मुझे याद है, शंकित होने पर समाधान के लिए हमारा पहला प्रश्न "यह कहाँ लिखा है " होता था ! हमें अखबार में लिखे अनजान लेख़क के कहे पर अखंड विश्वास रहता था और हर उस सुझाव और समस्या समाधान पर एक श्रद्धा भाव रहता था जो प्रिंट मीडिया से मिलता था, हमारे देश में अज्ञानता और अशिक्षा के कारण, शायद आज भी कमोवेश स्थिति लगभग वैसी ही है !
ब्लाग और गूगल की मदद से आज कोई भी अपने आपको लेख़क सिद्ध करने में समर्थ है और यह लेखन जगत के इतिहास में एक लम्बी छलांग है और भाषा की सम्रद्धता के साथ साथ परस्पर स्नेहिक संवाद कायम कराने में भी बेहद कामयाब है !
हम किसी को भी पढ़ें ,मगर पढने से पहले जान लें कि हम किसे पढ़ रहे हैं ! बहुत से लोग यहाँ अपनी मौलिक मानसिक विकृतियाँ जाने अनजाने में प्रकाशित करने में कामयाब हैं !और हम अनजाने में, वाहवाही देकर, उन्हें प्रोत्साहित करते रहते हैं ! कितने लेखकों का पुस्तकालय के सामने बैठ या हाथ में किताबें पकड़ फोटो खिचवाना, उनकी विशिष्ट मानसिकता का जीता जागता प्रतीक है ! कुछ पुस्तक संग्रह करके ,बिना पढ़े शीघ्र विद्वान् बन ,इन मनीषियों से , मुझ अनपढ़ का ,कुछ भी सीखने का मन नहीं होता !
मगर ब्लाग पॉवर देखकर मैं कभी कभी विस्मित रह जाता हूँ ! संवेदना के स्वर नामक ब्लाग लिखने वाले चैतन्य और सलिल कमाल के मित्र हैं , भिन्न भिन्न शहरों में रहते हुए भी , एक साथ ब्लाग लिखना , एक साथ टीवी देखना , एक साथ लेखन से पहले शोध करना और प्रकाशित करना आपस में भिन्न स्वाभाव के बावजूद एक साथ ब्लाग जगत के लिए चिंतन और आम आदमी की तरफ से समाज को लेखन देना , निस्संदेह इनका बहुत बड़ा उपहार है !
ब्लाग और गूगल की मदद से आज कोई भी अपने आपको लेख़क सिद्ध करने में समर्थ है और यह लेखन जगत के इतिहास में एक लम्बी छलांग है और भाषा की सम्रद्धता के साथ साथ परस्पर स्नेहिक संवाद कायम कराने में भी बेहद कामयाब है !
हम किसी को भी पढ़ें ,मगर पढने से पहले जान लें कि हम किसे पढ़ रहे हैं ! बहुत से लोग यहाँ अपनी मौलिक मानसिक विकृतियाँ जाने अनजाने में प्रकाशित करने में कामयाब हैं !और हम अनजाने में, वाहवाही देकर, उन्हें प्रोत्साहित करते रहते हैं ! कितने लेखकों का पुस्तकालय के सामने बैठ या हाथ में किताबें पकड़ फोटो खिचवाना, उनकी विशिष्ट मानसिकता का जीता जागता प्रतीक है ! कुछ पुस्तक संग्रह करके ,बिना पढ़े शीघ्र विद्वान् बन ,इन मनीषियों से , मुझ अनपढ़ का ,कुछ भी सीखने का मन नहीं होता !
मगर ब्लाग पॉवर देखकर मैं कभी कभी विस्मित रह जाता हूँ ! संवेदना के स्वर नामक ब्लाग लिखने वाले चैतन्य और सलिल कमाल के मित्र हैं , भिन्न भिन्न शहरों में रहते हुए भी , एक साथ ब्लाग लिखना , एक साथ टीवी देखना , एक साथ लेखन से पहले शोध करना और प्रकाशित करना आपस में भिन्न स्वाभाव के बावजूद एक साथ ब्लाग जगत के लिए चिंतन और आम आदमी की तरफ से समाज को लेखन देना , निस्संदेह इनका बहुत बड़ा उपहार है !
जुड़वां न होते हुए दो वयस्क व्यक्तियों द्वारा जुड़वां भाइयों जैसा वर्ताव, मनोविज्ञान के क्षात्रों के लिए शोध का विषय हो सकता है !
सारी विसंगतियों के बावजूद, हिंदी ब्लाग जगत का भविष्य बहुत शानदार है , जो बिना नाम कमाने की इच्छा लिए, समाज के लिए लिखेंगे, लोग उन्हें याद रखेंगे और वे अपने निशान छोड़ने में निश्चित रूप से कामयाब रहेंगे !
सारी विसंगतियों के बावजूद, हिंदी ब्लाग जगत का भविष्य बहुत शानदार है , जो बिना नाम कमाने की इच्छा लिए, समाज के लिए लिखेंगे, लोग उन्हें याद रखेंगे और वे अपने निशान छोड़ने में निश्चित रूप से कामयाब रहेंगे !
ReplyDeleteसहमत !!
चैतन्य और सलिल को शुभकामनायें!
ReplyDeleteहम भी टार्गेट में आ ही गए !
सहमत
ReplyDeleteभविष्य उज्जवल ही है , एक दौर से दुसरे दौर में जाने पर कुछ हलचल तो होती है कभी तूफ़ान भी आते है
ReplyDeleteham bhi aapse shmat hai
ReplyDelete@ अरविन्द मिश्र
ReplyDeleteआपकी बात का रहस्य आसानी से समझ नहीं आता मगर यकीन करें हम तमाम मतभेदों के बावजूद भी आपकी स्पष्टवादिता और निडरता के कायल है ! शक न करें !
सादर !
एकदम सार्थकता से साक्षात्कार /
ReplyDelete.
ReplyDeleteकोई जो होता मेरा अपना..
चैतन्य और सलिल जी का यह प्रयास सराहनीय है ।
ReplyDeleteउनका लेखन यूँ ही फलता-फूलता रहे ।
हमारी शुभकामनाएँ ।
एक सँशोधन !
ReplyDeleteहमारे दिये गये कमेन्ट्स को आप चाहें तो महत्वपूर्ण बना सकते हैं ।
सारी विसंगतियों के बावजूद, हिंदी ब्लाग जगत का भविष्य बहुत शानदार है , जो बिना नाम कमाने की इच्छा लिए, समाज के लिए लिखेंगे, लोग उन्हें याद रखेंगे और वे अपने निशान छोड़ने में निश्चित रूप से कामयाब रहेंगे !
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने....
बहुत सुंदर जी, आप से सहमत है
ReplyDeleteजो बिना नाम कमाने की इच्छा लिए, समाज के लिए लिखेंगे, लोग उन्हें याद रखेंगे और वे अपने निशान छोड़ने में निश्चित रूप से कामयाब रहेंगे!
ReplyDeleteबिल्कुल सौलह आने खरी बात! पूरी तरह से सहमत....
वाकई, बहुत विविध तरह का काम हो रहा है हिन्दी ब्लाग पर।
ReplyDeleteयह तो हुई वहीँ बात. की सब कह बैठे , कुछ कहा भी नही.
ReplyDeleteएक तरफ तो ब्लाग जगत मेँ प्रकाशित लेखोँ को तथ्यातमकता पर सवाल और दूसरे ओर दो भिन्न जगहोँ से लेखन कर रहे चैतन्य और सलिल का जिक्र.
पुरा कहा, सच कहा ...
अरविन्द जी, के हाथ मे " लोकस" का अंक है, माजरा साफ है. अरविन्द जी मेरा इशारा समझ गये होंगे.
भाषा की सम्रद्धता के साथ साथ परस्पर स्नेहिक संवाद कायम कराने में भी बेहद कामयाब है !
ReplyDeleteऔर शायद यह एक बड़ी उपलब्धि है.
सक्सेना साहब, आपके विचारों से स्पष्ट पता चलता है कि आप कितनी संजीदगी से इस बारे में सोचते हैं।
ReplyDeleteबाकी हमें कुछ सीखने के लिये हमेशा विद्वानों या मनीषियों से ही नहीं, बल्कि किसी से भी प्रेरणा मिल सकती है, हां संवाद रखना बहुत आवश्यक है। ये जरूरी नहीं है कि आप मेरी बात से इत्तेफ़ाक रखते ही हों, लेकिन राय रखने का हक आपको, मुझे व सबको है(of course शालीनता के साथ)|
कुछ सीरियस सोचने के लिये प्रेरित करने पर आपका आभार।
@सतीश जी आभार ,देखिये न कनिष्क कश्यप जी ने वह बात कितनी सहजता और साफगोई से कह दी जो आपको रहस्य लग रही थी .....आप को मेरी बातें रहस्य क्यों लगती है सतीश जी ? वे तो कांच की मानिंद पारदर्शी होती हैं!
ReplyDeleteहाँ हैं हम एक ही माईंड सेट के -थोडा पेंच है बस -समय के साथ वह भी स्मूथ हो लेगी इंशा अल्लाह -आप प्यारे से मासूम मनई हैं ,मुझे पसंद हैं ! आधी दुनिया में होते तो अब तक कम से कम एकाध बार लाईन भी मार चुके होते ...इसी पसंद के कारण !
@ कनिष्क कश्यप,
ReplyDeleteमेरी आदत संकेत में बात करने की और कटाक्ष करने की बिलकुल नहीं है ! यहाँ हमारे मध्य एक से एक सम्मानित विद्वान् कार्यरत हैं जिनको हम अक्सर पहचान नहीं पाते हैं अथवा उचित मान्यता नहीं दे पाते !
डॉ अरविन्द मिश्र को अपनी विद्वता प्रदर्शित करने के लिए फोटो की आवश्यकता पड़े, ऐसा सोचना भी हास्यास्पद होगा !
@ डॉ अमर कुमार ,
गुरुदेव ! यकीन करें आपका यह शिष्य गूढ़ संकेत समझने में असमर्थ है, कुछ अधिक समय देना पड़ेगा आपको ! आशा है प्यार मिलता रहेगा !
"... हम किसी को भी पढ़ें ,मगर पढने से पहले जान लें कि हम किसी पढ़ रहे हैं ! बहुत से लोग यहाँ अपनी मौलिक मानसिक विकृतियाँ जाने अनजाने में प्रकाशित करने में कामयाब हैं !..."
ReplyDeleteकामयाब हैं? बेहद कामयाब हैं. इंटरनेट की भयंकर विकृतियों में से एक है यह!
wo to he hi ki hindi jagat ka bhavisha acha he
ReplyDeletesatish jee lekhan sarthak hai to prabhavit karega
ReplyDeleteanytha beasar hee rahata hai.......
बिलकुल सही कहा आपने....एकदम सार्थकता से साक्षात्कार
ReplyDelete@ अरविन्द मिश्र ,
ReplyDelete@"आधी दुनिया में होते तो अब तक कम से कम एकाध बार लाईन भी मार चुके होते ..."
इसी पसंद के कारण लोग "ऐसे लोगों" की "इज्ज़त" नहीं करते फिर चाहें ५५ वर्षीया सतीश सक्सेना हों या अधेड़ अरविन्द मिश्रा ....
हा...हा...हा....हा.....
क्या मिलिए ऐसे लोगों से ....
सारी विसंगतियों के बावजूद, हिंदी ब्लाग जगत का भविष्य बहुत शानदार है , जो बिना नाम कमाने की इच्छा लिए, समाज के लिए लिखेंगे, लोग उन्हें याद रखेंगे और वे अपने निशान छोड़ने में निश्चित रूप से कामयाब रहेंगे !
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने...आपसे सहमत...
@ गुरुदेव ! यकीन करें आपका यह शिष्य गूढ़ संकेत समझने में असमर्थ है, कुछ अधिक समय देना पड़ेगा आपको ! आशा है प्यार मिलता रहेगा !
ReplyDeleteजब आपने बात छेड़ी ही है, सतीश भाई तो..
यह दूर तलक ले जायी, ग़र हममें यह इच्छाशक्ति हो ।
आपने पाया होगा कि इन्टरनेट पर लिखना मैंनें लगभग बन्द सा कर दिया है ।
क्योंकि एक तरह के अनाम दोगलेपन के साथ बुद्धिजीवी होने स्वाँग भरना मेरे लिये सदैव कठिन रहा है ।
मेरा सँकेत कोई गूढ़ नहीं बहुत ही स्पष्ट है, आप स्वयँ अपने टिप्पणी बक्से के ऊपर दर्ज़ मज़मून पर गौर करें ।
" एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है ! "
आपकी इस आशा में मॉडरेशन का समावेश
क्या अपने को निराश न किये जाने की एक तरह का हताश उपक्रम नहीं है ?
मुझे याद है कि आपके रक्तदान किये जाने के बाद वाली पोस्ट पर आपके ब्लॉग पर मेरी पहली टिप्पणी थी और ऎसी कोई शर्त तब लागू नहीं थी, फिर ?
वर्तमान पोस्ट में जो कुछ भी आपने लिखा है, उसमें असहमत होने का कोई स्थान नहीं हैं । क्योंकि अपने मन और हृदय से सभी पाठक यह भलीभाँति जानते हैं, पर अपनी बहकती महत्वाकाँक्षाओं के चलते अपने को जानबूझ कर भटका लेते हैं.. भला बताइये, पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या ?
बहस की न्यूनतम ग़ुँजाइश वाली इस पोस्ट पर भी यदि ब्लॉग मालिक का मॉडरेशन टिप्पणियों को पूर्वनिर्धारित दिशा दे, तो टिप्पणियाँ लेन-देन के वायदा व्यापार से कुछ अलग नहीं रह जातीं !
युद्ध के परिणाम से परिचित होते हुये भी, भीष्म पितामह का अपने वँश के रक्त, हथियार और व्यक्तियों की हानि को यूँ तटस्थ देखते रहना, एक लोकताँत्रिक सँयम ही तो था !
सो, यह स्पष्टोक्ति है, कोई गूढ़ सँकेत नहीं कि " आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं " में कमेन्ट तभी महत्वपूर्ण रह पायेंगे, जब ब्लॉग मालिक उसके महत्वपूर्ण या महत्वहीन होने को निर्धारित कर उसे यहाँ प्रकट होने देगा ! और मैंने यही लिखा भी है, " हमारे दिये गये कमेन्ट्स को आप चाहें तो महत्वपूर्ण बना सकते हैं । "
क्या यह स्थिति पूर्वनियोजित वोट ऑफ़ कान्फ़िडेन्स जैसी नहीं है ?
अब मैं मॉडरेशन आरक्षित डिब्बों में घुसता ही नहीं हूँ, पोस्ट पढ़ लेना की क्या पर्याप्त नहीं ?
मैंनें यहाँ यह घृष्टता आपसे पुराने स्नेह सम्बन्धों के चलते कर ही दी । इसके लिये क्षमा चाहूँगा ।
सारी विसंगतियों के बावजूद, हिंदी ब्लाग जगत का भविष्य बहुत शानदार है , जो बिना नाम कमाने की इच्छा लिए, समाज के लिए लिखेंगे, लोग उन्हें याद रखेंगे और वे अपने निशान छोड़ने में निश्चित रूप से कामयाब रहेंगे !
ReplyDeleteसच तो यही है
सारी विसंगतियों के बावजूद, हिंदी ब्लाग जगत का भविष्य बहुत शानदार है , जो बिना नाम कमाने की इच्छा लिए, समाज के लिए लिखेंगे, लोग उन्हें याद रखेंगे और वे अपने निशान छोड़ने में निश्चित रूप से कामयाब रहेंगे ...
ReplyDeleteऐसा ही हो ...!!
हम मित्रों द्वारा हमारे इस छोटे से प्रयास पर आपका ब्लॉग पढकर यूँ लगा, मानो किसी आम आदमी को भीड़ से बुलाकर मंच पर बिठा दिया गया हो और वो बिल्कुल सकुचाया सा है.
ReplyDeleteआपके द्वारा पीठ ठोंके जाने की खुशी भी है और इस बात की उम्मीद भी कि अब बात निकल कर विचार के स्तर तक पहुँचेगी !
आपका निश्छल प्रेम और आशीर्वाद, ब्लॉग जगत में हमारी प्रेरणा है.
मुझे अब तक यही लगता था की "संवेदना के स्वर" नामक ब्लाग लिखने वाला कोई आदमी है पर आपके पोस्ट से पता चला की एक नहीं दो आदमी है - चैतन्य और सलिल ... खैर जो भी है ... मेरा तो ये मानना है कि कोई अगर कुछ अच्छा लिख रहा है ... चाहे समाज की किसी बात पर, या अपने जज़्बात पर, अपनी जिंदगी पर ... भलमनसाहत से और संजीदगी से (हास्य व्यंग्य भी कोई सच्चे दिल से कर रहा हो) ... तो उसका स्वागत होनी चाहिए ...
ReplyDeleteपर जो लोग भौंडापन दिखने के लिए, या बस टिप्पणी बटोरने के लिए, या फिर अपनी विकृत मानसिकता का प्रदर्शन करने के लिए ब्लॉग्गिंग करते हैं, वो तज्य हैं ...
Badi khushee huee aapka aalekh padh!
ReplyDeleteChaitany aur Salil ko anek shubhkamnayen!
डॉ अमर कुमार ,
ReplyDeleteप्रतिक्रियाओं से घबराकर माडरेशन लगाना निस्संदेह अभिव्यक्तियों को बंदी बनाने जैसा है, ऐसा ही मेरा विश्वास है ! पूरे जीवन बहुत रफ और निडर जीवन जिया है मैंने उम्मीद है आप विश्वास करेंगे कि आज भी वैसा ही निडर हूँ सो माडरेशन की यह वजह किसी प्रकार का डर बिलकुल नहीं है !
अगर आप मेरे पसंद के विषय देखेंगे तो आपको जातिवाद और विभिन्न धर्मों में एकता, मेरा लक्ष्य और केन्द्रविंदु रहा है, इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ भी बिना किसी की अपमान की मंशा के कहने का प्रयत्न करता हूँ ! इस कारण कुछ शक्तिशाली ग्रुप से लगातार बुरा भला भी सुनता हूँ !
व्यक्तिगत तौर पर मेरी आलोचना की प्रतिक्रियाएं मुझे छापने में कोई कष्ट नहीं होता मगर धार्मिक असहिष्णुता और परस्पर वैमनस्य फ़ैलाने वाले कमेंट्स को छापना मैं अपराध मानता हूँ !
और यह मेरा दृढ संकल्प है !
आशा है आप संतुष्ट अवश्य होंगे !
सारी विसंगतियों के बावजूद, हिंदी ब्लाग जगत का भविष्य बहुत शानदार है
ReplyDelete-निश्चित ही इसके लिए मैं आश्वस्त हूँ.
हम त आपके भी ई बात का खंडन करते हैं कि हमरा उद्देस खाली ओही था जो आप लिखे हैं. चलिए अब हम सफाई नहीं देते हैं, इससे अऊर छोटा हो जाता है अदमी. एगो अऊर बात कि हम आपके बात का बुरा मानेंगे बोलकर त आप भी हमको बिहारिए बना दिए. आज उनका पोस्ट बहुत नीमन था त तारीफो किए हैं.
ReplyDeleteई जो दुनो अदमी का ब्लॉग के बारे में लिखे हैं, बढिया है. बाकी एक अदमी को लेकर एतना बात लिखना भी तलवारे के ऊपर चलने जइसा है. धन्यवाद!!
आप शायद इस दुनिया और इस दौर के आदमी नहीं हैं. आप लोगों को हाईलाईट कर रहे हैं, लोगों के मामले में खुद मोर्चा संभाल लेते हैं. इतना ही नहीं, हर दुखी की मदद के लिए भी आगे-आगे रहते हैं. इस पर यह भी चाहते हैं कि आपके पुण्य कार्यों की पब्लिसिटी न हो. सलाम हे युग पुरुष.
ReplyDeleteअच्छा लगा
ReplyDeleteधन्यवाद
@ सर्वत जमाल भाई !
ReplyDeleteयह आपकी भावना ही है जो मुझ तुच्छ आदमी को इतना बड़ा दर्ज़ा दे रहे हैं यकीनन मैं इस योग्य नहीं !
सादर
सर आपने सही लिखा हैं , लोग लेखनी की गरीमा की इज्जत को भूल से गएँ हैं / लोगों कों आपने सही राह दिखाने की कोसिस की हैं / सायद लोग आपकी दिल की बात को समझ पायें /
ReplyDeleteप्रयास सराहनीय है ।
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