बीसवीं सदी में पले बड़े
ओ धर्म के ठेकेदारों तुम
मन्दिर के द्वारे खड़े हुए ,
उन मासूमों की बात सुनो
बचपन से, इनको गाली दे , क्या बीज डालते हो भारी !
इन फूलों को अपमानित कर, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
Monday, October 25, 2010
इन फूलों को अपमानित कर, क्यों लोग मनाते दीवाली -सतीश सक्सेना
Labels:
दीवाली
19 comments:
एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !
- सतीश सक्सेना
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क्या बात है!
ReplyDeleteवाह!बहुत बढ़िया चल रही है आप की ये श्रृंखला
sach kaha aapne sir!!
ReplyDeleteइस दीवाली कुछ तो अन्धियारा दूर हो, इसी आशा के साथ आपकी कविता को नमन।
ReplyDeleteबच्चा बोला देखकर, मस्जिद आलीशान
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान!
- निदा फाज़ली
सर जी, काहे दीपावली पर टूट पड़े हैं? दीपावली क्या केवल धर्म के ठेकेदार ही मनाते हैं?
ReplyDeleteइस दिवाली पर इन बच्चो के प्रति जागृति का दीपक जलाने के लिए शुभकामनाये।
ReplyDeleteसीधी सच्ची बात
ReplyDeleteदीवाली भी स्वार्थ पूर्ण एक दिखावा बन कर रह गई है ।
ReplyDeleteनारायण पर फूल चढाते, और दरिद्र को देते गाली
ReplyDeleteदरिद्रनारायण को अपमानित कर, लोग मनाते दीवाली!
- सलिल वर्मा
श्रंखला आगे न बढ़ायें, नहीं तो दीवाली मनाते समय अपराधबोध रहेगा।
ReplyDeleteगीत को इस अंदाज में प्रस्तुत करना अच्छा लगा। एक पद में एक बात। कम से कम दीवाली तक कुछ तो याद रह पाएगा।
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक अच्छी कविता, आज का सत्य धन्यवाद
ReplyDeleteत्यौहार तो मनाने ही होते हैं...
ReplyDeleteइस दिवाली इन फूओं को मन लेने दे कुछ खुशियाँ ...!
सीधी सच्ची बात !
ReplyDeleteआज आया तो था फुरसत से
ReplyDeleteकि कुछ टिप्पणी कर जाऊँ
पोस्ट दिखी
... ओ धर्म के ठेकेदारों
... मन्दिर के द्वारे खड़े हुए
... बचपन से, इनको गाली दे, क्या बीज डालते हो भारी!
... फूलों को अपमानित कर, क्यों लोग मनाते दीवाली?
बाजू में ही दिखा
यह ब्लाग जातिवाद, धार्मिक कट्टरता ... से नहीं जुड़ा है!
समाज ...में नफरत फ़ैलाने वाले ...यहाँ प्रकाशित नहीं किये जायेंगे
न ही किसी व्यक्ति अथवा पार्टी विशेष की आलोचना को महत्व दिया जायेगा!
अब सोच में पड़ गया हूँ कि आपके इन विरोधाभासों के चलते क्या करूँ
सो बिना टिप्पणी किए जा रहा :-(
ReplyDeleteगौमाता एक उर्दू अखबार चबा रही है
पेट की भूख से अकुलायी है, शायद ?
टिप्पणी देने की व्याकुलता में
पाबला जी से सहमति, क्योंकि
गौमाता एक उर्दू अखबार चबा रही थीं ।
सतीश भाई बज की तरह अब मैं यहां कह देता हूं कि ..जवाब तो पाबला जी को भी दिया जाना चाहिए ....\ :) :) :)
ReplyDelete@ श्री बी एस पाबला,
ReplyDeleteकई बार शब्दों से गलत फहमी पैदा हो जाती है , सुझाव के लिए आभार !
@ अजय कुमार झा,
ReplyDeleteआज कल डॉ अमर कुमार जैसे कमेन्ट कर रहे हो , उनसे तो कुछ कह नहीं सकता :-) मगर तुम्हारे कोर्ट के दरवाजे पर हड़ताल करनी पड़ेगी ! :-)
करिए करिए ..मैं डा साहब के साथ संयुक्त मोर्चा बना लूंगा ..:) :) :)
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