Thursday, August 26, 2010

भगवान् कहाँ हैं ? -सतीश सक्सेना

प्रवीण शाह अपने साइंटिफिक सोच और तथ्यपरक लेखों के लिए मशहूर हैं अक्सर अंधविश्वास के खिलाफ मोर्चा खोले रहते हैं और निस्संदेह उनके कथन पर अविश्वास करना आसान नहीं होता ! मगर आज मामला कुछ अलग सा था ! आज भाई प्रवीण शाह ने भगवान् को ही छेड़ दिया , खूब जम कर लिखा कि भाई लोग किस प्रकार हार -जीत दोनों का क्रेडिट भगवान् को ही देते हैं , लेख लिख तो दिया, मगर उसके बाद परेशान कि हे प्रभु आज लगता है कि कोई टिप्पणी नहीं आएगी वह तो भला हो कि इनकी प्रार्थना सुन ली गयी और घूमते घामते अली साहब कहीं से आ गए तब जान में जान आयी  !
फिर भी क्रेडिट भगवान् को नहीं दिया अली साहब को कहते हैं कि ...
@ अली साहब,
शुक्रिया आपका,
मुझे लग रहा था कि कहीँ खाता ( टिप्पणियों का ) ही न खुल पाये आज... ;)


उसके बाद मेरे कमेन्ट ये रहे ....

"प्रवीण भाई !
खाता न खुलने का अंदाजा था फिर भी पंगे जरूर लेना था हा...हा...हा...हा.....
भगवान् से भी पंगा... और कोई काम नहीं है क्या ?"
अली सा से दोस्ती मधुर रखना ...आड़े वक्त काम आते रहेंगे !
:-) "

प्रवीण जी उन लोगों में से हैं धारा के विपरीत तैरना पसंद करते हैं ! इनके द्वारा अपने विषय पर पकड़ और अभिव्यक्ति शैली  मुझे शुरू से आकर्षित करती रही है ! इस बार परम शक्ति को चुनौती दे डाली तो मुझे खूब हंसी आई ! घबरा तो प्रवीण भाई भी रहे होंगे सो अली साहब का कमेन्ट आते ही शुक्रिया अता कर दिया कि आज जाने कमेन्ट आयें भी या नहीं  !
प्रवीण भाई !
हमें भी क्या पता कि भगवान् होते हैं या नहीं मगर बचपन में एक शक्ति को माथा नवाने की आदत डाल दी गयी ! बड़े होकर जब कभी दिल घबराता है तो कभी कभी इनकी शरण में जाने का दिल करता है, उसमें बड़ी राहत मिलती है ! यकीनन मामला श्रद्धा का ही है ...फिर मत्था कहीं भी क्यों न झुक जाए ! ज्ञान भाई की गंगा मैया हो अथवा  खुद केशव  ...आनंद आ जाता है ..!
दिल है क़दमों पर किसी के गर खुदा हो या न हो 
बंदगी  तो अपनी फितरत है , खुदा हो या न हो  ! 
मानते हैं कि यह धर्म भीरुओं का हथियार है , मगर मानवीय कमजोरियों के चलते कहीं न कहीं सर झुकाने से राहत मिलती है तो नुकसान भी क्या ?
( चित्र गूगल से साभार )


30 comments:

  1. दिल है क़दमों पर किसी के गर खुदा हो या न हो
    बंदगी तो अपनी फितरत है , खुदा हो या न हो


    भाई सतीश जी, बंदगी तो अपनी फितरत है - खुदा हो या न हो..... येही हमारी फिलोसफी है - आप बुरा माने या भला.

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  2. सतीश जी,
    कहीं आप भी पंगा न लेने लगें
    यहां मैं प्रकट होकर टिप्प्णी किये देता हूं
    इस आशा के साथ की 'वो' आपको मेरी कविता पर टिप्पणी को प्रेरित करे……
    http://shrut-sugya.blogspot.com/2010/08/blog-post_26.html

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  3. पंगा लेने वाले प्रवीण भाई को आखिर खुदा ने अली साहब की सूरत में एक बन्दा मुहैया करा ही दिया. ऐसा अक्सर होता है कि हम बहुत कुछ तर्क की कसौटी पर कसते हैं और 'उसके' वजूद को नकार देते हैं. लेकिन यह भी बहुत बार होता है कि जब कोई राह नजर नहीं आती, ऐसे समय में सिर्फ वही याद आता है. मेरे एक मित्र का शेर है---
    जहां पे हौसलों के पाँव थक से जाते हैं
    वहीं कहीं से रहे-जुस्तजू निकलती है
    और ये रहे-जुस्तजू कौन पैदा करता है, सोचने का विषय है. एक मामूली सी घड़ी तक किसी कन्ट्रोल के सहारे चलती है, फिर इतनी बड़ी कायनात क्या लावारिस छोड़ दी गयी होगी. एक शेर अपना भी लिखे देता हूँ-----
    फरिश्ता नहीं हूँ, यही खौफ है
    खुदा जाने कब अजमाने लगे

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  4. गर कोई टिप्पणी न आए तो हमें क्या, भगवान की ही दुकान का दोष ... :)

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  5. .
    उनकी पोस्ट पर शायद इश्वर ही अली जी बनकर आये होंगे। पर क्या वो इस बात को मानेंगे?

    उन्होंने जिसे शुक्रिया किया , क्या वो इश्वर से बड़ा है ? क्या वो पंचमहाभूतों से बना माटी का पुतला नहीं ?

    जो इश्वर की सत्ता को ठुकरा सकता है वो इंसान को शुक्रिया अदा कर रहा है ?

    IRONY !

    " सबको सन्मति दे भगवान् "

    There is indeed one supreme power , ruling the universe !
    .

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  6. पंगे से भी पंगा लेना
    सतीश जी की ही फितरत है
    उधेड़ देते हैं सब कुछ
    जो बुनता है कोई
    महीनों लगाकर।
    पर जो कहते-लिखते हैं
    सच उकेरते हैं।

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  7. दिल है क़दमों पर किसी के गर खुदा हो या न हो
    बंदगी तो अपनी फितरत है , खुदा हो या न हो !

    आपने तो कह ही दी हमारी बात इस शेर को रखकर.

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  8. @ सतीश भाई ,
    मुझे लगता है कि आपने तो प्रवीण जी से हल्की फुल्की छेड छाड़ की है ? पर मित्रगण उसे सीरियसली ले बैठे :)
    कहना ये कि आस्तिकता बनाम नास्तिकता के विचार पुराने मित्र हैं और सदा साथ बने रहेंगे :)

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  9. दिल है क़दमों पर किसी के
    गर खुदा हो या न हो
    बंदगी तो अपनी फितरत है,
    खुदा हो या न हो!
    हा हा हा
    बिलकुल अपुन का जैसैच है भाई तू भी.
    एईईईई 'तू'लिखा बुरा नही मानने का. माँ और 'उसको'-अपुन के भगवान को-'तू' ही बोलते नाsss?
    मैं आप लोगों जैसी ज्ञानी नही.एकदम गंवार,मूर्ख,अनाड़ी हूं बाबा!
    पर..तेरे भगवान को ना अपने बहुत करीब पाया है.'वो' है या नही ये भी नही जानती फिर भी कई बार पाया कि वो मेरी हर हरकत पर नजर रखे हुए है और मुझे बहुत प्यार करता है.
    झूठा ही सही जो सूख और मन को सुकून मिले तो उसके होने का वहम पाले रखने में बुरा क्या है?
    इसलिए उसे आपमें भी देखती हूं.
    क्या करूँ ऐसीच हूं मैं .

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  10. बंदगी तो अपनी फितरत है , खुदा हो या ना हो ...यही तो
    किसी एक शक्ति को शीश नवा कर हमें यदि मानसिक शांति मिलती है तो उसे मानने में क्या हर्ज़ है ...

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  11. भाई हम तो कुछ नहीं बोलेंगे, क्योंकी हम तो हैं घोर आस्तिक..... इसलिए हम बोलेंगे तो बोलोगे के बोलता है...... ;-)

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  12. .
    .
    .
    आदरणीय सतीश जी,

    संशयवादी न होकर यदि आस्तिक होता तो कहता देखो 'उस' के होने का सबूत...'उस' ने सतीश जी को भी 'निमित्त' बना दिया... मेरी पोस्ट व विचारों के प्रचार का...

    जब भी ईश्वर व धर्म पर कोई प्रश्न उठाये जाते हैं तो यह जो प्रतिक्रियायें होती हैं उनको समझने के लिये एक उदाहरण दूंगा...

    एक बड़ा आज्ञाकारी बच्चा है... उसका पिता उसका आदर्श पुरूष है... एक दिन उसका कोई सहपाठी उसे बताता है कि 'हकीकत में यह आदर्श पुरूष पिता घूसखोर है... जो अक्सर शाम को बार में ऐश करते दिखाई देता है... और तो और उसकी एक रखैल भी है'।

    अब प्रतिक्रियायें देखिये...

    १- मुझे कुछ नहीं सुनना, पिता के विरूद्ध...
    २- सहपाठी को झूठा बताते हुऐ गालियों की बौछार...
    ३- Denial...नहीं नहीं ऐसा हो ही नहीं सकता... इतने सारे लोग जो पिता के गुण गाते हैं क्या झूठे हैं।
    ४- जो भी है...जैसा भी है...मेरा पिता है...मैं तो उनको आदर्श ही मानता रहूंगा।
    ५- बड़ी गन्दी बातें सुन ली...कहीं कुछ अनर्थ न हो जाये...गंगाजल से कान मुंह और आंखें धो लेता हूँ।
    ६- सहपाठी की बात अनसुना करते हुऐ पिता की अच्छाइयों व सहॄदयता का एकतरफा बयान... पिता की गुड-बुक में आने के लिये...
    ७- बहुत कम ही ऐसे होंगे जो यह कहेंगे कि अच्छा ऐसा है... कल तेरे साथ चल कर देखूंगा... और यदि सहपाठी की बातें सही निकली... तो पिता के अपने आकलन को रिएडजस्ट कर देते हैं।

    आप सभी प्रतिक्रियाओं को गौर से देखें... उपरोक्त सात खांचों में डाल सकते हैं उन सभी को!

    अब जब इतना अच्छा अवसर आपने दे ही दिया है तो क्यों न मैं बहती गंगा में स्नान कर ही लूँ...नीचे देखिये:-

    ईश्वर और धर्म को एक संशयवादी परंतु तार्किक दॄष्टिकोण से समझने का प्रयास करती इस लेखमाला के मुझ द्वारा लिखे अन्य आलेख निम्न हैं, समय मिले तो देखिये :-


    वफादारी या ईमानदारी ?... फैसला आपका !

    बिना साइकिल की मछली... और धर्म ।

    अदॄश्य गुलाबी एकश्रंगी का धर्म...

    जानिये होंगे कितने फैसले,और कितनी बार कयामत होगी ?

    पड़ोसी की बीबी, बच्चा और धर्म की श्रेष्ठता...

    ईश्वर है या नहीं, आओ दाँव लगायें...

    क्या वह वाकई पूजा का हकदार है...

    एक कुटिल(evil) ईश्वर को क्यों माना जाये...

    यह कौन रचनाकार है ?...

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  13. .
    .
    .
    @ अली साहब,

    शुक्रिया !!! दोबारा से.... ;))



    ...

    ReplyDelete
  14. इन्दुमाँ !
    तुम्हारे आने से झंकार आ जाती है , आज इस पूरे ब्लाग जगत में प्यार से एक दूसरे को देखने वाले हैं ही कितने ? "बुरा मत मानना" कहना कुछ अच्छा नहीं लगा अपने प्यार पर भरोसा नहीं रहा क्या ?? तुम्हारे जैसे लोग जो स्नेह बांटते रहते हैं मैं उन्हें ईश्वरीय स्वरूप ही पाता हूँ इसके अतिरिक्त ईश्वर कौन है मुझे भी पता नहीं ...प्रवीण शाह की बात मान लेने पर भी क्या फर्क पड़ जायेगा ...
    हम जैसों को रोज ईश्वर नज़र आते हैं ! प्रवीण भाई शायद यहाँ सहमत हो जाएँ !
    हा..हा..हा..हा...
    तुम्हे छोड़ कोई और मानेगा माँ, इस ब्लाग जगत में ???

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  15. @ अली साहब,
    आपने सच कहा है, मगर प्रकृति के आगे मानव शक्ति तिनके की तरह है ! साइंस के आगे हज़ारों अबूझ पहेलियाँ हैं जो सुलझानी हैं, तब तक मानव भय पर काबू हेतु अगर कहीं सर झुकाए तो उसकी खिलाफत भी क्यों करनी !

    लोगों को इस आस्था का वाकायदा फल मिलता है चाहे वह मात्र मानसिक अनुभूति ही क्यों न हो !

    सो प्रवीण भाई को समझाइये कि वे भी कुछ अनुभव लेने का प्रयत्न तो करें कि अड़े ही रहेंगे !

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  16. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम! उम्दा पोस्ट!

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  17. @ अविनाश वाचस्पति,
    आप अन्तर्यामी हैं मगर मैं तुच्छ बुद्धि समझ नहीं पाया कि किस दरी कि बात कर रहे हो जो मैंने उधेड़ दी
    गुरुदेव दया द्रष्टि बनाएं रखें

    @दिव्या जी
    शुक्रिया ताकत देने को ...आपका कमेन्ट प्रवीण शाह को आंख खोलने के अनुरोध के साथ भेज रहा हूँ !

    @ सरवत जमाल,
    आनंद आ गया हुज़ूर खास तौर पर आपका शेर
    " फरिश्ता नहीं हूँ, यही खौफ है
    खुदा जाने कब अजमाने लगे "
    रौनक आ गयी आपके आने से सरवत भाई !

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  18. प्रवीण भाई का वह व्यंग्य वैसे भी फ़िट नहिं बैठा था।
    चित,पट,और अंटा सभी उसी का है इसिलिये तो वह सर्वशक्तिमान माना जाता है, यदि अंटा भी आपके हाथ दे दे तो, उसे कौन मानेगा?

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  19. हमें भी क्या पता कि भगवान् होते हैं या नहीं मगर बचपन में एक शक्ति को माथा नवाने की आदत डाल दी गयी ! बड़े होकर जब कभी दिल घबराता है तो कभी कभी इनकी शरण में जाने का दिल करता है, उसमें बड़ी राहत मिलती है ..

    अब भगवान है या नहीं ....लेकिन फिर भी मन का विश्वास है कि कोई न कोई शक्ति है जो इस संसार को चलाती है ...और जब मन को सुकून मिले तो माथा नवाने में हर्ज ही क्या ?

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  20. भगवान् को भगवान् भरोसे छोड़ देते हैं...कौन बड़े लोगों की बातों में पड़े? चलो "आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ...." वाला गीत गाते हैं...
    नीरज

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  21. ईश्वर हैं या नहीं हैं अगर इस पर बहस भी होती हैं तो कही ना कही "ईश्वर " हैं ।
    मेरे लिये ईश्वर मेरा काम हैं क्युकी वो मुझे सबसे ज्यादा सकूं देता हैं । वो एक शक्ति जो उस समय जाग्रत होती हैं जब निराशा का दामन हम थमा लेते हैं , ईश्वर हैं ।

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  22. केवल एक बात

    कोई न कोई शक्ति है जो इस संसार को चलाती है ..

    और फिर किसी ना किसी का तो भय होता ही है, चाहे कोई कितना भी इंकार कर ले

    वो कहते हैं ना 'भय बिन होई ना प्रीत गोपाला'

    अब कोई गब्बर का डायलॉग मार दे तो!?

    बी एस पाबला

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  23. केवल एक बात

    कोई न कोई शक्ति है जो इस संसार को चलाती है ..

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  24. है या नहीं ईश्वर, मानो या न मानो. पर कुछ बात तो है जो इतनी चर्चा है

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  25. हे ईश्वर तू है या नही ?

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  26. भगवान कहाँ है, ये तो भगवान ही जाने. पर गृहस्त्य जीवन के अनुभवी होने के नाते हम तो इतनी ही कामना करेंगे की वो न हो तो ही अच्छा क्योकि :
    जब 'मजाल' मालिक बस घर का, और उसकी ये गत,
    तो जो मालिक जहाँ का, उसकी क्या हालत!

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  27. बहुत सुन्दर विचार. सुन्दर लेखन. सुन्दर पोस्ट.

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  28. इस पोस्ट को पढ़कर उस पोस्ट तक गया और यह लिख कर चला आया...

    यह ऐसा विषय है जिस पर राय देने के लिए बहुतेरे विद्वान हैं...टिप्पणियों की कमी नहीं होगी.

    जहाँ आस्था नहीं है वहाँ ईश्वर नहीं है। जहाँ आस्था है वहाँ तर्क के लिए कोई स्थान नहीं है। समझदार, समझदारी से तथा मूर्ख, मूर्खता से ईश्वर को मानते हैं। कुछ चालाक ऐसे भी होते हैं जो नास्तिकों की सभा में ईश्वर विरोधी भाषण देकर विजेता की मुद्रा में घर आते हैं तो लम्बी सांस लेकर कहते हैं..हे प्रभु..! आज आपने मेरी इज्जत रख दी !

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  29. समय आने पर वो भी समझ जाएँगे की भगवान जैसी शक्ति है या नही .... वैसे विज्ञान भी तो तर्क शक्ति से परिणाम तक जाती है ... कभी न कभी भगवान की शक्ति का भी तर्क आ जाएगा ....

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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