सदियों का खोया स्वाभिमान
वापस दिलवाना है इनको ,
जो बोया बीज ,पूर्वजों ने ,
बच्चों ! उसको कटवाना है,
ठुकराए गए भाइयों का , अधिकार दिलाने आ आगे !
अधिकार किसी का छीन अरे, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
वापस दिलवाना है इनको ,
जो बोया बीज ,पूर्वजों ने ,
बच्चों ! उसको कटवाना है,
ठुकराए गए भाइयों का , अधिकार दिलाने आ आगे !
अधिकार किसी का छीन अरे, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
bahut hi acchi kavita
ReplyDelete"अधिकार किसी का छीन अरे, क्यों लोग मनाते दीवाली ?" यह हमें भा गया.
ReplyDeletekoshish to karte hai kee wo ped jad se ukhaad diya jaye, par kuchh log hai jo usey seenchane mei lage hai...
ReplyDeleteis diwali ko khas to banana hi padega
समाज अथवा देश में नफरत फ़ैलाने वाले कमेंट्स यहाँ प्रकाशित नहीं किये जायेंगे
ReplyDelete-----------
आपने यह टिप्पणी नीति बनाई है। ठीक है; पर एक एक अनुमान है कि यह तानाशाही हो सकती है। मसलन आप तय करेंगे कि कौन विचारधारा नफरत फैलाती है। मेरे विचार से आप गलत भी हो सकते हैं।
उदाहरण के लिये मेरा मानना है कि तुष्टीकरण की विचारधारा बैकलैश या उदग्र हिन्दुत्व को हवा देती है। और आपके अनुसार तुष्टीकरण नफरत का शमन करता है।
अब आप तो मेरे विचारों को सिरे से नकारते हुये मेरी टिप्पणी खारिज कर देंगे?
सुन्दर भाव, हम सुख में भी सबको साथ लेकर चलें।
ReplyDelete@आदरणीय ज्ञानदत्त जी ,
ReplyDeleteआशा है आपका स्वास्थ्य अब पहले से ठीक है , काफी दिन बाद आपकी टिप्पणी देख कर अच्छा लगा !
मेरे विचार से उन्ही टिप्पणियों का प्रकाशन होना चाहिए जो व्यक्तिगत रंजिश और दूसरों की आस्था पर चोट न करने के इरादे से की गयी हों ! कानून भी किसी धर्म अथवा व्यक्ति के अपमान के उद्देश्य से प्रकाशित टिप्पणी की जिम्मेवारी प्रकाशक की भी उतनी ही मानी जायेगी जितनी की टिप्पणी करने वाले की !
सादर !
अधिकार किसी का छीन अरे, क्यों लोग मनाते दीवाली आप कि्न भईयो के अधिकार की बात कर रहे हे?जरा बताये तो सही
ReplyDeleteओर हा किस ने छीना किस का हक ? यह भी बताये जी
ReplyDeleteअच्छी पंक्तियां हैं।
ReplyDeleteसहमत सतीश जी
ReplyDelete"मेरे विचार से उन्ही टिप्पणियों का प्रकाशन होना चाहिए जो व्यक्तिगत रंजिश और दूसरों की आस्था पर चोट न करने के इरादे से की गयी हों ! "
"अधिकार किसी का छीन अरे, क्यों लोग मनाते दीवाली ?"
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियाँ.....
panktiya sunder hai par kis sandarbh me likhee gayee hai spasht nahee huaa.........
ReplyDelete@ अपनत्व जी ,
ReplyDeleteसामाजिक बुराई और जातिगत भेदभाव पर लिखी यह पंक्तियाँ १९९४ में लिखी एक लम्बी कविता का हिस्सा है ! सादर
सुन्दर! हो मन प्रकाशित, प्रेम का प्रकाश फैले।
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