?
४.कुस्ती,गुरु,हीन भावना, ललकारना ये सब बातें अपनी सोची हुई हैं। कम से कम मैंने किसी को नहीं उकसाया। समीरलाल ने भी किसी को नहीं कहा होगा कि तुम मेरे समर्थन में पोस्ट लिखो और ज्ञानजी की ऐसी-तैसी करो। लोग हैं अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं। जब समीरलाल जी की विनम्र अपील से उनके प्रशंसक शान्त नहीं हो पा रहे हैं और उनका कठिन समय मानकर उनको आलंबन दिये जा रहे हैं तो बाकी क्या कर लेंगे।
५. आप न समीरलाल के आदमी हैं न अनूप शुक्ल के। आप तो हमारे आदरणीय हैं। आप में मैं बड़े भाई साहब वाला भाव विकट मात्रा में देखता हूं। हर मामले को आप बड़े भाई साहब वाले अन्दाज देख लेते हैं यह आपकी महानता है। कोई आपको समीरलाल या अनूप शुक्ल का आदमी कहेगा तो मैं उसको पागल ही समझूंगा। यह आपका अपमान ही नहीं होगा मुझे भी बहुत खराब और असहज लगेगा कि कोई आपके जैसे सम्मानित व्यक्ति को मेरा आदमी बताने की बेवकूफ़ी करे।
....जारीआपकी बात संतुलित है..इसी बात के मद्दे नजर मैं अपनी पोस्ट लगा आया हूँ:
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http://udantashtari.blogspot.com/2010/05/blog-post_14.html
अनूप जी का कमेंट पढकर अच्छा लगा.
इंदु भावानत्मक व्यक्तित्व की धनी है. मेरी प्यारी बहना है..उसकी बात भावान्तमक आवेग में ही लेना, उससे उपर शब्द विश्लेषण क्षीण हैं.
विनोद का स्नेह हमेशा अभिभूत करता है.सतीशजी,
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आपके प्रति जो मेरे मन में भाव हैं वह मैंने बताये। बड़प्पन का भाव आपमें वह बताया। किसी के बारे में जो भाव मेरे मन में हैं वह पूछे जाने पर बताने का अधिकार तो है ही!
मुझे कुछ बुरा नहीं लगा! आपने मेरे विचार मेल में लिखकर पूछे मैंने बता दिये। इसके पहले भी जो लिखा है वह बताया। आपको इससे कष्ट हुआ उसके लिये अफ़सोस है।
मेरा दिल कत्तई नहीं दुखा है। मुझे कुछ बुरा नहीं लगा। उल्टे मैं आपका आभारी हूं कि आपने मेरे विचार जानने के बहाने मुझे अपनी बात रखने का मौका दिया।
बाकी आपमें बड़प्पन वाला भाव नहीं है आप इससे इंकार करने के पहले आप अपनी पोस्टें फ़िर से पढ डालिये और देखिये।
पुनश्च: मेरा दिल सलामत है। आप मस्त रहें। आप मेरे बारे में कैसे नहीं लिखेंगे। हम आपसे जबरियन लिखवा लेंगे।
सादर! सप्रेम!!@अनूप भाई !
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यकीन रखें मैं न तो बड़ा भाई हूँ और न किसी का बड़ा बनने की तमन्ना है ! अगर मेरे द्वारा बड़ा भाई बनने की तमन्ना, पाठकों को महसूस हो तो मेरा लिखा कुछ भी पढने योग्य नहीं है, आपके तथा किसी अन्य किसी के सम्मान का अधिकारी नहीं हूँ ! मैंने जो लिखा है वह आप दोनों के बारे में कम, प्रसंशकों के बारे में अधिक लिखा है !
आपकी पोस्ट और टिप्पणियों में कई बार "बड़ा भाई" पर लिखा जा चुका है, लगता है , समझने में दुबारा भूल हुई है ......आपका फिर दिल दुख दिया ...क्षमाप्रार्थी हूँ !
सादर !सतीश जी,
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इस विवाद के बारे में हमें जानकारी नहीं है, क्योंकि अब हमने ब्लॉगवाणी पर आना कम कर दिया है...
वजह, अब 'सार्थक' पोस्ट कम देखने को मिलती हैं... और 'बेहूदा' ज़्यादा...
जब हमने ब्लोगिंग शुरू की थी, उस वक़्त माहौल बहुत अच्छा था...
लेकिन, अफ़सोस है कि 'कुछ लोगों' ने ब्लॉग जगत रूपी पावन गंगा में 'गंदगी' घोल दी है...और यह दिनोदिन बढ़ रही है...
लोग ज़बरदस्ती अपने 'मज़हब' को दूसरों पर थोप देना चाहते हैं...
गाली-गलौच करते हैं... असभ्य और अश्लील भाषा का इस्तेमाल करते हैं...
किसी विशेष ब्लोगर कि निशाना बनाकर पोस्टें लिखी जाती हैं...
फ़र्ज़ी कमेंट्स किए जाते हैं...
दरअसल, 'इन लोगों' का लेखन से दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नहीं है... जब ब्लॉग लेखन का पता चला तो सीख लिया और फिर उतर आए अपनी 'नीचता' पर... और करने लगे व्यक्तिगत 'छींटाकशी'...
'इन लोगों' की तरह हम 'असभ्य' लेखन नहीं कर सकते... क्योंकि यह हमारी फ़ितरत में शामिल नहीं है और हमारे संस्कार भी इसकी इजाज़त नहीं देते... एक बार समीर लाल जी ने कहा था... अगर सड़क पर गंदगी पड़ी हो तो उससे बचकर निकलना ही बेहतर होता है...
नोट : इन बातों का आपकी पोस्ट से कोई संबंध नहीं है... आज ब्लॉग जगत में जो हो रहा है, हमने सिर्फ़ वही कहा है...- Anonymous14 May, 2010 08:53
अगर आप ने अनूप कि पोस्ट सही तरीके से पढी होती तो इन पंक्तियों मे छुपे व्यंग को "भी-कभी तो लगता है कि सतीश सक्सेनाजी न होते तो मुझसे और समीरलाल में अब तक मारपीट हो गयी होती।" आप मिस ना कर गए होते । हम सब यहाँ ब्लॉग लिखने आये हैं या मध्यस्तता करने । क्यों ब्लॉग को समाज कि चौपाल बनाया जा रहा हैं जहाँ एक सरपंच चाहिये और चार पञ्च जो लोगो को बता सके कौन यहाँ रहने लायक हैं और किस को निकाल दिया जायेगा । क्या सामजिक मुद्दों कि कमी हैं कि ये सब चल रहा हैं और मसीहा क्यूँ बनते हैं आप । क्या आप से समीर , अनूप या ज्ञान ने कहा हैं कि उनके बीच दंगा फसाद हो गया हैं और पंचायत बिठाओ ।
ReplyDelete मेरे विचार से ब्लॉग पर व्यक्तिगत लेख लिखना , जिसमे एक व्यक्ति विशेष पर छीटा कसी की गई हो , उचित नहीं लगता ।
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आप मुद्दों पर बात कीजिये , कवितायेँ लिखिए , हास्य -मनोरंजन सामग्री लाइए , जानकारी दीजिये , ज्ञान बाँटिये । किसी के बारे अनुचित लिखकर आप क्या साबित करना चाहते हैं ?
जाने क्यों हर थोड़े दिनों बाद एक विवाद उठकर सारा माहौल ख़राब कर देता है।
जिसको जो अच्छा लगे वो लिखे । जिसे पढना हो पढ़े , वर्ना पढने के लिए ब्लोग्स तो बहुत से हैं । फिर काहे का विवाद।
ऐसे में शांति बनाये रखना ज़रूरी है । जल्दी ही लोग भूल जायेंगे ।
आगे बढ़ना भी ज़रूरी है।बचपन में...शायद!...सन पचपन में अपने बुजुर्गों से एक कहानी सुनी थी कि बीच बाज़ार दो व्यक्ति आपस में बुरी तरह से लड़ रहे थे...नेकनीयती के चलते एक भलेमानस से ये सब देखा ना गया और वो किसी आने वाले अनिष्ट की आशंका से भयभीत होकर उन दोनों को छुडाने जा पहुंचा ....
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समझदार को इशारा काफी होता है...मेरे ख्याल से इसके आगे की कहानी तो आप जानते ही होंगे .....
बहुत कुछ लिखा..सुना व पढ़ा जा चूका है इस विवाद के बारे में..मेरे ख्याल से अब ...हम-आप इसे यहीं विराम दे दें तो बेहतर रहेगा ...- Anonymous14 May, 2010 09:24
'अदा' जी जैसे विचार रखने वालों नए/ पुराने ब्लॉगरों के लिए:
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> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि मिथिलेश जैसा युवक ऐसी भाषा का प्रयोग क्यों कर रहा?
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि आशीष खंडेलवाल जैसे लोकप्रिय ब्लॉगर ने अपने ब्लॉग पर ट्रिक्स-टिप्स लिखना क्यों छोड़ दिया?
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि मुझ जैसे स्वभाव वाले की जबान पर कड़वाहट क्यों आ जाती है?
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि पिछले दिनों से समीर लाल की 'हिन्दी सेवा' पर कटाक्ष, लगातार क्यों तीव्र होते जा रहे हैं?
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि विवाद की शुरूआत कौन करता है?
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि किसी भी विवाद को खड़ा करने वाला ब्लॉगरी में कितना समय बिता चुका?
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि परिणामों के बारे में सोचना भी चाहिए
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि क्यों कुछ करने का ठेका वही ले जिसे निशाना बनाया गया
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि ... मैं अनूप शुक्लजी को पाँच साल से पढ़ रहा हूँ, पूराने ब्लॉग साथी रहे है. फिर समीरलालजी आए. उनकी कविताओं के अलावा उन्होने जो लिखा वह पढ़ा है और रोज एक पोस्ट ठेलने वाले ज्ञानजी के लिए मैने कई बार लिखा कि यही ब्लॉगिंग है. तीनों मुझ से उम्र में बहुत बड़े है. सच्ची बात लिखूँ तो इन्हें गुथम-गुथा देख कतई अच्छा नहीं लग रहा है.
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी,
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मुझे तो यह विवाद शुरु से ही (यानी ज्ञान जी की पोस्ट से ही) अनावश्यक और अतार्किक लगा…
ये कोई तुलनात्मक अध्ययन है क्या? हरेक की अपनी शैली होती है, हरेक के अपने विचार होते हैं, हर व्यक्ति एक-दूसरे से अलग होता है… आप कैसे तुलना कर सकते हैं? कुल मिलाकर सारी बहस निरर्थक और बकवास है…सतीश जी, बड़ा अजीब लगता है लोग आगे बढ़ते हैं और पीछे भूलते हैं.
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मैं ब्लॉगवाणी से अगस्त/सितम्बर 2009 में जुड़ा था. और उनदिनों भी समीर जी, ज्ञानदत्त जी, अजय झा जी, द्विवेदी जी और कुछ पुराने अच्छे ब्लोगर. उसी तत्परता और आत्मीय भावनाओं से ब्लोगरी कर रहे थे जैसा की आज कर रहे हैं.
फिर विवाद का तो कारण ही नहीं बनता.
मैंने अक्तूबर २००९ में ही क्षुब्ध होकर एक पोस्ट लिखा था, ब्लोगरी कोई खेल नहीं...
लोग समझने के बजाये टिप्पणियों में हुजूम पैदा करते हैं और आगे बढ़ते हुए पीछे कही गयी सुनी गयी समझी गयी बातों को भूलते हैं. यही आश्चर्य का विषय है मेरे लिए.
- सुलभकहीं यह पूर्वनियोजित
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डब्ल्यू डब्ल्यू एफ
की तरह का हंगामा
तो नहीं।
उसमें भी मजा आता है
मजा इसमें भी आ रहा है
सस्पेंस उसमें भी होता है
सस्पेंस इसमें भी है
बाकी सारी खूबियां इसमें हैं
बस फ्री स्टाइल
पोस्टों और टिप्पणियों में ही है
वहीं तक सीमित रहनी चाहिए।
वैसे सतीश जी सावधान रहें
अगर वे साबित करना चाह रहे हैं
आप मध्यस्थ हैं तो
फिर आपकी खैर नहीं है ...
फिर तो हमें ही उतरना पड़ेगा
सच्चाई के साथ मैदान में
पर वहां नहीं होगा डब्ल्यू डब्ल्यू एफ।सतीश भाई प्रणाम !!
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बात सीधी शुरू करता हूँ , मसला किसी के सिपाही बनने से ज्यादा अपनेपन का है | पिछले एक साल से ब्लॉगिंग कर रहा हूँ आजतक कभी भी अनूप जी या ज्ञान जी मेरे मार्गदर्शन हेतु मेरे ब्लॉग पर नहीं आये पर हाँ एक बंदा है जो लगभग मेरी हर पोस्ट को पढता है और पोस्ट के अनुसार ही उस पर टिपण्णी करता है | सब ने बताया अनूप जी और ज्ञान जी की ही तरह उस बन्दे का भी बहुत नाम है ब्लॉग जगत में ........ लगभग तीनो एक बराबर ही कहे जा सकते है ......... तो फिर एसा क्यों है कि एक आया दो नहीं आये वैसे बता देता हूँ बुलाया तो मैंने किसी को भी नहीं था !!
जो आया उसने प्यार दिया तो प्यार पाया ............. धीरे धीरे समीर जी से समीर भाई कहलाया !! आशा है मैं अपने मन की बात सही तरीके से कह पाया !!मुझे लगता है ज्ञानजी ने कोई गलती नहीं कि अलबत्ता उन्होंने अपना खरा खरा और ईमानदार दृष्टिकोण रखा है। हां, "कौन बेहतर ब्लॉगर है – शुक्ल कि लाल?!"
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जैसी पंक्ति लिखकर अनजाने ही इसे परिचर्चा का जो रूप दे दिया उससे यह बवाल तो होना ही था। अंग्रेजी ब्लागरों की निगाह में हिन्दी वाले हमेशा भदेस रहेंगे, उससे क्या फर्क पड़ता है। हम चम्मच से भी खाते हैं और हाथ से भी। हिन्दी ब्लागिंग की अपनी खूबियां हैं और बहुत खूब ब्लागिंग हो रही है। ज्ञानदा मेरी निगाह में हिन्दी के श्रेष्ठ ब्लागरों में हैं और उनके यहां ब्लागिंग के नए नए आयाम देखने को मिलते हैं। इसी कड़ी में अनूपजी भी हैं। उनका फुरसतियापन अनोखा है। उनके लिखे में अंतर्निहित गंभीर तत्व को जो लोग पकड़ पाते हैं वे जानते हैं कि विध्वंसक, तोड़-फोड़कारी और मंथरा-तत्व वहां नहीं हैं। निर्मल आनंद ही वहां है। उनकी चुटकियों को निरपेक्ष भाव से देखें। समीरभाई अगर कई ब्लागरों के प्रेरणास्रोत हैं तो यह भी वाजिब है। टिप्पणियों के जरिये हिन्दी के ब्लागरों को प्रेरित करने का जो बीड़ा उन्होंने उठाया था, वह उनका धर्म बन चुका है। ऐसे में अगर उनका लेखन ज्ञानदा की कसौटी पर इन दिनों खरा नहीं उतर रहा है तो यह बहुत गंभीर मसला नहीं है।
आपकी संवेदनशीलता मुझे हमेशा ही प्रभावित करती है।सतीश जी ,
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सादर नमस्कार । मैं बहुत पहले और बहुत बार इस बात को कह चुका हूं कि ब्लोगजगत में जो भी पढा लिखा जा रहा है उसमें एक सबसे बडी अहम बात है नीयत की । और इसे बडी आसानी से किसी के भी लिखे पढे समझे को देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है , और लोग लगा भी लेते हैं । रही बात आपके प्रयासों की तो मुझे लगता है कि आपको भी अपनी कही हुई बातों का जवाब अलग अलग तेवर और शैली में लोगों ने दे ही दिया है । ज्ञानदत्त जी ने वो पोस्ट क्यों लिखी , किस मकसद से लिखी ये तो वही जानें , मगर बात शायद तब भी न बिगडती जब उसे लिखने वाला अपनी स्पष्ट मंशा व्यक्त कर देता कि उसकी मंशा कम से कम वैसी तो कतई नहीं थी जैसी कि आम पाठकों द्वारा समझी गई ।
अब रही बात मेरी तो मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि जिस दिन भी बदकिस्मती से मुझे किसी एक को ही चुनना पडेगा , उस दिन बेझिझक , बेहिचक , मैं कनाडा जाना ही पसंद करूंगा
...वो भी उडनतशतरी से ।
और आप भी अब माईक्रोस्कोप से देखने का प्रयास करिए , उसमें कीटाणु भी बडी आसानी से दिख जाते हैं ।और हां और किसी के हों न हों मेरे तो आप अग्रज हैं ही ।वो विषय जिसके बारे में कोई जानकारी ना हो, उस पर टिप्पणी करना कहीं से भी हितकर नहीं होगा. वस्तुतः यह पूरी पोस्ट इसी बात की ओर इंगित करती है कि नाम से अधिक महत्व उस वक्तव्य, उस भावना, उस मुद्दे, उस सम्वेदना, उस अभिव्यक्ति का होना चाहिये जो यहाँ प्रकट की जाती है.
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क्यों न चर्चा का विषय यह हो कि ब्लोगर्स की भाषा और शैली कैसी है, शब्द विन्यास कैसा है, विषयवस्तु क्या है, तथ्य कितने हैं, कितनी सामयिक है, साहित्यिकता कितनी है, क्या संदेश देती है, संदेश नहीं तो मनोरंजन का पुट कितना है, इत्यादि....इससे ही शायद हिन्दी भाषा की कोई सेवा हो सकती है.
रही बात किसी खेमे के सिपाही बनने की तो यह ब्लॉग जगत मूलत: वयस्कों का व्यसन है और जिसे सेनापति बनने की चाह होगी वो शायद सिपाही से शुरुआत करे. सेनापति बनने की मौज है तो अपने खतरे भी हैं. बाहर का जगत हो या ब्लोग का आभासी जगत मानवीय प्रवृत्तियां अपना आकार खुद बना लेती हैं. यहाँ प्रशंसा की परिपाटी सी बन गई है. जो अच्छा लगा खुल कर प्रशंसा की और बुरा लगा तो चुप लगा गए, क्योंकि इस दुनिया में आलोचना सुनना कोई पसंद नहीं करता.
आपकी सम्वेंदनाओं को सलाम!सतीश जी ,
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बहत कुछ कहा जा चुका है इस मुद्दे पर | पूर्वोक्त टीपों में भी
काफी काम की बातें आ गयी हैं |
तीन चरणों में यह विवाद अभी तक दिखा ---
चरण-१) ज्ञान जी की पोस्ट जहां से विवाद शुरू हुआ |
चरण-२) पहले चरण की प्रतिक्रया में डपोरशंखी और एतद-विषयक
अन्य प्रलाप और उनपर समीर जी की मौन सहमति |
चरण-३) अनूप जी और समीर जी की क्रमशः आयी पोस्टें और इन पोस्टों के
आधार पर आयी अन्य पोस्टें ( आपकी भी पोस्ट सम्मिलित करते हुए ) |
पहले में अपेक्षित गंभीरता के साथ प्रवृत्तियों पर बात होनी थी , न कि
व्यक्तियों को आगे लाते हुए , विवाद खड़ा होना लाजमी था , क्योंकि दुनिया
की सबसे कोमल वस्तु शायद हिंदी ब्लोगर का ह्रदय है और वह ठेसित होने के
लिए तैयार रहता है , और जाने कितने निरर्थक खालीतत्व से लोग हिन्दी ब्लोगिंग
में ऐसे मौकों को लपकने के लिए आतुर बैठे रहते हैं |
दूसरे चरण में प्रतिक्रया-स्वरुप आयी बातें निश्चित ही भाषा और मंतव्य में बेहद
नापाक रहीं और यहाँ गलती समीर जी की रही कि वे ऐसी प्रतिक्रियाओं का मौन समर्थन
करते रहे | लोग उनके कंधे पर रखकर अपनी बंदूख का घोड़ा दाबते / दौड़ाते रहे | समीर जी जिस
आपसी प्रेम की बात करते हैं ( और बाकी दोनों भी जिसे स्वीकारते हैं , कैसे भी ! ) उसके रक्षार्थ
भी कम-से-कम एक बार इन डपोरशंखियों ( बहुवचन में ) के खिलाफ कुछ तो कहना था |
कहने का तात्पर्य 'सशक्त' रूप से कहने से है | सो यह गलती यहाँ रही |
तीसरे चरण में गलती यह हो रही है कि अब क्यों ढोया जा रहा है यह सब इतना ?
कौन ब्लोगिंग की एक सर्वमान्य आचार संहिता बन जायेगी इससे ? दोनों ( शुक्ल व लाल जी )
दोनों बोल चुके और सब स्पष्ट हो चुका है | लाल जी दूसरे चरण की अपनी मौन सहमति को
पोस्ट लिखकर मुखर सहमति में भी बदल चुके हैं | ............ एक दिन से ऊपर हुआ , अब
तो जयकारा - थुक्कारा बंद हो | पर ब्लोगर-ह्रदय के पास जाने कितनी संवेदना (?) है और
इस विकसित (?) हिन्दी समाज के पास जाने कितना समय और पेंडिंग-मुद्दे भी ( जो एक ही
जगह बतुर गए हैं और दिव्य-निपटान में हाजिर हैं ) |
.................. सोचा था कि अब कहीं कुछ नहीं बोलूंगा इस मुद्दे पर ! पर आपके स्नेह और इ-मेल
के आग्रह ने उँगलियों को की-बोर्ड पर दौड़ा दिया | आभार !सतीश जी वैसे तो मै इस ममले मै चुप ही हुं, ओर आगे भी चुप ही रहना चाहता था, मै किसी भी खेमि मै नही आना चाहता, ओर अगर ऎसा चलता रहा तो एक दिन अपना टिपण्णी बक्स बन्द कर दुंगा, ओर फ़िर ना ही किसी को टिपण्णी दुंगा, मस्त रहुंगा, हम इतनी व्यस्त जिन्दगी मै से कुछ घंटे ब्लांगिग मै इस लिये बीताते है की अपने लोग मिले दिल की बाते करे, कुछ अपनी कहे कुछ आप की सुने, इस से हम सब को लाभ है, इस ब्लांगिग के सथ ही मुझे बहुत कुछ मिला, बहुत से साथी ओर मित्र भी मिले, मैने तो सोचा था कि अपने बच्चो के लिये रिश्ते भी इसी ब्लांग जगत से ही ढुढं लूंगा???
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अब आप ने मेरे विचार जानने चाहे तो , मै तो यही कहुंगा कि सब से ज्यादा दोष हम लोगो का है, अगर ज्ञानजी ने ऎसा कोई लेख लिख दिया था तो हमे उस मै ज्यादा बोलने कि जरुरत नही थी, फ़िर देखते क्या बात होती है, क्योकि हो सकता है ज्ञानजी ने वो लेख अपने विचार से किसी ओर नजरिये से लिखा हो, ओर हम सब की टिपण्णियां उस मै घी का काम कर गई, शायद मै इन तीनो से उम्र मै बढा हुं, लेकिन मै इन की लेखनी को हमेशा सलाम करता हुं, समीर जी से तो कई बार बात भी हुयी, बिलकुल एक भाई लगे, अनूप जी के लेख भी पढे, कभी कभार टिपण्णी भी दी, ज्ञानजी के लेख भी पढे ओर खुब टिपण्णियां भी दी, अब अगर चार दोस्त मिल कर बेठेगे तो किसी ना किसी बात पर बहस भी होगी, कभी कभार हाथो पाई भी हो जाती है, लेकिन जो बाकी यार दोस्त बेठे है, उन का काम लडने वालो के हाथो मै डंडॆ देना नही ब्लकि उन मै समझोता करवाना है, तो मै तो बस यही कहुंगा कि आप सब इन बातो को भुल कर फ़िर से पहले की तरह से ही मिले, ओर छोडे यह लडाई झगडे, मुझे भी कई लोग पसंद नही कईयो ने मुझे भी गालियां तक दी है, लेकिन मैने कभी भी बात को आगे नही बढाया, ओर अगर मेरी माने तो मै समीर जी, अनूप जी ओर ज्ञानजी से यही प्राथना करुंगा कि भुल जाये सब बाते, एक बार मिल कर फ़ोन पर बात कर ले ओर दिल का गुबार निकाल ले, ओर फ़िर से रोनक ले आये, हम कब तक खेमओ मै बंटते रहे गे?? इन खेमो मै बंटने के कारण ही हम आज तक इन नेताओ के गुलाम है, उस से पहले अग्रेजो के गुलाम थे........गाहे गबाहे तीनों महारथियों को पढता रहा हूँ. समीर जी और पाण्डेय जी से फोन पर बात भी हुई है और यह कह सकता हूँ कि यह दोनों मेरे ब्लॉग पर आते रहे हैं. तीनों में ही पाण्डेय जी के लिए सर्वाधिक आदर है - कुछ उम्र और अनुभव के लिए, कुछ उनके अध्ययन की विस्तृत रेंज के लिए मगर बहुत कुछ उनकी हमेशा नया सीखने और बदलने की उस अदम्य इच्छा के लिए जिसने उन्हें रविवासरीय गंगा-सफाई जैसे कामों की शुरूआत कराई. शुक्ल जी मेरा ब्लॉग पढने (या नोटिस करने) के मामले में इन दोनों ही से कहीं अधिक व्यस्त होंगे मगर विवादों से कन्नी काटकर निकलने के बजाय उन्हें कई बार खुलकर अपनी बात कहते देखा है. इस बार भी उनके निम्न कथन से सहमत हूँ:
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ज्ञानजी से मैं किसी स्पष्टीकरण की अपेक्षा नहीं करता।
बात सही है, ज्ञानदत्त जी को अपने ब्लॉग पर अपना विचार रखने का उतना ही हक है जितना कि उनके खिलाफ हड़ताल करने वाले ढपोरशंख आदि को. उनके विरोध का जो रास्ता अख्तियार किया गया है वह किसी गैर-ज़िम्मेदार नेता के चमचों के अराजक रास्ता-रोको आन्दोलन की याद दिलाता है.
शायद इन तीनों ही के कुछ दुश्मन इस आग में इस अपनी उम्मीद में हाथ ताप रहे हैं.
एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !
- सतीश सक्सेना
सवाल आप दोनों का कम और चर्चाकारों का अधिक है, मुझे लगता है कि कहीं न कहीं आप लोगों के प्रसंशकों ने दो अलग खेमें बना डाले हैं, और उन खेमों में आप लोगों की रोज आरती हो रही है ! कैसे लोग हैं यह सब, जिन्होंने अपनी पीठ पर दो मनुष्यों का नाम लिख लिया और अब अखाड़े में दो दो हाथ करने को तैयार बैठे हैं ! शायद अंगरेजी भाषा के ब्लागर इसीलिये हमें हेय समझते हैं !
दुखित मन से
आपका"