Monday, December 27, 2010

हम अपनी शिक्षा भूल चले -सतीश सक्सेना


काफी समय पहले, ब्लाग जगत में अपने अनुभवों को लेकर ,यह हलकी फुलकी रचना लिखी थी  शायद आपको आनंद दे !

कुछ मनमौजी थे, छेड़ गए
कुछ कलम छोड़ कर भाग गए
कुछ संत पुरूष भी पतित हुए
कुछ अपना भेष बदल बैठे ,
कुछ मार्ग प्रदर्शक,भाग लिए
कुछ मुंह काले करवा आए,
यह हिम्मत उन लोगों की है,
जो दम सेवा का भरते हैं !
कुछ ऋषी मुनी भी मुस्कानों के, आगे घुटने टेक गए !

कुछ यहाँ शिखन्डी भी आए
तलवार चलाते हाथों से,
कुछ धन संचय में रमे हुए,
वरदान शारदा से लेते !,
कुछ पायल,कंगन,झूमर के
गुणगान सुनाते झूम रहे ,
मैं कहाँ आ गया, क्या करने, 
दिग्भ्रमित बहुत हो जाता हूँ !
अरमान लिए आए थे हम , अब अपनी राहें भूल चले !

कुछ प्रश्न बेतुके से सुनकर
पंडित पोथे, पढने भागें,
कुछ प्रगतिवाद, परिवर्तन
के सम्मोहन में ही डूब गए
कीकर, बबूल उन्मूलन की
सौगंध उठा कर आया था ,
मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, 
रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
ऋग्वेद पढाने आए थे ! पर अपनी शिक्षा भूल चले !!


44 comments:

  1. मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
    ऋग्वेद पढाने आए थे ! पर अपनी शिक्षा भूल चले !!
    xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
    पूरी कविता को पढने के बाद लगा .................बस कुछ न कहें तो बेहतर है .......बेहद विचारणीय पोस्ट तहे दिल से शुक्रिया ....धन्यवाद

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  2. क्षमता से अधिक दम्भ भरने में यह सह शीघ्र संभव है। हाँकोगे तो हाँफोगे।

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  3. हमे अपने सामाजिक सरोकार बहुत सोच समझ कर बनाने चाहिये । आभासी दुनिया हैं जो दिखता हैं होता नहीं हैं । एक आईना हमेशा पास रखे दिखाते रहे खुद को भी औरो को भी । बीच बचाव करने वाले अक्सर दो पाटो मे पीस जाते हैं और पाट वैसे ही रहते हैं । पाटो को ख़तम करने के लिये उनका इस्तमाल बंद करना होता हैं । दो पाटो के बीच मे कुछ होगा ही नहीं तो पाटो की अहमियत ही ख़तम हो जाएगी ।

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  4. @ बीच बचाव करने वाले अक्सर दो पाटो मे पीस जाते हैं और पाट वैसे ही रहते हैं ।
    रचना जी के इस कथन पर गौर फरमाईयेगा आप, ऐसा ही कुछ मैंने आपको अपनी पंद्रह मई वाली मेल में निवेदित किया था .
    बहरहाल अंतस का सरवस निचोड़ के रख दिया है आपने इन पंक्तियों में .................

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  5. सुन्दर कविता.
    बधाई.

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  6. @ रचना ,
    अमित के ध्यान दिलाने पर तुम्हारा कमेन्ट पढ़ा और तब जाकर अर्थ समझ आया !

    काफी हद तक इस बात से सहमत हूँ ...
    काम और उद्देश्य तो कुछ और ही था मेरा मगर भाई लोग अधिक चतुर हैं वे बेहतर फायदा उठाना जानते हैं और मैंने यह कभी सीखा ही नहीं ! कोई कक्षा बताओ :-) एडमिशन लूं तो शायद दुनिया दारी सीख लूं ...

    अगर फेल होता महसूस करूंगा तो हट जाऊँगा विवश होकर ...सब कुछ तो अपने हाथ में नहीं है !
    सादर

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  7. @ अमित ,
    अब तुम्हें तो मैं धन्यवाद देने से रहा ...रचना की बात और है !

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  8. kavita to apni lagi .... gar aap likhe to kya .....

    aur haan .... iddi-piddi baton par
    urja jaya na karen .... hum pathkon
    ka nuksan hota hai....

    aise hi gungunate rahiye.....bachhon
    ko khil-khilate rahiye

    pranam.

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  9. nand ke anand bhye,
    jai kanhiya lal ki.

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  10. सिर्फ अपनी कहिये ना समाज सुधार की सनक, ना सेवा का कोई भाव , न संत होने का बावा ना दानव होने का दंभ | जब तक इच्छा और समय है तब तक कहा जब नहीं है तो चले गये |

    ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर

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  11. bahut hi sunder aur vichar niya post...
    sabhi line dhyan dene yogya kahi gai hai......... satish ji

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  12. सच में आनंद आया पढ़ने में।

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  13. ना संत थे न ॠषि-मुनि,बस भेस बदल कर आते थे।
    शिखण्डी,मनमौजी वे तो बस भिष्म बलिदान लेते थे।
    अभिमानों से भरे हुए,स्वप्रशंसा के भिक्षुक है,
    गुलदस्तो के हत्थो में बस शूल छुपाए लाते थे।

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  14. बहुत सुन्दर और प्यारी कविता..बधाई.

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  15. जय हो ... बड़े अनुभवी अंदाज है पोस्ट लिखने का ...वाह वाह वाह

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  16. कुछ प्रगतिवाद, परिवर्तन
    के सम्मोहन में ही डूब गए
    कीकर, बबूल उन्मूलन की
    सौगंध उठा कर आया था ,
    मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
    ऋग्वेद पढाने आए थे ! पर अपनी शिक्षा भूल चले !!
    bahut gahre bhaw hain iske piche , bahut badhiyaa

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  17. सतीश जी,
    वैसे तो पूरी की पूरी कविता सच का आइना है
    मगर ये पंक्तियाँ गज़ब की हैं ,सोचने पर विवश करती हैं !
    कुछ प्रश्न बेतुके से सुनकर
    पंडित पोथे, पढने भागें,
    कुछ प्रगतिवाद, परिवर्तन
    के सम्मोहन में ही डूब गए
    कीकर, बबूल उन्मूलन की
    सौगंध उठा कर आया था ,
    मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
    ऋग्वेद पढाने आए थे ! पर अपनी शिक्षा भूल चले !!

    धन्यवाद !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  18. मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
    ऋग्वेद पढाने आए थे ! पर अपनी शिक्षा भूल चले !!

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  19. मैं कहाँ आ गया, क्या करने, दिग्भ्रमित बहुत हो जाता हूँ !
    अरमान लिए आए थे हम , अब अपनी राहें भूल चले !

    बहुत गंभीर प्रश्नों को उठाती बहुत ही सुन्दर कविता..

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  20. लोग भूलने में एक दूसरे के प्रतिस्‍पर्धी प्रतीत होते हैं।

    ---------
    अंधविश्‍वासी तथा मूर्ख में फर्क।
    मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।

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  21. हिंदी ब्लोगिंग में ये उथल पुथल तो चलती ही रहेगी ।
    बढ़िया ।

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  22. कुछ दिनों से एक व्यर्थ सा विवाद स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने के प्रयास का (आपके लिये ये बात बिल्कुल भी नहीं) देखने में आ रहा है । इसलिये उपर की टिप्पणियों में से ही एक अंश-
    ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर

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  23. बहुत सुंदर।
    ..जब आप इतना अच्छा लिख सकते हैं तो इधर- उधर व्यर्थ समय जाया क्यों करते हैं!

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  24. बेहद विचारणीय पोस्ट|धन्यवाद|

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  25. हम दीवानों की क्या हस्ती कल ब्लोग्गर थे अब नहीं रहे.
    अरे नहीं हैं अभी हम... :)

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  26. मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
    ऋग्वेद पढाने आए थे ! पर अपनी शिक्षा भूल चले
    क्या कहें... कभी कभी सच में मन उचटने लगता है यहाँ से.

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  27. हम तो अभी शिक्षा ग्रहण ही कर रहे हैं,सो भूलने का प्रश्‍न ही नहीं उठता।

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  28. बहुत सुंदर रचना जी धन्यवाद

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  29. 'कबीर तेरी झोपड़ी गल-कटियन के पास ,
    करता है सो भरेगा तू क्यों भया उदास !'

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  30. सक्सेना साहब, आपकी ये कविता बहुत शानदार है, कालजयी है। हर महीने दो महीने में यहाँ इसकी उपयोगिता जाहिर हो ही जाती है। ज्यादा कुछ कहूंगा तो फ़िर मुद्दे से हटने वाली बात हो जायेगी लेकिन आपके बारे में इतना यकीन हो गया है कि आपने साधु और बिच्छु वाली कहानी सुनी भी है और गुनी भी। तय है कि आप नहीं बदलेंगे। कमेंट सं. तीन पढ़ा तो ये लगा कि ये कह सकने लायक अपन नहीं है, चार नं. पढ़ा तो रचना जी के फ़ैन बन जाने का मन कर आया, पांच नं. वाले के हम पहले से ही मुरीद हैं। अंशुमाला जी का कमेंट भी अच्छा लगा।
    सच ये है कि आप दुखी दिखते हैं तो दुख हमें भी पहुंचता है। बेशक आप कहें कि हल्की-फ़ुल्की रचना है ये आपकी,लेकिन हमें बहुत भारी-भरकम लगी।
    आप यहाँ से जाने की सोच भी नहीं सकते, कल को अपना किसी से विवाद होगा तो हम किस पर भरोसा करेंगे कि कोई है जो बीच-बचाव करवा सकता है? हम तो आपको ’ब्लॉगिंग-ओम्बड्समैन’ माने बैठे हैं:)

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  31. शिकवे की हर पंक्ति पर खुद को फिट करने की कोशिश करके देखी , नाकाम रहा ! फिर खुशी हुई कि आपके निशाने पर मैं नहीं हूं :)

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  32. @ मो सम कौन ,

    इतने सार गर्भित टिप्पणी के लिए धन्यवाद ...आज मूड में लग रहे हो :-)

    " सक्सेना साहब " ने हमारे तुम्हारे बीच काफी दूरी पैदा कर रखी है संजय बहुत दिनों से तुम इसे छोड़ नहीं पा रहे और हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते :-(

    सतीश भाई ...भैया ...कहो तो अच्छा लगेगा और कभी कभी यार ... कहो तो

    http://www.youtube.com/watch?v=XoZEkJouqZo

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  33. हिन्दी ब्लॉगजगत का सार डाल दिया जी इस रचना में आपने
    सचमुच कालजयी रचना है और बेहतरीन अभि्व्यक्ति
    एक ममता भरे प्यारे दिल से निकली हुई

    प्रणाम

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  34. जय हो ब्लॉग भाग्य विधाता.........

    आप कविता बहुत सुंदर लिखते है..... बढिया लगती है.... "मेरे गीत" सही मायने में गीत लगते है..... पर के बार हम जैसे "बुरबक" की पान कि दूकान यहाँ सजाते है तो ठीक नहीं रहता....

    ये ज्ञान आपकी कविता पढ़ कर ही अभी प्राप्त हुवा है.

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  35. ऋग्वेद पढाने आए थे ! पर अपनी शिक्षा भूल चले !!

    धर्मेंद्र फिल्मों में नए आए थे...कुछ साल बाद उन्होंने देखा कि हिंदी फिल्मों में बगैर डांस सीखे काम नहीं चल सकता...उन्होंने डांस सीखने के लिए एक मास्टर जी को घर बुलाना शुरू कर दिया...तीन चार महीने बाद धर्मेंद्र तो डांस की एबीसी भी नहीं सीखे, हां मास्टर जी ने धर्मेंद्र के साथ रहते हुए पैग चढ़ाना ज़रूर सीख लिया...

    जय हिंद...

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  36. जनाब सतीश सक्सेना साहब ! इतनी सुंदर पोस्ट ब्लाग जगत को देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

    ऐसा लगता है मानो आपने मेरी पीड़ा को ही स्वर दे दिया हो ।

    मैं चाहता हूं कि आप इस ब्लाग को हिंदी के उन तमाम एग्रीगेटर्स पर जोड़ दीजिए जिनका ज़िक्र आज
    blogbukhar.blogspot.com
    पर किया गया है ।

    मेरे ब्लागअहसास की पर्तें की पोस्ट पर कमेंट देने के लिए शुक्रिया ।

    आने वाले समय में आप सभी शब्द प्रहरियों का जलवा बढ़ने वाला है क्योंकि एग्रीगेटर्स बढ़ते ही जा रहे हैं। हिंदी ब्लागिंग उत्तरोतर बेहतर होती जाएगी ।

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  37. कुछ ऋषी मुनी भी मुस्कानों के, आगे घुटने टेक गए !
    वाह भाई जी यह तो कालजयी कृति है ......इसमें हम सब अपना मुंह निहार सकते है!
    आपने आईना १८० डिग्री हमारी ही और मोड़ दिया है -बड़ी ना इंसाफी है ! :)

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  38. @ जनाब खुशदीप साहब !
    दोबारा आया तो आपके कमेँट पर ठिठकना पड़ा और पेट की गहराई से हंसना भी पड़ गया । हालांकि पूरे संदर्भ को तो समझ नहीं पाया लेकिन आपने एक ट्राजिक पोस्ट पर कॉमेडी क्रिएट करके माहौल की घुटन को काफ़ी कम कर दिया है ।
    nice post
    पे
    nice comment .
    :) :)


    Thanks .

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  39. पतित,
    भेष बदल बैठे ,
    मुंह काले करवा आए,
    शिखन्डी
    बेतुके
    बबूल
    रंजिश के द्वारे

    गुरुदेव कविता हल्की हो या भारी, क्या शब्दों की धार है... ऐसी कविता कभी हल्की नहीं हो सकती.. एक भोगा हुआ यथार्थ है यह और पंक्ति पंक्ति में अनुभव की गूँज सुनाई देती है.
    "मो सम कौन" ने तो बाकी बातें कह दी हैं, मैंने कहा तो पुनरावृत्ति होगी.
    नव वर्ष की शुभकामनाएँ!!

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  40. अच्छी कविता है सर। बेहद अच्छी।

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  41. सार्थक रचना ...

    कल के चर्चा मंच पर आप नहीं आये ..वहाँ आपकी फोटो लगी हुई है ...:):)

    वैसे भी आपकी धमकी के सामने डर ही गयी थी :):) केवल मजाक है ....

    आपकी यह कविता बहुतों को सीख दे रही है

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  42. सीख देती हुई, विचारणीय प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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