अपने कैमरे के साथ की यादें लिखते समय ,आदरणीय गोपाल गोडसे की याद आ गयी ! वह जब भी दिल्ली आते थे मुझे अपना दोस्त कहते हुए, मिलना न भूलते !महात्मा गांधी की हत्या में शामिल, इस शख्शियत से पहली मुलाकात ११-३-१९९१ में दिल्ली में हुई थी ! पहली मुलाकात में ही लगभग 73 वर्षीय,मगर मजबूत इच्छा शक्ति का यह वृद्ध व्यक्ति, मुझे अपनी विलक्षण विद्वता से आसानी से, प्रभावित कर लेगा, यह सोचा भी न था ! मुझे सिविल इंजिनियर जान कर उनका पहला प्रश्न था कि क्या आप इस देश के पहले इंजिनियर का नाम बताएँगे ?
एम् विश्वेसरैया ...विश्वकर्मा.... आदि सोचने के बाद जब मैंने मय दानव का नाम लिया तब उन्होंने बड़ी गर्म जोशी से हाथ मिलाया और मेरी तारीफ़ करते हुए कहा कि आपका सामान्य ज्ञान बढ़िया है ! अब बताइए मयासुर की लिखी कोई पुस्तक का नाम, जिसमें किलों के निर्माण , प्लानिंग और उनकी नींव कि डिजाइन के बारे में वर्णन हो ! मुझे निरुत्तर जानकर उन्होंने बताया कि पुणे की लाइब्रेरी में यह पुरातन किताब उपलब्ध है जिसकी एक प्रति उनके पास भी है ! इसका नाम "मय मतम "है और पुरातन भारत की, पौराणिक काल में भवन अभियांत्रिकी पर लिखी गयी यह पहली और संभवतः सर्वाधिक दुर्लभ किताबों में से एक है ! वह उन दिनों दिल्ली के ऐतिहासिक भवनों के ऊपर रिसर्च कर रहे थे , फोटोग्राफी और इतिहास में मेरी रूचि देख उन्होंने मुझे दिल्ली में इस विषय पर, जब भी मेरा अवकाश हो , अपना साथ देने का अनुरोध किया ! अपने विषय और रूचि को देख मैंने दिल्ली की क़ुतुब मीनार और लालकिला ,और ताजमहल उनके साथ साथ भ्रमण किया और उनके लिए फोटोग्राफ्स लिए !
१९९१ में लगभग 73 वर्ष के इस जवान ( अब दिवंगत )के साथ, इतिहास की छिपी परतों का उनका मूल्यांकन और शुद्ध हिन्दी का उच्चारण और देशभक्ति आज भी नहीं भुला पाया हूँ !
uplabdhi
ReplyDeleteरोचक पोस्ट...
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण...
ReplyDeleteपिछली ४ पोस्टें भी पढ़ी
एक कैमरा मैं भी खरीदना चाहता हूं. सस्ता, सुंदर v टिकाऊ. सस्ता इसलिये कि दो गुम कर चुका हूं.
सावधान! गद्दार का तमगा मिलने ही वाला है आपको :>)
ReplyDelete"लगभग ८० वर्ष के इस जवान के साथ, इतिहास की छिपी परतों का उनका मूल्यांकन और शुद्ध हिन्दी का उच्चारण और देशभक्ति आज भी नहीं भुला पाया हूँ !"
ReplyDeleteयदि चाहेंगे तो भी भुलाया नहीं जा सकेगा। व्यक्ति को भुलाया जा सकता है किन्तु उसके गुणों को नहीं।
गोपाल गोडसे साहब की लिखी पुस्तक गांधी वध और मैं पढ़ी थी, मैं भी बहुत प्रभावित हूँ इस सख्सियत से, कृपया इनके बारे में और जानकारी हो तो हमें उपलब्ध करवाएं! धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा आपकी मुलाकात के विषय में जान कर !! गोडसे साहब को मेरा प्रणाम !
ReplyDeleteबढ़िया और शानदार संस्मरण सक्सेना साहब ! यही तो फर्क है जिसे आज के ये स्वार्थी लोग समझ नहीं पाते या यूँ कहिये कि समझना नहीं चाहते ! आज के ये हरामखोर आतंकवादी और उनके पालनहार तो धन के लोभ और अपने घटिया स्वार्थों के लिए आतंक का सहारा लेते है मगर किसी ने सोचा कि उस गौडसे का जान हथेली पर रख दिल्ली आकर गांधी जी की हत्या करना ( भले ही जिसे एक युवा देश प्रेमी द्वारा भावना में बहा हुआ कदम ही कहा जाएगा ) किस स्वार्थ से प्रेरित था ?
ReplyDeleteमैने उनकी पुस्तक गाँधी व मैं नहीं पढ़ी, हाँ गाँधीवध क्यों जरूर पढ़ी है. मिलना तो हम भी चाहते मगर अब सम्भव नहीं.
ReplyDeleteगोपाल गोड़से जी से मेरी भी मुलाकात शायद1992 मे उनके रायपुर प्रवास के दौरान हुयी थी, और उनके द्वारा लिखित दो किताबें भी मुझे प्राप्त हुयी थी।
ReplyDeleteमय कृत ग्रंथ मयमतम है जो कि अभी भी मिलता हैं। आप किसी अच्छे प्रकाशन से जानकारी ले सकते हैं।
आपके संस्मरण ऊर्जा के स्रोत हैं
ReplyDeleteअति उतम प्रसतुति
ReplyDeleteधन्यवाद
शुरू की पंक्तियाँ पढ़कर कुछ असमंजस्य सा हो रहा है ।
ReplyDeleteवैसे संस्मरण रोचक लगता है।
आपकी ये पोस्ट पढ़ कर मुझे १९७५ में पढ़ी पुस्तक याद आ गयी....
ReplyDeleteनाथू राम गोडसे , गाँधी वध और मैं.....ये पुस्तक गोपाल गोडसे की ही लिखी हुई है...इस पुस्तक से बहुत ऐसी जानकारियाँ मिलती हैं जो सबके सामने नहीं हैं....
इस पोस्ट के लिए आभार .
अच्छा लगा जानकर.
ReplyDeleteAccha laga sansmran pad kar .
ReplyDeletemalik apko sachche aur achhe logon tak pahunchaye , jaise ki aap khud hain .
ReplyDeleteयादगार और बहुत हद तक प्रेरक संस्मरण सतीश भाई। आपके सोच की विविधता आकार्षित करती है मुझे।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सक्सेना साहब, एक बार फ़िर कायल हो गए आपकी साफ़गोई के। वरना फ़ैब्रिकेटिड इतिहास बांच बांच कर हम लोगों का इतना ब्रेनवाश हो चुका है कि गांधी और नेहरू सरनेम के अलावा सभी राष्ट्रद्रोही नजर आते हैं। गोडसे जी की किताब पढ़ रखी है, और अपना पक्ष बहुत खूबी से रखा गया है इनकी तरफ़ से।
ReplyDeleteरोचक पोस्ट।
गोडसे जी द्वारा दिल्ली की ईमारतो के बारे मे खोज की एक विडियो कैसेट थी मेरे पास . लेकिन मै उसे अब खो चुका हू . अफ़सोस है
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख, गोडसे साहब को मेरा प्रणाम !
ReplyDeleteमयमतम की जानकारी का शुक्रिया. मयासुर को नागर-वास्तु में विश्वकर्मा से भी ऊपर माना जाता था.
ReplyDeleteIts nice to know about first engineer and the rare books.
ReplyDeleteThanks
सर जी, गोपाल गोडसे से मुलाकात किसी के लिये भी अविस्मरणीय ही होती, आपकी सम्वेदंनशीलता ने तो उसे शिद्दत से मह्सूस किया होगा. गोपाल गोडसे के मानवीय पक्ष पर एक पूरा पोस्ट लिखने की आप से गुजारिश है.
ReplyDelete“विचार” करना हम से दूर होता जा रहा है और हम शायद “बात” करने वाली सभ्य्ता बनकर रह गयें हैं,....देश ने सिर्फ अन्धभक्ती ही की है “गाधीं-जी” की.
वरना! “गाधीं” नाम की शैतानी ब्रांडिंग करके जिस तरह उनके ही “स्वराज और देशी” के सपने को, विदेशी पूंजी के लालच मे ध्वस्त किया जा रहा, कोई तो पूछंने वाला होता ?
गाधीं के शरीर की हत्या दुखद तो थी, परंतु बहुत मह्त्वपूर्ण नहीं थी. हां! गाधीं की विचारधारा का बलात्कार तो उनके रह्ते ही शुरु हो गया था, जो आज भी चल रहा है....गोडसे बधुंओ का पक्ष इतिहास के पन्नो से गायब करने का काम “विचार शून्य” व्यवस्था ही कर सकती है.
आज की हमारी आयातित इंजीन्यरिंग की शिक्षा भी मयासुर से विकसित न होकर पश्चिम से...“पश्चिम की भाषा” मे.. पश्चिमी तरह के प्रकृति को जीतने के अन्दाज़ मे विकसित है.... जबकी मयासुरी-विज्ञान प्रकृति के साथ स्वंम को सयोंजित करने की कला था. “तकनीकी विचार-शून्यता” भी हमारे इसी असमंजस को बताती है, शायद!
गुरु जी, मय दानव के बारे में आचार्य चतुरसेन का किताब वयं रक्षामः में भी लिखा है... हार्ड बाउण्ड एडिसन में फुट नोट में भी लिखा है... मयसुर रावण का ससुर था और पाण्डवों का महल जिसमें पानी के जगह जमीन अऊर जमीन के जगह पानी देखाई देता था ऊ भी ओही बनाया था...कुछ किताब में लिखा है कि ऊ समुद्र के अंदर वर्त्तमान ऑस्ट्रेलिआ के पास का रहने वाला था... गुरू जी आप एतना लोग से मिले हैं, अपना जीबनी लिखिए ना...नहीं त ऐसा आदमी के बारे में जिसका मुलाकात आपको कभी नहीं भुलाता है!!
ReplyDeleteरोचक पोस्ट बढ़िया संस्मरण उतम प्रसतुति
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ReplyDeleteहम अपने जीवन में अनेक लोगो से मिलते हैं. सधारण लोगो में असधारण बातें और असधारण लोगो में सधारण बाते भी होती हैं....आज जरूरत इस बात की है कि जिन लोगो के चरित्र को अब तक पूरी तरह कालिख पोत के लोगो के सामने रखा गया है..उसका पूरा सच प्रकाशित हो, लोगो के सामने आए....
ReplyDeleteपर हां.गांधीजी की हत्या का सही जीवनपर्यंत समर्थन नहीं कर सकता..आखिर एक सोते राष्ट्र को नैतिक रुप से. जगाने का काम उन्होने किया, अलग-अलग लोगो ने प्रयास हर समय किया, पर अलग-अलग हिस्सों में जागे लोगो को एकजु़ट गांधी ने ही किया....इसमें कोई शक नहीं...और गांधी का समर्थन करने का मतलब यह नहीं होता की हम किसी और की देशभक्ति पर उंगली उठाते हैं..मेरे ख्याल से गांधी जी काम खत्म होते-होते नेताजी देश के लोगो की नजर में नए सेनापति हो चुके थे....हां गोखले जी की ये किताब अबतक नहीं पढ़ी है, उसे जल्द ही अवश्य पढ़ूगा....
बहुत अच्छा लगा आपके संस्मरण पढ कर । पर अमित के बात में दम है । मयदानव की कोई किताब भी है और आज उपलब्ध भी है जानकर अच्छा लगा ।
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण
ReplyDeleteचलिए यहां भी हमारी अटेंडेंस लगाइए !
ReplyDeleteनयी जानकारी मिली
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