Tuesday, October 26, 2010

अधिकार किसी का छीन अरे, क्यों लोग मनाते दीवाली ? -सतीश सक्सेना

सदियों का खोया स्वाभिमान
वापस दिलवाना है इनको ,
जो बोया बीज ,पूर्वजों ने ,
बच्चों ! उसको कटवाना है,
ठुकराए गए भाइयों का ,  अधिकार  दिलाने  आ  आगे   !

अधिकार किसी का छीन अरे, क्यों लोग मनाते दीवाली ?

14 comments:

  1. "अधिकार किसी का छीन अरे, क्यों लोग मनाते दीवाली ?" यह हमें भा गया.

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  2. koshish to karte hai kee wo ped jad se ukhaad diya jaye, par kuchh log hai jo usey seenchane mei lage hai...
    is diwali ko khas to banana hi padega

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  3. समाज अथवा देश में नफरत फ़ैलाने वाले कमेंट्स यहाँ प्रकाशित नहीं किये जायेंगे
    -----------
    आपने यह टिप्पणी नीति बनाई है। ठीक है; पर एक एक अनुमान है कि यह तानाशाही हो सकती है। मसलन आप तय करेंगे कि कौन विचारधारा नफरत फैलाती है। मेरे विचार से आप गलत भी हो सकते हैं।
    उदाहरण के लिये मेरा मानना है कि तुष्टीकरण की विचारधारा बैकलैश या उदग्र हिन्दुत्व को हवा देती है। और आपके अनुसार तुष्टीकरण नफरत का शमन करता है।
    अब आप तो मेरे विचारों को सिरे से नकारते हुये मेरी टिप्पणी खारिज कर देंगे?

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  4. सुन्दर भाव, हम सुख में भी सबको साथ लेकर चलें।

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  5. @आदरणीय ज्ञानदत्त जी ,
    आशा है आपका स्वास्थ्य अब पहले से ठीक है , काफी दिन बाद आपकी टिप्पणी देख कर अच्छा लगा !
    मेरे विचार से उन्ही टिप्पणियों का प्रकाशन होना चाहिए जो व्यक्तिगत रंजिश और दूसरों की आस्था पर चोट न करने के इरादे से की गयी हों ! कानून भी किसी धर्म अथवा व्यक्ति के अपमान के उद्देश्य से प्रकाशित टिप्पणी की जिम्मेवारी प्रकाशक की भी उतनी ही मानी जायेगी जितनी की टिप्पणी करने वाले की !
    सादर !

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  6. अधिकार किसी का छीन अरे, क्यों लोग मनाते दीवाली आप कि्न भईयो के अधिकार की बात कर रहे हे?जरा बताये तो सही

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  7. ओर हा किस ने छीना किस का हक ? यह भी बताये जी

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  8. अच्छी पंक्तियां हैं।

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  9. सहमत सतीश जी
    "मेरे विचार से उन्ही टिप्पणियों का प्रकाशन होना चाहिए जो व्यक्तिगत रंजिश और दूसरों की आस्था पर चोट न करने के इरादे से की गयी हों ! "

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  10. "अधिकार किसी का छीन अरे, क्यों लोग मनाते दीवाली ?"
    सुंदर पंक्तियाँ.....

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  11. panktiya sunder hai par kis sandarbh me likhee gayee hai spasht nahee huaa.........

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  12. @ अपनत्व जी ,
    सामाजिक बुराई और जातिगत भेदभाव पर लिखी यह पंक्तियाँ १९९४ में लिखी एक लम्बी कविता का हिस्सा है ! सादर

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  13. सुन्दर! हो मन प्रकाशित, प्रेम का प्रकाश फैले।

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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