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निर्बल भाई को बहुमत से , घर बाहर फेका है, हमने !
आचरण बालि के जैसा कर क्यों लोग मानते दीवाली?
Wednesday, October 27, 2010
आचरण बालि के जैसा कर क्यों लोग मानते दीवाली ? -सतीश सक्सेना
12 comments:
एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !
- सतीश सक्सेना
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sandarbh samjh nahee pa rahee hoo.........
ReplyDeleteshayad meree samjh kee kamee hee aade aa rahee hai ...........
mere vichar me bali ki poori katha ko aap fir se padhen, baali ke aachran me aisa kuchh nahin tha jo doshpoorn ho.
ReplyDelete@ अपनत्व जी ,
ReplyDeleteसामाजिक बुराई और जातिगत भेदभाव पर लिखी यह पंक्तियाँ १९९४ में लिखी एक लम्बी कविता का हिस्सा है ! सादर
निर्बल भाई को बहुमत से , घर बाहर फेका है, हमने !
ReplyDeleteआचरण बालि के जैसा कर क्यों लोग मानते दीवाली?
बिलकुल सही कहा। भाई वाद के लिये बाली का बिम्ब मुझे तो सही लगा। शुभकामनायें।
भाई(बालि)-भतीजा(अंगद)वाद पर आपके सदभाव पूर्ण विचारों को पुन: स्थापित करती अद्भुत पंक्तियाँ।
ReplyDeleteसतीश जी एक सुझाव है। कैसा रहे अगर आप इस कविता के अब तक प्रकाशित सभी पदों को एक साथ दे दें। और आगे बचे हुए पद एक एक कर जोड़ते जाएं। मेरी समझ से ऐसा करने से नए पाठक पूरी कविता का संदर्भ समझ सकेंगे और पुराने नए पद को पढ़कर अपनी टिप्पणी कर सकेंगे।
ReplyDelete1994 में लिखी गई कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक लगती है। बधाई।
सतीश भाई क्या बात है ?
ReplyDeleteइन दिनों ज़ज़्बाती हो रहे हैं !
@ राजेश उत्साही जी ,
ReplyDeleteबात आपकी ठीक लगी , अगले पद में सन्दर्भ दिया जाएगा !
आभार
..क्यों मनाते दीवाली
ReplyDelete..सुंदर तरीके से सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार का प्रयास।
भाई भाई में प्रेम रहे औऱ दीवली मने।
ReplyDeleteकुछ पंक्तियाँ भी इतनी प्रभावशाली हैं , पूरी कविता छापें जल्दी से !!
ReplyDeleteसही है बाली की तरह का ही आचरण हो रहा है आज कल । आज कल ही क्यूं आदि काल से ही ।
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