Saturday, October 26, 2013

काले घने, अँधेरे घेरें , धीरे धीरे अम्मा को - सतीश सक्सेना

जिन प्यारों की, ठंडी छाया 
में तुम पल कर बड़े हुए हो ! 
जिस आँचल में रहे सुरक्षित 
जग के सम्मुख खड़े हुए हो !
बढ़ती उम्र, बीमारी भारी ,
रुग्ण शरीर, स्नेही  आँखें
इनको कब से छोड़ अकेला ,
कैसे  भूले , अम्मा को ! 

घर न भूले, खेत न भूले , केवल भूले, अम्मा को !

उस सीने पर थपकी पाकर 
तुम्हें नींद आ जाती  थी !
उस उंगली को पकडे कैसे  
चाल बदल सी, जाती थी !
तुम्हें उठाने वे , पढ़ने को 
रात रात भर  जगती  थींं , 
वो ताक़त कमज़ोर दिनों में,
धोखा देती , अम्मा को !
काले  घने , अँधेरे  घेरें ,  धीरे - धीरे  , अम्मा को ! 

जिस सुंदर चेहरे को पाकर
रोते रोते  चुप हो जाते !
अगर दिखे न कुछ देरी को
रो रो कर, पागल हो जाते !
जिस कंधे पर सर को रखकर  
तुम अपने को , रक्षित पाते !
आज वे कंधे बीमारी से , 
दर्द  दे  रहे , अम्मा को  !
इकला पन अब , खाए जाता, धीरे धीरे अम्मा को !

वही पुराना , आश्रय  तेरा ,
आज बहुत बीमार हुआ है !
जिसने तुमको पाला पोसा 
पग पग को लाचार हुआ है !
जब भी चोटिल पाया तुमको  
उसकी आँखों में आंसू थे  !
रातें बीतें , करवट बदले , 
नींद न आये , अम्मा को !
कौन सहारा देगा इनको ,  नज़र न आये  अम्मा को !

कितने अरमानों से उसने
भैया तेरा व्याह रचाया !  
कितनी आशाओं से उसने 
अपना बेटा, बड़ा बनाया !
धुंधली आँखों रोते रोते
सन्नाटों  में, घुलती रहती !
कैसा शाप मिला है  भैया,
तेरे जन्म से , अम्मा को !
ब्याह रचाकर , कुछ बरसों में , भूले केवल अम्मा को !


38 comments:

  1. बहुत संवेदनशील और सार्थक रचना।

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  2. समय कभी यदि गहराता हो,
    यादें आती अम्मा की।

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  3. अच्छी रचना है ... उस माँ को नहीं भूल सकते .....

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  4. वही पुराना , आश्रय तेरा ,
    आज बहुत बीमार हुआ है !
    जिसने तुमको पाला पोसा
    आज बहुत लाचार हुआ है !
    कैसा शाप मिला था भैया,तेरे जन्म से अम्मा को !
    बीवी पाकर,कुछ बरसों में, भूले केवल अम्मा को !
    bhaukta se ot-prot .

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  5. अकथ कहानी घर घर की

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  6. कड़वी सच्चाई का एहसास कराती, अपनी मार्मिकता से भाउक करती साथ ही साथ गहराई से तंज कसती हुई गीतों की पंक्तियाँ हृदय में उतरती चली जाती है।

    घर न भूले, खेत न भूले, केवल भूले अम्मा को!...जोरदार।

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  7. sateesh ji , aapke geet ne maa kee yaad ko aur bheega kar diya .
    salaam aapke lekhna ko .

    GOD bless you.

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  8. कड़वी सच्चाई से झकझोरती शानदार प्रस्तुती

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  9. कहानी घर -घर की :(

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  10. भावपूर्ण सुन्दर ......

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  11. बहुत सही-
    लताड़ लगानी ही चाहिए जो माँ का लाड भूले -
    सार्थक प्रस्तुति-
    आभार-

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  12. बेहद सार्थक रचना...एक सच्चाई का एहसास कराती...

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  13. संवेदनाओं से भरपूर ... अम्मा को भूलना या भुलाना आसान तो नहीं ...

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  14. बहुत सुंदर , दिल भर आया

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  15. पता नहीं कैसे - अम्मा की हथेलियाँ भूल जाता है इंसान

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  16. बहुत ही भावपूर्ण और अम्मा के जिम्मेदारी से अवगत करते हुए
    और भी बहुत कुछ कहती हुई... सुंदर रचना ....

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  17. क्या कहूँ निशब्द हूँ आपका ये गीत पढ़ कर,ये गीत हर उस युवा पीढ़ी के लिए है जो अपने स्वार्थ में अपनी जड़ों को ही भूल गया ,सच में इस गीत ने दिल में तूफ़ान सा खड़ा कर दिया | फेसबुक पर पोस्ट करना चाहूंगी इस गीत को

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    Replies
    1. जरूर करिए , लिंक दे रहा हूँ . . .
      http://satish-saxena.blogspot.in/2013/10/blog-post_26.html

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  18. भूले कोई पर कैसे भूले अम्मा को ?

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  19. यह अम्‍मा जो जीवन 'आश्रय' है, कितनी लाचार हो जाती है! आपके गीत को लगभग गुनगुनाते हुए पढ़ा, इससे अंदाजा हो जाए कि यह कितना प्रभावी है। ...ये लाइन खास रही मेरे लिए 'जिसके कन्‍धे का सहारा पाकर तुम अपने को रक्षित पाते'.....

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  20. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.

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  21. sach ......dil ..dhundhta hai phir wahi puraane din .....

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  22. बहुत सुंदर और उम्दा अभिव्यक्ति...बधाई...

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  23. कैसे भूले अम्मा को...सच में...दिल को छू गई!!

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  24. अम्‍मा को भूलना पीढ़ी दर पीढ़ी चालू है। अच्‍छी रचना।

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  25. घर न भूले खेत न भूले केवल भूले अम्मा को,
    सटीक बाते कही है इस रचना में !

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  26. यह भी एक विडंबना ही है, सशक्त रचना.

    रामराम.

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  27. Aaj hi Patna se lauta hoon... Amma ko achanak stroke hua.. Aapke is geet ne dil ko chhuaa hai..

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    1. बेहद अफ़सोस हुआ , इस उम्र में ,आपको बेहद सावधानी रखनी होगी सलिल :(

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  28. वही पुराना , आश्रय तेरा ,
    आज बहुत बीमार हुआ है !
    जिसने तुमको पाला पोसा
    आज बहुत लाचार हुआ है !
    कैसा शाप मिला था भैया,तेरे जन्म से अम्मा को !
    बीवी पाकर,कुछ बरसों में, भूले केवल अम्मा को !
    दिल को छु लिया |
    नई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )

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  29. माँ बस ये शब्द ही काफी है सुन्दर रचना |

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  30. Bahut dinon baad hindi kavita padhi aur woh bhi Itni bhavpoorn ki man gadgad ho gaya. Keep writing Satish apki kalam mein kuch baat hai :)

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  31. भावमय करते शब्‍द ....

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  32. अहम् के अन्धकार में भटकती संवेदनहीन संतानों को रोशनी दिखाती बहुत ही सार्थक, सशक्त एवं अविस्मरणीय रचना ! अति सुन्दर !

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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