आज सुबह मोहल्ले में एक स्वर्गीय मित्र के बेटे को काफी दिन बाद देखा तो रुक गया , लगा कि अस्वस्थ है तो स्नेहवश पूछ बैठा, क्या बात है ?
"अब उमर भी तो हो चली है " यह जवाब था उस ४१-४२ वर्षीय जवान का , सुनकर मैं काफी देर तक सोच रहा था कि यह धीर गंभीर लड़का,अपने पिता के जाने के बाद ,बरसों से हँसना छोड़, अपने घर का बुजुर्ग बन चुका था ! मुझे लगता है, इस प्रकार अपने आप को, अनजाने में दी गयी आत्मसलाह, हमारा मस्तिष्क बहुत गंभीरता से लेता है और शरीर उसी प्रकार अपने आपको ढालने लग जाता है ! और अगर एक बार आपका अवचेतन मन यह स्वीकार कर ले कि आप अस्वस्थ हैं ,बूढ़े हैं, तो इससे उबरने में बहुत देर हो जाती है ! अधिकतर हम अपना "अच्छा " "अच्छा " बताने में ही अपना जीवन काट देते हैं , "सब लोग क्या कहेंगे " के चक्कर में बहुत सा "सुन्दर" छिपा लेते हैं, जो हमें सबसे अच्छा लगता है !मुझे याद है लगभग ७५ वर्षीय स्वर्गीय गोपाल गोडसे से, जब मैंने पहली बार, कनाट प्लेस के एक रेस्टोरेंट में, उनसे पूछा था कि आप क्या पीना पसंद करेंगे तो उन्होंने निस्संकोच बीयर पीने की इच्छा व्यक्त की और उनके व्यक्तित्व से अचंभित,प्रभावित मैं, वह मीटिंग कभी नहीं भुला पाया !
पीसा की झुकी मीनार ,एफिल टावर और माउन्ट टिटलिस के फोटो जो हजारों बार लोगों ने देखे हैं , ब्लाग पर प्रकाशित कर, क्या नया दे पाऊंगा ? बेहतर समझता हूँ कि ईमानदारी के साथ मैं लोगों को यह बताऊँ कि यूरोप प्रवास के उन्मुक्त वातावरण में जितनी वाइन की चुस्कियां लीं, उतनी शायद पूरे साल में नहीं पी होगी ! अगर इस भावना के साथ, मैं एक भी हताश पाठक को,हँसते हुए जीना सिखा पाया तो यह लेखन सफल हो जायेगा ! बचपन से याद किसी अज्ञात लेख़क की कुछ लाइनें, आपकी नज़र हैं जो सर्वथा सच हैं ...
क्षणभंगुर जीवन की कलिका , कल प्रात को जाने खिली न खिली
मलयाचल की शुचि शीतल मंद , समीर न जानें , बही न बही !
कलि काल कुठार लिए फिरता , तन नम्र से चोट झिली न झिली ,
भजि ले हरि नाम अरी रसना, फिर अंत समय में हिली न हिली !
मैं तो अभी भी ख़ुद को 14 साल का ही समझता हूँ.... और चौदह का ही फील करता हूँ..... इसलिए बाल तरुणाई अब भी है....
ReplyDeleteआज जीने और जिन्दगी के मायने ही बदल गयें हैं ,लोग सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं ऐसे में गंभीरता से दूसरों के बारे में सोचना अपने आप में उम्दा और बेहद सराहनीय कार्य है साथ ही हमें अपने बारे में हमेशा आत्म मंथन कर यह जरूर सोचना चाहिए की हमारा जीवन किसी को ठगने,लूटने या किसी को मौत के मुंह में धकेलने से तो नहीं चल रहा है अगर ऐसा है तो निश्चय ही हमें अपने आप में तुरंत बदलाव करना चाहिए अन्यथा हमारा जीवन कितना भी ऐसो आराम में क्यों न बीत रहा हो लेकिन असल में वो मौत से भी बदतर है ?
ReplyDeleteमुझे लगता है अभी तो जीवन आरंभ ही हुआ है।
ReplyDeleteजिन्दगी जिन्दादिली का नाम है
ReplyDeleteमुर्दादिल क्या खाक जिया करते है
जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है
ReplyDeleteमुर्दादिल क्या खाक जिया करते है
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत ।
ReplyDeleteयुवा रहेंगे सदैव ।
सुन्दर लेख, सुगढ़ काव्य ।
भावपूर्ण संस्मरण ..... बढ़िया प्रस्तुति ..आभार
ReplyDeleteआपको पढना हमेशा सुखदायी होता है। एक और सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण पोस्ट, साधुवाद
ReplyDelete"जीना इसी का नाम है"
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर लिखा है।
ReplyDeleteजिन्दादिली जिन्दगी को जिन्दगी बनाकर रखती है वर्ना तो शोक मनाने के तो अनगिनत कारण है ही. अंतर्मन को स्वस्थ रखना जरूरी होता है.
ReplyDeleteऔर फिर बीयर और चीयर में कुछ तो समानता तो होगी ही.
मन तो तृप्त हो गया पोस्ट पढ़ कर सतीश जी मगर यह रसना नहीं -इसके लिए कब ,कहाँ और क्या आफर कर रहे हैं ?
ReplyDeleteसतीश भाई, बहुत बढ़िया लिखा आपने ! यह सच है हम जैसा सोचते है वैसा ही हमारे स्वभाव में बदलाव आता है !
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ..आभार
ReplyDeletekripya meri madad kijiye. aaj maine jab apne blog ka template badla to mere blog ke sare postings dikhai nahi de rahi , blog gayab sa ho gaya hai . please koi madad kar sakte hai to isi post par kare ya mera email hai
swvnit@yahoo.co.in
वाइन की चुस्कियां आपने लीं
ReplyDeleteऔर झूम वहां के टॉवर रहे हैं
कहीं टेढ़े, कहीं तिरछे
ऐसा ही होता है सतीश भाई।
marna to sabko hai jee ke bhi dekh le
ReplyDeleteशराब की वजह से तो अब तक लोगोँ का बर्बाद होना सुनते आये हैँ । क्योँ साहेब ?
ReplyDeleteबड़े मनचले और गंभीर लोग आ गये है जवाब देना ही पड़ेगा !
ReplyDelete@अरविन्द मिश्र,
आपका मन तृप्त हुआ अच्छा लगा, रसना के लिए फैसला आप पर छोड़ते हैं, देश या विदेश आप जहाँ कहें, वायदा रहा !
@ डॉ अनवर जमाल,
आखिर आपको भी वाइन के कारण, यहाँ आकर टिप्पणी करने को मैंने मजबूर कर दिया हा...हा...हा....हा....
मैं शराब का कतई शौक़ीन नहीं हूँ, कोई ऐब नहीं आपके इस दोस्त में, इंशाअल्लाह अगर सुबह को चाय भी कभी मैडम के खराब मूड के कारण ना मिले तो बिलकुल तलब नहीं होती ! आज तक कभी अकेले नहीं पी मगर अगर अरविन्द मिश्र जैसे मित्र आग्रह करें तो पीना और पिलाना जायज मान लेता हूँ ! आशा है इसके बावजूद आप जैसे सूफी मित्रों की नज़रे इनायत बनी रहेगी :-)
सार्थक पोस्ट....ज़िंदगी जीना ही तो कला है...मौत का क्या वो तो आनी ही है..
ReplyDeleteअर्ज किया है.
ReplyDeleteलोग न जाने क्यों गुनगुनाना भूल बैठे हैं
हम तो हर पल जीने का बहाना ढूँढ लेते हैं.
bahut hi sunder post hai... avchetan man wali baat bahut achhi lagi , mein bhi isse sehmat hoon... :)
ReplyDeleteसतीश जी , हम तो अभी २५ के ही हुए हैं ।
ReplyDeleteजी हाँ , मैंने हाल ही में अपने birthdays की सिल्वर जुबली मनाई है ।
दूसरी बार । :)
ये कैसी रही ।
क्या बात कही है बहुत खूब , दोहा याद आ गया मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत .....
ReplyDeletejab subah need khulti hai to apne apko taro taja samjhta hun. aur Surya Dev ko namaskar karke naye din ki shuruwat. Buda to sharir hota hai man nahi.
ReplyDeleteAb to online pine pilane ki bate hone lagi hain.
jis manassthiti me hun bawajood aise haal me bhi yahi kahne ka man hai
ReplyDeletesaaqi sharab peene de masjid me baithkar
ya vo jagah bata de jahan khuda n ho
बहुत ही उम्दा लेख.
ReplyDeleteऐसा है तो फिर किसी दिन आपको हम वो शराब पिलायेँगे जिसका ज़िक्र 'दीवान ए हाफ़िज़' मेँ है ।
ReplyDeleteKabhi Palkoon Pay Ansoo Hain Kabhi Lab Per Shikayat Hay
ReplyDeleteMager Aee Zindagee Phir Bhi Mujhay Tujh Say Mohabbat HAY
आपकी निकाली तस्वीर बहुत खूबसूरत है और प्रेरणा देती ये पोस्ट भी..
ReplyDeleteसही सलाह है..सब मन का खेला है.
ReplyDeleteयहाँ भी चले आते तो कुछ चुस्कियाँ और हो लेतीं. :)
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
ReplyDeleteकिसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है...
जय हिंद...
दादा आपने अपने मित्र के पुत्लिर ये कहा उसे मै खुद
ReplyDeleteअपने जीवन मे भोग चुका हू. आपने याद दिला दी अब एक पोस्ट लिखनी पडेगी इस पर.
सब अपने समझने के बात है कहा गया है मन के हारे हार है मन के जीते जीत..हमें कभी नही समझना चाहिए की उम्र हो गई क्योंकि जीवन हर दिन शुरू होता है और बात आत्मविश्वास की है वो है तो कोई कभी बूढ़ा नही होता....बेहद सुंदर संस्मरण...यूरोप यात्रा सचित्र बढ़िया लगा...प्रणाम चाचा जी
ReplyDeleteमजे हैं मजे लिये जायें।
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