मानव कुल में ले जन्म, बाँट ,
क्यों रहे अरे अपने कुल को,
कर वर्ण व्यवस्था नष्ट,संगठित
कर पहले अपने कुल को !
हो एक महामानव विशाल ! त्यागो यह भेदभाव भारी !
तुलसी की विह्वलता में बंध, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
क्यों रहे अरे अपने कुल को,
कर वर्ण व्यवस्था नष्ट,संगठित
कर पहले अपने कुल को !
हो एक महामानव विशाल ! त्यागो यह भेदभाव भारी !
तुलसी की विह्वलता में बंध, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
सतीश जी , पढ़ के अच्छा लगा. एक अच्छा सन्देश और नया अंदाज़.
ReplyDeleteसंवेदित करती हुयी पंक्तियाँ। बँटने में वह आह्लाद कहाँ जो संग रह कर आनन्द उठाने में है।
ReplyDeleteबढ़िया रचना...बधाई
ReplyDeleteमानव कुल में ले जन्म, बाँट ,
ReplyDeleteक्यों रहे अरे अपने कुल को,
कर वर्ण व्यवस्था नष्ट,संगठित
कर पहले अपने कुल को !
bahut achchha sandesh deti rachna ...
कर वर्ण व्यवस्था नष्ट,संगठित
ReplyDeleteकर पहले अपने कुल को !
सुन्दर सार्थक सन्देश। बधाई।
सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और सशक्त रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
सुन्दर रचना है बधाई।
ReplyDeleteगुरुदेव! एक पखवाड़े पहले से ही दीवाली के आगमन की पूर्वसूचना दे दी आपने!!बहुत सुंदर गीत!!
ReplyDeleteअच्छी बात कही सबको सुनना और समझना चाहिए |
ReplyDeleteन्यून शब्दों में मानवीय विभेद वेदना॥ सार्थक
ReplyDeleteसतीश जी ,
ReplyDeleteहमारी दुआओं और उम्मीदों के पूरे होने की दिशा में क़दम उठने लगे हैं
भेद-भाव का ख़ातमा ,वर्ण व्यवस्था का अंत,छुआछूत का अंत अब सामने दिखने लगा है ,
हालांकि आज भी हमारी कथनी और करनी में अंतर होता है लेकिन हमारी नई पीढ़ी इन चीज़ों में विश्वास नहीं करती वो देश की मज़बूती में यक़ीन रखती है
बहुत सुंदर पंक्तियां !
कर वर्ण व्यवस्था नष्ट कोई इस लाइन को अन्यथा न लेले वैसे मानव कुल शव्द प्रयुक्त हुआ है इसलिये दूसरा अर्थ लगाना तो नहीं चाहिये क्योंकि आगे भेदभाव त्यागने को भी कहा जारहा है तथा अपने कुल को संगठित करने का भी कहा जारहा है अपना कुल यानी मानव कुल ।अच्छा संदेsh
ReplyDeleteज्योति-पर्व दीपावली पर सपरिवार,हमारी मंगल-कामनाएँ स्वीकार करें.
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना...वास्तव में काफ़ी कुछ तो वाह्य आडंबर ही होता है...त्योहार हो या रीति रिवाज...प्रणाम
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