Wednesday, October 30, 2013

अवहेलना जरूरी है ! - सतीश सक्सेना


मानव रूपी, कुत्तों से
रात में जगे, भेड़ियों से
राजनीति के दल्लों की  
खादी की, पोशाकों से
बदन के भूखे मालिक से, बेईमान  तराजू से !
अब संघर्ष जरूरी है !

साधू बने , डकैतों को
नफरत के हरकारों को
बेसिर की अफवाहों को
धर्म के धंधेबाज़ों को !
नक़ल मारते लड़कों को, जमाखोर गद्दारों को !
थप्पड़ एक जरूरी है !

इन भूखे मज़दूरों को 
नंगे पैर किसानो को 
चाय बेचने वालों को 
बिना सहारे वृद्धों को 
शिक्षक और स्कूलों को, घर की अनपढ़ माँओं को,
राहत बहुत जरूरी है!

वधूपक्ष को धमकी की 
धन अर्पण के रस्मों की
रिश्तेदार, लिफाफों की
बेमन जाती , भेंटों की
रिश्तों से उम्मीदों की , झूठे प्यार दिखावे की !
अवहेलना जरूरी है !

मास्क लगाए चेहरों से
मक्कारों के वादों से !

आस्था के व्यापारों से
कृपा रूप ,सम्मानों से
बिके मीडिया वालों से, नेताओं के वादों से !
प्रबल विरोध जरूरी है !

सत्ता के मक्कारों को
नेताओं के धन्धों को ,
देश बेचते, दल्लों को
निपट धूर्त सरदारों को
पुलिस में बेईमानों को, संसद के गद्दारों को !
सीधी जेल जरूरी है !

20 comments:

  1. पहला ही पैरा इतना चोट मारता है कि आगे क्या पढ़ें ! एक बार फिर बढ़िया कविता !

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  2. bahut hi khoobasoorat rachana abhivyakti . antim pankti bahut badhiya rahi ... abhaar

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  3. आज सोच भी रहा था कि बहुत दिनों से कहीं से जूतास्त्र एवं चप्पलास्त्र चलने का समाचार नहीं आ रहा है। वर्तमान हालातों पर प्रहार कर चेतना जगाते ओज पूर्ण काव्य के लिए आभार।

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  4. हमारी ज़रूरतें बढ़ती ही जा रही हैं, अब तो पूरा करना ही होगा, देश हित में।

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  5. बहुत सुंदर ! आ. सतीश जी .

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  6. अन्तिम पैरे ने बड़ी राहत दी।

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  7. सटीक...जबरदस्त!!

    राहत बहुत जरुरी है!!

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  8. आजकल क्या कुछ स्पेशियल
    खिलाया जा रहा है ?
    एक के बाद एक जैसे
    कागज में बम मारा जा रहा है
    लिखते चले जाओगे
    ऐसे ही अगर जनाब
    डर के कहने लगेंगे लोग
    पढ़ने को आजकल
    वो इस गली से
    भी नहीं जा पा रहा है !

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  9. यथार्थ ,सटीक रचना .......

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  10. बेहद सुन्दर रचना -जरुरी है
    नई पोस्ट हम-तुम अकेले

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  11. आज के हालातों पर सटीक सार्थक रचना …

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  12. क्रांति की जरूरत है आज.

    रामराम.

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  13. सुन्दर-भाव, सटीक शब्द-विन्यास ।

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  14. आज तो मंचीय कविता लिख दी भाई जी ! बधाई !

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  15. समाज की वर्तमान स्थिति को देखते हुए सटीक लेखन...हर पंक्ति मन में आक्रोश भार जातीहै..शुभकामना...

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  16. एक बात जरुर समझ में आई कि जिंदगी के हर सही काम के लिए ...विद्रोह बहुत जरुरी है

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- सतीश सक्सेना

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