Thursday, October 7, 2010

मेरे ब्लाग के आदरणीय पाठकों से एक विनम्र अनुरोध -सतीश सक्सेना

आज बेहद कष्ट में हूँ ...

वे शंकित, कुंठित मन लेकर,
कुछ पत्थर हम पर फ़ेंक गए
हम समझ नही पाए, हमको 
क्यों मारा ? इस बेदर्दी से ,
हम चोटें लेकर भी दिल पर, अरमान लगाये बैठे हैं !



मेरे ब्लाग के आदरणीय पाठकों से एक विनम्र अनुरोध है कि मेरे लेख पढ़ते समय कृपया ध्यान रखें -
  • वे नफ़रत बांटे इस जग में हम प्यार लुटाने बैठे हैं ...मेरा प्रमुख उद्देश्य है ! और यहाँ छपे प्यार के लेख
    दिखावटी नहीं बल्कि दिल से निकले हैं ! किसी व्यक्ति , धर्म अथवा पार्टी का नाम लेकर, अपमान करने के उद्देश्य से कहे कमेन्ट यहाँ नहीं छापे जायेंगे ! कुछ लोगों का यह मानना है कि विरोध की आवाज सहन करने की हिम्मत नहीं है वे इसे शौक से मेरी कायरता मान लें इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है !
  • आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !
  • ब्लागजगत में , मैं  अपनी  की गयी प्रतिक्रियाओं अथवा लेखों से पहले मैं यह जानने की कोशिश कभी नहीं करता कि जिनकी मैं तारीफ़ कर रहा हूँ वे काफी समय से मुझसे नफरत करते रहे हैं अथवा बेहद नाराज हैं ! जो व्यक्तित्व मुझे अच्छे लगे मैंने उनसे बिना चर्चा किये और बताये उनकी तारीफ और सम्मान में ही लिखा  अगर उन्हें मेरे द्वारा अपनी तारीफ करना ख़राब लगा हो या किसी विशेष उद्देश्य को लेकर लगा हो तो मुझे बताएं ताकि मैं अपनी गलती सुधार सकूं अथवा स्पष्टीकरण दे सकूं !कमसे कम इसका उद्देश्य उनका सहयोग पाना तो बिलकुल नहीं रहा है ! हाँ अपनी "मूर्खता " और उनके  "बड़प्पन" को न समझ पाने पर, पछतावा अवश्य रहा है !  
  • मेरे लेख पढ़ते समय गलत फहमी न पालें कृपया  ध्यान रहे कि मुझे गीत ,कविता और ग़ज़ल के शिल्प का कोई ज्ञान नहीं है न ही हिंदी भाषा का विद्वान् हूँ  तथा लिखते समय टंकण तथा वर्तनी की गलतियाँ स्वाभाविक हैं !
  • मेरा उद्देश्य किसी को भावनात्मक चोट पंहुचाने का कभी नहीं रहा अगर किसी को दुःख हुआ हो तो  हार्दिक क्षमा प्रार्थी हूँ !
जिगर मुरादाबादी का एक शेर आपकी नज़र है ...


उनका जो फ़र्ज़ है वो अहले सियासत जाने
मेरा पैगामें मुहब्बत है , जहाँ तक पंहुचे !

51 comments:

  1. हम तो आपके ब्लॉग में यदा कदा ही आतें है, जहाँ तक हमें पता है आप लोगों की एक टोली है और आपकी ब्लॉग पोस्ट भी ज्यादातर उन्ही लोगों के इर्द गिर्द घूमती है, शायद कभी टोली में टालमटोल हो जाता है, तो मामला पेचीदा हो जाता होगा. खैर जानकारी तो अच्छी ही दी है आपने, टोली के बाहर के लोगों के लिए भी लाभदायकहै .

    लिखते रहिये ...

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  4. हज़ारों हज़ारों नहीं लाखों लाखों वर्ष तक नफरत बाँट के देख ली.........

    क्या मिला सिवा संताप के ?

    अब तो प्यार की ही बात होनी चाहिए..........

    अच्छी पोस्ट !

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  5. @आदरणीय सतीश जी

    लगता है कोई सीरियस बात है

    ऐसे टाइम पर मैं तो चुप्पी साध लेता हूँ

    पर ऊपर दिए लिंक काम नहीं कर रहे हैं
    इसलिए कमेन्ट करना पड़ा :)

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  6. सतीश भाई,
    लगता है वाकई मक्खन और ढक्कन का चांद पर जाकर गम गलत करने का वक्त आ गया है...गाना गाते चलते हैं...चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो, हम हैं तैयार चलो...

    वैसे गाना ये भी बड़ा जानदार है-

    फूल आहिस्ता फेंकों,
    फूल बड़े नाज़ुक होते हैं,
    वैसे भी तो हम बदकिस्मत.
    सेज पे कांटों की सोते हैं...

    जय हिंद...

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  7. दरअसल हम ने धर्म और पूजा पद्धति को एक ही मान-समझ लिया है. जिस रोज़ हमें यह मालूम हो जाएगा कि वास्तव में धर्म क्या है, शायद उसी दिन से इन समस्त समस्याओं का अंत होना शुरू हो जाएगा.
    नासिर काज़मी के दो शेर उस माहौल की नज़्र जिसकी बिना पर सतीश सक्सेना जैसी शख्सियत को ऐसी पोस्ट लिखनी पडती है-
    इतना मानूस हूं सन्नाटे से
    कोई बोले तो बुरा लगता है
    सरे-बाज़ार है यारों की तलाश
    जो गुज़रता है, खफा लगता है.

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  8. " जहाँ तक हमें पता है , आपकी एक टोली है ", इसमे कोई राय नहीं है जनाब, इसका मतलब है की हमारा अनुमान है, बस ...
    बाकी आपकी बातें आप जाने, किसी को ठेस पहुचाने का अपना कोई इरादा नहीं है, हम तो इतना कर सकते है की दुआ करें की आपका मूड जल्दी ठीक हो जाये. ये लीजिये हमारी तरफ से, आशा है कुछ मदद मिलेगी. इस कमेन्ट को पढ़ कर डिलीट कर दें तो बेहतर, ये रचना अभी भाई ने ब्लॉग में नहीं डाली है, आप ही रख लीजिये.. हमारी तरफ से :) खुश रहिये ...

    जो हो गया, सो हो गया,
    शोक न कर, खेद न कर,
    क्या ?क्यों ? कैसे ? सोच कर,
    दिमाग की संधि विच्छेद न कर !

    टीना नहीं, मीना सहीं,
    मीना नहीं, लीना सही,
    जो मिल गया, वो मिल गया,
    जो ना मिला, वो ना सहीं !
    सम्मान कर तू रूप का,
    यौवन में कोई भेद न कर !
    शोक न कर, खेद न कर ...

    जिंदगी में वैसे ही बहुत,
    ग़मों का लगा अंबार है,
    दुखों से पहले ही बहुत,
    भरा हुआ संसार है,
    पहले से फटी जिंदगी,
    फटें में तू और छेद न कर !
    शोक न कर, खेद न कर ...

    ग़म को न दे तवज्जो तू ,
    ख़ुशी से न तू फूल जा,
    बस ले मज़ा हर पल का एक,
    जीवन है झूला, झूल जा !
    यादों को याद कर कर के,
    क्या भला तू पाएगा ?
    बढेगा बस दुख ही तेरा,
    बस सोच कर थक जाएगा.
    इसलिए मियां 'मजाल',
    विचारों की परेड न कर !
    शोक न कर खेद न कर ...

    माना की हर कदम इसके,
    मुसीबतें और आफत है,
    मगर प्यारे, जहाँ जिन्दा,
    अपनी जाँ जब तक सलामत है !
    अभी सजी हुई बाज़ी,
    अभी तो तू न हारा है,
    बीच में यूँ छोड़ना,
    'मजाल' न गवाँरा है,
    बाकी अभी फिल्म बहुत,
    'interval ' में ही 'the end ' न कर !
    शोक न कर, खेद न कर ....

    ReplyDelete
  9. " जहाँ तक हमें पता है , आपकी एक टोली है ", इसमे कोई राय नहीं है जनाब, इसका मतलब है की हमारा अनुमान है, बस ...
    बाकी आपकी बातें आप जाने, किसी को ठेस पहुचाने का अपना कोई इरादा नहीं है, हम तो इतना कर सकते है की दुआ करें की आपका मूड जल्दी ठीक हो जाये. ये लीजिये हमारी तरफ से, आशा है कुछ मदद मिलेगी. इस कमेन्ट कोपढ़ कर डिलीट कर दें तो बेहतर, ये रचना अभी भाई ने ब्लॉग में नहीं डाली है, आप ही रख लीजिये.. हमारी तरफ से :) खुश रहिये ...

    ReplyDelete
  10. अरे भाई किसनें दुःख पहुंचा दिया आपको ? मुहब्बत बांटने वालों को दुखी नहीं होना चाहिए थोड़ी बहुत असहमतियां तो चलती ही रहती हैं !

    ना जानें क्यों ,आपकी पिछली पोस्ट पर ज्यादा सख्त लिखते लिखते ठहर गया आज लगता है ठीक हुआ वर्ना मेरे सर भी आपको कष्ट पंहुचानें का गुनाह आ जाता !

    आप जो लिख रहे हैं वो सकारात्मक नज़रिये से और देश गौरव के लिए पर इसकी ओट में कितनें अपचारी तर जायेंगे ऐसा दूसरों को भी लिखने दीजिए ! जब दिल्ली में गेम्स चल रहे है तो वैचारिक भिन्नताएं भी स्पोर्टिंगली ली जानी चाहिए मित्र !

    उम्मीद है आप मेरी बात का बुरा नहीं मानेंगे फिर भी अग्रिम खेद सहित !

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  11. शुक्रिया गौरव ,
    लिंक ठीक कर दिया है !

    ReplyDelete
  12. आपका यह निवेदन ज़रूर किसी विशेष प्रयोजन से होगा ...अपनी पोस्ट के द्वारा हमें भी जागरूक करने के लिए आभार

    ReplyDelete
  13. एक छोटी सी रचना मेरी भी :)

    मुझे इस पोस्ट के विषय का ज्ञान नहीं है अतः इसे एक ग्लोबल रचना समझें

    पता है हमें
    नियम से
    होने पर बंधे
    आये दिन
    होते हैं पंगे
    फिर भी
    चापलूस बन कर
    जीने से तो
    हम पंगेबाज
    ही चंगे
    हर हर गंगे
    हर हर गंगे :))

    चापलूसों की
    वाहवाहियों के रंग
    जमा कर के
    चाहे कोई
    मनाये होली
    स्पष्टवादी तो अपने
    विचारों से बनाते हैं
    सुन्दर सी रंगोली
    इसे भी कहते हैं होली
    वो भी बिना टोली

    @मजाल जी
    टोली तो सबकी होती है [सिवाय मशीनों के] पर नियमों से बंधे लोग शायद टोली में रहकर भी टोली के नहीं हो पाते या कहें टोली उनकी नहीं होती , पता नहीं :) [ये भी एक ग्लोबल विचार है किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है ...सभी के लिए है :)


    @ आदरणीय सतीश जी
    जैसा की मैं बता चुका हूँ मुझे सन्दर्भ की जानकारी नहीं है अतः ये टिप्पणी किसी तरह के पूर्वाग्रह सी लगे तो हटा दीजियेगा

    ReplyDelete
  14. सुन्‍दर लेखन के लिये बधाई,बहुत ही अच्‍छा लिखा है, शुभकामनायें ।

    ReplyDelete
  15. आदरणीय सतीश जी
    .....बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  16. सतीश जी ,
    नमस्कार,मुझे नहीं मालूम कि आप के दुख का कारण क्या है और कौन है,लेकिन अगर आप साफ़ और सच्चे मन से लिख रहे हैं तो लिखते रहिये,दूसरों को अपनी तरह से सोचने का पूरा हक़ है उन्हें सोचने दीजिये,मुझे अपना एक शेर याद आता है

    ये उस पे मुन्हसिर(निर्भर) है मेरा साथ दे न दे
    हक़गोई(सच बोलना) के सफ़र में सऊबत
    ( कठिनाई) ज़्यादा है

    आप अपना सफ़र जारी रखें

    ReplyDelete
  17. सतीश जी क्‍या बात है, पहले खुशदीपजी और आज आप? कहीं कुछ तो है जो आप जैसों को परेशान कर रहा है? धैर्य रखिए, कुछ लोगों को पता ही नहीं होता कि वे क्‍या कर रहे हैं? यह विचारों का मंच है, सभी अपने विचार रखते हैं, फिर व्‍यक्तिगत नाराजी का कोई कारण समझ नहीं आता है।

    ReplyDelete
  18. सतीश जी,

    क्यों खोल देते हो इस तरह दिल के छाले?
    लोग अक्सर मुठ्ठी में नमक लिये होते है।

    ReplyDelete
  19. अब कुछ-कुछ समझ में आ गया जी कि क्या घट चुका।
    खैर कुछ खास बात नही है ये तो
    आप दोनों दिलों में कडुवाहट ना लायें जी
    आपने जो किया सही किया और उन्होंने जो कहा होगा वो भी सही कहा होगा।
    आपकी बात ठीक ही है कि व्यक्तिगत आक्षेप (चाहे किसी पर भी हो) और द्वेष वाली टिप्पणी हटा देनी चाहियें।
    इसका जिम्मेदार ब्लॉग स्वामी ही होता है।

    आशा है कि वे भी आपके दिल को समझेंगें।
    प्रणाम स्वीकार करें

    ReplyDelete
  20. अच्छा लगा कि आप ने अपने ब्लॉग कि आचार सहिता बता दी । हर ब्लॉग कि होती हैं और कमेन्ट मोद्रशन ब्लॉग मालिक का अधिकार हैं । इस पर कभी आपत्ति दर्ज नहीं की जा सकती ।

    परन्तु एक बात ध्यान देने योग्य हैं कि ब्लॉग एक सार्वजनिक मंच , यहाँ प्रिंट मीडिया कि तरह पाठक केवल पढ़ कर आगे नहीं जाता वो अपनी प्रतिक्रया देता हैं । आप क्या लिखते अगर वो पाठक कि नज़र मे गलत हैं तो वो तुरंत कहता हैं कमेन्ट डिलीट होने कि स्थिति मे पाठक उसको अपने ब्लॉग पर दे सकता हैं आप के ब्लॉग के लिंक के साथ ।
    हमारी सोच हमारी अपनी हैं पाठक कि अपनी लेकिन सार्वजानिक मंच पर हम क्या सन्देश दे रहे हैं और उसके दूर गामी परिणाम क्या होगे इस समाज पर इस लिए जागरूक पाठक अगर हमारी रुढ़िवादी सोच को गलत साबित कर देता हैं अपने तर्कों से । ब्लॉग कि यही विशेषता हैं ।

    आप को लगता हैं प्यार फैलाने के लिये बस वही लिखो जो सबको अच्छा लगता सही हैं आप का ब्लॉग हैं लेकिन वो सही अगर सार्व्व्जनिक मंच पर सही नहीं हैं या नहीं लगता हैं तो क्या आप को अपने ब्लॉग का लिंक भी कही देने पर आपति हैं ?? अगर हाँ तो स्पष्ट कर दे ।

    ReplyDelete
  21. सतीश जी ... ये कविता मैं पहले भी पढ़ चुका हूँ ... शुक्रिया दुबारा पढ़वाने का ....
    बाकी ...... इस दुनिया में हर तरह के लोग होते हैं ....

    कुछ तो लोग कहेंगे ...
    लोगों का कम है कहना ...

    ReplyDelete
  22. पोस्ट का उद्देश्य समझ नहीं पाया. लगता है कुछ घटा है जिससे अनजान हूँ. आपकी बातों से सहमत हूँ.

    ReplyDelete
  23. mere geet - senty
    lightmood - bindas

    so pl. bhaijee jump over from mere
    geet to lightmood....

    aisa hi kuchh khushi k deep par bhi
    dekhne ko mila ......

    samaj me achhi cheejen bahot hi kum
    hai .... agar kshudratvash .... log
    oose bhi khatm karna chahen to ....
    kam se kam achhe logon ko samne aana chahiye.......

    ReplyDelete
  24. आपका विनम्र अनुरोध, पोस्‍ट है या चेतावनी, एकबारगी समझ नहीं सका.

    ReplyDelete
  25. mere geet - senty
    lightmood - bindas

    so pl. bhaijee jump over from mere
    geet to lightmood....

    aisa hi kuchh khushi k deep par bhi
    dekhne ko mila ......

    samaj me achhi cheejen bahot hi kum
    hai .... agar kshudratvash .... log
    oose bhi khatm karna chahen to ....
    kam se kam achhe logon ko samne aana chahiye.......

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  26. सतीश जी , मामला समझ तो नहीं आ रहा । लेकिन शायद घर की ही बात लगती है । घर में ही सुलझा लें तो बेहतर ।

    ReplyDelete
  27. असली कारण समझ नहीं आया ?

    ReplyDelete
  28. कुछ तो खास हुआ ही होगा..
    वरना वो यूँ खफा नहीं होता....


    -वजह नहीं पूछूँगा -बस, इतना कहना चाहता हूँ कि आप अपना कार्य करते चलें. आप किसी को ठेस नहीं पहुँचा रहे, किसी का विरोध नहीं कर रहे हैं, दिल के भाव लिख रहे हैं तो फिर चिन्ता किस बात की. कोई ऐसा वैसा कमेंट आ जाये जो विवाद की स्थिति उत्पन्न करता हो, तो उसे अलग करें और मस्त रहें...


    उनका जो फ़र्ज़ है वो अहले सियासत जाने
    मेरा पैगामें मुहब्बत है , जहाँ तक पंहुचे !


    -यहाँ तक आ गया पैगामे मुहब्बत आपका...जस्ट पावती दे रहा हूँ. :)


    अनेक शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  29. .

    सतीश जी,
    यदि मुझसे कोई गलती हो गयी हो तो क्षमा कीजियेगा।

    .

    ReplyDelete
  30. आपको साधुवाद.

    ReplyDelete
  31. झंडू बाम मलिए आगे बढिए -किसकी किसकी पूंछ उठाकर देखिएगा ?

    ReplyDelete
  32. .

    सतीश जी,

    वैसे बात तो किसी को भी समझ नहीं आई है, लेकिन इतना ज़रूर कहूँगी, कभी न कभी हर किसी का दिल दुखता ही है यहाँ और मन आहत होता है। जब मेरे साथ ऐसा हुआ था तो आपने मुझसे सहानुभूति नहीं रखी थी , बल्कि मुझे माफ़ी मांगने के लिए कहा। आपने जरूरी भी नहीं समझा ये जानना की किसी का मन कितना उदास और दुखी है। आज आप किसी की वजह से दुखी हैं। समझ सकती हूँ आपका दुःख। भुला दीजिये उस व्यक्ति को, वो जो भी है। माफ़ी भी मत मांगिये दुष्टों से।

    आभार।

    बुरा लगे तो मत प्रकाशित कीजियेगा।

    .

    ReplyDelete
  33. @ रचना जी,
    आपकी बात सही है , अगर आपको मेरी बात सही नहीं लगती तो आप मुझसे यह उम्मीद न रखें कि मैं आपकी टिप्पणी को प्रकाशित करूँ ! हाँ आप इस घटना को अपने ब्लाग पर लिखते समय मेरा लिंक अवश्य दें मुझे कोई आपत्ति नहीं है !

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  34. टोली हो चाहे गोली हो
    पर बोली सदा मीठी हो

    जन्‍मभूमि बाबरी विवाद हल करने का उपाय

    शायद आप भी सहमत हों। यह आप सबके विचार करने के लिए है। नहीं पढ़ा तो टॉवर फिलासफी कैसे समझ पायेंगे।

    ReplyDelete
  35. @ डॉ दिव्या,
    मुझे अच्छा लगा आपका शिकायत करना, ब्लाग जगत में इस तरह के उन्मुक्त मन और आत्मविश्वास कम ही देखने में आते हैं ...
    खैर !
    उस घटना में, मुझे आपसे बेहद सहानुभूति थी और अब भी है , मैंने खुलकर विरोध आप दोनों पक्षों में से किसी का नहीं किया क्योंकि मेरे मन में उठे बहुत से प्रश्नों का उत्तर मेरे पास नहीं था ! मैं उस समय इस विषय पर एक पोस्ट लिखना चाहता था मगर आपकी स्थिति और ब्लाग जगत के पाठकों की मनस्थिति देख कर नहीं लिखा ! मगर मैं उस घटना में भूल आपकी भी मानता हूँ ! ईश्वर न करे दो मित्रों की दोस्ती की परिणिति ऐसी हो !

    मगर किसी कारण अगर आपके मतभेद थे तो क्या यह उचित है की ब्लाग जगत दो भागों में बट जाए ??

    अगर कडवाहट अधिक हो तो बेहतर है कि एक सम्मान जनक समझौता के फलस्वरूप आप दोनों भविष्य में अगर एक दूसरे का सम्मान न कर सकें तो कम से कम अपमानजनक बात न करें !

    आपकी विद्वता का मैं सम्मान करता हूँ , आशा है मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगी !
    सस्नेह

    ReplyDelete
  36. पोस्ट का उद्देश्य समझ नहीं पाया. लगता है कुछ घटा है जिससे अनजान हूँ और आप आहत हैं . आपकी बातों से सहमत हूँ.

    ReplyDelete
  37. सतीश भाई,
    इस पोस्ट का अगर कुछ मतलब समझा तो यही कि

    हरीफो ने रपट लिखवाई है, जा-जा के थाने में ।
    कि अकबर नाम लेता है खुदा का इस जमाने में ।

    ReplyDelete
  38. .

    सतीश जी ,

    जब भी कोई विवाद होता है तो समाज दो खेमे में बांटता ही है। यही वो समय होता है जब अपने और पराये की पहचान होती है। मैं खुश हूँ की मैं इस दौर से गुज़र चुकी हूँ। और दोनों खेमों की भरपूर पहचान कर चुकी हूँ। कुछ मेरे साथ थे, कुछ बिलकुल नहीं थे। कुछ लोग मेल मैं सहानुभूति दिखा रहे थे। कुछ लोग दम दबा कर बैठ गए और मौसम नार्मल होने का इंतज़ार करते रहे [Fair weather friends ] । कुछ लोग संतई दिखा रहे थे और प्रवचन कर रहे थे।

    एक बात स्पष्ट कहती हूँ, जब ह्रदय व्यथित होता है , तो उस समय जो सबसे बुरा लगता है वो लोगों का संतई दिखाना या फिर उपदेश देना।

    आज मुझे नहीं पता की क्या कारण है आपके दुःख का , लेकिन जिसने भी आपका दिल दुखाया है , वो दुष्ट मनुष्य है, कभी क्षमा मत कीजियेगा।

    मुझे प्रवचन से नफरत है। इसलिए स्पष्ट कहती हूँ।

    शठे शाथ्ये समाचरेत।

    न माफ़ी मांगिये न किसी को माफ़ी मांगने का उपदेश दीजिये। तीसरे व्यक्ति को पता ही क्या होता है जो वो किसी की गलती देखे ?

    साथ साल में न्यायालय को तो पता नहीं लगा की रामजन्म भूमि किसकी है। बस बन्दर बाँट करके हाथ झाड लिए। लेकिन आपको मेरी गलती नज़र आ गयी बिना कुछ जाने-समझे ? यहाँ यदि कोई गारेंटी करे की सतीश जी आपकी भी गलती है, और आपको माफ़ी मांगनी चाहिए, बिना कुछ जाने-बुझे तो आपको कैसा लगेगा ?

    .

    ReplyDelete
  39. अच्छा लिखते हो भैयाजी
    कभी हमारे द्वारे भी आना
    जै राम जी की

    ReplyDelete
  40. आप की रचना 08 अक्टूबर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/10/300.html



    आभार

    अनामिका

    ReplyDelete
  41. उनका जो फ़र्ज़ है वो अहले सियासत जाने
    मेरा पैगामें मुहब्बत है , जहाँ तक पंहुचे !

    Bahut khoobsurat! Aap likhte rahiye...

    ReplyDelete
  42. सबसे पहले तो माफ़ी.... चाहता हूँ.... मैं अपना मोबाइल फोन लखनऊ छोड़ कर गोरखपुर चला गया था... बेटे की डेथ का सदमा था और फिर उसका आफ्टर डेथ रस्म भी करनी थी.... और आपकी मिस्ड कॉल देखी.... आज......अभी आपको कॉल करूँगा.....





    और अब आपसे एक शिकायत.... आप सबके नाम के आगे आदरणीय क्यूँ लगते हैं? यहाँ ज़्यादातर लोग असफल हैं... ज़्यादातर लोग फ़ालतू हैं... ज़्यादातर लोग के पास सेन्स ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग नहीं हैं... नालायकों की तादाद बहुत ही ज्यादा है... हर कुत्ते बिल्ली को आप आदरणीय की कैटेगरी में खड़ा कर देते हैं... ...अरे ! सिम्पली लिखिए कि मेरे ब्लॉग के पाठकों से विनम्र अनुरोध.... यह आदरणीय ---फादार्नीय लगा कर क्यूँ वाट लगा रहे हैं... ? पता है सबको इज़्ज़त नहीं दी जाती... बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं.... जो बिना मतलब की इज़्ज़त पाकर सर पर चढ़ कर हगने-मूतने लगते हैं.....

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  43. कर लो प्रारम्भ महाभारत, निष्कर्ष बताने बैठा हूँ,

    तुम रोज उजाड़ो घर मेरा, मैं रोज बनाने बैठा हूँ ।

    ReplyDelete
  44. Pyar bantate chalo han pyar bantate chalo.
    Kya Hindu kya musalman hum sab hain bhee bhaee
    pyar bantate chalo.
    Koee patthar fenke to chot to lagtee hai par aage badh jayen to sab theek ho jata hai.

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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