Saturday, September 14, 2013

वह कौन सी फिरदौस थी,जिसने हमें चाहा नहीं ! -सतीश सक्सेना

कुछ घर सरीखे हैं यहाँ, जिनमें कोई चूल्हा नहीं, 
इंसान ही कहते इन्हें , रोने को भी कन्धा नहीं ! 

देखा जिसे भी प्यार से, इकरार ही हमको मिला !
वह कौन सी फिरदौस थी, जिसने हमें चाहा नहीं !
  

हमने जीवन में कभी, कुछ भी, कहीं माँगा नहीं !
वह कौन साझी दार था, जिसने हमें समझा नहीं !

कुछ दिन गुज़ारे थे यहीं , नरभक्षियों के गाँव में

शायद ही कोई था बचा जिसने हमें खाया नहीं !

इक दरिंदे ने आंत खींची थी, तड़पते ख्वाब की 
ये कौन सा इंसान था, जिसने ज़िबह देखा नहीं !

28 comments:

  1. अंतड़ियाँ खींचीं गयीं थी ,तडपते उस ख्वाब की !
    वह कौन सा क़ानून था,जिसने कतल देखा नहीं !

    अंतड़ियाँ खींचीं गयीं थी ,तडपते उस ख्वाब की !
    वह कौन सा क़ानून था,जिसने कतल देखा नहीं !

    शैतान शर्मिन्दा हुआ ,शैतान को देखा नहीं।

    अपराध उसका बालकों के वर्ग में रखा गया ,

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  2. वह कौन सा घर है,जहाँ जलता कभी चूल्हा नहीं !
    वह कौन बदकिस्मत यहाँ,रोने को भी कंधा नहीं !

    ....सुंदर उम्दा वाह वाह बहुत खूब ...बहुत सुन्दर सच्ची बात लिखी आपने....बहुत पसंद आया यह शेर

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  3. बहुत ही बेहतरीन और सार्थकता से भरपूर सुन्दर ग़ज़ल।

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  4. सभी पाठकों को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल परिवार की ओर से हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    --
    सादर...!
    ललित चाहार

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  5. वह कौन फिरदौस थी , जिसने हमें चाहा नहीं !
    ऐसी कोई हुई नहीं जिसने चाहा नहीं ,
    ऐसी एक वह कौन थी जिसने चाहा नहीं। …
    शब्द एक , पंक्ति एक , अर्थ भिन्न !

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    Replies
    1. आपका बहुत बहुत शुक्रिया वाणी जी ..
      आपकी इस टिप्पणी से पाठकों को फ़ायदा होगा अन्यथा कोई इसमें गर्व की झलक देखेगा और कोई आशिकी ...
      अधिकतर लोग शब्द का अर्थ तलाशते हैं, कविताओं में ...

      :)

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  6. मार्मिक गज़ल । सुन्दर शब्द रचना । बधाई ।

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  7. बहुत ही उम्दा सतीश भाई , सभी एक से एक बेहतरीन पंक्तियां हैं ।

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  8. देखा जिसे भी प्यार से, इकरार ही हमको मिला !
    वह कौन सी फिरदौस थी,जिसने हमें चाहा नहीं !
    बहुत उम्दा.

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  9. नर-पिशाचों से अब कानून ने मुक्ति दिलायी है, बस ऐसे ही दो चार ताबड़तोड़ फैसले आ जाए तो देश का नक्‍शा ही बदल जाए।

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  10. नरभक्षी/दानव/दरिन्दे समाज में किस मुखोटे में मुंह छुपाये फिरते हैं ,मालूम करना कठिन है.
    कोई जिस्म तलाशता नोचने को है तो किसी को चिंगारी की तलाश भर रहती हैं औरों को जला देने के लिए.

    मर्म को भेद पीड़ा दे गयी यह रचना.

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  11. हमने,जीवन में कभी, कुछ भी कहीं, माँगा नहीं !
    वह कौन साझीदार थी,जिसने हमें समझा नहीं !
    एक से एक अर्थपूर्ण सुन्दर पंक्तियाँ, बढ़िया रचना है सतीश जी !

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  12. बहुत ही सटीक और विचारणीय रचना.

    रामराम.

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  13. आस पास होने वाली घटनाओं से प्रेरित खूबसूरत गज़ल ....

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  14. वह कौन सा घर है,जहाँ जलता कभी चूल्हा नहीं !
    वह कौन बदकिस्मत यहाँ,रोने को भी कंधा नहीं !

    बहुत खूब सतीश जी ... काश की कोई भी घर ऐसा न हो मेरे देश में ...

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  15. अवर्णनीय पीड़ा की मुखर अभिव्यक्ति..... बधाई स्वीकारें

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  16. सटीक,सार्थक और हृदयविदारक!

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  17. अत्यन्त मार्मिक रचना ,

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  18. सार्थकता से भरपूर..........

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  19. वह कौन सा घर है,जहाँ जलता कभी चूल्हा नहीं !
    वह कौन बदकिस्मत यहाँ,रोने को भी कंधा नहीं !

    वाह वाह !!! बहुत सुंदर सार्थक गजल ! बेहतरीन , बधाई सतीश जी !!

    RECENT POST : बिखरे स्वर.

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  20. देखा जिसे भी प्यार से, इकरार ही हमको मिला !
    वह कौन सी फिरदौस थी,जिसने हमें चाहा नहीं !

    वाह वाह ! गंभीरता में भी रोमांस !

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  21. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  22. बहुत ही बेहतरीन और सार्थक ।

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  23. बहुत खुबसूरत भावमय रचना !!

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  24. मन की पीड़ा व्यक्त करने में शब्द सदा ही आपका साथ देते हैं, तनिक हमें भी कुछ आशीर्वाद दे दें।

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  25. aapki kavitayen aur abhivyakti sundartam. Kuchh sabdo mey hi jeevan ki kahani kahna sirf kavita se hi ho sakta hai. Pl continue we all enjoy your poems

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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